नीति श्लोक अर्थ सहित niti slokas in sanskrit with meaning
अनेकसंशयोच्छेदि परोक्षार्थस्य दर्शनम्।
सर्वस्य लोचनं ज्ञानं यस्य नास्त्यन्ध एव सः॥
जो अनेकों सन्देहोंको दूर करनेवाला और परोक्ष अर्थको दिखानेवाला है, वह ज्ञान सभीका नेत्र है, जिसमें ज्ञान नहीं वह निरा अन्धा है॥
मनस्यन्यद् वचस्यन्यत् कर्मण्यन्यद् दुरात्मनाम्।
मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम्॥
दुष्टोंके मन, वचन एवं कर्ममें और-और भाव होते हैं, परन्तु सज्जनोंके मन, वचन एवं कर्म तीनोंमें एक ही भाव रहता है ।
नीति श्लोक अर्थ सहित niti slokas in sanskrit with meaning
प्रविचार्योत्तरं देयं सहसा न वदेत् क्वचित्।
शत्रोरपि गुणा ग्राह्या दोषास्त्याज्या गुरोरपि॥
किसी विषयमें] एकाएक न बोले, सोच-विचारकर जवाब देना उचित है। शत्रुमें भी यदि गुण रहें तो उन्हें लेना चाहिये और गुरुमें भी दोष हों तो उन्हें त्याग देना चाहिये॥
हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम्।
कर्णस्य भूषणं शास्त्रं भूषणैः किं प्रयोजनम्॥
दान हाथका भूषण है, सच बोलना कण्ठका भूषण है, शास्त्र-वचन कानका भूषण है, [फिर] दूसरे भूषणोंकी क्या आवश्यकता है? ॥
तृणं ब्रह्मविदः स्वर्गस्तृणं शूरस्य जीवितम्।
जिताक्षस्य तृणं नारी नि:स्पृहस्य तृणं जगत्॥
ब्रह्मज्ञानीके लिये स्वर्ग, वीरके लिये जीवन, जितेन्द्रियके लिये नारी और निर्लोभके लिये समस्त संसार तिनकेके बराबर है ॥
नीति श्लोक अर्थ सहित niti slokas in sanskrit with meaning
पयःपानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्द्धनम्।
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये॥
जैसे साँपको दूध पिलाना उसका विष बढ़ानामात्र है, वैसे ही मूर्खको उपदेश देना उसके क्रोधको बढ़ाना है, शान्त करना नहीं ॥
षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता॥
निद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता-ये छः दोष इस संसारमें ऐश्वर्य प्राप्त करनेकी इच्छा रखनेवाले पुरुषको छोड़ देने चाहिये ॥
उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी
र्दैवेन देयमिति कापुरुषा वदन्ति।
दैवं निहत्य कुरु पौरुषमात्मशक्त्या
यले कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः॥
यले कृते यदि न सिध्यति कोऽत्र दोषः॥
उद्योगी वीर पुरुषको लक्ष्मी मिलती है, कायर कहा करते हैं कि [जो मिलता है वह] ‘भाग्यसे मिलता है’, भाग्यकी बात छोड़कर अपनी शक्तिसे पुरुषार्थ करो; यत्न करनेपर भी यदि कार्य सिद्ध न हो तो इसमें दोष ही क्या है? ।।
नीति श्लोक अर्थ सहित niti slokas in sanskrit with meaning
परदारान् परद्रव्यं परीवादं परस्य च।
परीहासं गुरोः स्थाने चापल्यं च विवर्जयेत्॥
पर-स्त्री, परधन, पर-निन्दा, परिहास और बड़ोंके सामने चञ्चलता-इनका त्याग करना चाहिये ॥
नीति श्लोक अर्थ सहित niti slokas in sanskrit with meaning
वृथा वृष्टिः समुद्रेषु वृथा तृप्तस्य भोजनम्।
वृथा दानं समर्थस्य वृथा दीपो दिवापि च॥
समुद्रमें वृष्टि, भर पेट खाये हुएको भोजन, समृद्धिमान्को दान और दिनमें दीपक-ये व्यर्थ ही होते हैं ।