श्री राम कथा हिंदी ram katha lyrics in hindi
✳ श्री राम कथा ✳
( भाग-2 )
हमारे भगवत अनंतपादी स्वामी श्री रामानुजाचार्य जी ने श्रीशैलपूर्ण स्वामी जी से अठारह बार बाल्मीकि रामायण का अध्ययन किया और अठारहों बार उन्हें एक नए अर्थ की प्राप्ति हुई |
श्री गोविंद राज जी ने भूषण टीका में अधिकतम भगवत अनंतपादी स्वामी श्री रामानुजाचार्य जी के भावों को सहेज कर के रखा है, एक अचार्य ने तो बाल्मीकि रामायण को द्वयमंत्र की व्याख्या स्वीकार की है |
श्रीमन्नारायण चरणौ शरणं प्रपद्ये श्रीमते नारायणाय नमः
वह कहते हैं श्रीमन्नारायण की व्याख्या बालकांड में , चरणों की व्याख्या अयोध्याकांड में, शरणम् की व्याख्या अरण्यकांड में , प्रपद्ये की व्याख्या किष्किंधा कांड में, श्रीमते की व्याख्या सुंदरकांड में, नारायण की व्याख्या लंकाकांड में और नमः की व्याख्या उत्तरकांड में की गई है |
श्री माननीय सीता जी नारायण श्रीमान कैसे हुये ? नारायणावतार भगवान श्री राघवेंद्र है जब श्री सीता जी से ब्याह हुआ उनका तो श्रीमन्नारायण हुए, तो बालकाडं में श्री सीता राम जी की विवाह की चर्चा है, इसीलिए श्रीमन्नारायण की व्याख्या बालकांड में की गई है |
चरणों की व्याख्या अयोध्या कांड में की गई है चरणों में द्विवचन का प्रयोग है दो लोगों की शरणागति का वर्णन है, भैया लक्ष्मण की शरणागति अयोध्या में हुई है और भैया भरत की शरणागति चित्रकूट में हुई |
मां जानकी को जो प्रभु ने कहा कि आप मेरे साथ चलो तो लखन भैया का हृदय स्पंदित होने लगा मैं सेवक हूं मैं कैसे कहूंगा कि राघव भैया मुझे भी साथ ले चलो तो जब कोई उपाय नहीं देखा तो महर्षि बाल्मीकि ने लिखा है–
साभ्रातुस्चरणौ गाढं निरूप्य रघुनन्दन
लखन भैया ने दोनों हाथों श्री भैया राघवेंद्र के चरणों को पकड़ लिए, जब जीव निरूपाय हो जाए तो एक मात्र उपाय बचता है भगवत शरणागति का और यहां पर शरणागति जब लखन भैया ने की तो राम जी उनको साथ ले गए और जब भैया भरत चित्रकूट में गए तो–
पादाव प्राप्ति रामस्य परात भरतौ रुधम्
तो चरणों की व्याख्या अयोध्या कांड में की और शरणम् की व्याख्या—-
सारे ऋषि महात्मा आए भगवान की अंगुली पकड़े और कहते हैं प्रभु यह जो पहाड़ देख रहे हैं ना यह पत्थर मिट्टी के नहीं हैं , हम संतो के मांस को खाकर राक्षस यही हड्डियां फेंक देते हैं यह संतों की हड्डियों का पहाड़ है |
राम जी के नेत्र सजल हो गए, जो शरण में आया राम जी ने प्रतिज्ञा करी—
तो शरणम की व्याख्या अरण्यकांड में की गई और प्रपद्ये की व्याख्या किष्किंधा कांड में, प्रपद्य कहते हैं पांव पकड़ने वाले को | हनुमान जी राम जी को पीठ पर बिठाल कर लाए—
पृष्ठ मारोप्यितो वीरो जगाम कपि कुन्जराः |
जीवन में श्रेष्ठ सदगुरु मिल जाए तो भगवान को पीठ पर बिठा कर लाता है और जीव की शरणागति करा देता है और जब सुग्रीव जी ने शरणागति ग्रहण कर ली, सुग्रीव की रक्षा भई |
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और पुनः श्रीमते की व्याख्या सुंदरकांड है- राम जी फिर श्रीहीन हो गए थे–
रावण जानकी जी का हरण कर लिया था और हनुमान जी ने आकर कहा—
नियतां अक्षतां देवी राघवाय निवेदयत
वह नियत है और अक्षिता है, फिर से श्रीमान राम जी हो गए | तो श्रीमते की व्याख्या सुंदरकांड में की गई नारायण के लिए ही हर कोई है, भगवान श्री राघवेंद्र ने रणक क्रीडा करी और इन सारे लंका के दुष्टों को अपने धाम में भेज दिया |
और फिर नमः की व्याख्या उत्तरकांड में है , देखिए- दोनों चाहे रामचरितमानस का उत्तरकांड हो, चाहे बाल्मीकि रामायण का इसमें भगवान के परत्व का प्रतिपादन किया गया है |
और नमः माने नमस्कार के योग्य शरणागति कुयोग्य एकमात्र भगवान राम ही हैं | इस बात को वहां पर सत्यापित किया गया है, तो आचार्यों ने इसको शरणागति की व्याख्या स्वीकार किया है | संसार के जितने भी काव्य हैं उन सारे काव्यों का उपजिव्य कोई है तो श्रीमद् बाल्मीकि रामायण है |
परवर्ति जितने भी साहित्य हैं सबको किसी ने प्रभावित किया है , चाहे वह पैराटाइज लास्ट हो (जार्ज मिल्टन की रचना है संभवतः) चाहे भाष्य हों, कालिदास हों, भारवि हों, माघ हों आगे चलकर कालिदास जी हों सबका जो उपजिव्य काव्य है वह श्रीमद् बाल्मीकि रामायण ही है |
समस्त साहित्यकारों को किसी की लेखनी ने सर्वाधिक प्रभावित किया है तो महर्षि बाल्मीकि की लेखनी ने ही प्रभावित किया है | श्री वेदव्यास जी ने तो बृहद धर्म पुराण में लिखा है—
पठरामायणं व्यासं काव्य बीजं सनातनम् |
जब मैंने उस सनातन काव्य के आदि बीज बाल्मीकि रामायण का स्वाध्याय किया तब हममें श्लोक बनाने की क्षमता आई ,यह श्री वेदव्यास जी ने स्वीकार किया है जो पुराणों के रचयिता हैं, वह वेदव्यास जी भी स्वीकार करते हैं कि हमारा उपजिव्य ग्रन्थ भी श्रीमद् बाल्मीकि रामायण ही है |
ऐसे भगवान श्री सीताराम जी के चरित्र से गुम्फित यह काव्य श्रीमद् बाल्मीकि रामायण है, बाल्मीकि रामायण का अतिशय महत्व है हमारे यहां बाल्मीकि रामायण को सिद्धांत ग्रंथ स्वीकार किया है |
निवेदन यह करना है कि जब यह वेदावतार है तो कोई यह अन्वेषण करे कि भाई वेद कब से हैं ? एक मन में विचार आता है तो यदि हम आप से पूछें कि बताइए कि आपकी स्वांस कब से है ? आप क्या कहेंगे- आपकी श्वांस कब से है , कहा जब से आप हैं तब से आपकी श्वांस है , सांस ना हो तो आप नहीं होंगे | तो वेद भगवान के स्वांस हैं—–
गोस्वामी जी भी कहते हैं–
तो वेद भगवान के स्वांस है इसका मतलब जब से भगवान हैं तब से उनकी स्वांस है, तात्पर्य कि जब से भगवान हैं तब से वेद हैं तो हम लोग आज भी काल निर्धारण के चक्कर में पडते हैं कि वेदों का काल निर्धारण किया जाए कि वेद कब से हैं ?
