चाणक्य नीति श्लोक अर्थ सहित chanakya niti shlok
नीतिसूक्तिः
विद्वत्त्वञ्च नृपत्वञ्च नैव तुल्यं कदाचन।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥
विद्वत्ता और राजपद-इन दोनोंकी तुलना कदापि नहीं हो सकती; राजा अपने ही देशमें आदर पाता है, किन्तु विद्वान् सब जगह आदर पाता है॥
पण्डिते च गुणाः गुणाः सर्वे मूर्खे दोषा हि केवलम्।
पण्डितोंमें सब गुण ही रहते हैं और मूों में केवल दोष ही; इसलिये एक पण्डित हजार मूल्से भी उत्तम है॥
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भ पयोमुखम्॥
चाणक्य नीति श्लोक अर्थ सहित chanakya niti shlok
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः॥
जो विद्याहीन हैं, वे यदि रूप और यौवनसे सम्पन्न हों तथा उच्च कुलमें उत्पन्न हुए हों तो भी गन्धहीन टेसूके फूलकी तरह शोभा नहीं पाते ॥
ताराणां भूषणं चन्द्रो नारीणां भूषणं पतिः।
पृथिव्या भूषणं राजा विद्या सर्वस्य भूषणम्॥
ताराओंका भूषण चन्द्रमा, स्त्रीका भूषण पति और पृथ्वीका भूषण राजा है, किन्तु विद्या सभीका भूषण है ॥
कोऽर्थः पुत्रेण जातेन यो न विद्वान् न भक्तिमान्।
काणेन चक्षुषा किं वा चक्षुः पीडैव केवलम्॥
जिसमें विद्या और भक्ति नहीं, ऐसे पुत्रके होनेसे क्या लाभ है? कानी आँखके रहनेसे क्या लाभ? उससे तो केवल नेत्रकी पीड़ा ही होती है।।
लालयेत् पञ्च वर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत्।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्।।
पाँच वर्षकी अवस्थातक पुत्रकी लालना करनी चाहिये, उसके बाद दस वर्ष [अर्थात् पाँच वर्षसे पंद्रह वर्षकी अवस्था] तक उसे ताड़ना देनी चाहिये और जब वह सोलहवें वर्षकी अवस्थामें पहुंचे तो उससे मित्रके समान बर्ताव करना चाहिये ॥
चाणक्य नीति श्लोक अर्थ सहित chanakya niti shlok
चाणक्य नीति श्लोक अर्थ सहित chanakya niti shlok
चाणक्य नीति श्लोक अर्थ सहित chanakya niti shlok
चाणक्य नीति श्लोक अर्थ सहित chanakya niti shlok
धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यश्च पञ्चमः।