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प्रातः स्मरण मंत्र (Pratah Smaran Mantra)

On: November 21, 2025 10:02 AM
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प्रातः स्मरण मंत्र (Pratah Smaran Mantra)

प्रातः स्मरण मंत्र (Pratah Smaran Mantra)

प्रातः स्मरण एक पारंपरिक हिंदू प्रार्थना है, जो सुबह उठते ही की जाती है। यह हाथों के दर्शन से शुरू होकर विभिन्न देवताओं, ग्रहों, ऋषियों आदि का स्मरण करके दिन को शुभ बनाने की कामना करती है। नीचे संस्कृत श्लोकों सहित हिंदी अर्थ दिए गए हैं। यह मंत्र संपूर्ण रूप से दैनिक उपासना के लिए उपयोगी है।

  1. संस्कृत:
    कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
    कर मूले तु गोविन्द: प्रभाते करदर्शनम् ॥१॥ हिंदी अर्थ:
    हाथ (पुरुषार्थ का प्रतीक) के अग्र भाग में धन की देवी लक्ष्मी, मध्य में विद्या की देवी सरस्वती तथा मूल में गोविन्द (परमात्मा श्री कृष्ण) का वास होता है। प्रातः काल में (पुरुषार्थ के प्रतीक) हाथों का दर्शन करें ॥१॥
  2. संस्कृत:
    समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले।
    विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे॥२॥ हिंदी अर्थ:
    समुद्ररूपी वस्त्रोवाली, जिसने पर्वतों को धारण किया हुआ है और विष्णु भगवान की पत्नी हैं, पृथ्वी देवी, तुम्हे नमस्कार करता हूँ, तुम्हे मेरे पैरों का स्पर्श होता है इसलिए क्षमायाचना करता हूँ।
  3. संस्कृत:
    ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशीभूमिसुतो बुधश्च।
    गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥३॥ हिंदी अर्थ:
    तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु (राक्षस मुरा के दुश्मन) एवं महेश (त्रिपुरासुर का अंत करने वाले) तथा सूर्य (भानु), चंद्रमा (शशि), मंगल (भूमिसुता), बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु, यह सभी ग्रह एवं सभी देव मेरे प्रभात को शुभ एवं मंगलमय करें।
  4. संस्कृत:
    सनत्कुमार: सनक: सन्दन: सनात्नोप्याsसुरिपिंलग्लौ च ।
    सप्त स्वरा: सप्त रसातलनि कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम ॥४॥ हिंदी अर्थ:
    ब्रह्मा के मानसपुत्र बाल ऋषि – सनत्कुमार, सनक, सनंदन, सनातन, सांख्य-दर्शन के प्रर्वतक कपिल मुनि के शिष्य – आसुरि और छन्दों का ज्ञान कराने वाले मुनि पिंगल- ये ऋषिगण; षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम, धैवत तथा निषाद- ये सप्त स्वर; अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल तथा पाताल- ये सात अधोलोक (पृथ्वी से नीचे स्थित); सभी मेरे प्रात:काल को मंगलमय करें।
  5. संस्कृत:
    सप्तार्णवा सप्त कुलाचलाश्च सप्तर्षयो द्वीपवनानि सप्त।
    भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।५।। हिंदी अर्थ:
    सप्त समुद्र (अर्थात भूमण्डल के लवणाब्धि, इक्षुसागर, सुरार्णव, आज्यसागर, दधिसमुद्र, क्षीरसागर और स्वादुजल रूपी सातों सलिल-तत्व), सप्त पर्वत (महेन्द्र, मलय, सह्याद्रि, शुक्तिमान्, ऋक्षवान, विन्ध्य और पारियात्र), सप्त ऋषि (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ, और विश्वामित्र), सातों द्वीप (जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौच, शाक, और पुष्कर), सातों वन (दण्डकारण्य, खण्डकारण्य, चम्पकारण्य, वेदारण्य, नैमिषारण्य, ब्रह्मारण्य और धर्मारण्य), भूलोक आदि सातों भूवन (भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, और सत्य) सभी मेरे प्रभात को मंगलमय करें।
  6. संस्कृत:
    पृथ्वी सगन्धा सरसास्तथापः स्पर्शी च वायुर्ज्वलितं च तेजः ।
    नभः सशब्दं महता सहैव कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।६।। हिंदी अर्थ:
    अपने गुणरूपी गंध से युक्त पृथ्वी, रस से युक्त जल, स्पर्श से युक्त वायु, ज्वलनशील तेज, तथा शब्द रूपी गुण से युक्त आकाश महत् तत्व बुद्धि के साथ मेरे प्रभात को मंगलमय करें अर्थात पांचों बुद्धि-तत्व कल्याण हों।
  7. संस्कृत:
    प्रातः स्मरणमेतद्यो विदित्वादरतः पठेत्।
    स सम्यक्धर्मनिष्ठः स्यात् अखण्डं भारतं स्मरेत् ॥७॥ हिंदी अर्थ:
    जो व्यक्ति इस प्रातः स्मरण को जानकर आदरपूर्वक पढ़ता है, वह सम्यक् धर्मनिष्ठ हो जाता है और अखण्ड भारत का स्मरण करता है।

नोट: इस मंत्र का नियमित पाठ करने से दिन शुभ होता है और मन शांत रहता है। यह विभिन्न स्रोतों में थोड़े भिन्न रूपों में मिलता है, लेकिन यह मानक संस्करण है।

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