गुरु-ईश वन्दना guru vandana lyrics
|| गुरु-ईश वन्दना ||
गुरु व्यक्ति तक सीमित नहीं, एक दिव्य चेतन प्रवाह- ईश्वर का अंश है | चेतना का एक अंश जो अनुशासन व्यवस्था बनाता, उसका फल देता है- ईश्वर कहलाता है, दूसरा अंश जो अनुशासन की मर्यादा सिखाता है, उसमें प्रवृत्त करता है, वह गुरु है। आइये, गुरुसत्ता को नमन-वन्दन करें । गुरु-ईश वन्दना guru vandana lyrics
ॐ ब्रह्मानन्दं परमसुखदं, केवलं ज्ञानमूर्ति,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं, तत्त्वमस्यादि-लक्ष्यम् ॥
एकं नित्यं विमलमचलं, सर्वधीसाक्षिभूतं,
भावातीतं त्रिगुणरहितं, सद्गुरुं तं नमामि ॥1॥
अखण्डानन्दबोधाय, शिष्यसन्तापहारिणे ।
सच्चिदानन्दरूपाय, तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ 2 ॥
अर्थात्– ब्रह्मानन्द स्वरूप, परम सुख देने वाले, केवल ज्ञान मूर्ति, द्वन्द्व (सुख-दुःख, लाभ-हानि आदि) से परे, आकाश के समान (व्यापक), तत्त्वमसि आदि महावाक्य के लक्ष्य भूत, एक, नित्य, विमल, अचल, सदा साक्षी स्वरूप, भाव (शुभ-अशुभ) से अतीत, तीनों गुणों (सत, रज, तम) से रहित (परे) उस सद्गुरु को नमस्कार करते हैं।
गुरु-ईश वन्दना guru vandana lyrics
प्रत्येक शुभ कार्य में दैवी अनुग्रह आवश्यक है। इस यज्ञीय कार्य में सर्वप्रथम गुरुसत्ता का आवाहन करते हैं । वे हमारे अन्दर के अज्ञान को हटा कर ज्ञान को प्रतिष्ठित करें । हे गुरुदेव! आप ही शिव हैं, आप ही विष्णु हैं | आप हमारे सद्ज्ञान और सद्भाव को बढ़ाते रहें और हम सब इस यज्ञीय कार्य को सफल और सार्थक बना सकें ।
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः ।
गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः ॥1॥
अर्थात्- गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरुदेव ही महेश्वर हैं | गुरु ही परब्रह्म हैं, उन श्रीगुरु को नमस्कार है ।
अखण्डमण्डलाकारं,व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ 2 ॥ – गु.गी. 43, 45
अर्थात् जिस (परब्रह्म) ने अखण्डमण्डलाकार चराचर जगत् को – व्याप्त कर रखा है, उस (ब्रह्म) पद को जिनने दिखला दिया है, उन श्री गुरु को नमस्कार है ।
मातृवत् लालयित्री च, पितृवत् मार्गदर्शिका |
नमोऽस्तु गुरुसत्तायै, श्रद्धा-प्रज्ञायुता च या ॥ 3 ॥
– अर्थात्- माता के समान लालनपालन करने वाली, पिता के समान मार्गदर्शन प्रदान करने वाली, श्रद्धा और प्रज्ञा के स्वरूप वाली उस गुरुसत्ता को नमस्कार है । गायत्री – शास्त्रों में कहा गया है गायत्री सर्वकामधुक् अर्थात् गायत्री समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली है। हे माँ! हमें सद्बुद्धि देना, जिससे हम सत्कर्म करें और सद्कार्यों से सद्रति को प्राप्त कर सकें । इस भाव से पूजन करें।