श्रीमद् भागवत महापुराण सम्पूर्ण हिंदी अर्थ सहित

Part-5

वृथा खेदयसे बाले अहो चिन्तातुराकथम्, श्रीकृष्णचराणाम्भोजं स्मर दुःखम् गमिष्यति ।। ( श्रीमद् भा० मा० २ / १ )

हे बाले ! तुम व्यर्थ ही खेद क्यों करती हो एवं चिन्ता से व्याकुल क्यों हो रही हो ? वह भगवान् आज भी हैं अतः उन प्रभु के श्रीचरणों का स्मरण करो उन्हीं श्रीकृष्ण की कृपा से तुम्हारा दुःख दूर हो जाएगा। श्रीमद् भागवत महापुराण सम्पूर्ण हिंदी अर्थ सहित 

 

हे भक्ति देवी ! तुमको परमात्मा ने अपने से मिलाने के लिए प्रकट किया था तथा ज्ञान वैराग्य को तुम्हारा पुत्र बनाकर इस जगत् में भेजा एवम् मुक्ति देवी को भी तुम्हारी दासी बनाकर भेजा था। परन्तु कलियुग के प्रभाव से मुक्ति देवी तो वैकुण्ठ में चली गई अब केवल तुम ही यहाँ दिखाई देती हो। online-bhagwat-prashikshan

 

अतः मैंने भक्तों के घर-घर में एवं हृदय में भक्ति का प्रचार नहीं कर दिया तो मेरा नाम नारद नहीं समझा जाएगा या मैं सही में भगवान् का भक्त अथवा दास नहीं कहलाऊँगा । इसके बाद श्रीनारद जी ने वेद आदि का पाठ कर उन ज्ञान वैराग्य को जगाया।

इसके बाद भी ज्ञान – वैराग्य को होश नहीं आया। उसी समय नारद जी को सत्कर्म करने की आकाशवाणी हुई। इस प्रकार सत्कर्म करने की आकाशवाणी को सुनकर नारदजी विस्मित हुए और वे तीर्थों में घूमते हुए महात्माओं से सत्कर्म के बारे में पूछने लगे, लेकिन उन महात्माओं से संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तथा उनके प्रश्न को सुनकर ऋषि-मुनि कहते हैं कि जब नारदजी ही सत्कर्म के बारे में नहीं जानते तो इनसे बढ़कर और कौन ज्ञानी और भक्त होगा जो सत्कर्म के बारे में संतोषजनक उत्तर दे सकें। अन्त में थक-हारकर तपस्या द्वारा स्वयं सत्कर्म जानने की इच्छा से श्रीनारद जी बदरिकाश्रम के लिए चल पड़े।  क्योंकि-

तपबल रचे प्रपंच विधाता तपबल विश्व सकल जग त्राता ।

तपबल रुद्र करे संघारा तपबल शेष धरे महि भारा ।।

श्रीमद् भागवत महापुराण सम्पूर्ण हिंदी अर्थ सहित

वहाँ पहुँचकर अभी तप का विचार कर ही रहे थे कि-

“तावद्-ददर्श पुरतः सनकादीन् मुनीश्वरान”,

वहाँ सनकादि ऋषियों के दर्शन हुए। इस प्रकार श्रीनारदजी ने उन्हें प्रणाम निवेदन किया और सत्कर्म के बारे में आकाशवाणी की बात बतायी तथा सनकादि ऋषियों से उन्होंने सत्कर्म के बारे में बताने का अनुरोध किया। श्री सनकादि ऋषियों ने कहा कि आप चिन्ता न करें। सत्कर्म का साधन अत्यन्त सरल एवं साध्य है।

 

हालाकि सत्कर्म करने के बहुत से उपाय पूर्व में ऋषियों ने बताया हैं, लेकिन वे सब बड़े कठिन है एवं परिश्रम के बाद भी स्वल्प फल देनेवाले हैं। श्रीवैकुण्ठ प्राप्त करानेवाला सत्कर्म तो गोपनीय है। कोई-कोई ज्ञाता बड़े भाग्य से मिलते हैं जो सत्कर्म को जानने के लिए इच्छुक या प्यासे हों। अतः आप सत्कर्म को सुने-

‘सत्कर्मसूचको नूनं ज्ञानयज्ञः स्मृतो बुधैः । श्रीमद्भागवतालापः स तु गीतः शुकादिभिः ।।

श्रीमद् भा० मा० २/ ६०

सत्कर्म का अर्थ विद्वानों ने ज्ञानयज्ञ कहा है। ज्ञानयज्ञ को ही भागवत कथा कहते हैं। भागवत कथा की ध्वनि से ही कलि के दोष एवं दैहिक दैविक, भौतिक कष्टों का निवारण हो जाता ।

 

भक्ति की प्राप्ति होती है और ज्ञान-वैराग्य का प्रचार एवं प्रसार होता है। नारदजी द्वारा जिज्ञासा करने पर कि वेद, उपनिषद्, वेदान्त एवं गीता में भी भागवत कथा ही वर्णित है, फिर अलग से भागवत कथा क्यों ? सनकादि ऋषियों ने बताया कि जिस तरह आम्रवृक्ष में आम का रस जड़ से पत्ते तक विद्यमान रहता है, लेकिन उसका फल ही आम का रस देता है।

