श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में -3 bhagwat katha in hindi

( अथैकोनविंशो अध्यायः )

परीक्षित का अनशन ब्रत और शुकदेव जी का आगमन—- राजधानी में पहुंचने पर राजा परीक्षित को अपने उस निंदनीय कर्म का बड़ा पश्चाताप हुआ और सोचने लगा मुझे इसका बड़ा दंड मिलना चाहिए इतने में उसे ज्ञात हुआ कि ऋषि कुमार ने उन्हें तक्षक द्वारा  डसे जाने का श्राप दे दिया है | सुनकर वे बड़े प्रसन्न हुए कि मेरे पाप का प्रायश्चित हो गया उन्होंने अपने पुत्र जन्मेजय को राज्य का भार देकर स्वयं  अनशन व्रत लेकर गंगा तट पर जाकर बैठ गए वहां अन्य ऋषि मुनि लोग भी आने लगे—–

श्लोक-1,19,9-10

यह सब ऋषि भी गंगा तट पर आ गए राजा ने सब को प्रणाम किया और सब का आशीर्वाद प्राप्त किया और पूछा  अल्पायु व्यक्ति के लिए  क्या करना योग्य है ? श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में -3 bhagwat katha in hindi

प्रश्न का उत्तर देने के अधिकारी तो अभी  आने की तैयारी में है , जब श्रोता परीक्षित के जन्म की कथा भागवत में है | वक्ता श्री सुकदेव जी के जन्म की कथा नहीं है , फिर भी विद्वान जन अन्य    संहिताओं के आधार पर सुनाते हैं जो यहां दी जा रही है | गोलोक धाम में राधा जी का पालतू सुक, जब जब भगवान के साथ माता जी अवतार लेती हैं उनका प्रिय सुक भी अवतार लेकर धरती पर आता है | एक समय कैलाश पर नारद जी पधारे शिवजी तो कहीं   भ्रमण पर गए थे अकेली पार्वती मिली  नारद बोले माता जी आपका भी क्या जीवन है केवल शिवजी के लिए सारा संसार छोड़कर जंगल में रहती हैं,

वह भी आपको अकेली छोड़कर ना जाने कहां चले जाते हैं,

लगता है आपके प्रति उनका सच्चा प्रेम नहीं है | पार्वती बोली यह बात मैंने उन से पूछी थी उन्होंने बताया कि वे मुझे इतना चाहते हैं कि मेरे एक सौ आठ जन्मों के  सिरों की माला  बनाकर अपने गले में धारण करते हैं |

नारद बोले यह तो सत्य है किंतु क्या आपने यह रहस्य पूछा कि क्यों आपके तो एक सौ आठ जन्म हो गए और उनका एक भी जन्म नहीं हुआ ?

बोली यह बात तो कभी मेरे ध्यान में ही नहीं आई अब मैं इस रहस्य को जानकर रहूंगी नारद जी तो चले गए | शिव जी के आने पर यह रहस्य शिव जी से पूछा  पहले तो   शिव जी ने बताने मैं  आना कानी की किंतु जब पार्वती ने हट किया तो उन्होंने अमर कथा सुनाने का निश्चय किया और पार्वती को लेकर अमरनाथ क्षेत्र में आ गए , उन्होंने तीन ताली बजाकर पशु ,पक्षी को वहां से भगा दिया और पार्वती वहां अमर कथा सुनने लगी शिव जी ने समाधि लगाकर  ज्यों ही कथा कहना प्रारंभ किया पार्वती को नींद आ गई पेड़ में तोते का अंडा था जिसमें  से बच्चा निकल कर सुनने लगा और बीच-बीच मे हूंकार भी भरने लगा | कथा पूर्ण हुई शिव जी की समाधि  खुली  देखा पार्वती तो सो रही हैं,

