॥दीपावली पूजन की विधि:॥
दिवाली पर लक्ष्मी पूजन शुरू करने से पहले गणेश-लक्ष्मी के विराजने की जगह को अच्छे-से साफ करें। वहां रंगोली बनाएं और गंगा जल छिड़ककर इस मंत्र का जाप करना चाहिए:-
‘ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।

य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभ्यतंरं शुचि:’।
लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर लक्ष्मी का ध्यान करें और मूर्तियों को चौकी पर आदर और श्रद्धाभाव के साथ बैठाएं।अब आचमन करना होगा।इसके लिए दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें और बोलें:-
ॐ केशवाय नमः।
ॐ नारायणाय नमः।
ॐ माधवाय नमः।
ॐ गोविन्दाय नमः॥
(‘हस्तं प्रक्षालयामि।’मंत्र पढ़ने के बाद हाथ धो लें।)
इसके बाद ही दीप प्रज्ज्वलित करना चाहिए।दीप जलाते समय बोलें, ‘दीप ज्योति महादेवि शुभं भवतु मे सदा’।फिर माँ लक्ष्मी का आह्वान करें।इसके लिए आह्वान की मुद्रा में बैठकर कहें, ‘हे महादेवी लक्ष्मी,मैं आपका आह्वान करता हूँ।आप मेरा आह्वान स्वीकार करें और पधारें।’ पांच फूल हाथ में लेकर अर्पित करें और माँ से ‘श्री लक्ष्म्यै देव्यै पंच पुष्पाणि समर्पयामि’ कहते हुए आसन ग्रहण करने का निवेदन करें।इसके बाद माँ लक्ष्मी का यह कहकर स्वागत करें ‘श्री लक्ष्मी देवि स्वागतम्’।
स्वागत के बाद मां के चरण प्रक्षालन के लिए ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै पाद्यं समर्पयामि’ बोलते हुए उनके चरणों में जल समर्पित करें।फिर उनके सिर के अभिषेक के लिए ‘श्रीलक्ष्मी देव्यै अर्घ्य समर्पयामि’ कहकर अर्घ्य दें।सिर के अभिषेक के बाद स्नान कराया जाता है।इसके लिए ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै जलं समर्पयामि’ कहते हुए गंगा जल मिश्रित जल से स्नान करवाएं।
अगले चरण में पंचामृत स्नान कराते हैं।इसका मंत्र है, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै पंचामृत स्नानं समर्पयामि’।फिर ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै गंधं समर्पयामि’ कहकर कराते हैं गंध स्नान।
इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करवाया जाता है।जल स्नान के लिए कहें ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि’।फिर माँ लक्ष्मी को वस्त्र समर्पित किए जाते हैं।मौली का एक टुकड़ा लेकर ‘श्री लक्ष्मीदेव्यै वस्त्रं समर्पयामि’ कहते हुए माँ लक्ष्मी को समर्पित कर दें।अब बारी है मधु पर्क समर्पित करने की।मधु पर्क यानी दूध और शहद का मिश्रण समर्पित करने के लिए बोलें, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै मधुपर्क समर्पयामि’।मधुपर्क के बाद माँ लक्ष्मी को आभूषण समर्पित किया जाता है।इसके लिए बोलते हैं, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै आभूषणानि समर्पयामि’।
आभूषण के बाद माँ को रक्त चंदन यानी लाल चंदन समर्पित करते हैं।इसके लिए कहें, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै रक्तचंदनं समर्पयामि’।इसके बाद माँ को सिंदूर चढ़ाते हैं। ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै सिंदूरं समर्पयामि’ कहते हुए उन्हें सिंदूर समर्पित करें।फिर ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै कुंकुमं समर्पयामि’ कहते हुए कुमकुम चढ़ाएं।
अब होगा षोडशोपचार पूजन।इसके तहत सोलह प्रकार के भिन्न-भिन्न पदार्थ माँ लक्ष्मी के चरणों में समर्पित किए जाते हैं।इनकी भी प्रक्रिया पहले जैसी है।मंत्र पढ़ते हुए एक-एक पदार्थ माँ को समर्पित करते जाएं।
सबसे पहले मां के चरणों में अगर गुलाल समर्पित चढ़ाते हैं।इसका मंत्र है, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै अबीरगुलालं समर्पयामि’।सुगंधित द्रव्य के लिए कहते हैं, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै सुगंधिततैलं समर्पयामि’।सुगंधित तेल के बाद माँ को अक्षत समर्पित करें।इसके लिए बोलना चाहिए, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै अक्षतं समर्पयामि’।फिर चंदन समर्पित किया जाता है। ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै चंदनं समर्पयामि’ कहते हुए चंदन चढ़ाएं।चंदन के बाद ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै पुष्पाणि समर्पयामि’ कहते हुए उनके चरणों में पुष्प अर्पित करें।
पुष्प समर्पण के बाद माँ लक्ष्मी की प्रतिमा के सभी अंगों का पूजन किया जाता है।इसके लिए अपने बायें हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर दाहिने हाथ से माँ लक्ष्मी की प्रतिमा के आगे छोड़ते जाएं,
ॐ चपलायै नम:।पादौ पूजयामि।
ॐ चंचलायै नम:।जानुनी पूजयामि।
ॐ कमलायै नम:।कटिं पूजयामि।
ॐ कात्यायन्यै नम:।नाभिं पूजयामि।
ॐ जगन्मात्रै नम:।जठरं पूजयामि।
ॐ विश्व-वल्लभायै नम:।वक्ष-स्थलं पूजयामि।
ॐ कमल-वासिन्यै नम:।हस्तौ पूजयामि।
ॐ कमल-पत्राक्ष्यै नम:।नेत्र-त्रयं पूजयामि।
ॐ श्रियै नम:। शिर: पूजयामि॥
अंग पूजन के बाद अष्ट सिद्धि के पूजन का विधान है।पहले की तरह अपने बाएं हाथ में अक्षत और फूल लेकर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा के साथ ही इस प्रकार से अष्ट सिद्धि पूजन करें। एक-एक मंत्र के उच्चारण के बाद अक्षत और पुष्प समर्पित करते जाएं,
‘ॐ अणिम्ने नमः’
‘ॐ महिम्ने नमः’
‘ॐ गरिम्णे नमः’
‘ॐ लघिम्ने नमः’
‘ॐ प्राप्त्यै नमः’
‘ॐ प्रकाम्यै नमः’
‘ॐ ईशितायै नमः’
‘ॐ वशितायै नमः॥‘
अष्ट सिद्धि के पूजन के बाद अष्ट लक्ष्मी का पूजन भी करना चाहिए।अष्ट लक्ष्मी के पूजन के लिए भी पहले की तरह ही अक्षत लेकर इन मंत्रों के साथ अक्षत समर्पित करते जाएं।
इसके बाद ‘श्रीलक्ष्मी देव्यै धूपं समर्पयामि’ कहते हुए उन्हें धूप समर्पित करें।धूप के बाद माँ को ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै दीपं समर्पयामि’ कहते हुए दीप समर्पित करें।‘श्रीलक्ष्मी देव्यै नैवेद्यं समर्पयामि’ कहते हुए नैवेद्य,‘श्रीलक्ष्मी देव्यै जलं समर्पयामि’ मंत्र के साथ जल और ‘श्रीलक्ष्मी देव्यै चंदनं समर्पयामि’ का जाप करते हुए चंदन अर्पित कीजिए।फिर माँ के चरणों में ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै मुखवासार्थ पूगीफलयुक्तं तांबूलं समर्पयामि‘ कहते हुए तांबूल यानी पान और सुपारी चढ़ाएं।तांबूल समर्पण के बाद ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै सुवर्णपुष्प दक्षिणां समर्पयामि’ कहते हुए धन समर्पित करें।दक्षिणा के बाद अपने हाथों में फूल लेकर माँ की प्रतिमा के बाएं से दाएं ओर प्रदक्षिणा करें और पुष्प समर्पित करें।मन ही मन में माँ से कहें कि हे लक्ष्मी माता,मुझसे जितने भी पाप हुए हैं उनके लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ।यह कहते हुए पुष्पांजलि समर्पित कर दें और माँ के चरणों में साष्टांग प्रणाम करें।आरती करके प्रसाद वितरण कीजियेगा॥

 

श्रीमहालक्ष्मी पूजन

भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य एवं अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियोंकी अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं। भगवान् श्रीगणेश सिद्धि, बुद्धिके एवं शुभ और लाभके स्वामी तथा सभी अमङ्गलों एवं विघ्नोंके नाशक हैं, ये सत् बुद्धि प्रदान करनेवाले हैं। अतः इनके समवेत-पूजनसे सभी कल्याण मङ्गल एवं आनन्द प्राप्त होते हैं ।

कार्तिक कृष्ण अमावास्याको भगवती श्रीमहालक्ष्मी एवं भगवान् गणेशकी नूतन प्रतिमाओंका प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन किया जाता है। पूजनके लिये किसी चौकी अथवा कपड़ेके पवित्र आसनपर गणेशजीके दाहिने भागमें माता महालक्ष्मीको स्थापित करना चाहिये। पूजनके दिन घरको स्वच्छ कर पूजन- स्थानको भी पवित्र कर लेना चाहिये और स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सायंकालमें इनका पूजन करना चाहिये । मूर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मीजीके पास ही किसी पवित्र पात्रमें केसरयुक्त चन्दनसे अष्टदल कमल बनाकर उसपर द्रव्य – लक्ष्मी ( रुपयों) को भी स्थापित करके एक साथ ही दोनोंकी पूजा करनी चाहिये। पूजन-सामग्रीको यथास्थान रख ले।

सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्रीधारण, मार्जन-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा सामग्रीपर निम्न मन्त्र पढ़कर जल छिड़के-

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥

आचमन – (दाहिने हाथ में जल लेकर ऋषि तीर्थ से (हथेली के मूल भाग से) तीन बार जल पी लेवें)
ॐ केशवाय नमः । ॐ नारायणाय नमः । ॐ माधवाय नमः । ॐ हृषीकेशाय नमः । (हाथ शुद्ध कर लें )
पवित्रीधारण- ( दांये हाथ की अनामिका में दो कुश की तथा बायें हाथ की अनामिका में तीन कुश की पवित्री धारण करें।)

ॐ पवित्र्त्रे स्त्थो व्वैष्णव्यौ सवितुर्व्व: प्प्रसव उत्त्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्य्यस्य रश्मिभिः । तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ।। 

कुशैः निर्मितां रम्यां पवित्रां देवप्रीतिदाम् । 

प्रशमनायासुरीं शक्तिं पवित्रीं धारयाम्यहम् ।।
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । पुण्डरीकाक्षः पुनातु । पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ।

आसनशुद्धि-
(आसन पर जल छिड़कें अथवा आसन का दोनों हाथ से स्पर्श करें)
ॐ स्योना पृथिविनो भवान्नृक्षरा निवेशनी । यच्छानः शर्म्म सप्प्रथाः ।।
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ।।

तिलक धारण- (रोली अक्षत से यजमान के माथे पर तिलक लगावें । )

ॐ सुचक्षा अहमक्षीभ्यां भूया स गुं सुवर्चा मुखेन । सुश्रुत्कर्णाभ्याम्भूयासम् ।।
ॐ आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः ।

तिलकं तु प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थ सिद्धये ॥

उपवीत धारण- (यदि यजमान का उपनयन हुआ हो तो जोड़ा जनेऊ धारण करे)

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः । । 

शिखाबन्धन- (शिखा बाँधे, यदि शिखा न हो तो शिखा का स्पर्श ही कर लें। )
ॐ मानस्तोके तनये मान आयुषिमानो गोषुमानो अश्वेषुरीरिषः । 

मानोव्वीरान्नुद्र भामिनो व्वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वाहवामहे ।। 

ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।

तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजो बृद्धिं कुरुष्व मे ।।

ग्रन्थिबन्धन- (यदि पूजन में पति-पत्नी बैठे हों तो पत्नी के उपवस्त्र (चुनरी ) में अक्षत पुष्प, द्रव्य, सुपाड़ी बाँधकर पति के अंगौछा से जोड़कर दोनों रख लें।)

स्वस्तिवाचनम् – यजमान हाथ में अक्षत पुष्प लेकर गणेशजी का ध्यान करते हुए ब्राह्मणों द्वारा किये जा रहे स्वस्ति पाठ को सुने ।
ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु व्विश्श्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः । 

देवा नो यथा सदमिद् वृधेऽअसन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे ।। १ ।।
देवानां भद्द्द्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवाना गुं रातिरभि नो निवर्त्तताम् । 

देवाना गुं सख्यमुपसेदिमा ळ्यं देवा न आयुः प्प्रतिरन्तु जीवसे ॥२॥
निविदा हूमहे व्वयं तान्पूर्व्वया भगम्मित्रमदितिन्दक्षमस्रिधम् । 

अर्य्यमणं व्वरुण गुं सोममश्श्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्क्करत्।।३।।
तन्नो व्वातो मयोभु व्वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः । 

तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम् ।।४।
तमीशानञ्जगतस्तस्त्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे व्यम्। 

पूषा नो यथा व्वेद सामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ।।५।।

स्वस्ति न इन्द्रो व्वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा व्विश्ववेदाः 

स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्तिनो बृहस्पतिर्द्दधातु ।।६
पृषदश्श्वामरुतः पृश्निमातरः शुभं य्यावानो व्विदथेषु जग्मयः । 

अग्निर्जिह्वा मनवः सूरचक्षसो व्विश्श्वे नो देवाऽअवसागमन्निह । ॥ ७ ॥ ॥
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्य्यजत्राः 

