Sunday, January 19, 2025
Homeश्री राम कथाram katha notes in hindi राम कथा नोट्स

ram katha notes in hindi राम कथा नोट्स

ram katha notes in hindi राम कथा नोट्स

 

( भूमिका )

अखिल हिय प्रत्ययनीय परमात्मा, पुरुषोत्तम गुण गुण निलय , कौशल्या नंदनंदन परम ब्रह्म , परम सौंदर्य माधुर्य लावण्य सुधा सिंधु , परम आनंद रस सार सरोवर समुद्भूत पंकज, कौशल्या आनंद वर्धन अवध नरेंद्र नंदन श्री रघुनंदन , विदेह वनस् वैजयंती जनक नरेंद्र नंदनी, भगवती भास्वती परांबा जगदीश्वरी माँ सुनैना की आंखों की पुत्तलिका , विदेहजा जनकजा जनकाधिराज तनया, जनक राज किशोरी वैदेही मैथिली श्री राम प्राण वल्लभी श्री जानकी जी |

इन दोनों युगल श्री सीता रामचंद्र भगवान के चरण कमलों में कोटि-कोटि  नमन नतमस्तक वंदन एवं अभिनंदन, चारों भैया और चारों मैया को कोटि-कोटि प्रणाम ,अनंत बलवंत गुणवंत श्री हनुमान जी महाराज के चरणों में बारंबार नमस्कार समुपस्थित भगवत भक्त श्रीरामकथानुरागी सज्जनों आप सभी को भी कोटि-कोटि नमन |

सज्जनों हम सब अत्यंत भाग्यशाली हैं जो कि वेद रूपी बाल्मीकि रामायण श्री राम कथा को सुनने का पावन संकल्प अपने हृदय में धारण किए हैं |कयी कयी जन्मों के हमारे पूण्य जब उदय होते हैं तब जाकर हमको यह भगवान की सुंदर कथा सुनने को पढ़ने को प्राप्त होती है |

मंगलाचरण लिखित में ram katha manglacharan shlok lyrics
ram katha notes in hindi राम कथा नोट्स

आइये हम सब कथा यात्रा में प्रवेश करें, भगवान की यह कथा हम सबको प्राप्त हो रही है, यह कथा कब प्राप्त होती है? जब कृपा में भी कृपा हो जाती है उसे कहते हैं विशेष कृपा। भगवान शंकर ने भी मैया पार्वती से यही कहा है।

अति हरि कृपा जाहि पर होई। पांव देइ एहि मारग सोई।।

एक होती है सामान्य कृपा सामान्य कृपा से संसार मिलता है संसार का सुख वैभव मिलता है, घर द्वार मिलता है, सामान्य कृपा से रुपया पैसा मिलता है, सामान्य कृपा से पद प्रतिष्ठा मिलता है। लेकिन प्रभु की कथा नहीं मिलती कथा तो केवल भगवान की विशेष कृपा से मिलती है और हम सबका यह सौभाग्य है कि हम पर भगवान की विशेष कृपा हुई है।

प्रभु श्री राम की यह पावन कथा की बड़ी महिमा है-

मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की।

गति कुर कविता सरित की, ज्यों सरित पावन पाथ की।।

श्री रघुनाथ जी की कथा कल्याण करने वाली और कलयुग के पापों को हरण करने वाली है। प्रभु की कथा अनंत है-

चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्। एकैक मक्षरं पुंसां महापातक नाशनम्।।

राम चरित्र के प्रत्येक अक्षर में महापातक को विनाश करने की शक्ति निहित है। संसार में राम जी से बढ़कर सत्य मार्ग पर आरूढ़ कोई दूसरा है ही नहीं।

रामायण का अर्थ है- श्री रामस्य चरितान्वितम् अयनं शास्त्रम्।  रामचरित्र से संयुक्त शास्त्र का नाम रामायण है। रामायण का सीधा अर्थ है- श्री राम जी का अयन (घर) है। इसलिए श्री राम जी सपरिकर नित्य निवास करते हैं।

श्री रामः अय्यते प्राप्यते येन तद् रामायणम्।

जिसके द्वारा श्री राम जी की प्राप्ति हो उसे रामायण कहते हैं। प्रभु श्री राम जी की कथा का फल क्या है?

