आप बसौ बरसाने अली वृषभानु लली aap baso barsane ali brishbhanu lali

आप बसौ बरसाने अली वृषभानु लली aap baso barsane ali brishbhanu lali

आप बसौ बरसाने अली वृषभानु लली सुधि मेरी बिसारी।
कोमल चित्त दीनन के हित नित्त करो ये बान तिहारी।।
 कान दिए सुनिए मम स्वामिनि दासी की आस पुजावन हारी।
मोहि देहु यही ब्रज डोलौ करूँ तेरो नाम जपूँ नित श्यामा प्यारी।।
हेम सिंहासन हीर जड़े तेहि पै पट हैं अति मंद बिछाये।
सोलह सहस्र अली निकसी वृषभानु लली उत श्यामजू आए।।
आरती लै कोई गुंजन माल लिए तुलसी दल शीश नवाए।
स्वागत प्रेम सों मध्य बिठाई मैं भी रही फल नैनन पाए।।
ऐसे किशोरी जी नाहिं बने तुम कैसे सुधि मो बिसार रही हो।
हे अवनासिन दीनन स्वामिनि का मम बाट बिचारि रही हो।।
तेरे अवलोकन ऐसी दशा मोहे यों भवसिन्धु में डारि रही हो।
मो सम दीन अनेकन तारे वा श्रम से अब हारि रही हो।।
कीरति नन्दिनि कीजै कृपा कर जोरि कहूँ निज पास बसाओ।
सीस धरूँ धरनी विच स्वमिनि दे ललिते-ललिते समझाओ।।
मोय विशाखा बिसारो नहीं वृषभानु सुता को व्यथा ये सुनाओ।
ऐही कहो मिल आली सखी अब चरनन चेरी मोहि बनाओ।।

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