फिर कथा किसने सुनी इतने में तोते का बच्चा पंख फड़फड़ कर उड़  गया  |

यही श्री सुकदेव जी थे , शिवजी ने देखा पार्वती कथा की अधिकरिणी  नहीं थी  अतः उसे कथा नहीं मिली , अधिकारी उसे सुनकर चला गया | श्री सुकदेव जी कथा सुनकर  सीधे वृंदावन भगवान के दर्शन के लिए गए जहां एक कदम के नीचे भगवान बैठे थे ,पेड़ पर तोता कृष्ण कृष्ण करने लगा भगवान बोले मुझे प्राप्त करने के लिए पहले राधा जी की कृपा प्राप्त करनी होगी , वहां से उड़कर राधा जी की शरण मैं गया माता अपने बिछड़े हुए पुत्र को पहचान गई अपने  हस्त कमल पर बैठाया  और कृपा कर कृष्ण मंत्र दिया सुकदेव सनाथ हो गए वे वहां से उड़कर व्यास आश्रम में जहां व्यास पत्नी चतुर्थ दिन का स्नान कर बैठी थी | उन्हें जम्हाई  आई और सुकदेव  मुख  मार्ग से  उनके गर्भ मैं प्रवेश कर गए और बारह वर्ष तक गर्भ से बाहर नहीं आए |

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जब भगवान  की आज्ञा हुई सुकदेव गर्भ से बाहर आए और जन्म लेते ही  वन की ओर चल  दिए, व्यास जी हे पुत्र पुत्र कहते हुए पीछे पीछे दौड़े किंतु सुकदेव नहीं रुके निर्गुण  ब्रह्म की उपासना करने लगे | उनको लाने के लिए व्यास जी ने अपने कुछ शिष्यों को आज्ञा दी वे शिष्य सुकदेव जी के समीप गए और सगुण भक्ति का गान करने लगे और भगवान के गुणों का वर्णन करने लगे |

श्लोक- (सौन्दर्य)-वर्हा पीडं• (माधुर्य)-नौमिड्यते• (शौर्य)-कदा वृन्दा• (दयालुता)-अहो वकीयं• !

भगवान  के इन गुणों को सुनकर श्री सुकदेव उठकर उनके पास आ गए और बोले और सुनायें, शिष्यों ने कहा और सुनना  है तो हमारे साथ  चलें ऐसे अठारह हजार श्लोक की भागवत आपकी प्रतीक्षा कर रही है | इस प्रकार श्री सुकदेव जी को लेकर शिष्य आश्रम आ गये, पिताजी को प्रणाम कर भागवत का अध्ययन किया अध्ययन के पश्चात परीक्षा के लिए उन्हें  जनक जी के पास भेजा गया  वे जनक जी के  यहां गए द्वारपाल ने जनक जी को खबर दी  की सुकदेव जी पधारे हैं | जनक बोले खड़े रहें जब समय होगा  बुला लेंगे सात दिन तक वे द्वार पर खड़े रहे जरा भी विचलित नहीं हुए , अंत में जनक आकर उनके चरणों में गिर गए आप परमहंस आपकी कोई क्या परीक्षा ले सकता है | इस प्रकार परीक्षा में सफल होकर पिता के पास आ गए |

गंगा तट पर  जहां मुनियों के साथ परीक्षित बैठे हैं वहां के लिए प्रस्थान किया वहां पहुंचने पर सब खड़े हो गए श्री सुकदेव जी को ऊंचे आसन पर बैठाकर उनकी पूजा की सब लोग गाने लगे |  सबने सुकदेव जी की इस प्रकार स्तुति की हाथ जोड़कर परीक्षित बोले—

श्लोक-1,19,37

मैं आपसे परम सिद्धि के स्वरूप और  के संबंध में प्रश्न कर रहा हूं , जो पुरुष सर्वथा मरणासन्न है  उसे क्या करना चाहिए ? साथ ही यह भी बतावे मनुष्य मात्र को क्या करना चाहिए ? किसका श्रवण ,जप, स्मरण और किस का भजन करें ?किस का त्याग करें ?

इति एकोनविंशो अध्यायः

✳ इति प्रथम स्कन्ध सम्पूर्णम् ✳

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श्री मद भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा

( अथ द्वितीयो स्कन्ध प्रारम्भ )

अथ प्रथम अध्याय:

भागवत,श्लोक-2.1.1

हे राजा परीक्षित लोकहित में किया हुआ प्रश्न बहुत उत्तम है , मनुष्य के लिए  जितनी भी बातें सुनने  स्मरण करने कीर्तन करने की है   उन सब में यहीश्रेष्ठ है | आत्म ज्ञानी महापुरुष ऐसे प्रश्न  का बड़ा आदर करते हैं |