सर्व पाप प्रशमनं दुष्ट ग्रह निवारणम्।

यह सभी पापों को नष्ट करने वाली तथा समस्त पाप ग्रहों की बाधा को निर्वृत्त करने वाली है। ग्रहों की संख्या नव है जिसमें कुछ शुभ ग्रह कुछ दुष्ट (पाप) ग्रह हैं। इन ग्रहों के अतिरिक्त एक और अनोखा मंगलमय परम कृपालुग्रह है। वह ग्रह जब स्वीकार कर लेता है तब अन्य ग्रहों की कुछ भी नहीं चलती। इस ग्रह का नाम है राम ग्रह, कृष्ण गृह। राम कथा का उत्स है- चरित्र निर्माण।

कथा शब्द का अर्थ- का अर्थात आनंद और था माने स्थापना जो आनंद की स्थापना करे वही कथा है। संसार में रहकर भी कैसे आनंद से जिया जाए यह राम कथा बताती है। जो भक्तजन श्रद्धा पूर्वक इस कथा को सुनते हैं वह चिंता मुक्त, रोग मुक्त, शोक मुक्त और गर्व मुक्त होकर जीवन जीते हैं।

वह उस वैराग्य भाव से परिचित हो जाते हैं जो श्री राम जी में था जिसे धारण करके 14 वर्ष के वनवास काल को उन्होंने प्रसन्नता से ऐसे बिता दिय जैसे 14 दिन बीते हों।

कर्म मनुष्य को तभी बंधन में बांधता है जब उसमें स्वामित्व की भावना हो। राम जी ने अपने पिता के राज्य को इस प्रकार त्याग दिया जैसे राहगीर किसी भी वस्तु में राग नहीं रखता।

राजीव लोचन राम चले। तजि बाप को राजबराउ की नाईं।।

राम कथा के श्रोता को यह ध्यान देना होगा कि जो चेतना संसार की विषयों की ओर दौड़ रही है उसे अंतर्जगत की ओर मोड़ना है।

परम पूज्य गोस्वामी जी मंगलाचरण के सात श्लोकों में क्रमशः सात कांडों की कथाओं के बीच बोये हैं। यह सात कांडों के क्रमशः नाम हैं- बालकांड, अयोध्या कांड, अरण्यकांड, किष्किंधा कांड, सुंदरकांड, लंका कांड, उत्तरकांड।

यह राम कथा सभी दुखों और संशयों को समाप्त कर देती है। सज्जनों जीवन में दुखों का आना स्वाभाविक है। शिवजी भी पत्नी वियोग से दुखी होते हैं तो फिर सामान्य व्यक्ति को दुख तो झेलना ही पड़ेगा।

दुखी भयउँ वियोग प्रिय तोरे।

सती वियोग से अर्थात दुख से मुक्त शिवजी तभी हुए जब उन्होंने राम कथा श्रवण की तब उन्हें शांति मिली।

नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा।।

संसार में राम कथा की कोई सीमा नहीं है, कथाएं अनंत हैं। 100 करोड़ कहें अथवा अपार रामायण है फिर भी तुलसी राम कथा लिख रहे हैं क्योंकि कोई तो कारण होगा, रामचरित मानस की रचना करने का निर्देश उन्हें भगवान शिव से मिला।

( श्री रामायण जी का उद्गम- प्रादुर्भाव )

एक समय योगीराज नारद जी दूसरों पर कृपा करने के लिए समस्त लोकों में बिचरते हुए सत्यलोक पहुंचे वहां मूर्तिमान वेदों से घिरे हुए सभा भवन में मारकंडेय आदि मुनि जनों से बारंबार स्तुति करते हुए  ब्रह्मा जी को साष्टांग प्रणाम किया और भक्ति भाव से स्तुति की।  नारद जी ने ब्रह्मा जी से कहा कि है अब घोर कलयुग के आने पर मनुष्य पुण्य कर्म छोड़ देंगे और सत्य भाषण से विमुख होकर दुराचार में प्रवृत्त हो जाएंगे। वे दूसरों की निंदा में तत्पर रहेंगे, दूसरों के धन की इच्छा करेंगे अतः इन नष्ट बुद्धियों का परलोक किस प्रकार सुधरेगा वह आप बतलाइए?

ब्रह्मा जी तब बोले- पूर्व काल में भक्त वत्सल पार्वती जी ने श्री राम तत्व की जिज्ञासा से भगवान शंकर से विनय पूर्वक प्रश्न किया था। तब अपनी प्रिया से महादेव जी ने इस गूढ रहस्य का वर्णन किया था।

वह उत्तम रामायण नाम से प्रसिद्ध है-

रचि महेश निज मानस रखा। पाइ सुसमय सिवा सनभाषा।।

तुलसीदास जी महाराज जिनके द्वारा आज जगत में वही चरित्र प्रकाशित होकर लोगों को श्री राम सम्मुख कर रहा है। शिव जी ने इसे रचकर अपने मन में रखा और सुअवसर पाकर पार्वती से कहा।

इसीलिए मैं हृदय से प्रसन्न होकर इसका नाम रामचरितमानस रखता हूं। मानस की इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए तुलसीदास जी कहते हैं। शिव जी ने सर्वप्रथम कथा पार्वती को सुनाएं।

यह श्रवण ज्ञान के ज्ञाता तथा श्रोता के लिए था। भक्ति के रूप में उन्होंने यही चरित्र काक भूसुंडी को सुनाया तथा बाद में काकभुसुंडी जी ने याग्यवल्क को सुनाया। याज्ञवल्क्य ने इसे भारद्वाज ऋषि को सुनाया। तुलसी कहते हैं यह परंपरा आगे भी जारी रहेगी।

औरउ जे हरि भगत सुजाना। कहहिं सुनहिं समुझहिं बिधि नाना।।

और भी जो हरि भक्त सज्जन हैं वह इस चरित्र को नाना प्रकार से कहते सुनते समझते हैं।

भगवान की कथा में इतने सौभाग्य का दर्शन हो रहा है इसका प्रमाण क्या है? प्रमाण अगर हम भागवत महापुराण से देखें- जब राजा परीक्षित को सुखदेव भगवान भागवत कथा सुनाने जा रहे थे गंगा के पावन तट शुकताल में।

उस समय देवता स्वर्ग का अमृत लेकर के उनके पास आए और कहने लगे सुखदेव जी राजा परीक्षित को मृत्यु का भय है तो यह स्वर्ग का अमृत लो इनको पिला दो और बदले में इसके हमको यह कथा अमृत पिला दो। देवताओं ने यह प्रस्ताव रखा स्वर्ग का अमृत दे दीजिए राजा परीक्षित को और हमको बदले में कथा अमृत दे दीजिए। सुखदेव जी ने कहा देवताओं से कहा अरे तुम ठगने आए हो हमको और वहां से भगाया। कहा कि कहां कांच का टुकड़ा और कहाँ मणि। तुम्हारा स्वर्ग का अमृत कांच का टुकड़ा है और यह भगवान की कथा अमृत मणि से बढ़कर है।

विनिमय लेन देन सामान्य की मूल वस्तुओं में होता है। तुम कह रहे हो स्वर्ग के अमृत से कथा अमृत का अदला-बदली कर लें। तुम्हारा स्वर्ग का अमृत दो कौड़ी के कांच के टुकड़े के समान है और यह भगवान की कथा बहुमूल्य हीरे जवाहरात मणि के समान है इसकी कोई तुलना नहीं है। इसलिए यह लेनदेन नहीं हो सकता है और देवताओं को वहां से भगा दिया। तो यह हम सब का परम सौभाग्य है। मनुष्य योनि में जब परमात्मा की विशेष कृपा होती होती है तब यह कथा यात्रा में हम सबको यात्री बनने का अवसर मिलता है।

इस कलयुग में आप एक चर्चा पूरे दुनिया में सुनेंगे जहां भी सनातनी रहता है। क्योंकि हिसाब किताब वही करता है। बाकी लोग हिसाब किताब करते नही हैं। बाकी दुनिया लोग खाओ पियो मौज करो के सिद्धांत पर चलते हैं। सनातनी जहां भी रहता है वह हिसाब किताब रखता है की जो हम कर्म करते हैं उसका हिसाब किताब हमको चुकाना पड़ेगा। भोगना पड़ता है।

मंगलाचरण लिखित में ram katha manglacharan shlok lyrics
ram katha notes in hindi राम कथा नोट्स

इस कलयुग में एक चर्चा सर्वत्र चलती है क्या? अरे भाई कलयुग है भजन इतना आसान नहीं है । कलयुग है जप तप इतना आसान नहीं है। प्रत्येक युग में साधना की पद्धति बदल जाती है। सतयुग में लोग ध्यान के द्वारा भगवान को पाते थे। त्रेता आया तो त्रेता यज्ञ प्रधान युग है त्रेता में बड़े-बड़े यज्ञ होते थे। द्वापर पूजा प्रधान है। अब कलियुग चल रहा है। कलयुग में व्रत साधन बहुत कठिन है। बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी लिखा है-

