नवग्रह वैदिक मंत्र उच्चारण Navgrah Mantra

नवग्रह वैदिक मंत्र उच्चारण Navgrah Mantra

नवग्रह-मण्डल-पूजन ग्रहोंकी स्थापनाके लिये ईशानकोणमें चार खड़ी पाइयों और चार पड़ी पाइयोंका चौकोर मण्डल बनाये। इस प्रकार नौ कोष्ठक बन जायेंगे। बीचवाले कोष्ठकमें सूर्य, अग्निकोणमें चन्द्र, दक्षिणमें मंगल, ईशानकोणमें बुध, उत्तरमें बृहस्पति, पूर्वमें शुक्र, पश्चिममें शनि, नैर्ऋत्यकोणमें राहु और वायव्यकोणमें केतुकी स्थापना करे।

नवग्रह-मण्डल-पूजन

अब बायें हाथमें अक्षत लेकर नीचे लिखे मन्त्र बोलते हुए उपरिलिखित क्रमसे दाहिने हाथसे अक्षत छोड़कर ग्रहोंका आवाहन एवं स्थापन करे।
१-सूर्य (मध्यमें गोलाकार, लाल) सूर्यका आवाहन (लाल अक्षत-पुष्य लेकर)
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्य च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं सूर्यमावाहयाम्यहम्॥
ॐ भूर्भुवः स्वः कलिङ्गदेशोद्भव काश्यपगोत्र रक्तवर्ण भो सूर्य! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ सूर्याय नमः, श्रीसूर्यमावाहयामि, स्थापयामि।

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२-चन्द्र (अग्निकोणमें, अर्धचन्द्र, श्वेत) चन्द्रका आवाहन (श्वेत अक्षत-पुष्पसे)
ॐ इमं देवा असपत्नः सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। 
इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना राजा राजा॥
दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
ज्योत्स्नापतिं निशानाथं सोममावाहयाम्यहम्॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः यमुनातीरोद्भव आत्रेयगोत्र शुक्लवर्ण भो सोम! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ सोमाय नमः, सोममावाहयामि, स्थापयामि।

३-मंगल (दक्षिणमें, त्रिकोण, लाल) मंगलका आवाहन (लाल फूल और अक्षत लेकर )
ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम्।
अपा गुंग  रेता गुंग सि जिन्वति॥ 
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्तेजस्समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च भौममावाहयाम्यहम्॥
ॐ भूर्भुवः स्वः अवन्तिदेशोद्भव भारद्वाजगोत्र रक्तवर्ण भो भौम! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ भौमाय नमः, भौममावाहयामि, स्थापयामि। 

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४-बुध (ईशानकोणमें, हरा धनुष) बुधका आवाहन (पीले, हरे अक्षत-पुष्य लेकर)। 
ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते स गुंग सृजेथामयं च। 
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत॥
प्रियङ्गुकलिकाभासं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं बुधमावाहयाम्यहम्॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः मगधदेशोद्भव आत्रेयगोत्र पीतवर्ण भो बुध! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ बुधाय नमः, बुधमावाहयामि, स्थापयामि।

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५-बृहस्पति (उत्तरमें पीला, अष्टदल) बृहस्पतिका आवाहन (पीले अक्षत-पुष्पसे)। 
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् धुमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। 
यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्। 
उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये त्वैष ते योनिवृहस्पतये त्वा॥
देवानां च मुनीनां च गुरुं काञ्चनसंनिभम्। 
वन्द्यभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्यहम्॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरसगोत्र पीतवर्ण भो गुरो! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ बृहस्पतये नमः, बृहस्पतिमावाहयामि, स्थापयामि।

 


६-शुक्र (पूर्वमें श्वेत, चतुष्कोण) शुक्रका आवाहन (श्वेत अक्षत-पुष्पसे)
ॐ अन्नात्परिचुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः। 
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपान शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥ 
हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्। 
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं शुक्रमावाहयाम्यहम्॥
ॐ भूर्भुवः स्वः भोजकटदेशोद्भव भार्गवगोत्र शुक्लवर्ण भो शुक्र! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ शुक्राय नमः, शुक्रमावाहयामि, स्थापयामि।

 


७-शनि (पश्चिममें, काला मनुष्य) शनिका आवाहन ( काले अक्षत-पुष्पसे)
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु नः॥
नीलाम्बुजसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम्॥ 
ॐ भूर्भुव: स्व: सौराष्ट्रदेशोद्भव काश्यपगोत्र कृष्णवर्ण भो शनैश्चर! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ शनैश्चराय नमः, शनैश्चरमावाहयामि, स्थापयामि।

 


८-राहु ( नैर्ऋत्यकोणमें, काला मकर) राहुका आवाहन (काले अक्षत-पुष्पसे)
ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता॥
अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम्। 
सिंहिकागर्भसम्भूतं राहुमावाहयाम्यहम्॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः राठिनपुरोद्भव पैठीनसगोत्र कृष्णवर्ण भो राहो! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ राहवे नमः, राहुमावाहयामि, स्थापयामि।

 


९-केतु (वायव्यकोणमें, कृष्ण खड्ग) केतुका आवाहन (धूमिल अक्षत-पुष्प लेकर)
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः॥
पलाशधूम्रसङ्काशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं केतुमावाहयाम्यहम्॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः अन्तर्वेदिसमुद्भव जैमिनिगोत्र धूम्रवर्ण भो केतो! इहागच्छ, इह तिष्ठ ॐ केतवे नमः, केतुमावाहयामि, स्थापयामि। 
 
नवग्रह-मण्डलकी प्रतिष्ठा- आवाहन और स्थापनके बाद हाथमें अक्षत लेकर ‘ॐ मनो जूति*०’ इस मन्त्रसे नवग्रहमण्डलमें अक्षत छोड़े।
* ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु । विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ म्प्रतिष्ठ॥ ( यजु० २ । १३)

अस्मिन् नवग्रहमण्डले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहा देवाः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु।

-इस नाम-मन्त्रसे पूजन करनेके बाद हाथ जोड़कर निम्नलिखित प्रार्थना करे

प्रार्थना
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु॥ 
 
सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मङ्गलं मङ्गलः 
सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्रः सुखं शं शनिः। 
राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतुः कुलस्योन्नति
 नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनुकूला ग्रहाः॥

इसके बाद निम्नलिखित वाक्यका उच्चारण करते हुए नवग्रहमण्डलपर अक्षत छोड़ दे और नमस्कार करे


निवेदन और नमस्कार–’अनया पूजया सूर्यादिनवग्रहाः प्रीयन्तां न मम।
 
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3 thoughts on “नवग्रह वैदिक मंत्र उच्चारण Navgrah Mantra”

  1. बहुत अच्छा लगा ।आभार ।
    साप्ताहिक भागवत कथा के लिए कथावाचक की जरूरत है। कृपया कोई सहयोग कर सकें तो बताएंगे ।

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    • भागवत वा राम कथा प्रवक्ता आचार्य शिवम मिश्र जी महाराज
      संपर्क सूत्र 8368032114

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