आपने श्रीमद्भागवतम् महापुराण के माहात्म्य से अत्यंत सुंदर श्लोकों और उनके भावार्थों का संकलन प्रस्तुत किया है। यह भागवत की गूढ़ता, भक्ति भाव और कल्याणकारी तत्त्व को अत्यंत सुंदर तरीके से सामने रखता है। नीचे पूरे संकलन को एक व्यवस्थित रूप में पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ, ताकि आप इसे किसी पाठ, प्रस्तुति, पुस्तिका, या कीर्तन हेतु भी सहज उपयोग में ला सकें:
श्रीमद्भागवत महापुराण – माहात्म्य से प्रमुख श्लोक एवं भावार्थ
Bhagwat mahapuran Mahatma shlok uchharan Arth sahit

1. सच्चिदानंदरूप श्रीकृष्ण स्तुति
श्लोक:
सच्चिदानन्दरूपाय विश्वोत्पत्यादि हेतवे।
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुम:।। (भा• मा• 1.1)
भावार्थ:
सच्चिदानंदरूप भगवान श्रीकृष्ण को हम नमस्कार करते हैं, जो इस सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और संहार के कारण हैं तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक इन तीनों प्रकार के तापों का नाश करने वाले हैं।

2. श्री शुकदेव मुनि वंदना
श्लोक:
यं प्रव्रजन्तसमनुपेत मपेत कृत्यं
द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव।
पुत्रेति तन्मयतया तरवोभिनेदु
स्तं सर्वभूत ह्रदयं मुनिमानतोस्मि।। (भा• मा• 1.2)
भावार्थ:
जिस समय श्री शुकदेव जी का यज्ञोपवीत संस्कार भी नहीं हुआ था, वे बिना किसी कर्म के अकेले संन्यास लेने को चल दिए। उनके पिता व्यासजी विरह से व्याकुल होकर पुकार उठे – “पुत्र!” – और तन्मय हुए वृक्षों ने उत्तर दिया। ऐसे सर्वभूतहृदय श्री शुकदेव मुनि को मैं नमस्कार करता हूँ।

3. नैमिषारण्य में सूतजी से प्रश्न
श्लोक:
नैमिषे सूतमासीनमभिवाद्य महामतिम्।
कथामृतरसास्वाद कुशलः शौनकोब्रवीत्।। (भा• मा• 1.3)
भावार्थ:
नैमिषारण्य में स्थित महामति सूत जी को नमस्कार करके, भगवद्-कथामृत रस में कुशल शौनक ऋषि ने उनसे प्रश्न किया।

4. नैमिषारण्य की महिमा
पद्य:
तीरथ परम नैमिष विख्याता।
अति पुनीत साधक सिद्धिदाता।।।
भावार्थ:
नैमिष तीर्थ परम प्रसिद्ध, अत्यंत पवित्र और साधकों को सिद्धि देने वाला स्थान है।

5. भागवत का प्राकट्य – काल त्रास से रक्षा
श्लोक:
कालव्यालमुखग्रासत्रासनिर्णाश हेतवे।
श्रीमद्भागवतं शास्त्रं कलौ कीरेण भाषितम्।। (भा• मा• 1.11)
भावार्थ:
कालरूपी विषधर सर्प के त्रास से पीड़ित जीवों की रक्षा के लिए कलियुग में श्री शुकदेव जी ने श्रीमद्भागवत शास्त्र का उपदेश दिया।

6. भागवत – मन की शुद्धि का उपाय
श्लोक:
एतस्मादपरं किंचिन्मनः शुद्ध्यै न विद्यते।
जन्मान्तरे भवेत्पुण्यं तदा भागवतं लभेत्।। (भा• मा• 1.12)
भावार्थ:
मन की शुद्धि के लिए भागवत से बढ़कर और कोई उपाय नहीं है। जब जन्म-जन्मांतर का पुण्य उदय होता है, तभी भागवत की प्राप्ति होती है।

7. कथा की श्रेष्ठता – सुधा समान
श्लोक:
क्व सुधा क्व कथा लोके क्व काचः क्व मणिर्महान्।
ब्रह्मरातो विचार्यैवं तदा देवाञ्जहास ह।। (भा• मा• 1.16)
भावार्थ:
इस संसार में कहाँ सुधा (अमृत) और कहाँ कथा? कहाँ काँच और कहाँ महान मणि? इस भेद को जानकर ब्रह्मनिष्ठ शुकदेव जी ने देवताओं की हँसी उड़ाई।

8. भक्तिहीन को कथा नहीं दी गई
श्लोक:
अभक्तांस्तांश्च विज्ञाय न ददौ स कथामृतम्।
श्रीमद्भागवती वार्ता सुराणामपि दुर्लभा।। (भा• मा• 1.17)
भावार्थ:
भक्तिहीन व्यक्तियों को श्री शुकदेव जी ने कथा अमृत नहीं दिया। यह श्रीमद्भागवत की वार्ता तो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।

9. भागवत शास्त्र – मोक्षदायक
श्लोक:
मेनिरे भगवद्रूपं शास्त्रं भागवतं कलौ।
पठनाच्र्छवणात्सद्यो वैकुण्ठफलदायकम्।। (भा• मा• 1.20)
भावार्थ:
उन्होंने श्रीमद्भागवत को भगवान का ही रूप माना, जिसका पठन व श्रवण कलियुग में तत्काल वैकुण्ठ फल देने वाला है।

10. कलियुग का चित्रण
श्लोक:
मन्दाः सुमन्दमतयो मन्दभाग्या ह्युपद्रुताः।
पाखण्ड निरताः सन्तो विरक्ताः सपरिग्रहाः।। (भा• मा• 1.32)
भावार्थ:
कलिकाल में मनुष्य मंदबुद्धि, दुर्भाग्यशाली, कष्टों से पीड़ित हो गए हैं। साधु कहे जाने वाले लोग पाखंड में लगे रहते हैं। दिखने में विरक्त, लेकिन स्त्री और धन का परिग्रह करते हैं।