स्थिरैरङ्गैस्तुष्टटुवा गुं सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं य्यदायुः ।।८॥
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्का जरसं तनूनाम् । 

पुत्रासो यत्र यत्र पितरो भवन्ति मा नो मद्ध्यारीरिषतायुर्गन्तोः । । ९ ।।
अदितिद्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः । 

व्विश्वे देवा अदिति: पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्ज्जनित्वम् ।।१०।।
द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष गुं शान्तिः प्पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।  व्वनस्पतयः शान्तिर्व्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व्व गुं शान्तिः 

शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।।११।।
यतो यतः समीहसे ततो नो ऽअभयकुरु । 

शन्नः कुरु प्रजांब्भ्योऽभयन्नः पशुब्भ्यः ।। १२ ।।
विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद्भद्रं३ तन्न आसुव ।। १३ ।। 

सुशान्तिर्भवतु सर्वारिष्टशान्तिर्भवतु ।।
(अक्षत पुष्प गणेश जी के सामने चढ़ा दें)

मङ्गल-श्लोकपाठः
अक्षत पुष्प लेकर मंगलपाठ पूर्वक गणेशादि देवों का स्मरण करें।

ॐ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः । 

लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥ १ ॥ 

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः । 

द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥ २ ॥ 

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा । 

सङ्ग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते । । ३ ॥ 

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् । 

प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये || ४ ||


अभीप्सितार्थ-सिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुराऽसुरैः । 

सर्वविघ्न – हरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥५॥
सर्वमङ्गल-माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके !। 

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि ! नमोऽस्तु ते ॥६॥ 

सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम्। 

येषां हृदिस्थो भगवान् मङ्गलायतनं हरिः ॥ ७॥ 

तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव । 

विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि ॥८॥ 

लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः ।
येषामिन्दीवर – श्यामो हृदयस्थो जनार्दनः॥९॥

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । 

तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥ १० ॥ 

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । 

तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥ ११ ॥ 

स्मृतेः सकल-कल्याणं भाजनं यत्र जायते । 

पुरुषं तमजं नित्यं व्रजामि शरणं हरिम् ॥ १२ ॥ 

सर्वेष्वारम्भ-कार्येषु त्रयस्त्रि – भुवनेश्वराः । 

देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रह्मेशान – जनार्दनाः || १३|| 

विश्वेशं माधवं दुण्ढिं दण्डपाणिं च भैरवम् । 

वन्दे काशीं गुहां गङ्गां भवानीं मणिकर्णिकाम् ।।१४।। 

श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।।

हाथमें जल-अक्षतादि लेकर पूजनका संकल्प करे नित्यकर्म-पूजाप्रकाश

संकल्प — ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवश्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि- प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे पुण्यक्षेत्रे ( प्रयाग / काशी / क्षेत्रे ) – मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ अमुक वासरे अमुक गोत्रोत्पन्न: अमुक नाम शर्मा ( वर्मा, गुप्तः, दासः ) अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिक वाचिक मानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये । तदङ्गत्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये ।

यह संकल्प-वाक्य पढ़कर जलाक्षतादि गणेशजीके समीप छोड़ दे। अनन्तर सर्वप्रथम गणेशजीका पूजन करे ।

गणेश-पूजनसे पूर्व उस नूतन प्रतिमाकी निम्न-रीतिसे प्राण-प्रतिष्ठा कर लेप्रतिष्ठा – बायें हाथमें अक्षत लेकर निम्न मन्त्रोंको पढ़ते हुए हाथसे उन अक्षतोंको गणेशजीकी प्रतिमापर छोड़ता जाय दाहिने-

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञः समिमं दधातु । विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ म्प्रतिष्ठ ।

ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च ।

अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥

इस प्रकार प्रतिष्ठा कर भगवान् गणेशका षोडशोपचार पूजन तदनन्तर नवग्रह, षोडशमातृका तथा कलश-पूजन करे ।

इसके बाद प्रधान-पूजामें भगवती महालक्ष्मीका पूजन करे। पूजन पूर्व नूतन प्रतिमा तथा द्रव्यलक्ष्मीकी ‘ॐ मनो जति०’ तथा ‘अस्यै प्राणाः’ इत्यादि मन्त्र पढ़कर पूर्वोक्त रीतिसे प्राण प्रतिष्ठा कर ले ।

सर्वप्रथम भगवती महालक्ष्मीका हाथमें फूल लेकर इस प्रकार ध्यान करेध्यान—

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया ।

या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः

सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता 11

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। (ध्यानके लिये पुष्प अर्पित करे ।)

आवाहन –

सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम् ।

सर्वदेवमयीमीशां देवीमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । महालक्ष्मीमावाहयामि, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि । (आवाहनके लिये पुष्प दे । )

आसन –

तप्तकाञ्चनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम् ।

अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ अश्वपूर्वी रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।

श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । आसनं समर्पयामि । (आसनके लिये कमलादिके पुष्प अर्पण करे ।)

पाद्य –

गङ्गादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम् ।

पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते ॥

ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।

पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पादयोः पाद्यं समर्पयामि । ( चन्दन, पुष्पादियुक्त जल अर्पित करे )

अर्घ्य –

अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम् ।

अर्घ्यं गृहाण मद्दत्तं महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥

ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।

तां पद्मनीमीं शरणं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥

महालक्ष्म्यै नमः । हस्तयोरर्घ्यं (अष्टगन्धमिश्रित * जल अर्घ्यपात्रसे देवीके हाथों में दे ।)

आचमन –

सर्वलोकस्य या शक्तिर्ब्रह्मविष्णवादिभिः स्तुता । –

ददाम्याचमनं तस्यै महालक्ष्म्यै मनोहरम् ॥

ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमनके लिये जल चढ़ाये ।)

स्नान –

मन्दाकिन्या: समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः ।

कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । स्नानं समर्पयामि । (स्नानीय जल अर्पित करे ।) स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (स्नानके बाद ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ ऐसा उच्चारण कर आचमनके लिये जल दे।)

दुग्धस्नान –

कामधेनुसमुत्पन्नं – सर्वेषां जीवनं परम् ।

पावनं यज्ञहेतुश्च पय: स्नानार्थमर्पितम् ॥

ॐ पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।

पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पयःस्नानं समर्पयामि । पय: स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (गौके कच्चे दूधसे स्नान कराये, पुनः शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

दधिस्नान –

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् ।

दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः सुरभि मुखा करत्प्र ण आयू gung षि तारिषत् ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः | दधिस्नानं समर्पयामि । दधिस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (दधिसे स्नान कराये, फिर शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

घृतस्नान –

नवनीतसमुत्पन्नं -सर्वसंतोषकारकम् ।

घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा । दिश: प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । घृतस्नानं समर्पयामि । घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (घृतसे स्नान कराये तथा फिर शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

मधुस्नान –

तरुपुष्पसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।

तेज:पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः । माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥ मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥ मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ २ अस्तु सूर्यः । माध्वीर्गावो भवन्तु नः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । मधुस्नानं समर्पयामि । मधुस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । ( मधु ( शहद ) – से स्नान कराये, पुनः शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

शर्करास्नान –

इक्षुसारसमुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका ।

मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ अपा gung रसमुद्वयसः gung सूर्ये सन्तः gung समाहितम् । अपा gung रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतो ऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करास्नानान्ते पुनः शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (शर्करासे स्नान कराकर पश्चात् शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

पञ्चामृतस्नान —

एकत्र मिश्रित पञ्चामृतसे एकतन्त्रसे निम्न मन्त्रसे स्नान कराये –

पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम् ।

पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः । सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत् सरित् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि, पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (पञ्चामृतस्नानके अनन्तर शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

(यदि अभिषेक करना अभीष्ट हो तो शुद्ध जल या दुग्धादिसे ‘श्रीसूक्त’ का पाठ करते हुए अखण्ड जलधारासे स्नान (अभिषेक) कराये। मृण्मय प्रतिमा अखण्ड जलधारासे क्षरित न हो जाय आशयसे धातुकी मूर्ति या द्रव्यलक्ष्मीपर अभिषेक किया जाता है, इसे पृथक् पात्रमें कराना चाहिये ।)

गन्धोदकस्नान

मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम् । –

चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । गन्धोदकस्नानं समर्पयामि । (गन्ध (चन्दन) मिश्रित जलसे स्नान कराये । )

शुद्धोदकस्नान –

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।

तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । गङ्गा अथवा शुद्ध जलसे स्नान कराये, तदनन्तर प्रतिमाका अङ्ग-प्रोक्षण कर (पोंछकर) उसे यथास्थान आसनपर स्थापित करे और निम्नरूपसे उत्तराङ्ग-पूजन करे ।) – –

आचमन

ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ ऐसा क आचमनीय जल अर्पित करे ।)

वस्त्र –

दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम् ।

दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ॥

ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।

प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (वस्त्र अर्पित करे, आचमनीय जल दे ।)

उपवस्त्र –

कञ्चुकीमुपवस्त्रं च नानारत्नैः समन्वितम् ।

गृहाण त्वं मया दत्तं मङ्गले जगदीश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः | उपवस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (कञ्चुकी आदि उत्तरीय वस्त्र चढ़ाये, आचमनके लिये जल दे।)

– मधुपर्क –

कांस्ये कांस्येन पिहितो दधिमध्वाज्यसंयुतः ।

मधुपर्को मयानीतः पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । मधुपर्कं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (काँस्यपात्र में स्थित मधुपर्क समर्पित कर आचमनके लिये जल दे ।)

आभूषण –

रत्नकङ्कणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च।

सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः ॥

ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।

अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । नानाविधानि कुण्डलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि । (आभूषण समर्पित करे ।)

गन्ध –

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् ।

विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।

ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । गन्धं समर्पयामि । (अनामिका अँगुलीसे केसरादिमिश्रित चन्दन अर्पित करे ।)

रक्तचन्दन –

रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम् ।

मया दत्तं महालक्ष्मि चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । रक्तचन्दनं समर्पयामि । (अनामिकासे रक्त चन्दन चढ़ाये ।)

सिन्दूर –

सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये ।

भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वात प्रमियः पतयन्ति यह्वाः ।

घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः | सिन्दूरं समर्पयामि । (देवीजीको सिन्दूर चढ़ाये ।)

कुङ्कुम –

कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कुङ्कुमं कामरूपिणम् ।

अखण्डकामसौभाग्यं कुङ्कुमं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । कुङ्कुमं समर्पयामि। (कुङ्कुम अर्पित करे।)

पुष्पसार ( इतर ) –

तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च ।

मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । सुगन्धिततैलं पुष्पसारं च समर्पयामि । ( सुगन्धित तेल एवं इतर चढ़ाये ।)

* अक्षत * –

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः ।

मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः | अक्षतान् समर्पयामि । (कुङ्कुमाक्त अक्षत अर्पित करे ।)

* देशाचारसे कहीं-कहीं महालक्ष्मीको अक्षतके स्थानपर हल्दी या धनिया तथा भोगमें गुड़का प्रसाद दिया जाता है।

पुष्प एवं पुष्पमाला –

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो ।

मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।

पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि । (देवीजीको पुष्पों तथा पुष्पमालाओंसे अलङ्कृत करे, यथासम्भव लाल कमलके फूलोंसे पूजा करे ।)

दूर्वा –

विष्ण्वादिसर्वदेवानां प्रियां सर्वसुशोभनाम् । –

क्षीरसागरसम्भूते दूर्वां स्वीकुरु सर्वदा ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि । (दूर्वाङ्कुर अर्पित करे ।)

अङ्ग- पूजा

रोली, कुङ्कुममिश्रित अक्षत- पुष्पोंसे निम्नाङ्कित एक-एक नाममन्त्र पढ़ते हुए अङ्ग – पूजा करे –

ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि । ॐ चञ्चलायै नमः, जानुनी पूजयामि । ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि । ॐ कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि । ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि । ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षःस्थलं पूजयामि । ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि । ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि । ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि । ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सर्वाङ्गं पूजयामि ।

अष्टसिद्धि-पूजन

इस प्रकार अङ्ग-पूजाके अनन्तर पूर्वादि-क्रमसे आठों दिशाओं में आठों सिद्धियोंकी पूजा कुङ्कुमाक्त अक्षतोंसे देवी महालक्ष्मीके पास निम्नाङ्कित मन्त्रोंसे करे-

१- ॐ अणिम्ने नमः ( पूर्वे), २-ॐ महिम्ने नमः (अग्निकोणे), ३-ॐ गरिम्णे नमः (दक्षिणे), ४-ॐ लघिम्ने नमः ( नैरृत्ये ), ५-ॐ प्राप्त्यै नमः ( पश्चिमे), ६-ॐ प्राकाम्यै नमः (वायव्ये), ७-ॐ ईशितायै नमः ( उत्तरे ) तथा ८-ॐ वशितायै नमः ( ऐशान्याम् ) ।

अष्टलक्ष्मी पूजन=

तदनन्तर पूर्वादि-क्रमसे आठों दिशाओंमें महालक्ष्मीके पास कुङ्कुमाक्त अक्षत तथा पुष्पोंसे एक-एक नाम-मन्त्र पढ़ते हुए आठ लक्ष्मियोंका पूजन करे१- ॐआद्यलक्ष्म्यै नमः, २-ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः, ३-ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः, ४-ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः, ५-ॐ कामलक्ष्म्यै नमः, ६-ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः, ७- ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः ८-ॐ योगलक्ष्म्यै नमः ।