भागवत,श्लोक-2.1.2

राजन जो गृहस्थ घर के काम धंधे में उलझे रहते हैं अपने स्वरूप को नहीं जानते उनके लिए हजारों बातें कहने सुनने सोचने करने की रहती है |

भागवत,श्लोक-2.1.3

उनकी सारी उम्र यूं ही बीत जाती है उनकी रात नींद या स्त्री प्रसंग में कटती है तथा दिन धन की हाय हाय या कुटुंब के भरण-पोषण में  बीतता है|

भागवत,श्लोक-2.1.4

संसार में जिन्हें अपना अत्यंत  घनिष्ठ संबंधी कहा जाता है वह शरीर पुत्र स्त्री आदि कुछ नहीं है, असत्य है ! परन्तु जीव  उनके मोह  में ऐसा पागल  सा हो जाता है कि रात दिन उसकी मृत्यु का भास हो जाने पर भी चेतना नहीं–

भागवत,श्लोक-2.1.5

इसलिए परीक्षित जो अभय पद को प्राप्त करना चाहता है  उसे तो सर्वशक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का श्रवण कीर्तन और स्मरण करना चाहिए ! श्रीमद् भागवत कथा हिंदी में -3 bhagwat katha in hindi

भागवत,श्लोक-2.1.6

मनुष्य जन्म का यही   लाभ  है कि चाहे जैसे भी ज्ञान से भक्ति से अपने धर्म की निष्ठा से जीवन को ऐसा बना  लिया  जाए कि मृत्यु के समय भगवान की स्मृति बनी रहे , भगवान के स्थूल स्वरूप का ध्यान करें—

भागवत,श्लोक-2.1.26

पाताल  हि जिन के तलवे हैं   एड़ियाँ  और पंजे रसातल हैं, एडी के ऊपर की गांठें महातल, पिंडली तलातल है, दोनों घुटने सुतल हैं, जंघे  अतल वितल  हैं,  पेडू भूतल नाभि आकाश है | आदि पुरुष  परमात्मा की छाती स्वर्ग,  गला महर्लोक मुख जनलोक, ललाट तप लोक, उनका मस्तक सत्य लोक है | सभी देवी देवता उनके अंग  है यही भगवान का स्थूल  स्वरूप हैं |

इति प्रथमो अध्यायः

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( अथ द्वितीयो अध्यायः )

भगवान के स्थूल और सूक्ष्म रूपों की धारणा तथा क्रम और सद्योमुक्ति का वर्णन—

भागवत,श्लोक-2.2.1

सुकदेव जी कहते हैं सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा जी ने इसी धारणा के द्वारा प्रसन्न हुए भगवान से यह सृष्टि विषयक स्मृति प्राप्त की थी जो    पहले प्रलय काल मैं विलुप्त हो गई थी | इससे उनकी दृष्टि अमोघ और बुद्धि  निश्चयात्मिका हो गई   तब उन्होंने इस जगत को उसी  प्रकार रचा जैसे कि वह   प्रलय  के पहले था |

कुछ भक्त अपने हृदय में परमात्मा के अंगूठे मात्र स्वरूप का ध्यान करते हैं, कुछ अपनी वासनाओं का त्याग करके  अपने शरीर को छोड़  आत्मा को परमात्मा में लीन  कर देते हैं ,कुछ पहले स्वर्ग लोग को ब्रह्म  लोक  होते हुए बैकुंठ जाते हैं , यह क्रम मुक्ति है | कुछ सीधे ही परमात्मा का ध्यान कर उन्हें प्राप्त हो जाते हैं यह सद्योमुक्ति है |

इति द्वितीयो अध्यायः

( अथ तृतीयो अध्यायः )

कामनाओं के अनुसार विभिन्न देवताओं की उपासना तथा भगवत भक्ति के प्राधान्य का निरूपण—

भागवत,श्लोक-2.3.3-10-12

सांसारिक कामना रखtने वाले ब्रह्म तेज के लिए बृहस्पति की उपासना  करें , इंद्रियों की शक्ति के लिए  इंद्र  की , संतान के लिए प्रजापतियों की, लक्ष्मी के लिए शिव जी की करें, मोक्ष चाहने वाले तीव्र भक्ति योग द्वारा भगवान नारायण की उपासना करें |

इति तृतीयो अध्यायः

( अथ चतुर्थो अध्यायः )

