भागवत कथा वाचक कैसे बने? bhagwat katha kaise sikhe
भागवत कथा सीखें- श्रीमद्भागवत महापुराण की सप्ताहिक कथा बहुत ही सुंदर तरीके से सीखिए | और भागवत के उत्तमोत्तम प्रवक्ता बनिए |
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भागवत प्रसंग-
आपको क्रमसः सात दिनों की कथा के प्रसंगो को सरलतम ढंग से सिखाया जायेगा। और नोट्स बनवाए जाएंगे 6 महीने में आपको डायरी के लगभग 600 पेज लिखवाया जाएगा जो आप की कथा की तैयारी को और बेहतर बनाएगा।
बोलने का अभ्यास-
भागवत श्लोक-
साप्ताहिक कथा के हिसाब से भागवत के मुख्य श्लोकों की तैयारी। हर श्लोक का विधिवत उच्चारण और स्वर-लय के साथ अभ्यास कराया जाएगा । लगभग 600 श्लोक आपको याद कराए जाएंगे ।
पौराणिक कथाएं
भागवत साप्ताहिक कथा में अन्य पुराणों की चर्चा व उनके प्रसंग की विधिवत जानकारी आपको मिलेगी। जो आपकी सप्ताहिक कथा को और रसमई बनाता है।
भजन व पद
साथ ही साथ आपको साप्ताहिक कथा में किस दिन किस प्रसंग में कौन सा पद व भजन सम्मिलित करना है इसकी जानकारी प्राप्त होगी।
दोहा चौपाई छंद
भागवत कथा में सुन्दर दोहा ,चौपाई ,सोरठा व छंदों का समावेश जो आपकी कथा को और सरस बना देता है।
भागवत दृष्टान्त
भागवत कथा के साथ साथ आपको मार्मिक दृष्टांतो व प्रेरक कहानियां भी प्रदान की जाएगी
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भगवान् की आत्मा ही संसार है और संसार का प्राण वेद है। वह वेद प्रभु की श्वास है वह नाद भी उन्हीं प्रभु से प्रकट हुआ है। इस नाद को ही प्रणव या ओम् से भी जाना जाता है। उसी ओम् की ही व्याख्या वेद-उपनिषद्, इतिहास – पुराण इत्यादि सद्ग्रन्थ हैं। उन्हीं सद्ग्रन्थों का रसास्वादन कर जीव परमात्मा को प्रप्त करता है। उन परमात्मा का बोध कराने के लिए महर्षि श्रीवेदव्यास जी ने साठ लाख श्लोकों की एक संहिता बनायी, जिस संहिता के तीस लाख श्लोकों का देवलोक में, पन्द्रह लाख श्लोकों का यक्षलोक में, चौदह लाख श्लोकों का पितृलोक में और एक लाख श्लोकों का पृथ्वीलोक में प्रचार हुआ। वहीं ये एक लाख श्लोक वस्तुतः वेद ही है या वेदकी उपव्याख्या ही हैं । भागवत कथा वाचक कैसे बने? bhagwat katha kaise sikhe
श्रीमद् भा० १/१६/३७
यानी ‘म्रियमाणस्य को धर्म: ऐसी ही जिज्ञासा – तृषा तृप्ति के लिए मानो महामना कृष्णद्वैपायन महर्षि वेदव्यास जी के कण्ठ से श्रीमद् भागवत महापुराण रूपी अमृतधारा प्रवाहित हुई जो कभी प्रहलाद, ध्रुव, नन्द-यशोदा, देवकी – वसुदेव राधा-रूक्मिणी / ग्वाल-वृन्द, उद्धव आदि भक्तों के उत्कर्ष से तरंगायित हो उठती और कभी वेन, कंस, पूतनादि की झलक पा गुमसुम सी बहने लगती ।
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते । । १२ । ६
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात् ।
भवांमि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ।।१२ ।६
अर्थात् मुझ पर आश्रित होकर जो लोग सम्पूर्ण कर्मों को मुझे अर्पण करते हुए मुझ परमेश्वर को ही अनन्य भाव के साथ ध्यान-योग से निरन्तर चिंतन करते हुए भजते हैं, मुझ में चित्त लगाने वाले ऐसे भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु – रूप संसार – सागर से उद्धार कर देता हूँ ।
‘भक्ति शब्द की व्युत्पत्ति ‘भज’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ सेवा करना या भजना है, अर्थात् “श्रद्धा और प्रेमपूर्वक इष्टदेव के प्रति आसक्ति ही भक्ति है” । नारद भक्ति – सूत्र में भक्ति को परम प्रेमरूप और अमृतस्वरूप कहा गया है। इसको प्राप्त कर मनुष्य कृतकृत्य, संतृप्त और अमर हो जाता है। “व्यास जी ने पूजा में अनुराग को भक्ति कहा है” । ” गर्ग ऋषि के अनुसार कथा-श्रवण में अनुरक्ति ही भक्ति है” । भागवत कथा वाचक कैसे बने? bhagwat katha kaise sikhe
विकास का इतिहास भागवत पुराण के माहात्म्य में इस प्रकार दिया हुआ है-
उत्पन्ना द्रविडे साहं वृद्धिं कर्णाटके गता ।
क्वचित् क्वचिन् महाराष्ट्र गुर्जरे जीर्णतां गता ।।
दुर्बलाहं चिरं याता पुत्राभ्यां सह मन्दताम् ।।
वृन्दावनं पुनः प्राप्य नवीनेव सुरूपिणी ।
जाताहं युवती सम्यक् प्रेष्ठरूपा तु साम्प्रतम् ।। श्रीमद्भा० मा० १ ४ ८ ५०
अर्थात् मैं वही (जो मूलतः यादवों की एक शाखा के वशंज सात्वतों द्वारा लायी गयी थी) द्रविण प्रदेश में (रागात्मक भक्ति के रूप में) उत्पन्न हुई। कर्नाटक में बड़ी हुई। महाराष्ट्र में कुछ-कुछ पोषण हुआ । गुजरात में वृद्धा हो गयी । वहाँ घोर कलियुग ( म्लेच्छ आक्रमण) के सम्पर्क से पाखण्डों द्वारा खण्डित अङ्गवाली मैं दुर्बल होकर बहुत दिनों तक पुत्रों (ज्ञान-वैराग्य) के साथ मन्दता को प्राप्त हो गयी। फिर वृन्दावन (कृष्ण की लीला–भूमि) पहुंचकर नवीना, सुरूपिणी, युवती और सम्यम् प्रकार से सुन्दर् हो गयी हूँ। इसमें संदेह नहीं कि मध्ययुगीन रागात्मिका भक्ति का उदय तमिल प्रदेश में हुआ परन्तु उसके पूर्ण संस्कृत रूप का विकास भागवत धर्म के मूल स्थल वृन्दावन में ही हुआ, जिसको दक्षिण के कई संत आचार्यों ने अपनी उपासना भूमि बनायी ।भागवत कथा वाचक कैसे बने? bhagwat katha kaise sikhe
भागवत धर्मानुसार इस सृष्टि के उत्पादक एक मात्र भगवान् नारायण ही हैं। इनके अनेक नाम हैं, जिनमें विष्णु, नारायण, वासुदेव, जनार्दन आदि मुख्य हैं। वे अपनी योगमाया प्रकृति से समस्त जगत् की उत्पत्ति करते हैं। उन्हीं से ब्रह्म, शिव आदि अन्य देवता प्रादुर्भूत होते हैं। जीवात्मा उन्हीं का अंश है, जिसको भगवान् का सायुज्य तादात्म्य होने पर पूर्णता प्राप्त होती है। भागवत कथा वाचक कैसे बने? bhagwat katha kaise sikhe
श्रीमद्भागवत में विष्णु, नारायण, यादव, श्रीकृष्ण और गोपालकृष्ण के चरितों के कई पहलुओं से वर्णन है । सभी पुराणों में श्रीमद्भागवत ही भागवत सम्प्रदाय का मुख्य ग्रन्थ समझा जाता है। इसके बारह स्कन्धों के ३३५ अध्यायों में कुल १८००० श्लोक हैं। भागवत कथा वाचक कैसे बने? bhagwat katha kaise sikhe