भागवत की कथा पुराण- bhagwat katha first day

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bhagwat katha hindi
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भागवत की कथा पुराण- bhagwat katha first day

यहाँ पर सूत का मतलब होता है 
“क्षत्रियात् विप्रकन्यायां सूतो भवति जातकः” 
अर्थात् क्षत्रिय पुरुष एवं विप्र कन्या के संतान गृहस्थ धर्म से जिनका जन्म हो वह सूत कहलाता है। ऐसे ही वे सूत जी आज ज्योंहि व्यास गद्दी पर बैठे तो सबसे पहले भगवान् की दयालुता एवं कृपालुता को स्मरण करके अपने पूज्य श्री गुरुदेव द्वारा रचित “श्रीमद्भागवत महापुराण कथा” को याद किया तथा पुज्य गुरुदेव श्रीव्यास जी द्वारा पूर्व में जो मंगलाचरण करके माहात्म्य को प्रतिपादित किया गया है उसी मंगलाचरण को श्री सूत जी महाराज गायन करते समय सत्यस्वरूप श्रीकृष्ण को प्रणाम करते हुए कहते हैं कि हे शौनक जी ! भगवान श्रीमन् नारायण के गुणों को जिस भागवत में वर्णन है उस भागवत को सुनने से ही भगवान की प्राप्ति होती है। 
 
क्योकि जब बहुत जन्मों का पुणा उदय होता है या जब अनन्त जन्मों के भाग्य का उदय होता है तो सत्संग का लाभ प्राप्त होता है। उस सत्संग का तात्पर्य श्रीमद्भागवत कथा होती है।
अर्थात् “भाग्योदयेन बहुजन्मसमर्जितेन सत्संगम् च लभते पुरूषो यदा वै” || 
 
हम म्रियमाणों की जीवनयात्रा भागवत कथा के श्रवण मात्र से शान्ति एवं आनन्द से कट जायेगी एवं मरणोपरान्त मुक्ति भी प्राप्त होगी। हम सबका जीवन “पर-इच्छित” यानी परीक्षित है। अर्थात् परमात्मा के अधीन है। सात दिनों का सप्ताह होता है। राजा परीक्षित् की भाँति हमें भी इन्हीं सात दिनों में से किसी दिन यह देह छोड़कर जाना है। इसलिए हम सभी परीक्षित् का ही जीवन जी रहे हैं। 
 
इसी भागवत कथा को सुनकर श्री शंकर जी अमर हैं। अतः इस भागवत कथा को अमरकथा भी कहा जाता है। इसी अमर कथा को एक समय श्री शंकर जी ने अपनी पत्नी पार्वती को सुनाया था, परन्तु श्रीपार्वती जी इस अमरकथा को पूरा-पूरा नहीं सुन पायीं तथा बीच में ही निद्राग्रस्त हो गयीं। 
 
अर्थात् इस प्रसंग का विस्तार से अन्यत्र ग्रन्थों में कथा है कि एक बार श्रीकृष्ण भगवान् महालक्ष्मी श्री राधाजी के साथ अपने वैकुण्ठ यानी गोलोक धाम में बैठे थे तो अचानक भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि हे राधा जी मैं अब पृथ्वी लोक पर जाऊँगा, आप भी चलें। श्री राधाजी ने कहा कि मैं पृथ्वीलोक पर तभी चलूँगी जब पृथ्वीलोक पर इस गोलोक के समान गोवर्धन-वृन्दावन, आदि उपस्थित हों (प्रभु की कृपा से श्री राधा जी की कामना के अनुसार वृन्दावन, गोकुल एवं गोवर्धन पर्वत आदि पृथ्वी लोक में प्रकट हो गये)।
 

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इधर जब श्रीराधा जी पृथ्वी लोक पर चलने लगीं तो गोलोक के श्रीराधाजी का लीलापक्षी श्रीशुकदेवजी ने भी साथ चलने को कहा तो वहीं राधाजी की आज्ञा से भगवान् की अमरकथा रूपी भागवत कथा के प्रचार करने के लिए गोलोक के लीलापक्षी श्रीशुकदेवजी एक सुग्गी के गर्भ के अण्डे के रूप में प्रकट होकर अमरनाथ में प्रकट हुए थे।
 
वह अण्डा हवा के झकोरों के कारण फूट गया था तथा अमरनाथ में फूटा हुआ पड़ा था। इधर एक बार श्री नारद जी घूमते-घूमते कैलास पर्वत पर पहुँचे तो श्री पार्वती जी ने नारद को सत्कार करने के बाद पूछा की नारद जी आप कहाँ से आ रहे हैं तो नारद जी ने कहा कि मैं हर जगह घूमते हुए आ रहा हूँ परन्तु अब घुमना कम कर दिया हूँ क्योकि लोगों पर विश्वास नहीं है इसका कारण लोगों में प्रेम एक दूसरे के प्रति नहीं है केवल दिखावा का प्रेम है वस्तुतः नही। तब पार्वती जी ने कहा कि हे नारद जी ! इस जगत् के लोगों में आपस में प्रेम है या नहीं, मैं नहीं जानती, लेकिन, हमारे और हमारे पति भूतभावन शंकर जी में तो बहुत प्रेम है। 
 