राजा का श्रष्टि विषयक प्रश्न शुकदेव जी का कथारंभ—–

भागवत,श्लोक-2.4.12

परीक्षित ने पूछा परमात्मा इस संसार की रचना कैसे करते हैं ! सुकदेव जी ने मंगलाचरण पूर्वक कथा प्रारंभ कि |उन पुरुषोत्तम भगवान को मैं कोटी कोटि प्रणाम करता हूं जो संसार की रचना पालन और संहार के लिए रजोगुण सतोगुण और तमोगुण   को धारण कर ब्रह्मा विष्णु शंकर अपने तीन रूप बनाते हैं | हे परीक्षित नारद जी के प्रश्न करने पर वेद गर्भ ब्रह्मा ने जो बात कही थी जिसका स्वयं नारायण ने उन्हें उपदेश किया था और वही  मैं तुम से कह रहा हूं |

इति चतुर्थो अध्यायः

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( अथ पंचमो अध्यायः )

सृष्टि वर्णन—–

भागवत,श्लोक-2.5.22-23-24-25

( पद )

निर्गुण निराकार निरलेप ब्रम्ह ही बने सगुणसाकार

एकबार उस परब्रह्मने मनमे कियो विचार

एकहुं मै बहु बनू करूम निज माया का विस्तार

तब माया के उदर मे दिया बीज निज डार

महत्तत्व उपजाया सारी श्रृष्टि का आधार

महत्तत्व विक्षिप्त हुआ तब प्रकटाया अहंकार

तामस राजस सात्विक देखो इसके तीन प्रकार

सात्विक अहंकार से सृष्टि देवन उपजाइ

राजस अहंकार से इन्द्रिय एकादशप्रकटाइ

तन्मात्रा के साथ बनाकर सबको दिया मिलाइ

विराट पुरुष प्रकटे तबहि पर खडेहुए वेनाही

खडे हुए जब प्रविशे प्रभुजी उस विराट केमाही

माया मण्डल की रचना कर हर्षित हुये प्रभु भारी

दास भागवत गाय सुनाइ सृष्टि रचना सारी

इति पंचमो अध्यायः

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( अथ षष्ठो अध्यायः )

विराट स्वरूप की विभूतियों का वर्णन—-

भागवत,श्लोक-2.6.1

ब्रह्मा जी कहते हैं  उन्ही विराट पुरुष के मुख से वाणी और उसके अधिष्ठाता देवता अग्नि उत्पन्न हुई हैं | सातों छंद उनकी सात धातुओं से निकले हैं | मनुष्यों पितरों और देवताओं के भोजन करने योग्य अमृत मय छंद सब प्रकार के  रस रसनेन्द्रिय और उसके अधिष्ठाता देवता वरुण उनकी जिह्वा से उत्पन्न हुए हैं | उनके नासा  छिद्रों से पान अपान व्यान उदान समान यह पांचों प्राण और वायु तथा घ्राणेन्द्रिय से अश्वनी कुमार समस्त औषधियां साधारण तथा विशेष गंध उत्पन्न हुए हैं |

भागवत,श्लोक-2.6.31

उन्हीं की प्रेरणा से मैं इस संसार की रचना करता हूं , उन्हीं के अधीन होकर रुद्र उसका संहार करते हैं  और वे स्वयं ही विष्णु रूप से इसका पालन करते हैं | क्योंकि उन्होंने  सत रज तम तीन शक्तियां स्वीकार कर रखी हैं | बेटा नारद जो कुछ तुमने पूछा था उसका उत्तर मैंने तुम्हें दे दिया भाव या  आभाव, कार्य या कारण के रूप में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जो भगवान से  भिन्न  हो |

इति षष्ठो अध्यायः

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( अथ सप्तमो अध्यायः )

भगवान के लीला वतारों की कथा—-

भागवत,श्लोक-2.7.1

ब्रह्माजी बोले , अनंत भगवान ने प्रलय काल  में जल में डूबी हुई पृथ्वी का उद्धार करने के लिए यज्ञमय   वाराह रूप धारण किया था,  आदि   दैत्य हिरण्याक्ष जल के अंदर ही  उनसे लड़ने आया जैसा इंद्र ने पर्वतों के पंख काट डाले थे वैसे ही वाराह भगवान ने अपनी डाढों  से उसके टुकड़े  टुकड़े कर दिए और भी भगवान के अनेक अवतार हुए हैं  रुचि प्रजापति से यज्ञावतार, कर्दम प्रजापति के यहां कपिल अवतार ,अत्री के यहां दत्तात्रेय अवतार लिया  तथा वामन हंस धनवंतरी परशुराम राम कृष्ण आदि अनेक अवतार भगवान के हैं |

