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bhagwat katha saransh
[ अथ पंचमोऽध्यायः ]
गौकल मे भगवान का जन्म महोत्सव-श्रीशुकदेवजी बोले परीक्षित् वसदेवजी जब बालक को सुला बालिका को लेकर चले गए तब भी यशोदा को पता नही चला कि उसके बालक हुआ है या बलिका प्रात: नन्दजी की बड़ी बहिन सनन्दाजी ने देखाकि यशोदा के पास एक सुन्दर बालक सो रहा है उन्होंने कहा अरी यशोदा देख तेरे एक बालक हुआ है और तुझे खबर भी नहीं क्षण भर में यह बात हवा की तरह सारे बृज में फैल गई नन्द बाबा ने ब्राह्मणों को बुला कर स्वस्ति वाचन करवाया और उन्हें खूब दान दिया बृजवासी दौड़ पड़े नाचते गाते नन्द के द्वार बधाई लेकर पहुंचने लगे नन्द के यहां बडा उत्सव हुआ।
बधाई
बजत बधाइ धुनि छाइ तिहुं लोकन मे
आनन्द नगर के बजत सुर तालकी सुत को जन्म सुनि मुनि देवन आनन्द भयो
दुन्दुभि बाजे पुष्प बरसत रसाल की फुले सब गोपी गोप आज आनन्द उमंग
गेपिन नवेली सुधि भूली आज काल की बृज मे बृजचन्द भयो
यशोदा फरचंद भयो नन्द के आनन्द भयो जय कन्हैया लाल की
बधाई
अनोखो जायो ललना मैं वेदन मे सुन आई
मथुरा में याने जन्म लियो है गोकुल में झूले पलना
लेवसुदेव चले गोकुल को याके चरण पखारे जमना
काहे को याको बन्यो पालनो काहे के लागे फुदना
अगर चन्दन को बन्यो पालनो रेशम के लागे
फुदना दधि माखन को कीच मच्यो है दास भागवत शरणा
इति पंचमोऽध्यायः
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[ अथ षष्ठोऽध्यायः ]
श्रीशुकदेवजी वर्णन करते हैं कि पहले दिन उत्सव मनाकर दूसरे दिन प्रात: नन्द तो कंस का कर देने तथा उसे पुत्र जन्म की खुश खबर देने मथुरा चले गए और पीछे से कंस की भेजी पूतना गोकुल पहुंची उसने एक सुन्दर गोपी रूप धारण कर नन्द भवन में प्रवेश किया और सीधे वहाँ पहुंची जहाँ लाला सो रहा था उसने झट लाला को गोद में उठाया और अपना जहर भरा स्तन उसके मुँह मे दे दिया भगवान ने स्तन को जोर से पकड़ लिया दूध के साथ उसके प्राण भी पी गए वह अपने असली रूप में आ गई और बाहर गलियारे में धडाम से जाकर गिर गई ओर समाप्त हो गई इसी बीच नन्द बाबा कंस को कर देकर वसुदेव जी के पास पहुंचे व समाचार जाने वसुदेव जी बोले शीघ्र जावो बृज मे उत्पात हो रहे हैं नन्द बाबा शीघ्र गोकुल पहुचे और देखाकि मीलों लम्बा चौड़ा पूतना का शरीर गलियारे में पड़ा है और लाला उसके वक्षस्थल पर खेल रहा है यशोदा ने दौड़कर लाला को गोद में उठा लिया और गो पुच्छ से झाडा लगाया पूतना के शरीर के टुकड़े-टुकडे कर उसे दूर ले जाकर जला दिया उसमें से सुगंध निकली भगवान ने उसका स्तन पान जो कर लिया था।
इति षष्ठोऽध्यायः
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[ अथ सप्तमोऽध्यायः ]
शकट भंजन और तृणावर्त उद्धार-श्रीशुकदेवजी बोले एक समय भगवान का नक्षत्रोत्सव मनाया जा रहा था भगवान का पलना एक छकडे के नीचे बांध रखा था नन्द यशोदा अतिथी सेवा में व्यस्त थे छकडे में एक शकटा सुर नाम का दैत्य छकड़े का रूप बनाकर बैठ गया वह भगवान को मारना चाहता था भगवान ने एक लात मार कर छकडा उलट दिया और शकटासुर समाप्त हो गया भगवान का पलना एक तरफ पड़ा है यशोदा ने लाला को उठा लिया सब सोचने लगे यह छकडा कैसे उलट गया और यह लिस कौन है यशोदा ने लाला को सुला दिया तभी तृणावर्त राक्षस बबंडर का रूप धारण कर लाला को उड़ाकर ले गया भगवान ने आकाश में ही उसे दबाकर समाप्त कर दिया उसका शरीर कई योजन लंबा चौडा धरती पर गिरा उसकी छाती पर लाला खेल रहा है सब ने आश्चर्य किया अरे देखो यह राक्षस हमारे लाला को उडाकर ले गया था। नारायण ने ही इसकी रक्षा की है यशोदा ने दौड़कर लाला को उठा लिया।
इतिसप्तमोऽध्यायः
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[ अथ अष्टमोऽध्यायः ]
नामकरण संस्कार और बाललीला-श्रीशुकदेवजी वर्णन करते हैं एक समय वसुदेवजी के कुल पुरोहित गर्गाचार्यजी गोकुल में आए नन्द जी ने उनका स्वागत किया ओर कहा प्रभो भले पधारे अब आप कृपाकर दोनों लालाओं का नाम करण कर दें गर्गाचार्य बोले बहुत अच्छा और गो शाला में जाकर नाम करण करने लगे।
अयंहि रोहिणि पुत्रो रमयन सुहृदो गुणे
रामइति बलाधिक्या बलं विदुः
यदूनामपृथग्भावात् संकर्षण मुशनपुत
गर्गजी बोले यह जो रोहिणिजी का पुत्र है इसका नाम राम है बल में अधिक होने से इसे बलराम कहेगें।
दूसरा जो सांवला-सांवला है इसका नाम कृष्ण होगा कभी इसने वसुदेवजी के यहां जन्म लिया था अत: इसे वासुदेव भी कहेगे नाम करण संस्कार कराकर गर्गाचार्यजी को विदा किया। गर्गाचार्यजी को विदा करते ही भगवान के दर्शन करने के लिए शिवजी ने यशोदा के द्वार पर अलख जगाया यशोदाजी भिक्षा लेकर निकली मोती भरा थाल शिवजी बोले–
द्वार यशोदा के ठाडे भोले बाबा
दिखलादे मेया मोहे मुरली वाला भिक्षा लेके जावो बाबा लाल डर जायेगा
भेष तुम्हारा लख लाल घबरायेगा भेष तुम्हारो लागे सबसे निराला-दिखलादे
भिक्षा नही लूगां मैया दर्शन का प्यासा आया हूं दूर से मै लेकर के आशा
अंधेरे मे कहीं नही दिखता उजारा-दिखलादे
bhagwat katha saransh
शिवजी ने यशोदा से बहुत प्रार्थना की किंतु उन्हेंलाला के दर्शन नहीं कराये निराश हो शिवजी एक पेड के नीचे जाकर बैठ गए और परमात्मा का ध्यान करने लगे प्रभो क्या निराश लौटावोगें दर्शन नहीं दोगे इतने में भगवान जोर जोर से रोने लगे यशोदा कभी दूध पिलाती कभी खिलौना देती पर भगवान रोने से बन्द नही हुए तो यशोदा कहने लगी लाला पै कोई जादू टोना कर दियो है।
एक सखी बोली मैया अभी अभी जो बाबा आए थे मुझे तो यह उन्ही का चमत्कार लगता है यशोदा बोली सखी जल्दी जावो उस बाबा को लेकर आवो एक सखी दौड़कर गइ पास ही बैठे बाबा को लेकर आ गई।
भगवान ने शिवजी को दर्शन दिए और रोना बन्द कर दिया शिवजी के मन में इच्छा हुई कि दर्शन तो हो गए अब चरण स्पर्श और हो जाता तो अच्छा होता ज्योंहि शिवजी मुडे भगवान फिर रोने लगे यशोदा बोली बाबा लाला फिर रोने लगा मैया ऐसा कर इस लाला के चरण को मेरे सिर पर घुमादे फिर लाला कभी नहीं रोयेगा यशोदा ने भगवान के चरण को शिवजी के मस्तक पर रख दिया शिवजी धन्य हो गए। जब राम कृष्ण कुछ बड़े हो गए ओर घुटरन चलने लगे शोभित कर नवनीत लिए। घुटरन चलत रेणु तन मण्डित मुख दधिलेप किए। चारु कपोल लोल लोचन छवि मृगमद तिलक दिए। लट लटकन मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहि पिए कठुला कण्ठ बज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए धन्य सूर एको पल या सुख का शत कल्प जिए अब तो भगवान थोड़े और बड़े हो गए खड़े होकर ठुमक-ठुमक कर चलने लगे माता ने उनके पैरों में पैंजनी पहनादी और सखियां उन्हें नचाने लगी
bhagwat katha saransh
बाजी बाजी ललाकी पैंजनियां
छूमूछम छननन छुमछुम छननन यशोदा लाल को चलना सिखावत
अगुंली पकड कर दो जनिया पीत झगुलिया तन पहिरावत
टोपी लगावत लटकनियां नन्द बाबा सों बाबा कहत है
तीन लोक के वे धनिया शिव ब्रह्मा जाको पार न पावे
ताहि नचावत ग्वालनियां
एक दिन भगवान रोने लगे यशोदा उन्हें गोद में लेकर मनाने लगी किसी भी तरह नही माने तो माता ने उन्हें चन्द्रमा दिखाकर बोली देख आकाश में कितना सुन्दर खिलौना है तू उसके साथ खेल तो भगवान ने तो जिद कर ली मुझे चन्द्र खिलोना लाकर दो।
इति अष्टमोऽध्यायः
bhagwat katha saransh
[ अथ नवमोऽध्यायः ]
श्रीकृष्ण का उखल से बांधा जाना-श्रीशुकदेवजी वर्णन करते है एकदिन यशोदाजी भगवान को गोद में लेकर स्तनपान करा रही थी कि भगवान बोले मैया अपको दूध प्यारो है या मैं मैयाबोली लाला तेरे उपर तो लाखों-लाखों गायों का दूध न्योछावर है इतने मे चूल्हे पर दूध उफनता नजर आया तो यशोदा ने झटसे लाला को नीचे उतार दूध संवार ने चली गई भगवान ने सोचा अभी-अभी तो मैया लाखों गायों का दूध मेरे पर न्योछावर कर रही थी और अभी मुझे नीचे डालकर दूध सवारने चली गई।
आज मैया को सबक सिखाना है वैसे भी माखन चोरी लीला तो करनी ही है क्यों नहीं घर से ही शुरु किया जावें भगवान ने एक पत्थर उठाया और बड़ी मथानी जो दही से भरी थी को तोड़ दिया पूरे आँगन में दही का कीच मच गया माखन की कमोरी लेकर बाहर आ गए।
स्वयं माखन खाने लगे और ग्वालों को बांटने लगे इतने में मैया ने आकर देखा कि पूरे आँगन में दही फैल रहा है और माखन की कमोरी भी नही है बाहर आकर देखा कन्हैया सबको माखन खिला रहा है मैया को देखते ही भगवान मारे डर के कमोरी छोड़कर भग गए पीछे-पीछे यशोदा पकड़ ने को भग रही है थोडी दूर जाकर भगवान को पकड़ लिया अब तुझे उखल से बांधूगी और बांधने लगी किंतु रस्सी दो अंगुल छोटी पड़ गई कई घरों से रस्सी मगाई लेकिन पूरी नहीं हुई अन्त में माता को परेशान देख भगवान बंध गए मैया ने भगवान को उखल से बांध दिया ओर अपने घर धंधे में लग गई बलरामजी आए और बोले करोड़ों बज्रों को तोड़ने वाले इस छोटीसी रस्सी को नही तोड़ सकते इसे तोड़कर मुक्त हो जावो भगवान बोले दादा यह प्रेम की डोरी है इसे मैं नहीं तोड़ सकता।
इति नवमोऽध्यायः
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