prerak prasang rajeshwaranand ji धन्य है सत्पुरषों का संग

prerak prasang rajeshwaranand ji / दृष्टान्त- धन्य है सत्पुरषों का संग 

माधवदास जी द्वारा बृद्धा माता को पोता प्रदान करना। 

एक महात्मा थे श्री माधव दास जी महाराज, श्री वृंदावन धाम में निवास किया करते थे। एक बार श्री जगन्नाथ पुरी जा कर रहे तो वे नित्य भिक्षा के लिए जाते थे। 

नारायण हरि – भिक्षां देहि कहकर भिक्षा मांगा करते थे, लोग अपना सौभाग्य मानते थे।  संत को भिक्षा देकर अपने धन-धान्य को धन्य करते थे। prerak prasang rajeshwaranand ji और एक वृद्धा माता कुछ नहीं देती थी गाली देती थी कहती  निठल्ले कुछ नहीं किया जाता और निकल आते हैं दे दो दे दे दो।  

और महात्मा भी बड़े अद्भुत उसके घर जरूर जाते , किसी ने उनसे कहा कि बाबा अरे जब वह कुछ नहीं देती है उनके यहां क्यों जाते हो ?

माधव दास जी बोले अरे वह वो चीज देती है जो कोई नहीं देता , गाली तो देती है कुछ ना कुछ तो देती है। 

खोद खाद धरती से काट कूट वन राय। 

कुटिल वचन साधु सहे सबसे सहा न जाए।।  

अच्छा बृद्धा माता के बेटे का विवाह हो गया था, बेटे के घर किसी बेटे का जन्म नहीं हुआ था। prerak prasang rajeshwaranand ji पौत्र का जन्म नहीं हुआ था इसलिए वह वृद्धा माता बड़ी दुखी रहती थी। 

महात्मा को देखकर गाली देती एक दिन सदा की तरह माधव दास जी उसके दरवाजे पर गए।  कहने लगी तू फिर आ गया निठल्ले ? 

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कपड़े का पोता लेकर हाथ में पुताई का काम कर रही थी, कीचड़ से सना हुआ वह वस्त्र खंड महात्मा को देखकर वृद्धा माता ने फेंककर उस पोता से महात्मा को मारा। 

 वह वस्त्र खंड महात्मा के जाकर छाती से लगा और नीचे गिर गया, बुढ़िया ने मार तो दिया लेकिन डर गई कहीं बाबा श्राप न दे दे ?

लेकिन महात्मा मुस्कुराने लगे और वह कपड़े का वस्त्र खंड उठा कर बोले चल मैया तूने कुछ दिया तो, लेकिन अब हम भी बिना दिए नहीं जाएंगे। 

संत माधव दास भी उत्तर इसी का देगा। 

पोता अगर दिया है तो जा पोता तुझे मिलेगा।। 

संत की बात मिथ्या नहीं जाती भगवान भी संतो की बात की मर्यादा रखते हैंrajeshwaranand ji । भगवान संत की मर्यादा रखे उसके घर पोता का जन्म हुआ। 

वह कहती थी- 

  1. पोता दियो ना प्रेम से रिसिवस दीन्हो मार। ऐसे पुण्यन सो सखी मेरे पोता खेलत द्वार।।
  2. जो मैं ऐसे संत को देती प्रेम प्रसाद। तो घर में सुत उपजते जैसे ध्रुव प्रहलाद।।

 माधव दास जी उस मिट्टी कीचड़ से सने हुए वस्त्र को लेकर आए जल से धुला उसके मटमैलेपन को दूर किया। कंकड़ों को धोया साफ कर दिया। 

और फिर घी में डाल दिया और घी से निकाल कर बत्ती बना दी और फिर दीया जला दी और मंदिर पर रख दिया उसको और वह वस्त्र खंड अपने सौभाग्य की सराहना करते हुए कह रहा है- rajeshwaranand ji

धन्य है सत पुरुषों का संग, बदल देता है जीवन का रंग। 

पोता में रोता था जहां रक्त और पीर, चौकी में फेरा जाता था मरते थे लाखों जीव। 

आ गया था जीवन से तंग, धन्य है सत पुरुषों का संग।  

और महात्मा ने क्या किया मिट्टी कंकड़ साफ कर दिया तो अब की दसा क्या है।  

झूला करूँ आरती ऊपर गरुण करे गुनगाथ।  

देते हैं मेरे प्रकाश में दरसन दीनानाथ।। 

आशीषें अंधे और अपंग धन्य है सत्पुरषों का संग। 

अब मैं आरती के ऊपर झूलता हूँ , मेरे प्रकाश से लोगों को भगवान् का दरसन होता है। अंधे अपांग आशीष देते हैं।  भक्त उमंग में भरकर मुझे स्वीकार करते हैं। 

जिंदगी बदल दी केवल महात्मा के सत्संग ने  अब मैं आरती के ऊपर झूलता हूं और मेरे प्रकाश में भगवान के दर्शन लोगों को होता है। 

अपंग अंधे आशीष देते हैं, भक्त उमंग में भरकर मुझे स्वीकार करते हैं जिंदगी बदल दी  केवल महात्मा के सत्संग ने। 

prerak prasang rajeshwaranand ji धन्य है सत्पुरषों का संग

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