इति सप्तमो अध्याय:

श्री मद भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा

( अथ अष्टमो अध्यायः )

राजा परीक्षित के विविध प्रश्न—

भागवत,श्लोक-2.8.1-2

राजा परीक्षित ने पूछा – भगवन आप वेद वेत्ताओं में श्रेष्ठ हैं | मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि जब ब्रह्माजी ने निर्गुण भगवान के गुणों का वर्णन करने को कहा तब उन्होंने किन किन को किस रूप में कहा | एक तो अचिंत्य शक्तियों के आश्रय भगवान की कथाएं ही लोगों का मंगल करने वाली हैं, दूसरे देवर्षि नारद का सबको भगवत दर्शन कराने का स्वभाव है अवश्य ही उनकी बात मुझे सुनाइए |

सूत जी कहते हैं- हे ऋषियों जब संतों की सभा में राजा परीक्षित ने भगवान की लीला कथा सुनाने के लिए प्रार्थना की सुकदेव जी को बड़ी प्रसन्नता हुई उन्होंने वही वेद तुल्य श्रीमद् भागवत कथा सुनाई जो स्वयं भगवान ने ब्रह्मा को सुनाया था|

इति अष्टमो अध्यायः

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( अथ नवमो अध्यायः )

ब्रह्मा जी का भगवत धाम दर्शन और भगवान के द्वारा उन्हें चतुश्लोकी भागवत का उपदेश—

भगवान की नाभि से निकले कमल से प्रगट ब्रह्मा जी ने जब अपने आपको सृष्टि करने में असमर्थ पाया तो भगवान ने उन्हें तप करने को कहा ब्रह्मा की तप से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें अपने धाम का दर्शन कराया और उन्हें चतुश्लोकी भागवत प्रदान की—

भागवत,श्लोक-2.9.32-33-34-35

( पद्य के माध्यम से )

सृष्टि से पहले केवल मुझको ही जान , नहीं स्थूल नहीं सूक्ष्म जगत या ना ही था अज्ञान | जहां सृष्टि नहीं वहां मैं ही हूं सृष्टि के रूप में भी मैं ही हूं,  जो बचा रहेगा वह मैं हूं सर्वत्र सर्वदा मैं ही हूं | मेरे सिवा जो दीख रहा है मिथ्या सकल जहान सृ,  जैसे नक्षत्र मंडल में राहु की प्रतीत नहीं होती | वैसे इस माया के बीच मेरी भी प्रतीति नहीं होती , मेरे ही इस दृश्य जगत को मेरी माया पहचान सृ | जैसे जीवो की देही में पंचभूत तत्व है विद्यमान , वैसे ही मुझको आत्म रूप बाहर भीतर सर्वत्र जान | मैं ही मैं हूं और ना कोई मुझको मुझ में जान , ब्रह्मा जी को चार श्लोक में दान किया श्री नारायण , ब्रह्मा नारद से ब्यास किया वेदव्यास ने पारायण | दास भागवत तत्व यही है ये ही सच्चा ज्ञान ||

इति नवमो अध्यायः

( अथ दशमो अध्यायः )

भागवत के दस लक्षण–

भागवत,श्लोक-2.10.1-2

सुकदेव जी कहते हैं परीक्षित इस भागवत पुराण में सर्ग , विसर्ग, स्थान, पोषण, ऊति, मन्वंतर, इषानु कथा, निरोध, मुक्ति, आश्रय इन दस विषयों का वर्णन है | इसमें जो दशवां आश्रय तत्व है उसी का ठीक-ठीक निश्चय करने के लिए कहीं श्रुति कहीं तात्पर्य से कहीं दोनों के अनुकूल अनुभव से, महात्माओं ने अन्य नो विषयों का बड़ी सुगम रीति से वर्णन किया है |

इति दशमो अध्यायः

✳ इति द्वितीय स्कन्ध समाप्त ✳

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