गणेश वन्दना लम्बोदरं परम सुन्दर एकदन्तं पीताम्बरं त्रिनयनं परमंपवित्रम्। उद्यद्धिवाकर निभोज्ज्वल कान्ति कान्तं विध्नेश्वरं सकल विध्नहरं नमामि॥
वे देव जो लम्बोदर होते हुए भी अत्यन्त सुन्दर हैं,जिनके एक ही दाँत है।जो पीताम्बरधारी तथा तीन नेत्रों वाले हैं,जो परम पवित्र हैं,जिनकी कान्ति उदयकालीन सूर्य के समान उज्ज्वल दिखाई देती है,उन सर्वविघ्नहारी विघ्नेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ॥
सिन्दूरवर्णं द्विभुजं गणेशं,लम्बोदरं पद्मदले निविष्टम्। ब्रह्मादिदेवै: परिसेव्यमानं,सिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम्॥
शत चित्त आनन्द दाता भगवान श्रीगणेश की अंगकान्ति सिन्दूर के समान है।उनकी दो भुजाएं हैं,वे लम्बोदर हैं और कमलदल पर विराजमान हैं,ब्रह्मा आदि देवता उनकी सेवा में लगे हैं, तथा वे सिद्ध सन्त समुदाय से युक्त (घिरे हुए) हैं।ऐसे श्रीगणपतिदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।
गाइये गणपति जगवन्दन
गाइये गणपति जग वन्दन । शंकर सुमन भवानि के नन्दन ॥
सिद्ध सदन गज वदन विनायक | कृपा सिन्धु सुन्दर सव लायक ॥
मोदक प्रिय मुद मंगल दाता । विद्या वारिद बुद्धि विधाता ॥
माँगत तुलसी दास कर जोरे । वसहि राम सिय मानस मोरे ॥ ।