sant svabhav संत का सच्चा स्वभाव

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sant svabhav

ऐसे तो संतका किसी भी देश-कालमें अभाव नहीं होता । वे सभी देशोंमें, सभी दिनोंमें, सभीके लिये सर्वथा सुलभ हैं-
सबहि सुलभ सब दिन सब देसा । 
पर न तो संतोंकी कोई दूकान होती है और न वे कोई साइन-बोर्ड ही लगाये फिरते हैं, जिससे उन्हें झट पहचान लिया जाय । साथ ही हतभाग्य प्राणी संतमिलनकी उचित चेष्टा न कर उलटे उपेक्षा कर देते हैं—इसीलिये सत्संगति अत्यन्त दुर्लभ तथा दुर्घट भी कही गयी हैसत संगति दुर्लभ संसारा । 


निमिष दंड भरि एकउ बारा॥कभी-कभी तो ऐसा होता है कि संतके वेषमें असंत और असंत-वेषमें संत मिल जाया करते हैं, जिससे और भी भ्रम तथा वञ्चना हो जाती है। फिर भी इसमें तो किसी प्रकारका संदेह नहीं कि जिसे परम सौभाग्यवशात् कहीं एक बार भी विशुद्ध संत 
१. सत्सङ्गो दुर्लभोऽगम्योऽमोघश्च

( नारद-भक्तिसूत्र )

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जन्मार्जितानि पापानि नाशमायान्ति यस्य वै।

सत्सङ्गतिर्भवेत्तस्य नान्यथा घटते हि सा ॥

(ना० पु० पू० ४)

मिल गये, उसपर भगवत्कृपा हो गयी और उसका सारा काम बन गया । सच्ची बात तो यह है कि संतकी प्राप्ति भगवत्प्राप्ति-सदृश ही या उससे भी अधिक महत्त्वकी घटना है।
निगमागम पुरान मत एहा। कहहिं सिद्ध मुनि नहिं संदेहा ॥ 

संत बिसुद्ध मिलहिं परि तेही। चितवहिं राम कृपा करि जेही॥
मो ते भधिक संत करि लेखा ।’

‘जानेसि संत अनंत समाना’ ‘राम ते अधिक राम कर दासा ।’

यद्यपि संत सभी देश-कालमें होते हैं, फिर भी भारत इसमें सबसे आगे है। संतोंकी वाणी त्रिकाल कल्याणदायिनी होती है। उसका वर्णन नहीं हो सकता । यदि वे मिल जायँ तब तो पूछना ही क्या ! पर उनके अभावमें भी भारतीयोंका यह सौभाग्य है कि वे भगवान् वाल्मीकि, व्यास, नारद, वशिष्ठ, शुकदेव और | गोस्वामी तुलसीदास-जैसे संतोंकी परम पवित्र अमृत मयी वाणीरूपा, भास्वती भगवती अनुकम्पा देवीका प्रसाद पा तत्क्षण शोक-मोहसे मुक्त होकर अपार सुखशान्ति प्राप्त कर सकते हैं।

sant svabhav
सूक्ति-सार-सर्वस्व संतजन वस्तुतः त्रिभुवनके ऐश्वर्यका लोभ दिखाने मा सम्पूर्ण विश्वके भोग उपस्थित होनेपर भी लवनिमिषार्ध तकके लिये प्रभुके चरणारविन्दसे मन नहीं हटाते, इसलिये वे किसीको उपदेश तो दूसरा देंगे ही क्या ?

 पर दुखी, संसृतिग्रस्त प्राणी अरविन्दनयन प्रभुके चरणारविन्दके किञ्जल्कका अनुपम स्वाद नहीं जानता, अतएव अर्थ-कामके लिये ही, या बहुत हुआ तो दु:ख-मुक्ति या संसृति-मोक्षके लिये संतोंके पास जाता है। 


इसपर संत-जन दयार्द्र होकर अपने मनकी बात भगवद्-ध्यानको ही सभी सुख-सौभाग्यका उपाय बतला देते हैं और कहते हैं कि यदि कोई भोग ही चाहता हो तो बड़े शान्त तथा सौम्य उपायसे केवल थोड़ी-सी भगवान्की आराधनासे ही वह सुख-सम्पत्ति प्राप्त कर सकता है जो अन्यथा सर्वथा दुर्लभ है। 
संत का सच्चा स्वभाव sant svabhav

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