श्रीमद् भागवत कथा bhagwat katha pdf -3

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श्रीमद् भागवत कथा bhagwat katha pdf

यह श्रीमद्भागवत “विद्यावतां भागवते परीक्षा – विद्वान् की पहचान या परीक्षा का भी सूचक है। इसी श्रीमद् भागवत रूपी अमर कथा को सुनकर श्री महर्षि वेदव्यासजी ने शान्ति प्राप्त की थी । अर्थात श्रीव्यास जी ने श्रीमद्भागवत की रचना जब तक नहीं की थी तब तक उनका चित्त अप्रसन्न था। जिन व्यास जी को कृष्ण द्वैपायन भी कहते हैं क्योकि उन व्यास जी का जन्म यमुना के कृष्ण द्विप में हुआ था तथा कृष्ण रंग के भी थे।

जिनकी माता का नाम सत्यवती था । वह सत्यवती पुत्र पराशर नन्दन श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना करने से पहले चारों वेदों की व्यवस्था सहित महाभारतादि की रचना कर ली थी तथा सोलह पुराणों की रचना भी कर ली थी एवं अपने पिता श्री पराशर जी द्वारा रचित श्री विष्णुपराण के भी स्वामित्व को भी प्राप्त कर चुके थे। फिर भी श्री व्यास जी को शान्ति नहीं थी।

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

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उस अशान्ति के दो कारण थे। पहला तो यह कि उन्हें कोई पुत्र उस समय तक नहीं था जो उनके बाद उनकी बौद्धिक विरासत को सम्भाल सके । अर्थात् श्रीव्यास जी को यह चिन्ता थी कि हमारे बाद हमारी बौद्धिक विरासत को कौन सम्भालेगा ? दूसरा कारण यह कि मेरे द्वारा की गयी रचनाओं में कहीं न कहीं राग-द्वेष की अभिव्यक्ति हुई है। अतः मेरे द्वारा पूर्णरूप से श्री भगवान् में समर्पण की कथा की रचना एक भी नहीं है। इन्हीं दोनो कारणों से श्री व्यास जी का मन पूर्ण रूप से प्रसन्न नहीं था। इसलिए श्री व्यास जी ने श्री नारद जी के उपदेश से भगवान के निर्मल चरित्र की कथा को लिखकर “श्रीमद्भागवत महापुराण कथा’ नाम रखकर शान्ति प्राप्त की। वही श्रीमद्भागवत महापुराण के माहात्म्य को हम आपके सामने निवेदन करेगें।

श्रीमद् भागवत कथा bhagwat katha pdf

श्रीमद् भागवत महात्म्य कथा प्रारम्भ

अब यहाँ पर यह प्रश्न होता है कि – माहात्म्य का मतलब क्या होता है ? अर्थात् माहात्म्य का मतलब होता है कि इस कथा से कथा की पद्धति आदि क्या है ?, श्रीमद्भागवत सुनने की पद्धति क्या है ?, भागवत कथा के श्रवण के नियम क्या हैं ? तथा कथा क्यों सुनी जाती है तथा इसके सुनने से क्या फल होता है एवं किन-किन लोगों ने कौन-कौन और कब-कब तथा क्या-क्या फल प्राप्त किया ? उपरोक्त सभी प्रश्नों का वर्णन जहाँ और जिस ग्रन्थ में किया गया हो वह “माहात्म्य” कहा जाता है।

पद्म पुराण के उत्तर खण्ड के प्रथम् से लेकर षष्ठम् अध्याय तक इस भागवत के महात्म्य में परम मंगलमय श्री बालकृष्ण की वाङ्मयी प्रतिमूर्त्ति स्वरुप इस भागवत के माहात्म्य को कहने से पहले प्रभु श्री कृष्ण को प्रणाम करके वन्दना करते हुये श्री महर्षी वेदव्यासजी ने जो प्राचीन समय में मंगलाचरण के श्लोक का गान किया है उसी श्लोक का गायन करते हुये नैमीशारण्य के पावन क्षेत्र में अठास्सी हजार संतो के बीच शौनकादी ऋषियों के सामने श्री व्यासजी के शिष्य श्रीसुतजी मंगलाचरण करते हुये महात्म के प्रथम श्लोक में कहते हैं-