एहि कलिकाल ना साधन दूजा। जोग जग्य जप तप व्रत पूजा।।

योग, यज्ञ, जप, तप, व्रत, पूजा यह छयो काम करना कलयुग में बहुत कठिन है। बाबा तुलसी तो युग दृष्टा संत थे 500 साल पहले उन्होंने लिख दिया था। जो लोग यह जप तप यज्ञ वृत पूजा करते हैं वह यह जानते हैं कि यह कितना कठिन है। बहुत कठिन है। हो भी पा रहा है तो बहुत कठिनाई से हो पा रहा है। तो किसी ने पूछा कि करना क्या चाहिए कलयुग के प्राणियों को? बाबा तुलसीदास जी कह रहे हैं-

रामहि सुमिरिय गाइय रामहिं। संतत सुनिय राम गुन ग्रामहिं।।

कलयुग में सबसे सरल साधन है भव पार होने के लिए कि राम को ही सुमिरिये और राम को ही गाइये। आइए हम राम कथा गाने व सुनने की महिमा को जानते हैं क्योंकि यह कथा के प्रथम दिवस में नियम है। कथा की महिमा का गायन होना चाहिए। कथा क्यों सुनें, क्यों गायें, क्यों करें, क्यों करवायें, लाभ क्या है, प्रयोजन क्या है, उद्देश्य क्या है, कारण क्या है? बहुत सारे लोगों के मन में यह विचार उठता है बार-बार तो एक ही कथा सुनते हैं इससे होगा क्या? रामायण की इतनी बड़ी पोथी है, वह रामायण तो एक ही श्लोक में पूरी किया जा सकती है।

आदौ राम तपो वनादि गमनं हत्वा मृगं काञ्चनम्
बैदेही हरणं जटायुमरणं सुग्रीव सम्भाषणम्।
बाली निर्दहलं समुद्र तरणं लंकापुरी दाहनम्
पश्चाद्रावण कुम्भकर्ण हननमेतद्धि रामायणम्।।

हो गई रामायण। एक श्लोक में हो सकती है फिर 9-9 दिन, वर्ष में कई बार, जीवन में कई बार क्यों ? बार-बार क्यों ? कौन सी ऐसी कथा है इसमें जो हम नहीं जानते और क्यों सुनें दोनों बात।

इस बात को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझते हैं क्योंकि यह वैज्ञानिक युग है। इस युग में विज्ञान परक जितनी बात होती हैं उसको व्यक्ति बहुत प्रमाणिक मानता है। यदि विज्ञान का आधार दिया जाता है तो उसको प्रामाणिक माना जाता है। मानस में बाबा तुलसी ने मंगलाचरण में सबसे बड़े विज्ञानी को प्रणाम किया है।

वन्दे विशुद्ध विज्ञानौ कवीश्वर कपीश्वरौ।

यहां पर उन्होंने विज्ञानी बस नहीं विशुद्ध विज्ञानी कहा है। विशुद्ध विज्ञानी हैं आदिकवि वाल्मीकि जी। फिर भी हम लौकिक व्यवहार से अगर देखे तो विज्ञान का एक नियम है। शरीर विज्ञान का। मुख से जो प्रवेश होता है वह मल द्वार से बाहर निकलता है पहला सिद्धांत। दूसरा सिद्धांत कान से जो प्रवेश करता है वह मुख मार्ग से निकलता है।

प्रश्न था कथा क्यों श्रवण करें? तो देखिए अगर भगवान की कथा कानों से श्रवण करेंगे तो वही हमारे मुख से भी भगवान का नाम निकलेगा। अगर हम संसार का प्रपंच कानों से श्रवण करेंगे तो वही हमारे मुख से भी प्रपंच निकलेगा। उदाहरण के लिए हम कोई अभद्र फिल्मी गाने को सुन लेते हैं वही मुख से गुनगुनाते हैं वही निकलता है।
और हम भगवान की कथा सुनते हैं तो भगवान का नाम मुख से निकलता है इसीलिए कथा सुनना चाहिए जो भी भगवान की कथा सुन लेता है जो गा लेता है वह अमर हो जाता है।

( भजन- जय जय राम कथा जय श्री राम कथा )
बंधुओं माता बहनों भगवान की कथा सुनने का परिणाम अगर देखे तो- सुनतहिं सीता कर दुख भागा। कथा सुनने से दुख जाता नहीं दुख भागता है। क्योंकि दोनों में अंतर है- जाया जाता है धीरे-धीरे, लेकिन भागा कैसे जाता है एकदम तेज से तो भगवान की कथा सुनने से दुख भी भागा जाता है। पल भर में गायब हो जाता है।