धूप –

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः ।

आनेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।

श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, धूपमाघ्रापयामि । (धूप आघ्रापित करे ।)

दीप

कार्पासवर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम् ।

तमोनाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।

नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । दीपं दर्शयामि । (दीपक दिखाये और फिर हाथ धो ले।)

नैवेद्य –

नैवेद्यं – गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम् ।

षड्रसैरन्वितं दिव्यं लक्ष्मि देवि नमोऽस्तु ते ॥

ॐ आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । नैवेद्यं निवेदयामि, मध्ये पानीयम्, उत्तरापोऽशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि । (देवीजीको नैवेद्य निवेदित कर पानीय जल एवं हस्तादि प्रक्षालनके लिये भी जल अर्पित करे ।)

करोद्वर्तन –

‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ यह कहकर करोद्वर्तनके लिये हाथोंमें चन्दन उपलेपित करे।

आचमन –

शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम् ।

आचम्यतां जलं ह्येतत् प्रसीद परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि । (नैवेद्य अनन्तर आचमनके लिये जल दे ।)

ऋतुफल –

फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।

तस्मात् फलप्रदानेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अखण्डऋतुफलं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (ऋतुफल अर्पित करे तथा आचमनके लिये जल दे ।)

ताम्बूल – पूगीफल –

पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् । –

एलाचूर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ आर्द्रा यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि । ( एला, लवंग, पूगीफलयुक्त ताम्बूल अर्पित करे ।)

दक्षिणा –

हिरण्यगर्भगर्भस्थं – हेमबीजं विभावसोः ।

अनन्तपुण्यफलदमतः प्रयच्छ मे ॥

ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दक्षिणां समर्पयामि ।

(दक्षिणा चढ़ाये ।)

 नीराजन –

चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम् ।

आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नीराजनं समर्पयामि । ( आरती करे तथा जल छोड़े, हाथ धो ले ।)

प्रदक्षिणा –

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि । ( प्रदक्षिणा करे ।)

प्रार्थना – हाथ जोड़कर प्रार्थना करे-

सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकै

र्युक्तं सदा यत्तव पादपङ्कजम् ।

परावरं पातु वरं सुमङ्गलं

नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये ॥

भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी ।

सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि ! नमोऽस्तु ते ॥

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये ।

या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि । ( प्रार्थना करते हुए नमस्कार करे ।)

समर्पण –

पूजनके अन्तमें‘कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम ।’ (यह वाक्य उच्चारणकर समस्त पूजन-कर्म भगवती महालक्ष्मीको समर्पित करे तथा जल गिराये ।)

भगवती महालक्ष्मीके यथालब्धोपचार पूजनके अनन्तर महालक्ष्मीपूजनके अंग-रूप, श्रीदेहलीविनायक, मसिपात्र, लेखनी, सरस्वती, कुबेर, तुला-मान तथा दीपकोंकी पूजा की जाती है। संक्षेपमें उन्हें भी यहाँ दिया जा रहा है। सर्वप्रथम ‘देहलीविनायक’ की पूजा की जाती है—

देहलीविनायक – पूजन –

व्यापारिक प्रतिष्ठानादिमें दीवालोंपर ‘ॐ श्रीगणेशाय नमः’, ‘स्वस्तिक चिह्न’, ‘शुभ-लाभ’ आदि मांगलिक एवं कल्याणकर शब्द सिन्दूरादिसे लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दोंपर ‘ॐ देहलीविनायकाय नमः’ इस नाम – मन्त्रद्वारा गन्ध – पुष्पादिसे पूजन करे ।

श्रीमहाकाली ( दावात ) पूजन

स्याही- युक्त दावातको भगवती महालक्ष्मीके सामने पुष्प तथा अक्षतपुंजमें रखकर उसमें सिन्दूरसे स्वस्तिक बना दे तथा मौली लपेट दे। ‘ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः’ इस नाम-मन्त्रसे गन्ध-पुष्पादि पञ्चोपचारोंसे या षोडशोपचारोंसे दावातमें भगवती महाकालीका पूजन करे और अन्तमें इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करे-

कालिके! त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे ।

उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये ॥

या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तैः समस्तैर्व्यवहारदक्षैः ।

जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु ||

लेखनी-पूजन

लेखनी (कलम ) – पर मौली बाँधकर सामने रख ले और-

लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना ।

लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम् ॥

‘ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः’ इस नाम- मन्त्रद्वारा गन्ध- पुष्पाक्षत आदिसे पूजनकर इस प्रकार प्रार्थना करे–

शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यतः ।

अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ॥

सरस्वती – (पञ्जिका – बही-खाता) पूजन पञ्जिका—

बही, बसना तथा थैलीमें रोली या केसरयुक्त चन्दनसे स्वस्तिक चिह्न बनाये तथा थैलीमें पाँच हल्दीकी गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वतीका पूजन करे । सर्वप्रथम सरस्वतीजीका ध्यान इस प्रकार करे – – ध्यान –

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ॥

या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता ।

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥

 ‘ॐ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः’ –इस नाम-मन्त्रसे गन्धादि उपचारोंद्वारा पूजन करे ।

कुबेर

तिजोरी अथवा रुपये रखे जानेवाले संदूक आदिको स्वस्तिकादिसे पूजन अलङ्कत कर उसमें निधिपति कुबेरका आवाहन करे –

आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु ।

कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर ॥

आवाहनके पश्चात् ‘ॐ कुबेराय नमः’ इस नाम- मन्त्रसे यथालब्धोपचार पूजनकर अन्तमें इस प्रकार प्रार्थना करे-

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।

भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ॥

– इस प्रकार प्रार्थना कर पूर्वपूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादिसे युक्त थैली तिजोरीमें रखे।

तुला तथा मान-पूजन

सिन्दूरसे तराजू आदिपर स्वस्तिक बना ले। मौली लपेटकर तुलाधिष्ठातृ देवताका इस प्रकार ध्यान करना चाहिये-

नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता ।

साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना ॥

ध्यानके बाद ‘ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः’ इस नाम- मन्त्रसे गन्धाक्षतादि उपचारोंद्वारा पूजनकर नमस्कार करे।

दीपमालिका – ( दीपक ) पूजन

किसी पात्रमें ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकोंको प्रज्वलित कर महालक्ष्मीके समीप रखकर उस दीप – ज्योतिका ‘ॐ दीपावल्यै नमः’ इस नाम- मन्त्रसे गन्धादि उपचारोंद्वारा पूजनकर इस प्रकार प्रार्थना करे-

त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः ।

सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ॥

दीपमालिकाओंका पूजन कर अपने आचारके अनुसार संतरा, ईख, पानीफल, धानका लावा इत्यादि पदार्थ चढ़ाये। धानका लावा (खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओंको भी अर्पित करे। अन्तमें अन्य सभी दीपकोंको प्रज्वलित कर सम्पूर्ण गृह अलङ्कृत आरती करे।

इस प्रकार भगवती महालक्ष्मी तथा उनके सभी अंग-प्रत्यङ्गों एवं उपाङ्गोंका पूजन कर लेनेके अनन्तर प्रधान आरती करनी चाहिये। इसके लिये एक थाली में स्वस्तिक आदि माङ्गलिक चिह्न बनाकर अक्षत तथा   पुष्पोंके आसनपर किसी दीपक आदिमें घृतयुक्त बत्ती प्रज्वलित करे । एक पृथक् पात्रमें कर्पूर भी प्रज्वलित कर वह पात्र भी थालीमें यथास्थान रख ले, आरती – थालका जलसे प्रोक्षण कर ले। पुनः आसनपर खड़े होकर अन्य पारिवारिक जनोंके साथ घण्टानादपूर्वक निम्न आरती गाते हुए साङ्ग-महालक्ष्मीजीकी मंगल आरती करे –

श्रीलक्ष्मीजीकी आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया ) जय लक्ष्मी माता ।

मन्त्र – पुष्पाञ्जलि – दोनों हाथोंमें कमल आदिके पुष्प लेकर हाथ जोड़े और निम्न मन्त्रोंका पाठ करे-

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।

ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।

स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥

कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।

ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौम: सार्वायुषान्तादापरार्धात्। पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ।

 

ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात् ।

सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन् देव एकः ॥

महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।

ॐ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः

पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा

तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि । (हाथमें फूल महालक्ष्मीपर चढ़ा दे ।) प्रदक्षिणा कर साष्टाङ्ग प्रणाम करे, दे।)

पुनः हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करे-

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।

पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥

पुनः प्रणाम करके ‘ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मीः प्रसीदतु’ यह कहकर जल छोड़ दे । ब्राह्मण एवं गुरुजनोंको प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करे।

विसर्जन- पूजनके अन्तमें हाथमें अक्षत लेकर नूतन गणेश एवं महालक्ष्मीकी प्रतिमाको छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओंको अक्षत छोड़ते हुए निम्न मन्त्रसे विसर्जित करे-

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् ।

इष्टकामसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च॥ –

॥दीपावली पूजन की विधि:॥
दिवाली पर लक्ष्मी पूजन शुरू करने से पहले गणेश-लक्ष्मी के विराजने की जगह को अच्छे-से साफ करें। वहां रंगोली बनाएं और गंगा जल छिड़ककर इस मंत्र का जाप करना चाहिए:-
‘ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।

य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभ्यतंरं शुचि:’।
लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर लक्ष्मी का ध्यान करें और मूर्तियों को चौकी पर आदर और श्रद्धाभाव के साथ बैठाएं।अब आचमन करना होगा।इसके लिए दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें और बोलें:-
ॐ केशवाय नमः।
ॐ नारायणाय नमः।
ॐ माधवाय नमः।
ॐ गोविन्दाय नमः॥
(‘हस्तं प्रक्षालयामि।’मंत्र पढ़ने के बाद हाथ धो लें।)
इसके बाद ही दीप प्रज्ज्वलित करना चाहिए।दीप जलाते समय बोलें, ‘दीप ज्योति महादेवि शुभं भवतु मे सदा’।फिर माँ लक्ष्मी का आह्वान करें।इसके लिए आह्वान की मुद्रा में बैठकर कहें, ‘हे महादेवी लक्ष्मी,मैं आपका आह्वान करता हूँ।आप मेरा आह्वान स्वीकार करें और पधारें।’ पांच फूल हाथ में लेकर अर्पित करें और माँ से ‘श्री लक्ष्म्यै देव्यै पंच पुष्पाणि समर्पयामि’ कहते हुए आसन ग्रहण करने का निवेदन करें।इसके बाद माँ लक्ष्मी का यह कहकर स्वागत करें ‘श्री लक्ष्मी देवि स्वागतम्’।
स्वागत के बाद मां के चरण प्रक्षालन के लिए ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै पाद्यं समर्पयामि’ बोलते हुए उनके चरणों में जल समर्पित करें।फिर उनके सिर के अभिषेक के लिए ‘श्रीलक्ष्मी देव्यै अर्घ्य समर्पयामि’ कहकर अर्घ्य दें।सिर के अभिषेक के बाद स्नान कराया जाता है।इसके लिए ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै जलं समर्पयामि’ कहते हुए गंगा जल मिश्रित जल से स्नान करवाएं।
अगले चरण में पंचामृत स्नान कराते हैं।इसका मंत्र है, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै पंचामृत स्नानं समर्पयामि’।फिर ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै गंधं समर्पयामि’ कहकर कराते हैं गंध स्नान।
इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करवाया जाता है।जल स्नान के लिए कहें ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि’।फिर माँ लक्ष्मी को वस्त्र समर्पित किए जाते हैं।मौली का एक टुकड़ा लेकर ‘श्री लक्ष्मीदेव्यै वस्त्रं समर्पयामि’ कहते हुए माँ लक्ष्मी को समर्पित कर दें।अब बारी है मधु पर्क समर्पित करने की।मधु पर्क यानी दूध और शहद का मिश्रण समर्पित करने के लिए बोलें, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै मधुपर्क समर्पयामि’।मधुपर्क के बाद माँ लक्ष्मी को आभूषण समर्पित किया जाता है।इसके लिए बोलते हैं, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै आभूषणानि समर्पयामि’।
आभूषण के बाद माँ को रक्त चंदन यानी लाल चंदन समर्पित करते हैं।इसके लिए कहें, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै रक्तचंदनं समर्पयामि’।इसके बाद माँ को सिंदूर चढ़ाते हैं। ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै सिंदूरं समर्पयामि’ कहते हुए उन्हें सिंदूर समर्पित करें।फिर ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै कुंकुमं समर्पयामि’ कहते हुए कुमकुम चढ़ाएं।
अब होगा षोडशोपचार पूजन।इसके तहत सोलह प्रकार के भिन्न-भिन्न पदार्थ माँ लक्ष्मी के चरणों में समर्पित किए जाते हैं।इनकी भी प्रक्रिया पहले जैसी है।मंत्र पढ़ते हुए एक-एक पदार्थ माँ को समर्पित करते जाएं।
सबसे पहले मां के चरणों में अगर गुलाल समर्पित चढ़ाते हैं।इसका मंत्र है, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै अबीरगुलालं समर्पयामि’।सुगंधित द्रव्य के लिए कहते हैं, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै सुगंधिततैलं समर्पयामि’।सुगंधित तेल के बाद माँ को अक्षत समर्पित करें।इसके लिए बोलना चाहिए, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै अक्षतं समर्पयामि’।फिर चंदन समर्पित किया जाता है। ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै चंदनं समर्पयामि’ कहते हुए चंदन चढ़ाएं।चंदन के बाद ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै पुष्पाणि समर्पयामि’ कहते हुए उनके चरणों में पुष्प अर्पित करें।
पुष्प समर्पण के बाद माँ लक्ष्मी की प्रतिमा के सभी अंगों का पूजन किया जाता है।इसके लिए अपने बायें हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर दाहिने हाथ से माँ लक्ष्मी की प्रतिमा के आगे छोड़ते जाएं,
ॐ चपलायै नम:।पादौ पूजयामि।
ॐ चंचलायै नम:।जानुनी पूजयामि।
ॐ कमलायै नम:।कटिं पूजयामि।
ॐ कात्यायन्यै नम:।नाभिं पूजयामि।
ॐ जगन्मात्रै नम:।जठरं पूजयामि।
ॐ विश्व-वल्लभायै नम:।वक्ष-स्थलं पूजयामि।
ॐ कमल-वासिन्यै नम:।हस्तौ पूजयामि।
ॐ कमल-पत्राक्ष्यै नम:।नेत्र-त्रयं पूजयामि।
ॐ श्रियै नम:। शिर: पूजयामि॥
अंग पूजन के बाद अष्ट सिद्धि के पूजन का विधान है।पहले की तरह अपने बाएं हाथ में अक्षत और फूल लेकर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा के साथ ही इस प्रकार से अष्ट सिद्धि पूजन करें। एक-एक मंत्र के उच्चारण के बाद अक्षत और पुष्प समर्पित करते जाएं,
‘ॐ अणिम्ने नमः’
‘ॐ महिम्ने नमः’
‘ॐ गरिम्णे नमः’
‘ॐ लघिम्ने नमः’
‘ॐ प्राप्त्यै नमः’
‘ॐ प्रकाम्यै नमः’
‘ॐ ईशितायै नमः’
‘ॐ वशितायै नमः॥‘
अष्ट सिद्धि के पूजन के बाद अष्ट लक्ष्मी का पूजन भी करना चाहिए।अष्ट लक्ष्मी के पूजन के लिए भी पहले की तरह ही अक्षत लेकर इन मंत्रों के साथ अक्षत समर्पित करते जाएं।
इसके बाद ‘श्रीलक्ष्मी देव्यै धूपं समर्पयामि’ कहते हुए उन्हें धूप समर्पित करें।धूप के बाद माँ को ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै दीपं समर्पयामि’ कहते हुए दीप समर्पित करें।‘श्रीलक्ष्मी देव्यै नैवेद्यं समर्पयामि’ कहते हुए नैवेद्य,‘श्रीलक्ष्मी देव्यै जलं समर्पयामि’ मंत्र के साथ जल और ‘श्रीलक्ष्मी देव्यै चंदनं समर्पयामि’ का जाप करते हुए चंदन अर्पित कीजिए।फिर माँ के चरणों में ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै मुखवासार्थ पूगीफलयुक्तं तांबूलं समर्पयामि‘ कहते हुए तांबूल यानी पान और सुपारी चढ़ाएं।तांबूल समर्पण के बाद ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै सुवर्णपुष्प दक्षिणां समर्पयामि’ कहते हुए धन समर्पित करें।दक्षिणा के बाद अपने हाथों में फूल लेकर माँ की प्रतिमा के बाएं से दाएं ओर प्रदक्षिणा करें और पुष्प समर्पित करें।मन ही मन में माँ से कहें कि हे लक्ष्मी माता,मुझसे जितने भी पाप हुए हैं उनके लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ।यह कहते हुए पुष्पांजलि समर्पित कर दें और माँ के चरणों में साष्टांग प्रणाम करें।आरती करके प्रसाद वितरण कीजियेगा॥

