shikshaprad kahani in hindi छोटे से बालक की ईमानदारी

सवाई माधोपुर जिले की तहसील खण्डार में एक छोटा-सा गाँव-‘डाँगखाड़ा’। वहाँ अधिकांशतः माली जाति के मानव रहते हैं।

एक दिन उस गाँव के दो भाई अपनी सरसों बेचकर नोटों से भरा थैला लेकर ट्रैक्टर से अपने गाँव आ रहे थे। संयोगवश थैला रास्ते में गिर गया। उसी रास्ते से छोटेलाल नाम का एक बालक खेल-कूदकर रात के अंधेरे में अपने घर आ रहा था।

अचानक उसका पैर किसी वस्तु से टकरा गया। देखा तो पता चला कि किसी का थैला है। खोलकर देखा तो थैले में नोट भरे हुए थे।

बालक हैरान हो गया। वह सोचने लगा-पता नहीं यह किसका थैला है! इसे किसको सौं? यहीं छोड़ दूंगा तो कोई और उठा ले जायेगा। जिसका यह थैला है उसे कितना अधिक दुःख और कष्ट होगा!shikshaprad kahani in hindi

बालक की उम्र तो छोटी थी, वह निर्धन माँ-बाप का बेटा था; पर ईमानदारी की तो यह परम सीमा थी। वह थैले को उठाकर अपने घर ले आया और घास-फूस की झोपड़ी में छिपाकर रख दिया। वह स्वयं वापस आकर रास्ते पर खड़ा हो गया। उसने सोचा, यदि कोई ढूँढ़ता हुआ आयेगा तो पहचान बताने पर उसे दे दूंगा।

उधर जब थोड़ी देर बाद दोनों भाई घर पहुँचे तो ट्रैक्टर में थैला नहीं था। दोनों भाई घबरा गये। निराश होते हुए मन में सोचने लगे-हे भगवान!

पूरे साल की कमाई थैले में भरी थी, सब चली गई। किसी को मिला भी होगा तो कोई बतायेगा भी नहीं। यह सोचते हए कि शायद अभी वह किसी के हाथ न लगा हो, दोनों भाई टार्च लेकर ढूँढ़ते हुए रास्ते पर चले जा रहे थे।

बालक छोटेलाल उन्हें रास्ते में मिला। बालक के हाथ खाली थ, इसलिए उन्होंने उससे कुछ भी नहीं पछा। पर बालक को शंका हई-हो सकता है, नोटों वाला थैला इन्हीं का हो।

अतः उसने कहा- आप लोग क्या ढूढ़ रहे हैं?” पर उन्होंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। पर बालक ने पुनः पूछा-“आप लोग क्या ढूँढ़ रहे हैं?” दोनों भाइयों ने अवहेलना के साथ कहा-“अरे कछ भी ढूँढ रहे हैं, तम्हें क्या लेना-देना है?”

दोनों भाई आगे बढ़ते जा रहे थे। छोटेलाल माली जो उस समय कक्षा पाँच का विद्यार्थी था, उनके पीछे-पीछे चलने लगा।

वह समझ गया था कि नोटों वाला थैला सम्भवतः इन्हीं का है। अतः उसने तीसरी बार फिर पूछा तो झल्लाकर एक भाई ने कहा-“अरे! चुप हो जा और हमें अपना काम करने दे। हमारे दिमाग को और खराब न कर।”

बालक को पूरा विश्वास हो गया कि वह थैला अवश्य ही इन्हीं का है। उसने कहा-“आपका थैला खो गया है क्या?”

दोनों भाई एकदम रुक गये और बोले- “हाँ।” “तो चलो मेरे साथ, पर उस थैले की पहचान बताइए।”shikshaprad kahani in hindi

जब उन्होंने पहचान बताई तो बालक उन्हें अपने घर ले गया। वहाँ जाकर फूस की झोपड़ी में रखा थैला उन दोनों भाइयों को सौंप दिया।

दोनों भाइयों की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था। बालक की ईमानदारी पर दोनों बड़े हैरान थे। उन्होंने बालक को इनाम के तौर पर कुछ रुपये देने चाहे, पर उसने स्वीकार नहीं किये और साथ ही कहा- “यह तो मेरा कर्तव्य था, इनाम किस बात का?”

दूसरे दिन वे दोनों बालक के विद्यालय में पहुंचे। उन्होंने बालक के अध्यापक जी को यह पूरी घटना सुनाते हुए कहा-“हम सब विद्यार्थियों के सामने उस बालक को धन्यवाद देने आये है।”shikshaprad kahani in hindi

अध्यापक जी ने सुना तो उनके नेत्रों से गर्व के आँस झरने लगे। उन्होंने बालक की पीठ थपथपाई

और कहा-“बेटा! तुमने रुपयों से भरे थैले के बारे में अपने माता-पिता को क्यों नहीं बताया?”

बालक बोला-“गुरो! इसलिए कि मेरे माता-पिता निर्धन हैं। कदाचित् उनका मन बदल जाता। हो सकता है, रुपयों को देखकर वे उनको वापस नहीं सौंपते।

परिणाम यह होता कि इन दोनों भाइयों के दुःख का निवारण न होने पाता। इसीलिए मैंने घरवालों को थैले के बारे में कुछ नहीं बताया।”

गुरुजी ने बालक की बड़ी प्रशंसा की और कहा-“बेटा! तझे बहत-बहन धन्यवाद! गरीब होकर भी तूने ईमान नहीं खोया। तूने वाल्मीकि गोस्वामी तुलसीदास के कथनों का पूरी तरह पालन किया-

मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत्।

-वाल्मीकि

पर-धन पत्थर मानिए परतिय मातु समान।

-तुलसीदास

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