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श्रीदुर्गासप्तशती: देवी दुर्गा की वीरता और भक्ति का गुणगान
परिचय
श्रीदुर्गासप्तशती, देवी दुर्गा की वीरता और शक्ति का महिमामंडन करने वाला एक प्राचीन हिंदू ग्रंथ है। यह देवी चंडी (दुर्गा) की 700 श्लोकों की रचना है, जो देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों, उनके पराक्रमों और उनकी भक्ति का वर्णन करता है।
महत्व
श्रीदुर्गासप्तशती को हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह ग्रंथ न केवल देवी दुर्गा की वीरता का वर्णन करता है, बल्कि यह भक्तों को जीवन के विभिन्न कष्टों से मुक्ति पाने और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने का मार्ग भी दिखाता है।
कथा
श्रीदुर्गासप्तशती की कथा महर्षि मार्कंडेय से जुड़ी है। एक बार महर्षि मार्कंडेय पर भगवान शिव का श्राप लग गया था, जिसके अनुसार उन्हें एक वर्ष के बाद यमराज द्वारा मृत्यु का वरण करना था।
मृत्यु से भयभीत होकर महर्षि मार्कंडेय ने देवी चंडी की तपस्या आरंभ की। देवी चंडी प्रसन्न हुईं और उन्हें मृत्यु से मुक्ति प्रदान की।
श्रीदुर्गासप्तशती के सात अध्याय
श्रीदुर्गासप्तशती में कुल सात अध्याय हैं, जिनमें प्रत्येक अध्याय देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों और पराक्रमों का वर्णन करता है।
- प्रथम अध्याय: देवी दुर्गा का स्वरूप और महिमा
- द्वितीय अध्याय: महर्षि मार्कंडेय की तपस्या और देवी चंडी का प्रकटन
- तृतीय अध्याय: देवी चंडी का महिषासुर वध
- चतुर्थ अध्याय: देवी चंडी का शुम्भ-निशुम्भ वध
- पंचम अध्याय: देवी चंडी का चंड-मुंड वध
- षष्ठ अध्याय: देवी चंडी का रक्तबीज वध
- सप्तम अध्याय: देवी चंडी का महिमामंडन
श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ
श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से किया जाता है। इसके अलावा, भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी इसका पाठ करते हैं।
निष्कर्ष
श्रीदुर्गासप्तशती एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रेरणादायक ग्रंथ है। यह ग्रंथ हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना कर सकते हैं और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।