 

श्रीमहालक्ष्मी पूजन

भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य एवं अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियोंकी अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं। भगवान् श्रीगणेश सिद्धि, बुद्धिके एवं शुभ और लाभके स्वामी तथा सभी अमङ्गलों एवं विघ्नोंके नाशक हैं, ये सत् बुद्धि प्रदान करनेवाले हैं। अतः इनके समवेत-पूजनसे सभी कल्याण मङ्गल एवं आनन्द प्राप्त होते हैं ।

कार्तिक कृष्ण अमावास्याको भगवती श्रीमहालक्ष्मी एवं भगवान् गणेशकी नूतन प्रतिमाओंका प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन किया जाता है। पूजनके लिये किसी चौकी अथवा कपड़ेके पवित्र आसनपर गणेशजीके दाहिने भागमें माता महालक्ष्मीको स्थापित करना चाहिये। पूजनके दिन घरको स्वच्छ कर पूजन- स्थानको भी पवित्र कर लेना चाहिये और स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सायंकालमें इनका पूजन करना चाहिये । मूर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मीजीके पास ही किसी पवित्र पात्रमें केसरयुक्त चन्दनसे अष्टदल कमल बनाकर उसपर द्रव्य – लक्ष्मी ( रुपयों) को भी स्थापित करके एक साथ ही दोनोंकी पूजा करनी चाहिये। पूजन-सामग्रीको यथास्थान रख ले।

सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्रीधारण, मार्जन-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा सामग्रीपर निम्न मन्त्र पढ़कर जल छिड़के-

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥

आचमन – (दाहिने हाथ में जल लेकर ऋषि तीर्थ से (हथेली के मूल भाग से) तीन बार जल पी लेवें)
ॐ केशवाय नमः । ॐ नारायणाय नमः । ॐ माधवाय नमः । ॐ हृषीकेशाय नमः । (हाथ शुद्ध कर लें )
पवित्रीधारण- ( दांये हाथ की अनामिका में दो कुश की तथा बायें हाथ की अनामिका में तीन कुश की पवित्री धारण करें।)

ॐ पवित्र्त्रे स्त्थो व्वैष्णव्यौ सवितुर्व्व: प्प्रसव उत्त्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्य्यस्य रश्मिभिः । तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ।। 

कुशैः निर्मितां रम्यां पवित्रां देवप्रीतिदाम् । 

प्रशमनायासुरीं शक्तिं पवित्रीं धारयाम्यहम् ।।
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । पुण्डरीकाक्षः पुनातु । पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ।

आसनशुद्धि-
(आसन पर जल छिड़कें अथवा आसन का दोनों हाथ से स्पर्श करें)
ॐ स्योना पृथिविनो भवान्नृक्षरा निवेशनी । यच्छानः शर्म्म सप्प्रथाः ।।
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ।।

तिलक धारण- (रोली अक्षत से यजमान के माथे पर तिलक लगावें । )

ॐ सुचक्षा अहमक्षीभ्यां भूया स गुं सुवर्चा मुखेन । सुश्रुत्कर्णाभ्याम्भूयासम् ।।
ॐ आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः ।

तिलकं तु प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थ सिद्धये ॥

उपवीत धारण- (यदि यजमान का उपनयन हुआ हो तो जोड़ा जनेऊ धारण करे)

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः । । 

शिखाबन्धन- (शिखा बाँधे, यदि शिखा न हो तो शिखा का स्पर्श ही कर लें। )
ॐ मानस्तोके तनये मान आयुषिमानो गोषुमानो अश्वेषुरीरिषः । 

मानोव्वीरान्नुद्र भामिनो व्वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वाहवामहे ।। 

ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।

तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजो बृद्धिं कुरुष्व मे ।।

ग्रन्थिबन्धन- (यदि पूजन में पति-पत्नी बैठे हों तो पत्नी के उपवस्त्र (चुनरी ) में अक्षत पुष्प, द्रव्य, सुपाड़ी बाँधकर पति के अंगौछा से जोड़कर दोनों रख लें।)

स्वस्तिवाचनम् – यजमान हाथ में अक्षत पुष्प लेकर गणेशजी का ध्यान करते हुए ब्राह्मणों द्वारा किये जा रहे स्वस्ति पाठ को सुने ।
ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु व्विश्श्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः । 

देवा नो यथा सदमिद् वृधेऽअसन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे ।। १ ।।
देवानां भद्द्द्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवाना गुं रातिरभि नो निवर्त्तताम् । 

देवाना गुं सख्यमुपसेदिमा ळ्यं देवा न आयुः प्प्रतिरन्तु जीवसे ॥२॥
निविदा हूमहे व्वयं तान्पूर्व्वया भगम्मित्रमदितिन्दक्षमस्रिधम् । 

अर्य्यमणं व्वरुण गुं सोममश्श्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्क्करत्।।३।।
तन्नो व्वातो मयोभु व्वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः । 

तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम् ।।४।
तमीशानञ्जगतस्तस्त्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे व्यम्। 

पूषा नो यथा व्वेद सामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ।।५।।

स्वस्ति न इन्द्रो व्वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा व्विश्ववेदाः 

स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्तिनो बृहस्पतिर्द्दधातु ।।६
पृषदश्श्वामरुतः पृश्निमातरः शुभं य्यावानो व्विदथेषु जग्मयः । 

अग्निर्जिह्वा मनवः सूरचक्षसो व्विश्श्वे नो देवाऽअवसागमन्निह । ॥ ७ ॥ ॥
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्य्यजत्राः 

स्थिरैरङ्गैस्तुष्टटुवा गुं सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं य्यदायुः ।।८॥
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्का जरसं तनूनाम् । 

पुत्रासो यत्र यत्र पितरो भवन्ति मा नो मद्ध्यारीरिषतायुर्गन्तोः । । ९ ।।
अदितिद्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः । 

व्विश्वे देवा अदिति: पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्ज्जनित्वम् ।।१०।।
द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष गुं शान्तिः प्पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।  व्वनस्पतयः शान्तिर्व्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व्व गुं शान्तिः 

शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।।११।।
यतो यतः समीहसे ततो नो ऽअभयकुरु । 

शन्नः कुरु प्रजांब्भ्योऽभयन्नः पशुब्भ्यः ।। १२ ।।
विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद्भद्रं३ तन्न आसुव ।। १३ ।। 

सुशान्तिर्भवतु सर्वारिष्टशान्तिर्भवतु ।।
(अक्षत पुष्प गणेश जी के सामने चढ़ा दें)

मङ्गल-श्लोकपाठः
अक्षत पुष्प लेकर मंगलपाठ पूर्वक गणेशादि देवों का स्मरण करें।

ॐ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः । 

लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥ १ ॥ 

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः । 

द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥ २ ॥ 

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा । 

सङ्ग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते । । ३ ॥ 

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् । 

प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये || ४ ||


अभीप्सितार्थ-सिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुराऽसुरैः । 

सर्वविघ्न – हरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥५॥
सर्वमङ्गल-माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके !। 

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि ! नमोऽस्तु ते ॥६॥ 

सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम्। 

येषां हृदिस्थो भगवान् मङ्गलायतनं हरिः ॥ ७॥ 

तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव । 

विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि ॥८॥ 

लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः ।
येषामिन्दीवर – श्यामो हृदयस्थो जनार्दनः॥९॥

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । 

तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥ १० ॥ 

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । 

तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥ ११ ॥ 

स्मृतेः सकल-कल्याणं भाजनं यत्र जायते । 

पुरुषं तमजं नित्यं व्रजामि शरणं हरिम् ॥ १२ ॥ 

सर्वेष्वारम्भ-कार्येषु त्रयस्त्रि – भुवनेश्वराः । 

देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रह्मेशान – जनार्दनाः || १३|| 

विश्वेशं माधवं दुण्ढिं दण्डपाणिं च भैरवम् । 

वन्दे काशीं गुहां गङ्गां भवानीं मणिकर्णिकाम् ।।१४।। 

श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।।

हाथमें जल-अक्षतादि लेकर पूजनका संकल्प करे नित्यकर्म-पूजाप्रकाश

संकल्प — ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवश्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि- प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे पुण्यक्षेत्रे ( प्रयाग / काशी / क्षेत्रे ) – मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ अमुक वासरे अमुक गोत्रोत्पन्न: अमुक नाम शर्मा ( वर्मा, गुप्तः, दासः ) अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिक वाचिक मानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये । तदङ्गत्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये ।

यह संकल्प-वाक्य पढ़कर जलाक्षतादि गणेशजीके समीप छोड़ दे। अनन्तर सर्वप्रथम गणेशजीका पूजन करे ।

गणेश-पूजनसे पूर्व उस नूतन प्रतिमाकी निम्न-रीतिसे प्राण-प्रतिष्ठा कर लेप्रतिष्ठा – बायें हाथमें अक्षत लेकर निम्न मन्त्रोंको पढ़ते हुए हाथसे उन अक्षतोंको गणेशजीकी प्रतिमापर छोड़ता जाय दाहिने-

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञः समिमं दधातु । विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ म्प्रतिष्ठ ।

ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च ।

अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥

इस प्रकार प्रतिष्ठा कर भगवान् गणेशका षोडशोपचार पूजन तदनन्तर नवग्रह, षोडशमातृका तथा कलश-पूजन करे ।

इसके बाद प्रधान-पूजामें भगवती महालक्ष्मीका पूजन करे। पूजन पूर्व नूतन प्रतिमा तथा द्रव्यलक्ष्मीकी ‘ॐ मनो जति०’ तथा ‘अस्यै प्राणाः’ इत्यादि मन्त्र पढ़कर पूर्वोक्त रीतिसे प्राण प्रतिष्ठा कर ले ।

सर्वप्रथम भगवती महालक्ष्मीका हाथमें फूल लेकर इस प्रकार ध्यान करेध्यान—

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया ।

या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः

सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता 11

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। (ध्यानके लिये पुष्प अर्पित करे ।)

