नीति श्लोक 10 niti shlok in sanskrit

विद्या मित्रं प्रवासेषु माता मित्रं गृहेषु च। 
व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च॥
परदेशमें विद्या मित्र है, घरमें माता मित्र है, रोगीका औषध मित्र है और मृत व्यक्तिका धर्म मित्र है॥
sanskrit ke niti shlok
sanskrit ke niti shlok
न कश्चित् कस्यचिन्मित्रं न कश्चित् कस्यचिद्रिपुः। 
व्यवहारेण जायन्ते मित्राणिमा रिपवस्तथा ॥
कोई किसीका मित्र नहीं और कोई किसीका शत्रु नहीं है। बर्तावसे ही मित्र और शत्रु उत्पन्न होते हैं ।।
sanskrit niti shlok arth sahit
sanskrit niti shlok arth sahit

नीति श्लोक 10 niti shlok in sanskrit

दुर्जनः प्रियवादी च नैतद्विश्वासकारणम्। 
मधु तिष्ठति जिह्वाग्रे हृदये तु हलाहलम्॥
दुष्ट व्यक्ति मीठी बातें करनेपर भी विश्वास करने योग्य नहीं होता, क्योंकि उसकी जीभपर शहदके ऐसा मिठास होता है परन्तु हृदयमें हलाहल विष भरा रहता है ।।
chanakya niti shlok arth sahit
chanakya niti shlok arth sahit
दुर्जनः परिहर्त्तव्यो विद्ययालङ्कतोऽपि सन्। 
मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयङ्करः॥
दुष्ट व्यक्ति विद्यासे भूषित होनेपर भी त्यागने योग्य है; जिस सर्पके मस्तकपर मणि होती है, वह क्या भयङ्कर नहीं होता? ॥
niti shlok in sanskrit
niti shlok in sanskrit

नीति श्लोक 10 niti shlok in sanskrit

सर्पः क्रूरः खलः क्रूरः सर्पात क्रूरतरः खलः। 
मन्त्रौषधिवशः सर्पः खलः केन निवार्यते॥
साँप निठुर होता है और दुष्ट भी निठुर होता है; तथापि दुष्ट पुरुष साँपकी अपेक्षा अधिक निठुर होता है, क्योंकि साँप तो मन्त्र और औषधसे वशमें आ सकता है, किन्तु दुष्टका कैसे निवारण किया जाय? ॥
niti shlok sanskrit class 8
niti shlok sanskrit class 8
धनानि जीवितञ्चैव परार्थे प्राज्ञ उत्सृजेत्। 
सन्निमित्ते वरं त्यागो विनाशे नियते सति॥
 बुद्धिमानोंको उचित है कि दूसरेके उपकारके लिये धन और जीवनतकको अर्पण कर दें, क्योंकि इन दोनोंका नाश तो निश्चय ही है, इसलिये सत्कार्यमें इनका त्याग करना अच्छा है ॥
niti shlok sanskrit class 10
niti shlok sanskrit class 10
आयुषः क्षण एकोऽपि न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः। 
स चेन्निरर्थकं नीतः का नु हानिस्ततोऽधिका॥
जीवनका एक क्षण भी कोटि स्वर्णमुद्रा देनेपर नहीं मिल सकता, वह यदि वृथा नष्ट हो जाय तो इससे अधिक हानि क्या होगी? ॥
niti shlok sanskrit class 7
niti shlok sanskrit class 7

नीति श्लोक 10 niti shlok in sanskrit

शरीरस्य गुणानाञ्च दूरमत्यन्तमन्तरम्। 
शरीरं क्षणविध्वंसि कल्पान्तस्थायिनो गुणाः॥
 शरीर और गुण इन दोनोंमें बहुत अन्तर है, शरीर थोड़े ही दिनोंतक रहता है; परन्तु गुण प्रलयकालतक बने रहते हैं।
niti shlok ke rachnakar kaun hai
niti shlok ke rachnakar kaun hai

धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यश्च पञ्चमः। 

पञ्च यत्र न विद्यन्ते तत्र वासं कारयेत् ॥
जहाँ धनी, वेद जाननेवाला ब्राह्मण, राजा, नदी और वैद्य-ये पाँचों न हों, वहाँ निवास नहीं करना चाहिये ।
niti shlok sanskrit class 6
niti shlok sanskrit class 6

नीति श्लोक 10 niti shlok in sanskrit

मूर्खा यत्र न पूज्यन्ते धान्यं यत्र सुसञ्चितम्। 
दम्पत्योः कलहो नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागता॥
 जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ धान सञ्चित रहता है, जहाँ पति-पत्नीमें कलह नहीं रहता, वहाँ लक्ष्मी स्वयं आ जाती है।।
niti shlok in hindi
niti shlok in hindi

संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित niti shlok ka arth

यह जानकारी अच्छी लगे तो अपने मित्रों के साथ भी साझा करें |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *