shikshaprad acchi kahaniyan सन्त का कृपा-प्रसाद
रावण ने सीता माँ का अपहरण करके अपनी अशोक-वाटिका में कैद कर रखा था। महावीर हनुमान एवं बालि-पुत्र ने रावण को खूब अच्छी तरह समझाया कि भगवान राम से शत्रुता त्यागकर सीता को उन्हें लौटा दो, इसी में तुम्हारा भला है, अन्यथा तुम्हारा वंश-नाश हो जायेगा।
पर रावण नहीं माना और राम-रावण युद्ध अनिवार्य हो गया। राम की बन्दर-भालुओं की सेना समुद्र के किनारे तक जा पहुंची।
पर आगे कैसे जाये? सेना और लंका के बीच अथाह एवं अपार समुद्र फैला हुआ था।
राम ने पहले तो समुद्र से प्रार्थना की कि वह अपना जल सोख ले ताकि सेना समुद्र पार करके लंका में प्रवेश कर सके पर समुद्र के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।
विनय न मानत जलधि जड़ गये तीन दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइन प्रीति।।
राम ने धनुष पर बाण चढ़ाया तो समुद्र ब्राह्मण वेश में प्रकट हुआ और परामर्श दिया कि राम की सेना में नल और नील नामक दो बन्दर हैं जिनके हाथ से फेंके हुए पत्थर पानी पर जम सकते हैं और इस प्रकार मेरे ऊपर पुल बन सकता है। निर्देशानुसार पुल बनाने का अभियान शुरू हो गया।
भगवान राम की वानर-भालुओं की सेना उत्साह के साथ इस काम में लगी थी। इस समय एक गिलहरी के मन में एक विचार आया कि मैं भी भगवान की कुछ सेवा करूँ।
पर कैसे? गिलहरी कर ही क्या सकती थी? छोटा-सा पत्थर वह उठा न सकती थीं। पर उसकी भावना ही तो थी। वह छोटी-सी गिलहरी अपने मुँह से जरा-जरा सी राख समुद्र में डालने लगी।
साथ ही मुँह में थोड़ा-थोड़ा पानी भरकर बाहर डालने लगी। । हनुमान जी भी नल-नील तक पत्थर पहुँचाने में तत्परता से लगे हुए थे।
बार-बार आने-जाने में गिलहरी उनके पैरों के पास आ जाती थी, जिससे उनके सहायता-कार्य में विघ्न पडता था। इसी बीच हनमान जी का पैर गिलहरी की पूंछ पर पड़ गया और उसकी पूँछ दब गई। वह बड़ी घबराई और व्याकुल होकर रोने लगी।shikshaprad acchi kahaniyan
जब इस पूरी घटना का पता भगवान राम को चला तो उन्होंने गिलहरी को अपनी हथेली पर रख लिया और सहलाते हए उससे सारी बात पूछी।
गिलहरी ने सब कुछ बता दिया। तब भगवान ने कहा- “इस कार्य में हनुमान जी अपराधी हैं। तुम बताओ, उन्हें क्या दण्ड दिया जाये?”
गिलहरी सहज रूप से उनका उपकार मानती हई बोली-“भगवन्! आप श्री हनुमान के मस्तक पर अपना हाथ रख दें।”
सुनकर भगवान आश्चर्य में पड़ गये। बोले-“यह भी कोई दण्ड है।” गिलहरी ने कहा-“प्रभो! यदि हनुमान जी महाराज ने मेरी पूँछ नहीं दबाई होती अर्थात् मेरी देह ने उनका चरण-स्पर्श न किया होता तो आपका यह पवित्र प्यार मुझ जैसे तुच्छ जीव को प्राप्त हो ही नहीं सकता था। shikshaprad acchi kahaniyan
इसका श्रेयं हनुमान जी को ही है। उन सन्त की कृपा से ही आपने मुझे इस रूप में अपनाया है। अतः मैं प्रार्थना करती हूँ कि आप अपना हाथ उनके मस्तक पर रख दें।”
गिलहरी के मुँह से यह बात सुनकर भगवान राम प्रेम से गद्गद हो गये। उन्होंने गिलहरी को अपने बायें हाथ पर रखकर दायें हाथ की तीन उंगलियों से उसे सहलाया।
कहते हैं, आज भी गिलहरी की पीठ पर भगवान की तीनों अंगुलियों के निशान दिखाई पड़ते हैं।
बहोत अच्छा महाराज आपको कोटी कोटी प्रणाम