आवाहन –

सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम् ।

सर्वदेवमयीमीशां देवीमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । महालक्ष्मीमावाहयामि, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि । (आवाहनके लिये पुष्प दे । )

आसन –

तप्तकाञ्चनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम् ।

अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ अश्वपूर्वी रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।

श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । आसनं समर्पयामि । (आसनके लिये कमलादिके पुष्प अर्पण करे ।)

पाद्य –

गङ्गादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम् ।

पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते ॥

ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।

पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पादयोः पाद्यं समर्पयामि । ( चन्दन, पुष्पादियुक्त जल अर्पित करे )

अर्घ्य –

अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम् ।

अर्घ्यं गृहाण मद्दत्तं महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥

ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।

तां पद्मनीमीं शरणं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥

महालक्ष्म्यै नमः । हस्तयोरर्घ्यं (अष्टगन्धमिश्रित * जल अर्घ्यपात्रसे देवीके हाथों में दे ।)

आचमन –

सर्वलोकस्य या शक्तिर्ब्रह्मविष्णवादिभिः स्तुता । –

ददाम्याचमनं तस्यै महालक्ष्म्यै मनोहरम् ॥

ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमनके लिये जल चढ़ाये ।)

स्नान –

मन्दाकिन्या: समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः ।

कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । स्नानं समर्पयामि । (स्नानीय जल अर्पित करे ।) स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (स्नानके बाद ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ ऐसा उच्चारण कर आचमनके लिये जल दे।)

दुग्धस्नान –

कामधेनुसमुत्पन्नं – सर्वेषां जीवनं परम् ।

पावनं यज्ञहेतुश्च पय: स्नानार्थमर्पितम् ॥

ॐ पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।

पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पयःस्नानं समर्पयामि । पय: स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (गौके कच्चे दूधसे स्नान कराये, पुनः शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

दधिस्नान –

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् ।

दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः सुरभि मुखा करत्प्र ण आयू gung षि तारिषत् ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः | दधिस्नानं समर्पयामि । दधिस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (दधिसे स्नान कराये, फिर शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

घृतस्नान –

नवनीतसमुत्पन्नं -सर्वसंतोषकारकम् ।

घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा । दिश: प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । घृतस्नानं समर्पयामि । घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (घृतसे स्नान कराये तथा फिर शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

मधुस्नान –

तरुपुष्पसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।

तेज:पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः । माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥ मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥ मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ २ अस्तु सूर्यः । माध्वीर्गावो भवन्तु नः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । मधुस्नानं समर्पयामि । मधुस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । ( मधु ( शहद ) – से स्नान कराये, पुनः शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

शर्करास्नान –

इक्षुसारसमुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका ।

मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ अपा gung रसमुद्वयसः gung सूर्ये सन्तः gung समाहितम् । अपा gung रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतो ऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करास्नानान्ते पुनः शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (शर्करासे स्नान कराकर पश्चात् शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

पञ्चामृतस्नान —

एकत्र मिश्रित पञ्चामृतसे एकतन्त्रसे निम्न मन्त्रसे स्नान कराये –

पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम् ।

पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः । सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत् सरित् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि, पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (पञ्चामृतस्नानके अनन्तर शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

(यदि अभिषेक करना अभीष्ट हो तो शुद्ध जल या दुग्धादिसे ‘श्रीसूक्त’ का पाठ करते हुए अखण्ड जलधारासे स्नान (अभिषेक) कराये। मृण्मय प्रतिमा अखण्ड जलधारासे क्षरित न हो जाय आशयसे धातुकी मूर्ति या द्रव्यलक्ष्मीपर अभिषेक किया जाता है, इसे पृथक् पात्रमें कराना चाहिये ।)

गन्धोदकस्नान

मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम् । –

चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । गन्धोदकस्नानं समर्पयामि । (गन्ध (चन्दन) मिश्रित जलसे स्नान कराये । )

शुद्धोदकस्नान –

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।

तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । गङ्गा अथवा शुद्ध जलसे स्नान कराये, तदनन्तर प्रतिमाका अङ्ग-प्रोक्षण कर (पोंछकर) उसे यथास्थान आसनपर स्थापित करे और निम्नरूपसे उत्तराङ्ग-पूजन करे ।) – –

आचमन

ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ ऐसा क आचमनीय जल अर्पित करे ।)

वस्त्र –

दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम् ।

दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ॥

ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।

प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (वस्त्र अर्पित करे, आचमनीय जल दे ।)

उपवस्त्र –

कञ्चुकीमुपवस्त्रं च नानारत्नैः समन्वितम् ।

गृहाण त्वं मया दत्तं मङ्गले जगदीश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः | उपवस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (कञ्चुकी आदि उत्तरीय वस्त्र चढ़ाये, आचमनके लिये जल दे।)

– मधुपर्क –

कांस्ये कांस्येन पिहितो दधिमध्वाज्यसंयुतः ।

मधुपर्को मयानीतः पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । मधुपर्कं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (काँस्यपात्र में स्थित मधुपर्क समर्पित कर आचमनके लिये जल दे ।)

आभूषण –

रत्नकङ्कणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च।

सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः ॥

ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।

अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । नानाविधानि कुण्डलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि । (आभूषण समर्पित करे ।)

गन्ध –

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् ।

विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।

ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । गन्धं समर्पयामि । (अनामिका अँगुलीसे केसरादिमिश्रित चन्दन अर्पित करे ।)

रक्तचन्दन –

रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम् ।

मया दत्तं महालक्ष्मि चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । रक्तचन्दनं समर्पयामि । (अनामिकासे रक्त चन्दन चढ़ाये ।)

सिन्दूर –

सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये ।

भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वात प्रमियः पतयन्ति यह्वाः ।

घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः | सिन्दूरं समर्पयामि । (देवीजीको सिन्दूर चढ़ाये ।)

कुङ्कुम –

कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कुङ्कुमं कामरूपिणम् ।

अखण्डकामसौभाग्यं कुङ्कुमं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । कुङ्कुमं समर्पयामि। (कुङ्कुम अर्पित करे।)

पुष्पसार ( इतर ) –

तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च ।

मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । सुगन्धिततैलं पुष्पसारं च समर्पयामि । ( सुगन्धित तेल एवं इतर चढ़ाये ।)

* अक्षत * –

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः ।

मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः | अक्षतान् समर्पयामि । (कुङ्कुमाक्त अक्षत अर्पित करे ।)

* देशाचारसे कहीं-कहीं महालक्ष्मीको अक्षतके स्थानपर हल्दी या धनिया तथा भोगमें गुड़का प्रसाद दिया जाता है।

पुष्प एवं पुष्पमाला –

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो ।

मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।

पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि । (देवीजीको पुष्पों तथा पुष्पमालाओंसे अलङ्कृत करे, यथासम्भव लाल कमलके फूलोंसे पूजा करे ।)

दूर्वा –

विष्ण्वादिसर्वदेवानां प्रियां सर्वसुशोभनाम् । –

क्षीरसागरसम्भूते दूर्वां स्वीकुरु सर्वदा ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि । (दूर्वाङ्कुर अर्पित करे ।)

अङ्ग- पूजा

रोली, कुङ्कुममिश्रित अक्षत- पुष्पोंसे निम्नाङ्कित एक-एक नाममन्त्र पढ़ते हुए अङ्ग – पूजा करे –

ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि । ॐ चञ्चलायै नमः, जानुनी पूजयामि । ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि । ॐ कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि । ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि । ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षःस्थलं पूजयामि । ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि । ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि । ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि । ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सर्वाङ्गं पूजयामि ।

अष्टसिद्धि-पूजन

इस प्रकार अङ्ग-पूजाके अनन्तर पूर्वादि-क्रमसे आठों दिशाओं में आठों सिद्धियोंकी पूजा कुङ्कुमाक्त अक्षतोंसे देवी महालक्ष्मीके पास निम्नाङ्कित मन्त्रोंसे करे-

१- ॐ अणिम्ने नमः ( पूर्वे), २-ॐ महिम्ने नमः (अग्निकोणे), ३-ॐ गरिम्णे नमः (दक्षिणे), ४-ॐ लघिम्ने नमः ( नैरृत्ये ), ५-ॐ प्राप्त्यै नमः ( पश्चिमे), ६-ॐ प्राकाम्यै नमः (वायव्ये), ७-ॐ ईशितायै नमः ( उत्तरे ) तथा ८-ॐ वशितायै नमः ( ऐशान्याम् ) ।

अष्टलक्ष्मी पूजन=

तदनन्तर पूर्वादि-क्रमसे आठों दिशाओंमें महालक्ष्मीके पास कुङ्कुमाक्त अक्षत तथा पुष्पोंसे एक-एक नाम-मन्त्र पढ़ते हुए आठ लक्ष्मियोंका पूजन करे१- ॐआद्यलक्ष्म्यै नमः, २-ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः, ३-ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः, ४-ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः, ५-ॐ कामलक्ष्म्यै नमः, ६-ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः, ७- ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः ८-ॐ योगलक्ष्म्यै नमः ।

धूप –

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः ।

आनेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।

श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, धूपमाघ्रापयामि । (धूप आघ्रापित करे ।)

दीप

कार्पासवर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम् ।

तमोनाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।

नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । दीपं दर्शयामि । (दीपक दिखाये और फिर हाथ धो ले।)

नैवेद्य –

नैवेद्यं – गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम् ।

षड्रसैरन्वितं दिव्यं लक्ष्मि देवि नमोऽस्तु ते ॥

ॐ आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । नैवेद्यं निवेदयामि, मध्ये पानीयम्, उत्तरापोऽशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि । (देवीजीको नैवेद्य निवेदित कर पानीय जल एवं हस्तादि प्रक्षालनके लिये भी जल अर्पित करे ।)

करोद्वर्तन –

‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ यह कहकर करोद्वर्तनके लिये हाथोंमें चन्दन उपलेपित करे।

आचमन –

शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम् ।

आचम्यतां जलं ह्येतत् प्रसीद परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि । (नैवेद्य अनन्तर आचमनके लिये जल दे ।)

ऋतुफल –

फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।

तस्मात् फलप्रदानेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अखण्डऋतुफलं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (ऋतुफल अर्पित करे तथा आचमनके लिये जल दे ।)

ताम्बूल – पूगीफल –

पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् । –

एलाचूर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ आर्द्रा यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि । ( एला, लवंग, पूगीफलयुक्त ताम्बूल अर्पित करे ।)

दक्षिणा –

हिरण्यगर्भगर्भस्थं – हेमबीजं विभावसोः ।

अनन्तपुण्यफलदमतः प्रयच्छ मे ॥

ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दक्षिणां समर्पयामि ।

(दक्षिणा चढ़ाये ।)

 नीराजन –

चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम् ।

आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नीराजनं समर्पयामि । ( आरती करे तथा जल छोड़े, हाथ धो ले ।)

प्रदक्षिणा –

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि । ( प्रदक्षिणा करे ।)

प्रार्थना – हाथ जोड़कर प्रार्थना करे-

सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकै

र्युक्तं सदा यत्तव पादपङ्कजम् ।

परावरं पातु वरं सुमङ्गलं

नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये ॥

भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी ।

सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि ! नमोऽस्तु ते ॥

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये ।

या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि । ( प्रार्थना करते हुए नमस्कार करे ।)

समर्पण –

पूजनके अन्तमें‘कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम ।’ (यह वाक्य उच्चारणकर समस्त पूजन-कर्म भगवती महालक्ष्मीको समर्पित करे तथा जल गिराये ।)

भगवती महालक्ष्मीके यथालब्धोपचार पूजनके अनन्तर महालक्ष्मीपूजनके अंग-रूप, श्रीदेहलीविनायक, मसिपात्र, लेखनी, सरस्वती, कुबेर, तुला-मान तथा दीपकोंकी पूजा की जाती है। संक्षेपमें उन्हें भी यहाँ दिया जा रहा है। सर्वप्रथम ‘देहलीविनायक’ की पूजा की जाती है—

देहलीविनायक – पूजन –

व्यापारिक प्रतिष्ठानादिमें दीवालोंपर ‘ॐ श्रीगणेशाय नमः’, ‘स्वस्तिक चिह्न’, ‘शुभ-लाभ’ आदि मांगलिक एवं कल्याणकर शब्द सिन्दूरादिसे लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दोंपर ‘ॐ देहलीविनायकाय नमः’ इस नाम – मन्त्रद्वारा गन्ध – पुष्पादिसे पूजन करे ।

श्रीमहाकाली ( दावात ) पूजन

स्याही- युक्त दावातको भगवती महालक्ष्मीके सामने पुष्प तथा अक्षतपुंजमें रखकर उसमें सिन्दूरसे स्वस्तिक बना दे तथा मौली लपेट दे। ‘ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः’ इस नाम-मन्त्रसे गन्ध-पुष्पादि पञ्चोपचारोंसे या षोडशोपचारोंसे दावातमें भगवती महाकालीका पूजन करे और अन्तमें इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करे-

कालिके! त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे ।

उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये ॥

या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तैः समस्तैर्व्यवहारदक्षैः ।

जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु ||

लेखनी-पूजन

लेखनी (कलम ) – पर मौली बाँधकर सामने रख ले और-

लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना ।

लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम् ॥

‘ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः’ इस नाम- मन्त्रद्वारा गन्ध- पुष्पाक्षत आदिसे पूजनकर इस प्रकार प्रार्थना करे–

शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यतः ।

अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ॥

सरस्वती – (पञ्जिका – बही-खाता) पूजन पञ्जिका—

बही, बसना तथा थैलीमें रोली या केसरयुक्त चन्दनसे स्वस्तिक चिह्न बनाये तथा थैलीमें पाँच हल्दीकी गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वतीका पूजन करे । सर्वप्रथम सरस्वतीजीका ध्यान इस प्रकार करे – – ध्यान –

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ॥

या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता ।

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥

 ‘ॐ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः’ –इस नाम-मन्त्रसे गन्धादि उपचारोंद्वारा पूजन करे ।

कुबेर

तिजोरी अथवा रुपये रखे जानेवाले संदूक आदिको स्वस्तिकादिसे पूजन अलङ्कत कर उसमें निधिपति कुबेरका आवाहन करे –

आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु ।

कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर ॥

आवाहनके पश्चात् ‘ॐ कुबेराय नमः’ इस नाम- मन्त्रसे यथालब्धोपचार पूजनकर अन्तमें इस प्रकार प्रार्थना करे-

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।

भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ॥

– इस प्रकार प्रार्थना कर पूर्वपूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादिसे युक्त थैली तिजोरीमें रखे।

तुला तथा मान-पूजन

सिन्दूरसे तराजू आदिपर स्वस्तिक बना ले। मौली लपेटकर तुलाधिष्ठातृ देवताका इस प्रकार ध्यान करना चाहिये-

नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता ।

साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना ॥

ध्यानके बाद ‘ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः’ इस नाम- मन्त्रसे गन्धाक्षतादि उपचारोंद्वारा पूजनकर नमस्कार करे।

दीपमालिका – ( दीपक ) पूजन

किसी पात्रमें ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकोंको प्रज्वलित कर महालक्ष्मीके समीप रखकर उस दीप – ज्योतिका ‘ॐ दीपावल्यै नमः’ इस नाम- मन्त्रसे गन्धादि उपचारोंद्वारा पूजनकर इस प्रकार प्रार्थना करे-

त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः ।

सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ॥

दीपमालिकाओंका पूजन कर अपने आचारके अनुसार संतरा, ईख, पानीफल, धानका लावा इत्यादि पदार्थ चढ़ाये। धानका लावा (खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओंको भी अर्पित करे। अन्तमें अन्य सभी दीपकोंको प्रज्वलित कर सम्पूर्ण गृह अलङ्कृत आरती करे।

इस प्रकार भगवती महालक्ष्मी तथा उनके सभी अंग-प्रत्यङ्गों एवं उपाङ्गोंका पूजन कर लेनेके अनन्तर प्रधान आरती करनी चाहिये। इसके लिये एक थाली में स्वस्तिक आदि माङ्गलिक चिह्न बनाकर अक्षत तथा   पुष्पोंके आसनपर किसी दीपक आदिमें घृतयुक्त बत्ती प्रज्वलित करे । एक पृथक् पात्रमें कर्पूर भी प्रज्वलित कर वह पात्र भी थालीमें यथास्थान रख ले, आरती – थालका जलसे प्रोक्षण कर ले। पुनः आसनपर खड़े होकर अन्य पारिवारिक जनोंके साथ घण्टानादपूर्वक निम्न आरती गाते हुए साङ्ग-महालक्ष्मीजीकी मंगल आरती करे –

श्रीलक्ष्मीजीकी आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया ) जय लक्ष्मी माता ।

मन्त्र – पुष्पाञ्जलि – दोनों हाथोंमें कमल आदिके पुष्प लेकर हाथ जोड़े और निम्न मन्त्रोंका पाठ करे-

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।

ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।

स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥

कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।

ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौम: सार्वायुषान्तादापरार्धात्। पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ।

 

ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात् ।

सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन् देव एकः ॥

महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।

ॐ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः

पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा

तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि । (हाथमें फूल महालक्ष्मीपर चढ़ा दे ।) प्रदक्षिणा कर साष्टाङ्ग प्रणाम करे, दे।)

पुनः हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करे-

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।

पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥

पुनः प्रणाम करके ‘ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मीः प्रसीदतु’ यह कहकर जल छोड़ दे । ब्राह्मण एवं गुरुजनोंको प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करे।

विसर्जन- पूजनके अन्तमें हाथमें अक्षत लेकर नूतन गणेश एवं महालक्ष्मीकी प्रतिमाको छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओंको अक्षत छोड़ते हुए निम्न मन्त्रसे विसर्जित करे-

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् ।

इष्टकामसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च॥ –

॥दीपावली पूजन की विधि:॥
दिवाली पर लक्ष्मी पूजन शुरू करने से पहले गणेश-लक्ष्मी के विराजने की जगह को अच्छे-से साफ करें। वहां रंगोली बनाएं और गंगा जल छिड़ककर इस मंत्र का जाप करना चाहिए:-
‘ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।

य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभ्यतंरं शुचि:’।
लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर लक्ष्मी का ध्यान करें और मूर्तियों को चौकी पर आदर और श्रद्धाभाव के साथ बैठाएं।अब आचमन करना होगा।इसके लिए दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें और बोलें:-
ॐ केशवाय नमः।
ॐ नारायणाय नमः।
ॐ माधवाय नमः।
ॐ गोविन्दाय नमः॥
(‘हस्तं प्रक्षालयामि।’मंत्र पढ़ने के बाद हाथ धो लें।)
इसके बाद ही दीप प्रज्ज्वलित करना चाहिए।दीप जलाते समय बोलें, ‘दीप ज्योति महादेवि शुभं भवतु मे सदा’।फिर माँ लक्ष्मी का आह्वान करें।इसके लिए आह्वान की मुद्रा में बैठकर कहें, ‘हे महादेवी लक्ष्मी,मैं आपका आह्वान करता हूँ।आप मेरा आह्वान स्वीकार करें और पधारें।’ पांच फूल हाथ में लेकर अर्पित करें और माँ से ‘श्री लक्ष्म्यै देव्यै पंच पुष्पाणि समर्पयामि’ कहते हुए आसन ग्रहण करने का निवेदन करें।इसके बाद माँ लक्ष्मी का यह कहकर स्वागत करें ‘श्री लक्ष्मी देवि स्वागतम्’।
स्वागत के बाद मां के चरण प्रक्षालन के लिए ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै पाद्यं समर्पयामि’ बोलते हुए उनके चरणों में जल समर्पित करें।फिर उनके सिर के अभिषेक के लिए ‘श्रीलक्ष्मी देव्यै अर्घ्य समर्पयामि’ कहकर अर्घ्य दें।सिर के अभिषेक के बाद स्नान कराया जाता है।इसके लिए ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै जलं समर्पयामि’ कहते हुए गंगा जल मिश्रित जल से स्नान करवाएं।
अगले चरण में पंचामृत स्नान कराते हैं।इसका मंत्र है, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै पंचामृत स्नानं समर्पयामि’।फिर ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै गंधं समर्पयामि’ कहकर कराते हैं गंध स्नान।
इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करवाया जाता है।जल स्नान के लिए कहें ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि’।फिर माँ लक्ष्मी को वस्त्र समर्पित किए जाते हैं।मौली का एक टुकड़ा लेकर ‘श्री लक्ष्मीदेव्यै वस्त्रं समर्पयामि’ कहते हुए माँ लक्ष्मी को समर्पित कर दें।अब बारी है मधु पर्क समर्पित करने की।मधु पर्क यानी दूध और शहद का मिश्रण समर्पित करने के लिए बोलें, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै मधुपर्क समर्पयामि’।मधुपर्क के बाद माँ लक्ष्मी को आभूषण समर्पित किया जाता है।इसके लिए बोलते हैं, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै आभूषणानि समर्पयामि’।
आभूषण के बाद माँ को रक्त चंदन यानी लाल चंदन समर्पित करते हैं।इसके लिए कहें, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै रक्तचंदनं समर्पयामि’।इसके बाद माँ को सिंदूर चढ़ाते हैं। ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै सिंदूरं समर्पयामि’ कहते हुए उन्हें सिंदूर समर्पित करें।फिर ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै कुंकुमं समर्पयामि’ कहते हुए कुमकुम चढ़ाएं।
अब होगा षोडशोपचार पूजन।इसके तहत सोलह प्रकार के भिन्न-भिन्न पदार्थ माँ लक्ष्मी के चरणों में समर्पित किए जाते हैं।इनकी भी प्रक्रिया पहले जैसी है।मंत्र पढ़ते हुए एक-एक पदार्थ माँ को समर्पित करते जाएं।
सबसे पहले मां के चरणों में अगर गुलाल समर्पित चढ़ाते हैं।इसका मंत्र है, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै अबीरगुलालं समर्पयामि’।सुगंधित द्रव्य के लिए कहते हैं, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै सुगंधिततैलं समर्पयामि’।सुगंधित तेल के बाद माँ को अक्षत समर्पित करें।इसके लिए बोलना चाहिए, ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै अक्षतं समर्पयामि’।फिर चंदन समर्पित किया जाता है। ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै चंदनं समर्पयामि’ कहते हुए चंदन चढ़ाएं।चंदन के बाद ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै पुष्पाणि समर्पयामि’ कहते हुए उनके चरणों में पुष्प अर्पित करें।
पुष्प समर्पण के बाद माँ लक्ष्मी की प्रतिमा के सभी अंगों का पूजन किया जाता है।इसके लिए अपने बायें हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर दाहिने हाथ से माँ लक्ष्मी की प्रतिमा के आगे छोड़ते जाएं,
ॐ चपलायै नम:।पादौ पूजयामि।
ॐ चंचलायै नम:।जानुनी पूजयामि।
ॐ कमलायै नम:।कटिं पूजयामि।
ॐ कात्यायन्यै नम:।नाभिं पूजयामि।
ॐ जगन्मात्रै नम:।जठरं पूजयामि।
ॐ विश्व-वल्लभायै नम:।वक्ष-स्थलं पूजयामि।
ॐ कमल-वासिन्यै नम:।हस्तौ पूजयामि।
ॐ कमल-पत्राक्ष्यै नम:।नेत्र-त्रयं पूजयामि।
ॐ श्रियै नम:। शिर: पूजयामि॥
अंग पूजन के बाद अष्ट सिद्धि के पूजन का विधान है।पहले की तरह अपने बाएं हाथ में अक्षत और फूल लेकर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा के साथ ही इस प्रकार से अष्ट सिद्धि पूजन करें। एक-एक मंत्र के उच्चारण के बाद अक्षत और पुष्प समर्पित करते जाएं,
‘ॐ अणिम्ने नमः’
‘ॐ महिम्ने नमः’
‘ॐ गरिम्णे नमः’
‘ॐ लघिम्ने नमः’
‘ॐ प्राप्त्यै नमः’
‘ॐ प्रकाम्यै नमः’
‘ॐ ईशितायै नमः’
‘ॐ वशितायै नमः॥‘
अष्ट सिद्धि के पूजन के बाद अष्ट लक्ष्मी का पूजन भी करना चाहिए।अष्ट लक्ष्मी के पूजन के लिए भी पहले की तरह ही अक्षत लेकर इन मंत्रों के साथ अक्षत समर्पित करते जाएं।
इसके बाद ‘श्रीलक्ष्मी देव्यै धूपं समर्पयामि’ कहते हुए उन्हें धूप समर्पित करें।धूप के बाद माँ को ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै दीपं समर्पयामि’ कहते हुए दीप समर्पित करें।‘श्रीलक्ष्मी देव्यै नैवेद्यं समर्पयामि’ कहते हुए नैवेद्य,‘श्रीलक्ष्मी देव्यै जलं समर्पयामि’ मंत्र के साथ जल और ‘श्रीलक्ष्मी देव्यै चंदनं समर्पयामि’ का जाप करते हुए चंदन अर्पित कीजिए।फिर माँ के चरणों में ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै मुखवासार्थ पूगीफलयुक्तं तांबूलं समर्पयामि‘ कहते हुए तांबूल यानी पान और सुपारी चढ़ाएं।तांबूल समर्पण के बाद ‘श्रीलक्ष्मीदेव्यै सुवर्णपुष्प दक्षिणां समर्पयामि’ कहते हुए धन समर्पित करें।दक्षिणा के बाद अपने हाथों में फूल लेकर माँ की प्रतिमा के बाएं से दाएं ओर प्रदक्षिणा करें और पुष्प समर्पित करें।मन ही मन में माँ से कहें कि हे लक्ष्मी माता,मुझसे जितने भी पाप हुए हैं उनके लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ।यह कहते हुए पुष्पांजलि समर्पित कर दें और माँ के चरणों में साष्टांग प्रणाम करें।आरती करके प्रसाद वितरण कीजियेगा॥

 

श्रीमहालक्ष्मी पूजन

भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य एवं अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियोंकी अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं। भगवान् श्रीगणेश सिद्धि, बुद्धिके एवं शुभ और लाभके स्वामी तथा सभी अमङ्गलों एवं विघ्नोंके नाशक हैं, ये सत् बुद्धि प्रदान करनेवाले हैं। अतः इनके समवेत-पूजनसे सभी कल्याण मङ्गल एवं आनन्द प्राप्त होते हैं ।