दुनिया का कोई भी ऐतिहविद आज तक वेद का काल निर्धारण नहीं कर सका क्योंकि वह जिस काल में भी ढूंढते हैं उस काल में वेद पाए ही जाते हैंं तो यह वेद अनादि हैं |
ऐसा वेदावतार यह श्रीमद् बाल्मीकि रामायण है , हमारे आचार्यों ने इसमें खूब डुबकी लगाई खूब रसास्वादन किया समास्वादन किया |
रामायण कहते किसको हैं ? तो पहले कहा पहले तो—
रामस्य अयनं रामायणम् |
राम जी का निवास हो वह रामायण है , जो राम जी का घर हो वह रामायण है, जिसमें राम जी निवास करे वह रामायण है |
श्रीरामस्य चरितान्वितं काव्यं रामायणम् |
जो श्री राम चरित्र से युक्त काव्य हो वह रामायण है , लेकिन एक आचार्य ने कहा कि यहां–
( अय गतौ धातु है ) और ल्युट का अन् होता है उससे रामायण शब्द बना |
तो जो भगवान श्री राघवेंद्र की प्राप्ति करा दे उसे कहते हैं रामायण | यह समझने वाली बात है कि कथा रामायण की हो तो प्राप्ति राम जी की होनी चाहिए ( अथवा )
श्री रामः अय्यतेप्रतिपाद्यते अनेन तद रामायणम् |
जो भगवान श्रीराम का ही प्रतिपादन करें वह रामायण है ,माने कथा रामजी की हो तो प्रतिपादन भी भगवान श्री राम जी का होना चाहिए |
कभी-कभी ऐसा भी होता है की कथा रामायण की हो और उसमें चरित्र सारे भागवत वाले सुनाए जाते हैं, तो रामायण की कथा में जो प्रतिपादन हो वह राम चरित्र का हो अथवा एक तन्निश्लोकी का हमारे दाक्षणाचार्य हैं उन्होंने अर्थ किया है कि—
रामा माने जानकी जी के चरित्र को ही राम कहा जाता है—
मतलब जानकी जी के चरित्र से सम्प्रित्य जो गुम्फित जो काव्य हो उसी को कहा जाता है रामायण | इसीलिए महर्षि बाल्मीकि कहते हैं–
काव्यं रामायणं कृष्नं सीतायास्चरितं महत् |
का चरित्र से अच्छा, यहां महत विशेषण सीता जी का चरित्र का है , महत का राम जी के चरित्र में महत विशेषण नहीं लगा है, तो ऐसे ही श्री सीता चरित्र युक्त बाल्मीकि रामायण में हम सब प्रवेश करें |
बाल्मीकि रामायण में राम जी के गुणों के विषय में प्रश्न किया गया
और आरंभ में तो 16 गुणों की चर्चा महर्षि बाल्मीकि जी ने नारद जी से की और नारद जी ने 68 गुण और सुना दिए साथ में, सब 84 गुणों की चर्चा है |और राम जी के गुणों की चर्चा उनके भक्तों में नहीं होगी तो कहां होगी हमारे राम भक्ति शाखा में रसिक संप्रदाय के संस्थापक स्वामी युगलानंद जी महाराज ने एक श्री रघुवर गुणदर्पण नाम का ग्रंथ लिखा है, उसमें उन्होंने लिखा है कि साधनावस्था में जीवो का अवलंबन तो भगवान के गुण ही होते हैं , सिद्धा वस्था में भले हम उनके रूप माधुर्य का स्वाद ले सकें लेकिन साधनावस्था में तो हमारा अवलम्बन ही भगवान के गुण ही हैं |
एक बात और कहूं आपसे- गोस्वामी जी ने धर्म के स्वभाव की व्याख्या बहुत की है, कोई गोस्वामी जी से पूछे आप जरा धर्म को परिभाषित करें तो एक जगह गोस्वामी जी कहते हैं–
सत्य के समान कोई दूसरा धर्म नहीं है और दूसरी जगह कहते हैं–
रामो विग्रह वान धर्मः साधुः सत्यत्वास्त्तमः |
राम जी धर्म के विग्रह हैं, राम जी साक्षात धर्म के स्वरूप हैं, राम जी को देख लो धर्म को समझ जाओगे | राम जी का उठाना, चलना, बोलना, राम जी की जीवन की प्रत्येक क्रियाएं यहां तक शत्रु के साथ भी जो राम जी का व्यवहार है वह भी धर्म संश्लिष्ट है , वह भी धर्म युक्त है |तो राम जी साक्षात धर्म के विग्रह हैं और एक बात और है धर्म को समझना हो तो हमारे यहां धर्म के 10 लक्षण बताए गए हैं |
