शिक्षाप्रद कहानी- तत्त्वकी प्राप्ति dharmik story in hindi
एक आदमीकी गाय बीमार हो गयीं। वह वैद्यके पास गया। वैद्यने कहा कि आप गायको आध पाव काली मिर्च पीसकर दे देना और उसके ऊपर पावभर घी दे देना ।
उसने बाजारसे आध पाव काली मिर्च खरीदी और पीसकर गायको खिला दी। दूसरे दिन वह वैद्यके पास आकर बोला- ‘साहब, गाय तो और ज्यादा बीमार हो गयी !’ वैद्यने कहा-‘कैसे हो गयी ? उसको काली मिर्च दी थी क्या ?’ वह बोला – ‘हाँ, दी थी’ । वैद्यने पूछा- ‘घी दिया था क्या ?’
वह बोला – ‘घी तो नहीं दिया साहब ! क्योंकि घी तो गायमें था ही, देनेकी क्या जरूरत ?’ ‘मेरी गायके रोजाना पावभर घी निकलता ही है। कल मैंने गायको दुहा ही नहीं, तो वह पावभर घी उसके भीतर ही रहा; और काली मिर्च उसको दे ही दी।’ गायको न दुहनेसे, काली मिर्च देनेसे और घी न देनेसे गरमी ज्यादा बढ़ गयी, जिससे गाय ज्यादा बीमार हो गयीं।
गायमें घी होते हुए वह काममें नहीं आया। अगर घीको निकालकर उसे देते तो वह काम आ जाता। इसी तरह वह परमात्मतत्त्व प्राप्त होते हुए भी श्रद्धा-विश्वासके बिना हमारे कुछ काम नहीं आयेगा।
प्राप्त होते हुए भी वह हमारे लिये अप्राप्तकी तरह ही रहेगा। उस प्राप्त तत्त्वकी प्राप्ति (अनुभूति-) के लिये ही तो हम सब यहाँ इकट्ठे हुए हैं। वह प्राप्त है तो फिर दीखता क्यों नहीं—ऐसी चटपटी लगेगी, तब उसका अनुभव होगा।
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