कार्तिक कृष्ण अमावास्याको भगवती श्रीमहालक्ष्मी एवं भगवान् गणेशकी नूतन प्रतिमाओंका प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन किया जाता है। पूजनके लिये किसी चौकी अथवा कपड़ेके पवित्र आसनपर गणेशजीके दाहिने भागमें माता महालक्ष्मीको स्थापित करना चाहिये। पूजनके दिन घरको स्वच्छ कर पूजन- स्थानको भी पवित्र कर लेना चाहिये और स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सायंकालमें इनका पूजन करना चाहिये । मूर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मीजीके पास ही किसी पवित्र पात्रमें केसरयुक्त चन्दनसे अष्टदल कमल बनाकर उसपर द्रव्य – लक्ष्मी ( रुपयों) को भी स्थापित करके एक साथ ही दोनोंकी पूजा करनी चाहिये। पूजन-सामग्रीको यथास्थान रख ले।

सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्रीधारण, मार्जन-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा सामग्रीपर निम्न मन्त्र पढ़कर जल छिड़के-

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥

आचमन – (दाहिने हाथ में जल लेकर ऋषि तीर्थ से (हथेली के मूल भाग से) तीन बार जल पी लेवें)
ॐ केशवाय नमः । ॐ नारायणाय नमः । ॐ माधवाय नमः । ॐ हृषीकेशाय नमः । (हाथ शुद्ध कर लें )
पवित्रीधारण- ( दांये हाथ की अनामिका में दो कुश की तथा बायें हाथ की अनामिका में तीन कुश की पवित्री धारण करें।)

ॐ पवित्र्त्रे स्त्थो व्वैष्णव्यौ सवितुर्व्व: प्प्रसव उत्त्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्य्यस्य रश्मिभिः । तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ।। 

कुशैः निर्मितां रम्यां पवित्रां देवप्रीतिदाम् । 

प्रशमनायासुरीं शक्तिं पवित्रीं धारयाम्यहम् ।।
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । पुण्डरीकाक्षः पुनातु । पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ।

आसनशुद्धि-
(आसन पर जल छिड़कें अथवा आसन का दोनों हाथ से स्पर्श करें)
ॐ स्योना पृथिविनो भवान्नृक्षरा निवेशनी । यच्छानः शर्म्म सप्प्रथाः ।।
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ।।

तिलक धारण- (रोली अक्षत से यजमान के माथे पर तिलक लगावें । )

ॐ सुचक्षा अहमक्षीभ्यां भूया स गुं सुवर्चा मुखेन । सुश्रुत्कर्णाभ्याम्भूयासम् ।।
ॐ आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः ।

तिलकं तु प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थ सिद्धये ॥

उपवीत धारण- (यदि यजमान का उपनयन हुआ हो तो जोड़ा जनेऊ धारण करे)

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः । । 

शिखाबन्धन- (शिखा बाँधे, यदि शिखा न हो तो शिखा का स्पर्श ही कर लें। )
ॐ मानस्तोके तनये मान आयुषिमानो गोषुमानो अश्वेषुरीरिषः । 

मानोव्वीरान्नुद्र भामिनो व्वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वाहवामहे ।। 

ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।

तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजो बृद्धिं कुरुष्व मे ।।

ग्रन्थिबन्धन- (यदि पूजन में पति-पत्नी बैठे हों तो पत्नी के उपवस्त्र (चुनरी ) में अक्षत पुष्प, द्रव्य, सुपाड़ी बाँधकर पति के अंगौछा से जोड़कर दोनों रख लें।)

स्वस्तिवाचनम् – यजमान हाथ में अक्षत पुष्प लेकर गणेशजी का ध्यान करते हुए ब्राह्मणों द्वारा किये जा रहे स्वस्ति पाठ को सुने ।
ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु व्विश्श्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः । 

देवा नो यथा सदमिद् वृधेऽअसन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे ।। १ ।।
देवानां भद्द्द्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवाना गुं रातिरभि नो निवर्त्तताम् । 

देवाना गुं सख्यमुपसेदिमा ळ्यं देवा न आयुः प्प्रतिरन्तु जीवसे ॥२॥
निविदा हूमहे व्वयं तान्पूर्व्वया भगम्मित्रमदितिन्दक्षमस्रिधम् । 

अर्य्यमणं व्वरुण गुं सोममश्श्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्क्करत्।।३।।
तन्नो व्वातो मयोभु व्वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः । 

तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम् ।।४।
तमीशानञ्जगतस्तस्त्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे व्यम्। 

पूषा नो यथा व्वेद सामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ।।५।।

स्वस्ति न इन्द्रो व्वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा व्विश्ववेदाः 

स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्तिनो बृहस्पतिर्द्दधातु ।।६
पृषदश्श्वामरुतः पृश्निमातरः शुभं य्यावानो व्विदथेषु जग्मयः । 

अग्निर्जिह्वा मनवः सूरचक्षसो व्विश्श्वे नो देवाऽअवसागमन्निह । ॥ ७ ॥ ॥
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्य्यजत्राः 

स्थिरैरङ्गैस्तुष्टटुवा गुं सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं य्यदायुः ।।८॥
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्का जरसं तनूनाम् । 

पुत्रासो यत्र यत्र पितरो भवन्ति मा नो मद्ध्यारीरिषतायुर्गन्तोः । । ९ ।।
अदितिद्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः । 

व्विश्वे देवा अदिति: पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्ज्जनित्वम् ।।१०।।
द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष गुं शान्तिः प्पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।  व्वनस्पतयः शान्तिर्व्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व्व गुं शान्तिः 

शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।।११।।
यतो यतः समीहसे ततो नो ऽअभयकुरु । 

शन्नः कुरु प्रजांब्भ्योऽभयन्नः पशुब्भ्यः ।। १२ ।।
विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद्भद्रं३ तन्न आसुव ।। १३ ।। 

सुशान्तिर्भवतु सर्वारिष्टशान्तिर्भवतु ।।
(अक्षत पुष्प गणेश जी के सामने चढ़ा दें)

मङ्गल-श्लोकपाठः
अक्षत पुष्प लेकर मंगलपाठ पूर्वक गणेशादि देवों का स्मरण करें।

ॐ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः । 

लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥ १ ॥ 

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः । 

द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥ २ ॥ 

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा । 

सङ्ग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते । । ३ ॥ 

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् । 

प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये || ४ ||


अभीप्सितार्थ-सिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुराऽसुरैः । 

सर्वविघ्न – हरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥५॥
सर्वमङ्गल-माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके !। 

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि ! नमोऽस्तु ते ॥६॥ 

सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम्। 

येषां हृदिस्थो भगवान् मङ्गलायतनं हरिः ॥ ७॥ 

तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव । 

विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि ॥८॥ 

लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः ।
येषामिन्दीवर – श्यामो हृदयस्थो जनार्दनः॥९॥

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । 

तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥ १० ॥ 

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । 

तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥ ११ ॥ 

स्मृतेः सकल-कल्याणं भाजनं यत्र जायते । 

पुरुषं तमजं नित्यं व्रजामि शरणं हरिम् ॥ १२ ॥ 

सर्वेष्वारम्भ-कार्येषु त्रयस्त्रि – भुवनेश्वराः । 

देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रह्मेशान – जनार्दनाः || १३|| 

विश्वेशं माधवं दुण्ढिं दण्डपाणिं च भैरवम् । 

वन्दे काशीं गुहां गङ्गां भवानीं मणिकर्णिकाम् ।।१४।। 

श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।।

हाथमें जल-अक्षतादि लेकर पूजनका संकल्प करे नित्यकर्म-पूजाप्रकाश

संकल्प — ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवश्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि- प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे पुण्यक्षेत्रे ( प्रयाग / काशी / क्षेत्रे ) – मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ अमुक वासरे अमुक गोत्रोत्पन्न: अमुक नाम शर्मा ( वर्मा, गुप्तः, दासः ) अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिक वाचिक मानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये । तदङ्गत्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये ।

यह संकल्प-वाक्य पढ़कर जलाक्षतादि गणेशजीके समीप छोड़ दे। अनन्तर सर्वप्रथम गणेशजीका पूजन करे ।

गणेश-पूजनसे पूर्व उस नूतन प्रतिमाकी निम्न-रीतिसे प्राण-प्रतिष्ठा कर लेप्रतिष्ठा – बायें हाथमें अक्षत लेकर निम्न मन्त्रोंको पढ़ते हुए हाथसे उन अक्षतोंको गणेशजीकी प्रतिमापर छोड़ता जाय दाहिने-

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञः समिमं दधातु । विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ म्प्रतिष्ठ ।

ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च ।

अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥

इस प्रकार प्रतिष्ठा कर भगवान् गणेशका षोडशोपचार पूजन तदनन्तर नवग्रह, षोडशमातृका तथा कलश-पूजन करे ।

इसके बाद प्रधान-पूजामें भगवती महालक्ष्मीका पूजन करे। पूजन पूर्व नूतन प्रतिमा तथा द्रव्यलक्ष्मीकी ‘ॐ मनो जति०’ तथा ‘अस्यै प्राणाः’ इत्यादि मन्त्र पढ़कर पूर्वोक्त रीतिसे प्राण प्रतिष्ठा कर ले ।

सर्वप्रथम भगवती महालक्ष्मीका हाथमें फूल लेकर इस प्रकार ध्यान करेध्यान—

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया ।

या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः

सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता 11

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि। (ध्यानके लिये पुष्प अर्पित करे ।)

आवाहन –

सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम् ।

सर्वदेवमयीमीशां देवीमावाहयाम्यहम् ॥

ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । महालक्ष्मीमावाहयामि, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि । (आवाहनके लिये पुष्प दे । )

आसन –

तप्तकाञ्चनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम् ।

अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ अश्वपूर्वी रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।

श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । आसनं समर्पयामि । (आसनके लिये कमलादिके पुष्प अर्पण करे ।)

पाद्य –

गङ्गादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम् ।

पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते ॥

ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।

पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पादयोः पाद्यं समर्पयामि । ( चन्दन, पुष्पादियुक्त जल अर्पित करे )

अर्घ्य –

अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम् ।

अर्घ्यं गृहाण मद्दत्तं महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥

ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।

तां पद्मनीमीं शरणं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥

महालक्ष्म्यै नमः । हस्तयोरर्घ्यं (अष्टगन्धमिश्रित * जल अर्घ्यपात्रसे देवीके हाथों में दे ।)

आचमन –

सर्वलोकस्य या शक्तिर्ब्रह्मविष्णवादिभिः स्तुता । –

ददाम्याचमनं तस्यै महालक्ष्म्यै मनोहरम् ॥

ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमनके लिये जल चढ़ाये ।)

स्नान –

मन्दाकिन्या: समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः ।

कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । स्नानं समर्पयामि । (स्नानीय जल अर्पित करे ।) स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (स्नानके बाद ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ ऐसा उच्चारण कर आचमनके लिये जल दे।)

दुग्धस्नान –

कामधेनुसमुत्पन्नं – सर्वेषां जीवनं परम् ।

पावनं यज्ञहेतुश्च पय: स्नानार्थमर्पितम् ॥

ॐ पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।

पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पयःस्नानं समर्पयामि । पय: स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (गौके कच्चे दूधसे स्नान कराये, पुनः शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

दधिस्नान –

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् ।

दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः सुरभि मुखा करत्प्र ण आयू gung षि तारिषत् ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः | दधिस्नानं समर्पयामि । दधिस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (दधिसे स्नान कराये, फिर शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

घृतस्नान –

नवनीतसमुत्पन्नं -सर्वसंतोषकारकम् ।

घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा । दिश: प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । घृतस्नानं समर्पयामि । घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (घृतसे स्नान कराये तथा फिर शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

मधुस्नान –

तरुपुष्पसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।

तेज:पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः । माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥ मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥ मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ २ अस्तु सूर्यः । माध्वीर्गावो भवन्तु नः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । मधुस्नानं समर्पयामि । मधुस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । ( मधु ( शहद ) – से स्नान कराये, पुनः शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

शर्करास्नान –

इक्षुसारसमुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका ।

मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ अपा gung रसमुद्वयसः gung सूर्ये सन्तः gung समाहितम् । अपा gung रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतो ऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करास्नानान्ते पुनः शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (शर्करासे स्नान कराकर पश्चात् शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

पञ्चामृतस्नान —

एकत्र मिश्रित पञ्चामृतसे एकतन्त्रसे निम्न मन्त्रसे स्नान कराये –

पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम् ।

पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः । सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत् सरित् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि, पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । (पञ्चामृतस्नानके अनन्तर शुद्ध जलसे स्नान कराये ।)

(यदि अभिषेक करना अभीष्ट हो तो शुद्ध जल या दुग्धादिसे ‘श्रीसूक्त’ का पाठ करते हुए अखण्ड जलधारासे स्नान (अभिषेक) कराये। मृण्मय प्रतिमा अखण्ड जलधारासे क्षरित न हो जाय आशयसे धातुकी मूर्ति या द्रव्यलक्ष्मीपर अभिषेक किया जाता है, इसे पृथक् पात्रमें कराना चाहिये ।)

गन्धोदकस्नान

मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम् । –

चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । गन्धोदकस्नानं समर्पयामि । (गन्ध (चन्दन) मिश्रित जलसे स्नान कराये । )

शुद्धोदकस्नान –

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।

तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । गङ्गा अथवा शुद्ध जलसे स्नान कराये, तदनन्तर प्रतिमाका अङ्ग-प्रोक्षण कर (पोंछकर) उसे यथास्थान आसनपर स्थापित करे और निम्नरूपसे उत्तराङ्ग-पूजन करे ।) – –

आचमन

ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ ऐसा क आचमनीय जल अर्पित करे ।)

वस्त्र –

दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम् ।

दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ॥

ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।

प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (वस्त्र अर्पित करे, आचमनीय जल दे ।)

