Post Views: 3,129
सम्पूर्ण भागवत कथा हिंदी bhagwat katha hindi lyrics
भाग-1
माहात्म्य
[ अथ प्रथमो अध्यायः ]
अनंत कोटी ब्रम्हांड नायक परम ब्रह्म परमेश्वर परमात्मा भगवान नारायण की असीम अनुकंपा से आज हमें श्रीमद् भागवत भगवान श्री गोविंद का वांग्मय स्वरूप के कथा सत्र में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है | निश्चय ही आज हमारे कोई पूर्व जन्म के पुण्य उदय हुए हैं |
नैमिषारण्य नामक वन में श्री सूत जी महाराज हमेशा श्री सौनकादि अट्ठासी हजार ऋषियों को पुराणों की कथा सुनाते रहते हैं | आज की कथा में श्रीमद् भागवत की कथा सुनाने जा रहे हैं , ऋषि गण कथा सुनने के लिए उत्सुक हो रहे हैं | नियम के अनुसार सर्वप्रथम मंगलाचरण कर रहे हैं |
सूतोवाच- मा• 1.1
यह मंगलाचरण भी कोई साधारण नहीं है , इस श्लोक के चारों चरणों में भगवान के नाम रूप गुण और लीला का वर्णन है | जो समस्त भागवत का सार है | प्रथम चरण में भगवान के स्वरूप का वर्णन है भगवान का स्वरूप है सत यानी प्रकृति तत्व समस्त जड़ जगत भगवान का ही रूप है |
चिद् चैतन समस्त सृष्टि के जीव मात्र ये भी भगवान का ही रूप हैं
स्वयं भगवान आनंद स्वरूप हैं इस प्रकार भगवान श्रीमन्नारायण चैतन की अधिष्ठात्री श्री देवी तथा जड़त्व की अधिष्ठात्री भू देवी दोनों महा शक्तियों को धारण किए हुए हैं यह भगवान का स्वरूप है | दूसरे चरण में भगवान के गुणों का वर्णन है विश्वोत्पत्यादि हेतवे समस्त सृष्टि को बनाने वाले उसका पालन करने वाले तथा अंत में उसे समेट लेने वाले भगवान श्रीमन्नारायण है यह भगवान का गुण है |तीसरे चरण में तापत्रय विनाशाय आज सारा संसार दैहिक दैविक भौतिक इन तीनों तापों से त्रस्त है और कोई शारीरिक व्याधियों से घिरा है , कोई दैविक विपत्तियों में फंसा है तो कोई भौतिक सुख सुविधाओं के अभाव में जल रहा है |किंतु परमात्मा-
भगवान श्रीमन्नारायण अपने भक्तों के तापों को दूर करते हैं
यही भगवान की लीला है | चौथे चरण में भगवान का नाम है श्री कृष्णाय वयं नुमः हम सब उस परमात्मा भगवान श्री कृष्ण को नमस्कार करते हैं | इस प्रकार श्री सूतजी ने कथा से पूर्व भगवान का स्मरण किया तो उन्हें याद आया कि बिना गुरु के तो भगवान भी कृपा नहीं करते तो उन्होंने अगले श्लोक में गुरु को स्मरण किया |
श्लोक- मा• 1.2
जिस समय श्री सुकदेव जी का यज्ञोपवीत संस्कार भी नहीं हुआ था तथा सांसारिक तथा वैदिक कर्म का भी समय नहीं था , तभी उन्हें अकेले घर से जाते देख उनके पिता व्यास जी कातर होकर पुकारने लगे हा बेटा हा पुत्र मत जाओ रुक जाओ, सुकदेव जी को तन्मय देख वृक्षों ने उत्तर दिया , ऐसे सर्वभूत ह्रदय श्री सुकदेव जी को मैं प्रणाम करता हूं |
सूत जी द्वारा इस प्रकार मंगलाचरण करने के बाद श्रोताओं में प्रमुख श्रीसौनक जी बोले–
हे सूत जी आपका ज्ञान अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट करने के लिए करोड़ों सूर्यो के समान है हमारे कानों को अमृत के तुल्य सारगर्भित कथा सुनाइए | इस घोर कलयुग में जीव सब राक्षस वृत्ति के हो जाएंगे उनका उद्धार कैसे होगा , ऐसा भक्ति ज्ञान बढ़ाने वाला कृष्ण प्राप्ति का साधन बताएं क्योंकि पारस मणि व कल्पवृक्ष तो केवल संसार व स्वर्ग ही दे सकते हैं किंतु गुरु तो बैकुंठ भी दे सकते हैं | इस प्रकार सौनक जी का प्रेम देखकर सूत जी बोले सबका सार संसार भय नाशक भक्ति बढ़ाने वाला भगवत प्राप्ति का साधन तुम्हें दूंगा जो भागवत कलयुग में श्री शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को दी थी, वही भागवत तुम्हें सुनाऊंगा |
सम्पूर्ण भागवत कथा हिंदी bhagwat katha hindi lyrics
उस समय देवताओं ने अमृत के बदले इसे लेने के लिए प्रयास किया था
किंतु सफल नहीं हुए भागवत कथा देवताओं को भी दुर्लभ है एक बार विधाता ने सत्य लोक में तराजू बांधकर तोला तो भागवत के सामने सारे ग्रंथ हल्के पड़ गए | यह कथा पहले शनकादि ऋषियों ने नारदजी को सुनाई थी, इस पर शौनक जी बोले संसार प्रपंचो से दूर कभी एक जगह नहीं ठहरने वाले नारद जी ने कैसे यह कथा सुनी | सो कृपा करके बताएं तब सूतजी बोले एक बार विशालापुरी में शनकादि ऋषियों को नारद जी मिले, नारदजी को देखकर बोले आपका मुख उदास है क्या कारण है ?