सच्चिदानन्दरूपाय विश्वोत्पत्त्यादिहेतवे ।

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नुमः ।।

श्रीमद्भा० मा० १/१

सच्चिदानन्दरूपाय अर्थात् सत्+चित्+आनन्द यानी सत् का मतलब त्रिकालावधि जिसका अस्तित्व सत्य हो । चित् माने प्रकाश होता है अर्थात् जो स्वयं प्रकाश वाला है और अपने प्रकाश से सबको प्रकाशित करता है। आनन्द माने आनन्द होता है अर्थात् जो स्वयं आनन्द स्वरूप होकर समस्त जगत् को आनन्द प्राप्त कराता हो इस प्रकार ऐसे कार्यों को करने वाले को सच्चिदानन्द कहते हैं। “वे सच्चिदानन्द श्रीमन्–नारायण स्वरूप श्रीकृष्ण ही हैं। अर्थात् सत् भी कृष्ण हैं, चित् भी कृष्ण हैं एवं आनन्द भी श्रीकृष्ण ही हैं, तथा जिनका आदि, मध्य और अन्त तीनों ही सत्य है तथा सत्य था एवं सत्य रहेगा। ऐसे शाश्वत सनातन श्रीकृष्ण को ही सच्चिदानन्द कहते हैं।

श्रीमद् भागवत कथा bhagwat katha pdf

अतः “सत्” माने शाश्वत – सनातन सत्य एवं चित् माने प्रकाश तथा आनन्द माने आनन्द। “रूपाय” माने ऐसे गुण या धर्म या रूप वाले। “विश्वोत्पत्यादिहेतवे” यानी जो विश्व की उत्पत्ति, पालन, संहार एवं मोक्ष के हेतु हैं, अथवा कारण हैं। “तापत्रयविनाशाय” यानी जो तीनों तापों जैसे- दैहिक, दैविक, भौतिक या जीवों के शरीरादि में उत्पन्न रोग, दैवप्रकोप जैसे आधि-व्याधि – ग्रहादी का प्रकोप एवं भौतिकप्रकोप यानी जीवों द्वारा जो अनेक जीवों से प्राप्त दुःख या कष्ट होता है। अथवा “तापत्रय” का मतलब तीनों लोकों के कष्ट या उन तीनों प्रकार के कष्ट को विनाश करता है। ऐसे “श्रीकृष्णाय” यानी श्रीकृष्णको । वयं नुमः अर्थात् हम सभी प्रणाम करते हैं ।

अतः इस श्लोक का शाब्दिक अर्थ है- कि सत्य स्वरूप एवं प्रकाशस्वरूप तथा आनन्दस्वरूप होकर जो संसार के उत्पत्ति – पालन – संहार के अलावा मोक्ष को भी देने वाले हैं तथा संसार के प्राणियों के दैहिक – दैविक-भौतिक कष्ट को दूर करते हैं, ऐसे श्रीकृष्ण यानी राधा कृष्ण को हम सभी प्रकार एवं सभी अंगों यानी आठों अंगों से प्रणाम करते हैं।

यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव ।

पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु स्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ।।

श्रीमद्भा० मा० १ /२

जो प्रभु की कृपा से माता के गर्भ में सोलह वर्षों तक समाधिस्थ रहकर प्रभु का ध्यान करते रहे तथा प्रभु द्वारा माया से विजय प्राप्ति का वरदान पाकर पिता की आज्ञा से अपनी माता पिंगला देवी या अरणी देवी से इस पृथ्वी पर प्रकट हुए

भागवत कथानक के सभी भागों कि लिस्ट देखें- 

bhagwat kathanak all part list

whatsapp link   / bhagwatkathanak.in / kathahindi.com

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