उक्त श्लोक श्री मद्भागवत महापुराण के महात्तम के अंतर्गत आते है | श्री गोकर्ण महाराज अपने पिता को देह्जनित अभिमान को छोड़ने को कहते है | वे कहते है शरीर हड्डी मांस और रक्त का पिंड है , इससे आसक्ति हटाकर परमात्मा में आसक्त हो | भगवत भजन ही सबसे बड़ा धर्म है | दुसरो के गुण दोष छोड़कर भगवत सेवा एवं भगवत कथाओ का रसपान करे |