वेदोपनिषदां साराज्जाता भागवती कथा ।।

 

 उसी तरह वेद, वेदान्त, उपनिषद् में व्याप्त भक्ति रस आम के वृक्ष के सदृश हैं या दूध में घी की तरह सार रूप में है। परन्तु यह भागवत आम वृक्ष के फल के समान परम मधुर एवं लोकोपकारी तथा मुक्तिदायक है। वही भागवत कथा को आप श्रवण करके उन भक्ति देवी के पुत्रों को स्वस्थ्य कर सकते हैं।

 हे ऋषिगण ! अब आपलोग कृपया बतायें कि आयोजन का स्थान कौन सा हो और यह कितने दिनों तक कथा चलेगी ? नारद जी की सहज उत्कंठा देखकर शनकादि ऋषियो ने हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर आनन्दवन नामक स्थान में एक सप्ताह के लिए भागवत कथा आयोजित करने की बात कही। इसके बाद सनकादि मुनियों के साथ नारदजी हरिद्वार के आनन्द वन में गंगातट पर पहुँचे । इनके पहुँचते ही तीनों लोकों में चर्चा फैल गयी।

 

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भगवान् के भक्त भृगु, वसिष्ठ, गौतम, च्यवन, विव्यास इत्यादि सभी ऋषि महर्षि अपनी सन्ततियों के साथ वहाँ आ गये। वेद वेदांत मंत्र यंत्र तंत्र 17 पुराण गंगा आदि नदियां और समस्त तीर्थ मूर्तिमान होकर कथा सुनने के लिए प्रकट हो गए क्योंकि—-

तत्रैव गगां यमुना त्रिवेणी गोदावरी सिन्धु सरस्वती च ।

वसन्ति सर्वाणि तीर्थानि तत्र यत्राच्युतो दार कथा प्रसंगः ।।

 

जहां भगवान श्री हरि की कथा होती है वहां गंगा आदि नदियां समस्त तीर्थ है मूर्तिमान होकर प्रकट हो जाते हैं, आनन्दवन में भागवत कथा पारायण का आयोजन किया गया, मंडप बनाया गया। चारों दिशाओं में भागवत कथा समारोह आयोजन की चर्चा होने लगी ।rashi-ke-naam

 

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भक्त श्रोतागण चारों तरफ से जय-जयकार करते, शंख ध्वनि करते, नगाड़ा बजाते हुए समारोह स्थल पर एकत्रित होने लगे इस प्रकार सनकादि ऋषियों में सबसे बड़े सनत्कुमार ने भागवत कथा की महिमा बतलाते हुए प्रवचन शुरू किया और कहा –

‘सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवतीकथा । यस्याः श्रवणमात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत् ।।

श्रीमद् भा० मा० ३/२५

हे नारदजी ! यह भागवत कथा को हमेशा और बार- बार सुनना चाहिए क्योंकि भागवत कथा के श्रवण मात्र से भगवान् हृदय में विराजमान हो जाते हैं, अज्ञान एवं अमंगल का नाश हो जाता है। विविध वेदों, उपनिषदों के पढ़ने से, जो लाभ होता है, उससे अधिक लाभ भागवत कथा के श्रवण मात्र से होता है।

 

कल्याणकामी मनुष्य यदि प्रतिदिन कम-से-कम एक या आधा श्लोक भी पढ़े तो उसका कल्याण होगा। जो व्यक्ति प्रतिदिन सरल भाषा में भागवत कथा के अर्थ को आमलोगों को सुनाता है, उसके करोड़ों जन्मों के पापों का नाश हो जाता है।

 

मनुष्य का जीवन धारण कर जिसने एक बार भी भागवत कथा का श्रवण नहीं किया, उसका मनुष्य योनि में जन्म लेना निरर्थक है। उसका जीवन तो चाण्डाल एवं गदहे के समान व्यर्थ हैं— ऐसा समझा जाय। भागवत के श्रवण का सुअवसर करोड़ों जन्मों के भाग्यफल के उदय होने पर होता है। श्रीमद् भागवत महापुराण सम्पूर्ण हिंदी अर्थ सहित

 

अतः इस श्री भागवत को बार-बार तथा हमेशा एवम् हर समय श्रवण करना चाहिए। लेकिन जीवन की अनिश्चितता एवं सिमित आयु को देखते हुए भागवत कथा को सप्ताह में श्रवण का विधान किया गया है। कलियुग में यज्ञ, दान तप, ध्यान, स्वाध्याय, यम, नियम- ये सभी साधन कठिन है। rashi-ke-naam

 

लेकिन भागवत कथा सर्वसुलभ है। इन सभी साधनाओं का फल केवल भागवत कथा सप्ताह श्रवण से संभव है। यह भक्ति, ज्ञान, वैराग्य को जीवन्त कर उनका प्रचार-प्रसार करनेवाला है। सप्ताह के सामने तप, ध्यान, योग सभी की गर्जना समाप्त हो जाती है। अर्थात् श्री भगवान् की कथा रूपी कीर्तन या नामरूपी कीर्तन से कलियुग में भगवान् शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं- online-bhagwat-prashikshan

 

श्रीमद् भागवत महापुराण सम्पूर्ण हिंदी अर्थ सहित

 

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