यानी श्री शंकरजी हमसे बहुत प्रेम करते हैं। तब श्रीनारद जी ने कहा कि हे पार्वतीजी ! जब आपके पतिदेव श्री शंकरजी आपसे प्रेम करते हैं तो यह जरूर बतलाये होंगे कि श्री शंकर जी जो अपने गले में माला पहनते हैं वह कैसी और किसकी माला है, तब पार्वती ने कहा कि हे नारदजी! यह माला पहनने का रहस्य तो वे अभी तक नही बतलायें है। तब नारद जी ने कहा कि फिर आपके प्रति आपसे झूठा या दिखावे का प्रेम करते हैं। वस्तुतः प्रेम नहीं करते हैं। इतना कहकर श्रीनारदजी वहाँ से चल दिये। 
 
इधर वही एक बार पार्वतीजी ने भोलेनाथ से अनुरोध किया कि कृपया यह बतलायें कि आपकी गले में किसकी माला है तथा यह वर दें कि हे स्वामी मुझे आपसे वियोग नहीं हो और हमेशा आत्मज्ञान बना रहे, इसका कोई उपाय बतायें। आगे श्री शंकरजी ने कहा कि इस आत्मज्ञान को मैं समय से बतलाऊँगा। परंतु श्रीनरद द्वारा जो भेद वचन है उन भेद वचनों के समाधान को करते हुये श्रीशंकरजी ने कहा कि हे पार्वती यह हमारे गले में जो मुण्डों की माला है वह मुण्डमाला तुम्हारे ही मुण्डों की है जिनको मैंने तुम्हारे बार-बार मरने पर तुम्हारी यादगारी में माला के रूप में धारण किया है क्योकि मैं तुमसे अति प्रेम करता ह। 
 

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तब पार्वती जी ने कहा कि मै बार-बार मर जाती हूँ और आपकी मृत्यु नही होती इसका कारण क्या है ? तब श्री शंकर जी ने कहा कि हे पार्वती! मैने अमर कथा सुना है जिससे मैं अमर हूँ। यह घटना सुनकर श्री पार्वती जी ने अमर कथा सुनने के लिये श्री शंकर जी से प्रार्थना की तब शंकर जी ने कहा कि हे पार्वती इस समय मैं तुझमे अमरकथा सुनने का पुर्ण लक्षण नही देख रहा हूँ फिर भी तुम्हारे आग्रह करने के कारण मैं अवश्य कथा सुनाउगाँ यानी आज आपको अति गोपनीय कथा सुना रहा हूँ जिसको सुनकर तुम भी अमर हो सकती हो। इसलिए आप जरा बाहर देख आइये कि कहीं कोई है तो नहीं। श्री पार्वतीजी ने बाहर आकर चारों तरफ अच्छी तरह देखा तो वहाँ एक शुक शावक के विगलित अंडे के सिवा कुछ नहीं था। 

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उन्होंने श्री शंकरजी से कहा कि बाहर कोई नहीं नहीं है। तब श्री शंकरजी ने ध्यानस्थ मुद्रा में ‘अमरकथा’ का अमृत प्रवाह शुरू किया। बीच-बीच में पार्वती जी हुँकारी भरती थीं। दशम स्कन्ध की समाप्ति पर वे निद्राग्रस्त हो गई एवं बारहवें स्कन्ध की समाप्ति पर पार्वतीजी ने शंकर जी से कहा कि हे प्रभो क्षमा करेंगे, मुझे दशम स्कन्ध के बाद नींद आ गयी थी। मैं आगे की कथा नहीं सुन सकी हूँ। अर्थात् श्री कृष्ण उद्धव संवाद जो ग्यारहवे स्कन्ध में है उसको मैंने नहीं सुना तथा बारहवें स्कन्ध की कथा भी नहीं सुनी। 
 
इधर यह जानने हेतु कि फिर कथा के बीच में हुंकारी कौन भर रहा था? यह जानने के लिए शिवजी बाहर निकले। उन्होंने एक सुन्दर शुक शावक को देखा। श्री शंकरजी ने पार्वती जी से पूछा- आखिर यह शुक शावक कहाँ से आ गया ? पार्वतीजी ने विनीत वाणी में कहा कि यह तो विगलित अंडे के रूप मे पड़ा था श्री भागवत कथा रूपी अमृत पान से जीवित हो गया। इस प्रकार अमर कथा की गोपनीयता भंग होने से शंकर जी शुक-शावक को पकड़ने के लिए झपटे। 
 
शुक शावक उड़ गया और उड़ते-उड़ते भय से श्री बद्रिकाश्रम के निकट स्थित व्यास आश्रम पर श्रीव्यास जी की पत्नी पिंगला में प्रवेश कर गया। फिर शंकर जी ने श्रीव्यासजी द्वारा सन्तावना प्राप्त कर वापस अपने आश्रम पर लौट गये। इधर श्री शुकदेवजी १६वर्षों तक पिंगला के गर्भ में रहे। 
 

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