इतनी जल्दी कहां जा रहे हैं इस पर नारद बोले– मैं पृथ्वी पर गया था वहां पुष्कर ,प्रयाग, काशी, गोदावरी, हरी क्षेत्र ,कुरुक्षेत्र, श्रीरंग ,रामेश्वर आदि स्थानों पर गया किंतु कहीं भी मन को समाधान नहीं हुआ | कलयुग ने सत्य , शौच,तप, दया, दान सब नष्ट कर दिए हैं , सब जीव अपने पेट भरने के अलावा कुछ नहीं जानते, संत महात्मा सब पाखंडी हो गए हैं |इन सब में घूमता हुआ मैं वृंदावन पहुंच गया वहां एक बड़ा ही आश्चर्य देखा- एक युवती वहां दुखी होकर रो रही थी उसके पास ही दो वृद्ध सो रहे थे मुझे देखकर वह बोली–
श्लोक- मा• 1.42
हे साधो थोड़ा ठहरिये मेरी चिंता दूर कीजिए | तब नारद बोले हे देवी आप कौन हैं आपको क्या कष्ट है बता दें , इस पर वह बाला बोली मैं भक्ति हूं, यह दोनों मेरे पुत्र ज्ञान बैराग हैं जो समय पाकर वृद्ध हो गए हैं | मेरा जन्म द्रविड़ देश में हुआ था , कर्नाटक में बड़ी हुई ,थोड़ी महाराष्ट्र में तथा गुजरात में वृद्ध हो गई और यहां वृंदावन में पुनः तरुणी हो गई और मेरे पुत्र ज्ञान और वैराग्य वृद्ध हो गए | नारद बोले हे देवी यह घोर कलयुग है यहां सब सदाचार लुप्त हो गए हैं |
श्लोक- मा• 1.61
इस बृंदावन को धन्य है जहां भक्ति नृत्य करती हैं | वृंदावन की महिमा महान है | भक्ति बोली अहो इस दुष्ट कलयुग को परिक्षित ने धरती पर क्यों स्थान दिया ? नारद बोले दिग्विजय के समय यह दीन होकर परीक्षित से बोला मुझे मारे नहीं मेरा एक गुण है उसे सुने—
श्लोक- मा• 1.68
जो फल ना तपस्या से मिल सकता तथा ना योग और ना समाधि से वह फल इस कलयुग में केवल नारायण कीर्तन से मिलता है | आज कुकर्म करने वाले चारों ओर हो गए हैं , ब्राम्हणो ने थोड़े लोभ के लिए घर-घर में भागवत बांचना शुरू कर दिया है | भक्ति बोली हे देव ऋषि आपको धन्य है आप मेरे भाग्य से आए हैं , मैं आपको नमस्कार करती हूँ |
इति प्रथमो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत कथा हिंदी bhagwat katha hindi lyrics
[ अथ द्वितीयो अध्यायः ]
श्लोक- मा• 2.13
नारद जी बोले हे भक्ति कलयुग के समान कोई युग नहीं है, मैं तेरी घर-घर में स्थापना करूंगा भक्ती बोली हे नारद आपको धन्य है मेरे में आपकी इतनी प्रीति है | इसके बाद नारदजी ने ज्ञान बैराग को जगाने का प्रयास किया उनके कान कान के पास मुंह लगाकर बोले– हे ज्ञान जागो , हे वैराग्य जागो और उन्हें वेद और गीता का पाठ सुनाया, किंतु ज्ञान बैराग कुछ जमुहायी लेकर वापस सो गए तभी आकाशवाणी हुई |
हे मुनि सत्कर्म करो संत जन तुम्हें इसका उपाय बताएंगे ,
तभी से मैं तीर्थों में भ्रमण करता हुआ संतो से पूछता हुआ यहां आया हूं, यहां सौभाग्य से आपके दर्शन हुए अब आप कृपा करके बताएं ज्ञान बैराग व भक्ति का दुख कैसे दूर होगा ? कुमार बोले हे नारद आप चिंता ना करें उपाय तो सरल है उसे आप जानते भी हैं इस कलयुग में ही श्री शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत कथा सुनाई थी वही ज्ञान बैराग के लिए उपाय है | इस पर नारद जी बोले सारे ग्रंथों का मूल तो वेद है , फिर श्रीमद्भागवत से उनके कष्ट की निवृत्ति कैसे होगी ? कुमार बोले–
मूल धूल में रहत है , शाखा में फल फूल
फल फूल तो शाखा में ही लगते हैं यह सुन नारद जी बोले—
श्लोक- मा• 2.13
अनेक जन्मों के पुण्य उदय होने पर सत्संग मिलता है तब उसके अज्ञान जनित मोह और मद रूप अहंकार का नाश होकर विवेक उदय होता है |
इति द्वितीयो अध्यायः
सम्पूर्ण भागवत कथा हिंदी bhagwat katha hindi lyrics
श्री भागवत महापुराण की हिंदी सप्ताहिक कथा जोकि 335 अध्याय ओं का स्वरूप है अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुका है और वह क्रमशः भागो के द्वारा आप पढ़ सकते हैं कुल 27 भागों में है सभी भागों का लिंक नीचे दिया गया है आप उस पर क्लिक करके क्रमशः संपूर्ण कथा को पढ़कर आनंद ले सकते हैं |
सम्पूर्ण भागवत कथा हिंदी bhagwat katha hindi lyrics
यह जानकारी अच्छी लगे तो अपने मित्रों के साथ भी साझा करें |