और जिस संसार में हम रहते हैं उसका नाम है दुख्खालय- दुखों का घर यहां तो सभी दुखी हैं। अगर भगवान की कथा सुनने से वह दुख भाग जाए तो इससे बढ़कर के क्या बात हो सकती है सजनो। रामचरितमानस पढ़ा नहीं जाता गया जाता है। यह गायन का ग्रंथ है। बाबा तुलसी ने मानस में जो भी लिखा है चाहे वह संस्कृत के श्लोक हों, चाहे वह चौपाई हो, चाहे वह छंद हो, चाहे वह सोरठा हो, वह सब छंदबद्ध है। लयबद्ध है। राग रागनी में गाने योग्य है। यह गायन का ग्रंथ है आपके मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि हमको तो गाना आता ही नहीं है यहां पर यह विचार ही नहीं करना है कि आता है कि नहीं आता है फिर आप विचार करेंगे कि हमको तो सही गलत का डर लगता है तो इसको तो सोचा भी नहीं है क्योंकि बाबा जी लिखते हैं-

भांय कुभाय अनख आलसहू। नाम जपत मंगल दिसि दसहुँ।।

भगवान का नाम चाहे किसी भी प्रकार लिया जाए भाव से अथवा को बिना भाव से आलस से चाहे जिस भी प्रकार भगवान का नाम मंगल ही करता है। बाबा जी ने यहां पर जो लिखा है आलस में भी तो इसका एक तात्पर्य यह भी है की कथा सुनने में नींद बड़ी प्यारी आती है। कथा सुनने के लिए अगर बैठ जाया जाए तो वह बढ़िया नींद आती है कि कहना क्या। उसके भी कई कारण है नींद आने के। पहले तो यह की कथा स्थल का जो वातावरण रहता है वह बड़ा दिव्य और शाश्वत रहता है और कथा के बीच में नींद इसलिए भी ज्यादा आती है कि जो हमारे पाप होते हैं वह कथा को सुनने में बाधा डालते हैं। तो भगवान का नाम आलस में भी लिया जाए तो वह कल्याणकारी है।

राम राम कहि जे जमुहांयी। तिनहिं पाप पुंज समुहांयी।।

राम-राम कहता हुआ जो उबासी लेता है उसके तरफ पाप कभी आते भी नहीं सोते- उठते बैठते जागते राम नाम का उच्चारण करना चाहिए। तन के मैल को धोने के लिए तो कई उपकरण बनाए गए हैं साबुन शैंपू इत्यादि। लेकिन मन के मैल को धोने के लिए केवल और केवल भगवान का नाम ही साधन है।

रघुबंस भूषन चरित यह नर कहहि सुनहि जे गावहि।
कलिमल मनोमल धोइ बिनु श्रम राम धाम सिधावही।
सत पंच चौपाई मनोहर जानि जो नर उर धरै।
दारुण अबिद्या पंच जनित बिकार श्री रघुबर हरै।

जो मनुष्य रघुवंश के भूषण श्रीरामजी का यह चरित्र कहते है,सुनते है और गाते है,वे कलियुग के पाप और मल को धोकर बिना ही परिश्रम श्री रामजी के परमधाम को चले जाते है।(अधिक क्या)जो मनुष्य पांच सात चौपाइयों को भी मनोहर जानकर(अथवा रामायण की चौपाइयो को श्रेष्ठ पंच(कर्तव्याकर्तव्य का सच्चा निर्णायक)जानकर उनको)हृदय में धारण कर लेता है,उसके भी पांच प्रकार की अविद्या से उत्पन्न विकारो को श्रीरामजी हरण कर लेते है।(अर्थात सारे राम चरित्र की बात ही क्या है,जो पांच सात चौपाइयो को भी समझ कर उनका अर्थ हृदय में धारण कर लेते है,उनके भी अविद्या जनित सारे क्लेश श्री रामजी हर लेते है)।

ram katha notes in hindi राम कथा नोट्स
ram katha notes in hindi राम कथा नोट्स
यह जानकारी अच्छी लगे तो अपने मित्रों के साथ भी साझा करें |
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments

BRAHAM DEV SINGH on Bhagwat katha PDF book
Bolbam Jha on Bhagwat katha PDF book
Ganesh manikrao sadawarte on bhagwat katha drishtant
Ganesh manikrao sadawarte on shikshaprad acchi kahaniyan