उपवस्त्र –

कञ्चुकीमुपवस्त्रं च नानारत्नैः समन्वितम् ।

गृहाण त्वं मया दत्तं मङ्गले जगदीश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः | उपवस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (कञ्चुकी आदि उत्तरीय वस्त्र चढ़ाये, आचमनके लिये जल दे।)

– मधुपर्क –

कांस्ये कांस्येन पिहितो दधिमध्वाज्यसंयुतः ।

मधुपर्को मयानीतः पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । मधुपर्कं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (काँस्यपात्र में स्थित मधुपर्क समर्पित कर आचमनके लिये जल दे ।)

आभूषण –

रत्नकङ्कणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च।

सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः ॥

ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।

अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । नानाविधानि कुण्डलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि । (आभूषण समर्पित करे ।)

गन्ध –

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् ।

विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।

ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । गन्धं समर्पयामि । (अनामिका अँगुलीसे केसरादिमिश्रित चन्दन अर्पित करे ।)

रक्तचन्दन –

रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम् ।

मया दत्तं महालक्ष्मि चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । रक्तचन्दनं समर्पयामि । (अनामिकासे रक्त चन्दन चढ़ाये ।)

सिन्दूर –

सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये ।

भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वात प्रमियः पतयन्ति यह्वाः ।

घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः | सिन्दूरं समर्पयामि । (देवीजीको सिन्दूर चढ़ाये ।)

कुङ्कुम –

कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कुङ्कुमं कामरूपिणम् ।

अखण्डकामसौभाग्यं कुङ्कुमं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । कुङ्कुमं समर्पयामि। (कुङ्कुम अर्पित करे।)

पुष्पसार ( इतर ) –

तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च ।

मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । सुगन्धिततैलं पुष्पसारं च समर्पयामि । ( सुगन्धित तेल एवं इतर चढ़ाये ।)

* अक्षत * –

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः ।

मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः | अक्षतान् समर्पयामि । (कुङ्कुमाक्त अक्षत अर्पित करे ।)

* देशाचारसे कहीं-कहीं महालक्ष्मीको अक्षतके स्थानपर हल्दी या धनिया तथा भोगमें गुड़का प्रसाद दिया जाता है।

पुष्प एवं पुष्पमाला –

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो ।

मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।

पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि । (देवीजीको पुष्पों तथा पुष्पमालाओंसे अलङ्कृत करे, यथासम्भव लाल कमलके फूलोंसे पूजा करे ।)

दूर्वा –

विष्ण्वादिसर्वदेवानां प्रियां सर्वसुशोभनाम् । –

क्षीरसागरसम्भूते दूर्वां स्वीकुरु सर्वदा ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि । (दूर्वाङ्कुर अर्पित करे ।)

अङ्ग- पूजा

रोली, कुङ्कुममिश्रित अक्षत- पुष्पोंसे निम्नाङ्कित एक-एक नाममन्त्र पढ़ते हुए अङ्ग – पूजा करे –

ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि । ॐ चञ्चलायै नमः, जानुनी पूजयामि । ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि । ॐ कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि । ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि । ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षःस्थलं पूजयामि । ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि । ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि । ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि । ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सर्वाङ्गं पूजयामि ।

अष्टसिद्धि-पूजन

इस प्रकार अङ्ग-पूजाके अनन्तर पूर्वादि-क्रमसे आठों दिशाओं में आठों सिद्धियोंकी पूजा कुङ्कुमाक्त अक्षतोंसे देवी महालक्ष्मीके पास निम्नाङ्कित मन्त्रोंसे करे-

१- ॐ अणिम्ने नमः ( पूर्वे), २-ॐ महिम्ने नमः (अग्निकोणे), ३-ॐ गरिम्णे नमः (दक्षिणे), ४-ॐ लघिम्ने नमः ( नैरृत्ये ), ५-ॐ प्राप्त्यै नमः ( पश्चिमे), ६-ॐ प्राकाम्यै नमः (वायव्ये), ७-ॐ ईशितायै नमः ( उत्तरे ) तथा ८-ॐ वशितायै नमः ( ऐशान्याम् ) ।

अष्टलक्ष्मी पूजन=

तदनन्तर पूर्वादि-क्रमसे आठों दिशाओंमें महालक्ष्मीके पास कुङ्कुमाक्त अक्षत तथा पुष्पोंसे एक-एक नाम-मन्त्र पढ़ते हुए आठ लक्ष्मियोंका पूजन करे१- ॐआद्यलक्ष्म्यै नमः, २-ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः, ३-ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः, ४-ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः, ५-ॐ कामलक्ष्म्यै नमः, ६-ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः, ७- ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः ८-ॐ योगलक्ष्म्यै नमः ।

धूप –

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः ।

आनेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।

श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, धूपमाघ्रापयामि । (धूप आघ्रापित करे ।)

दीप

कार्पासवर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम् ।

तमोनाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।

नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । दीपं दर्शयामि । (दीपक दिखाये और फिर हाथ धो ले।)

नैवेद्य –

नैवेद्यं – गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम् ।

षड्रसैरन्वितं दिव्यं लक्ष्मि देवि नमोऽस्तु ते ॥

ॐ आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । नैवेद्यं निवेदयामि, मध्ये पानीयम्, उत्तरापोऽशनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि । (देवीजीको नैवेद्य निवेदित कर पानीय जल एवं हस्तादि प्रक्षालनके लिये भी जल अर्पित करे ।)

करोद्वर्तन –

‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ यह कहकर करोद्वर्तनके लिये हाथोंमें चन्दन उपलेपित करे।

आचमन –

शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम् ।

आचम्यतां जलं ह्येतत् प्रसीद परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि । (नैवेद्य अनन्तर आचमनके लिये जल दे ।)

ऋतुफल –

फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।

तस्मात् फलप्रदानेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अखण्डऋतुफलं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (ऋतुफल अर्पित करे तथा आचमनके लिये जल दे ।)

ताम्बूल – पूगीफल –

पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् । –

एलाचूर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ आर्द्रा यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि । ( एला, लवंग, पूगीफलयुक्त ताम्बूल अर्पित करे ।)

दक्षिणा –

हिरण्यगर्भगर्भस्थं – हेमबीजं विभावसोः ।

अनन्तपुण्यफलदमतः प्रयच्छ मे ॥

ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम्॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दक्षिणां समर्पयामि ।

(दक्षिणा चढ़ाये ।)

 नीराजन –

चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम् ।

आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नीराजनं समर्पयामि । ( आरती करे तथा जल छोड़े, हाथ धो ले ।)

प्रदक्षिणा –

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि । ( प्रदक्षिणा करे ।)

प्रार्थना – हाथ जोड़कर प्रार्थना करे-

सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकै

र्युक्तं सदा यत्तव पादपङ्कजम् ।

परावरं पातु वरं सुमङ्गलं

नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये ॥

भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी ।

सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि ! नमोऽस्तु ते ॥

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये ।

या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि । ( प्रार्थना करते हुए नमस्कार करे ।)

समर्पण –

पूजनके अन्तमें‘कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम ।’ (यह वाक्य उच्चारणकर समस्त पूजन-कर्म भगवती महालक्ष्मीको समर्पित करे तथा जल गिराये ।)

भगवती महालक्ष्मीके यथालब्धोपचार पूजनके अनन्तर महालक्ष्मीपूजनके अंग-रूप, श्रीदेहलीविनायक, मसिपात्र, लेखनी, सरस्वती, कुबेर, तुला-मान तथा दीपकोंकी पूजा की जाती है। संक्षेपमें उन्हें भी यहाँ दिया जा रहा है। सर्वप्रथम ‘देहलीविनायक’ की पूजा की जाती है—

देहलीविनायक – पूजन –

व्यापारिक प्रतिष्ठानादिमें दीवालोंपर ‘ॐ श्रीगणेशाय नमः’, ‘स्वस्तिक चिह्न’, ‘शुभ-लाभ’ आदि मांगलिक एवं कल्याणकर शब्द सिन्दूरादिसे लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दोंपर ‘ॐ देहलीविनायकाय नमः’ इस नाम – मन्त्रद्वारा गन्ध – पुष्पादिसे पूजन करे ।

श्रीमहाकाली ( दावात ) पूजन

स्याही- युक्त दावातको भगवती महालक्ष्मीके सामने पुष्प तथा अक्षतपुंजमें रखकर उसमें सिन्दूरसे स्वस्तिक बना दे तथा मौली लपेट दे। ‘ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः’ इस नाम-मन्त्रसे गन्ध-पुष्पादि पञ्चोपचारोंसे या षोडशोपचारोंसे दावातमें भगवती महाकालीका पूजन करे और अन्तमें इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करे-

कालिके! त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे ।

उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये ॥

या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तैः समस्तैर्व्यवहारदक्षैः ।

जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु ||

लेखनी-पूजन

लेखनी (कलम ) – पर मौली बाँधकर सामने रख ले और-

लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना ।

लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम् ॥

‘ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः’ इस नाम- मन्त्रद्वारा गन्ध- पुष्पाक्षत आदिसे पूजनकर इस प्रकार प्रार्थना करे–

शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यतः ।

अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ॥

सरस्वती – (पञ्जिका – बही-खाता) पूजन पञ्जिका—

बही, बसना तथा थैलीमें रोली या केसरयुक्त चन्दनसे स्वस्तिक चिह्न बनाये तथा थैलीमें पाँच हल्दीकी गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वतीका पूजन करे । सर्वप्रथम सरस्वतीजीका ध्यान इस प्रकार करे – – ध्यान –

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ॥

या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता ।

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥

 ‘ॐ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः’ –इस नाम-मन्त्रसे गन्धादि उपचारोंद्वारा पूजन करे ।

कुबेर

तिजोरी अथवा रुपये रखे जानेवाले संदूक आदिको स्वस्तिकादिसे पूजन अलङ्कत कर उसमें निधिपति कुबेरका आवाहन करे –

आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु ।

कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर ॥

आवाहनके पश्चात् ‘ॐ कुबेराय नमः’ इस नाम- मन्त्रसे यथालब्धोपचार पूजनकर अन्तमें इस प्रकार प्रार्थना करे-

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।

भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ॥

– इस प्रकार प्रार्थना कर पूर्वपूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादिसे युक्त थैली तिजोरीमें रखे।

तुला तथा मान-पूजन

सिन्दूरसे तराजू आदिपर स्वस्तिक बना ले। मौली लपेटकर तुलाधिष्ठातृ देवताका इस प्रकार ध्यान करना चाहिये-

नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता ।

साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना ॥

ध्यानके बाद ‘ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः’ इस नाम- मन्त्रसे गन्धाक्षतादि उपचारोंद्वारा पूजनकर नमस्कार करे।

दीपमालिका – ( दीपक ) पूजन

किसी पात्रमें ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकोंको प्रज्वलित कर महालक्ष्मीके समीप रखकर उस दीप – ज्योतिका ‘ॐ दीपावल्यै नमः’ इस नाम- मन्त्रसे गन्धादि उपचारोंद्वारा पूजनकर इस प्रकार प्रार्थना करे-

त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः ।

सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ॥

दीपमालिकाओंका पूजन कर अपने आचारके अनुसार संतरा, ईख, पानीफल, धानका लावा इत्यादि पदार्थ चढ़ाये। धानका लावा (खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओंको भी अर्पित करे। अन्तमें अन्य सभी दीपकोंको प्रज्वलित कर सम्पूर्ण गृह अलङ्कृत आरती करे।

इस प्रकार भगवती महालक्ष्मी तथा उनके सभी अंग-प्रत्यङ्गों एवं उपाङ्गोंका पूजन कर लेनेके अनन्तर प्रधान आरती करनी चाहिये। इसके लिये एक थाली में स्वस्तिक आदि माङ्गलिक चिह्न बनाकर अक्षत तथा   पुष्पोंके आसनपर किसी दीपक आदिमें घृतयुक्त बत्ती प्रज्वलित करे । एक पृथक् पात्रमें कर्पूर भी प्रज्वलित कर वह पात्र भी थालीमें यथास्थान रख ले, आरती – थालका जलसे प्रोक्षण कर ले। पुनः आसनपर खड़े होकर अन्य पारिवारिक जनोंके साथ घण्टानादपूर्वक निम्न आरती गाते हुए साङ्ग-महालक्ष्मीजीकी मंगल आरती करे –

श्रीलक्ष्मीजीकी आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया ) जय लक्ष्मी माता ।

मन्त्र – पुष्पाञ्जलि – दोनों हाथोंमें कमल आदिके पुष्प लेकर हाथ जोड़े और निम्न मन्त्रोंका पाठ करे-

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।

ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।

स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥

कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।

ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौम: सार्वायुषान्तादापरार्धात्। पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ।

 

ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात् ।

सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन् देव एकः ॥

महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।

ॐ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः

पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा

तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि । (हाथमें फूल महालक्ष्मीपर चढ़ा दे ।) प्रदक्षिणा कर साष्टाङ्ग प्रणाम करे, दे।)

पुनः हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करे-

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।

पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥

पुनः प्रणाम करके ‘ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मीः प्रसीदतु’ यह कहकर जल छोड़ दे । ब्राह्मण एवं गुरुजनोंको प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करे।

विसर्जन- पूजनके अन्तमें हाथमें अक्षत लेकर नूतन गणेश एवं महालक्ष्मीकी प्रतिमाको छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओंको अक्षत छोड़ते हुए निम्न मन्त्रसे विसर्जित करे-

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् ।

इष्टकामसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च॥ –

यह जानकारी अच्छी लगे तो अपने मित्रों के साथ भी साझा करें |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *