भक्तमालके मंगलाचरणकी भक्तिरसबोधिनी टीका bhaktamal katha

भक्तमालके मंगलाचरणकी भक्तिरसबोधिनी टीका bhaktamal katha

हरि गुरु दासनि सों साँचो सोई भक्त सही गही एक टेक फेरि उर ते न टरी है।

भक्ति रस रूप को स्वरूप यहै छबिसार चारु हरिनाम लेत अँसुवन झरी है।

वही भगवन्त सन्त प्रीति को विचार करै, धरै दूरि ईशता हू पांडुन सो करी है।

गुरु गुरुताई की सचाई लै दिखाई जहाँ गाई श्री पैहारी जू की रीति रंगभरी है॥९॥

भगवान्, गुरुदेव और भक्तोंके प्रति जो सच्चा निष्कपट व्यवहार करता है और भक्तिकी किसी एक प्रतिज्ञाको हृदयमें धारणकर फिर उससे कभी चलायमान नहीं होता है, वही सच्चा भक्त है। रसरूपा भक्तिका सुन्दर स्वरूप यही है कि भगवान्के सुन्दर नामोंको लेते ही आँखोंसे प्रेमके आँसुओंकी झरी लग जाय।

ईश्वरताको दूर रखकर जो भक्तोंकी प्रीतिको सदा ध्यानमें रखे, वही भगवान् है, जैसा कि श्रीकृष्णने राजसूययज्ञमें पाण्डवोंके साथ किया है। गुरुदेवकी गुरुताकी सच्चाई भक्तमालमें वहाँ दिखायी गयी है, जहाँ पयोहारी श्रीकृष्णदासजीकी आनन्दमयी अनोखी रीति गायी गयी है॥९॥

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