इसको आप समझेंगे धर्म के समस्त लक्षण भगवान श्री राघवेंद्र के जीवन में परिघटित होते दिखाई देते हैं | इसलिए श्री बिंदुपाद जी ने बड़ी सुंदर रचना की है कि यदि धर्म को सच्चे अर्थ में समझना हो और धर्म पर चलना हो तो सबसे पहले आपको रामायण की कथा सुननी चाहिए , क्योंकि निज धर्म को समझाने की क्षमता तो रामायण की ही पंक्तियों में है |
बिंदुपाद के शब्दों में हम लोग देखें निज धर्म पर तो रामायण ही चलना सिखाती है, गोस्वामी श्री बिंदु पाद जी ने अपने शब्दों में यह बात कही–
तो यथा किचिंत थोड़ा सा प्रवेश हम लोग करलें देखिए बाल्मीकि रामायण का आरंभ ऋषियों के संवाद से आरंभ होता है, महर्षि बाल्मीकि वर्णन कर रहे हैं—
जगाम त्रिदिवं महत, तकार से आरंभ और तकार से अंत , बाल्मीकि रामायण में चौबीस हजार श्लोक हैं, आप सभी लोग ब्रह्म गायत्री से परिचित होंगे ब्रह्म गायत्री में भी चौबीस ही अक्षर होते हैं | ॐ यह प्रणव है भुः भुवः स्वः यह तीन व्याघ्रतियां हैं, मंत्र का आरंभ होता है- तत्सवितुर्वरेण्यं- तकार से आरंभ होता है और प्रचोदयात के तकार पर मंत्र का अंत होता है | जैसे ब्रह्म गायत्री का आरंभ त से हो कर ता पर अंत होता है वैसे ही,,,
बाल्मीकि रामायण का आरंभ भी त से होता है और ता से ही अंत होता है |
जैसे उसमें चौबीस अक्षर हैं, वैसे बाल्मीकि रामायण में चौबीस हजार श्लोक हैं, हमारे आचार्यों ने माना है कि एक एक अक्षर पर एक हजार श्लोकों की रचना की है और जैसे त के बाद अगला वर्ण गायत्री मंत्र में स है, ऐसे छंद में हलंत वर्ण का ग्रहण नहीं होता अकारांत का ही ग्रहण होता है तो त के बाद दूसरा अक्षर है स वैसे ही एक हजार श्लोक के बाद इसमें भी अगला अक्षर स है इस वैज्ञानिक रूप से बाल्मीकि रामायण का आरंभ है |इसलिए गोस्वामी जी ने आरती लिखी है रामायण जी की उसमें एक शब्द का प्रयोग किया है- बाल्मीकि विज्ञान विशारद – बाल्मीकि जी से बड़ा विज्ञानी कोई नहीं हो सकता ऐसा विज्ञान है ,बाल्मीकि रामायण ऐसी रचना है ,ऐसा परिणन है ऐसा विज्ञान किसी काव्य में देखा ही नहीं गया, कि कोई इस प्रकार से ग्रंथ की रचना करे |
वैसे आपने सुना होगा गोपी गीत की रचना कनक मंजरी छंद में की गई है, तो जो प्रथम चरण का दूसरा अक्षर है वह दूसरे चरण का दूसरा अक्षर, वही तीसरे चरण का दूसरा अक्षर , वहीं चौथे चरण का दूसरा अक्षर |
जयति तेधिकं तो ज के बाद य है , जयति तेधिकं जन्मना व्रजः तो फिर श्रयत इन्दिरा –श्र के बाद पुनः य है,
श्रयत इन्दिरा शस्वदत्र हि फिर दयित दृश्यतां तीसरे चरण में दूसरा अक्षर है य दयित दृश्यतां दिक्षुतावकास् फिर त्वयि धृता सवस्त्वां विचिन्वते | फिर दूसरा अक्षर चौथे चरण का भी य है |
तो एकात गीतों पर कहीं वैज्ञानिकता दिखती है लेकिन बाल्मीकि रामायण के संपूर्ण रचना में तो वैज्ञानिकता ही दिखाई देती है | किसी ने गोस्वामी जी से पूछा कि बाबा आपकी दृष्टि में श्री सीताराम जी के गुण ग्राम का सबसे अधिक जानकार कौन है ?
गोस्वामी जी कहते हैं मेरी दृष्टि में दो लोग–
वंदे विशुद्ध विज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ
पहले कवीश्वर फिर कपीस्वर | और आरंभ में भी विज्ञानी कहा ऐसे विशिष्ट ज्ञान या ऐसे कहें कि विशेष ज्ञान है महर्षि वाल्मीकि का | गायत्री मंत्र की संपूर्ण व्याख्या बाल्मीकि रामायण को स्वीकार किया गया |