Tuesday, October 8, 2024
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भगवत कथा इन हिंदी bhagwat katha in hindi

भगवत कथा इन हिंदी bhagwat katha in hindi

भगवत् भागवत आचार्य-कैंकर्य-परायण महानुभावो! उन जगत् नियन्ता भगवान् श्रीश्रीमन्नारायण की अहैतुकी कृपा से ही कभी-कभी ऐसा पावन अवसर हम सभी को प्राप्त होता है। वह पावन अवसर आज उपस्थित है।


सबसे पहले इसी श्रीमद्भागवत की महिमा की कथा को एक बार प्राचीन काल में श्रीश्रीमन्नारायण भगवान् ने संसार के जीवों के उद्धार के लिए अपनी शक्ति को अपनी वाणी द्वारा प्रकट करके उस वाणी का नाम श्रीमद्भागवत कथा रखा।

एक बार जब श्रीलक्ष्मी जी ने संसारी जीवों के कल्याण के लिए प्रभु से पूछा तो प्रभु ने श्रीलक्ष्मी जी से कहा कि यह श्रीमद्भागवत कथा ही सबसे सुगम और सरल कल्याण का उपाय है।


इसी भागवत कथा को एकबार ब्रह्माजी के पूछने पर प्रभु ने उन्हें भी उपदेश दिया था। इसी कथा को भगवान् श्रीमन्नारायण से प्राप्तकर श्रीशंकर जी ने श्री पार्वती जी को सुनाया था। इसी कथा को अनुसंधान कर बारहों आदित्य, आदि अपना कार्य करते हैं। 


इसी कथा को एकबार सनकादियों ने भगवान् से सुना था तथा उन्हीं सनकादियों ने ब्रह्माजी से भी इसी कथा को पुनः सुना था। इसी कथा को एक बार श्रीनारदजी ने भगवान् से सुना था तथा पुनः ब्रह्माजी से भी सुना एवं फिर इसी कथा को श्री नारद जी ने सन्नकादियों से हरिद्वार में अनुष्ठान के रूप में सुना था। 


इसी कथा को श्री नारद जी ने व्यास जी को सुनाया था एवं इसी कथा को व्यास जी ने अपने पुत्र श्री शुकदेव जी को पढाया था इसी कथा को एक बार गोकर्ण जी ने अपने भाई धुन्धकारी के कल्याण के निमित सुनाया। 

भगवत कथा इन हिंदी bhagwat katha in hindi


इसी कथा को श्री शुकदेव जी ने महाराज परीक्षित् को सुनाया और इसी कथा को रोमहर्षण सुत के पुत्र श्रीउग्रश्रवा सूत ने शौनकादि, ऋषियों को नैमिषारण्य में सुनाया। इस प्रकार इस कथा को जगत् में सुनने और सुनाने की परम्परा आज भी कायम है। यह श्रीमद्भागवत पंचम वेद भी है।

जैसे-“इतिहासपुराणानि पंचमो वेद उच्यते’ अर्थात् इतिहास और पुराण भी पंचमवेद हैं। अतः यह श्री भागवत इतिहास भी है और पुराण भी है। उस श्रीमद्भागवत कथा की महिमा को जानने हेतु एक बार श्री ब्रह्माजी ने भगवान् श्रीमन्नारायण से संसारी जीवों की मुक्ति हेतु सहज उपाय पूछा तो प्रभु ने कहा- हे ब्रह्माजी, हमारी प्रसन्नता एवं प्राप्ति या हमारे सन्तोष के लिए श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा ही केवल है। जैसे :-


“श्रीमद्भागवतम् नाम पुराणम् लोकविश्रुतम् । 

शृंणुयाच्छ्रद्धंयायुक्तो मम संतोषकारणम् । 
यत्र-यत्र भवेत् पुण्यं शास्त्रम्भागवतं कलौ। 

तत्र-तत्र सदैवाहम् भवामि त्रिदशैः सह।।

(देवताओं के साथ रहते हैं)

इस “श्रीमद्भागवतमहापुराण कथा” का मतलब होता है कि :-श्री+मन+भा-ग-व-त,+महा+पुराण,+क-था यानी श्रीमद् शब्द का अर्थ-“श्री” श्री ईश्वरभक्ति-वाचकः अर्थात महालक्ष्मी (राधा) वाचक है। “मद्” शब्दः सर्वगुणसम्पन्नतावाचकः अर्थात् परमात्मा के समस्त गुणों जैसे:दया, कृपा इत्यादि से सुशोभित होने का वाचक होता है। 

“भागवत” का मतलब यह है कि जिसका “भा’ यानी तेज या प्रभा या भक्ति या महत्ता सभी लोकों में त्रिकालावधि विद्यमान हो। “ग” यानी नारदादि मुनियों ने उस परमात्मा की इस महिमा का गायन किया है और आज भी गायन किया जाता है। “वत’ यानी शास्त्र उस परमात्मा एवं उनकी कीर्ति महिमा के अन्तर्गत है। अर्थात् इसी परमात्मा से एवं परमात्मा की महिमा से प्रकट है या निकला है और हमेशा इसी परमात्मा में और उसकी महत्ता में रहता है। अतः इस कारण भी इसका नाम “भागवत” है। अर्थ-धर्म काम-मोक्ष इन चारों को प्राप्त कराता है। अतः इसका नाम “भागवत” है। 

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आगे महापुराण शब्द का अर्थ होता है कि “महा” माने सभी प्रकार से और सभी में श्रेष्ठ जो हो वह “महा” कहलाता है एवं “पुराण’ का मतलब होता है कि जो लेखनी-ग्रन्थ-कथा या फल देने वालों में प्राचीन हो या जो लेखनी ग्रन्थ-कथा के रूप में पुराना हो परन्तु जगत् के जीवों को हमेशा नया ज्ञान, शान्ति एवं आनन्द देते हुए नया या सरल जीवन का उपेदश देते हुए सनातन प्रभु से सम्बन्ध जोड़ता है वह “पुराण” है। 


“कथा” का मतलब होता है कि “क” माने सुख या परमात्मा के सान्निध्य में निवास के सुख की अनुभूति “था” माने स्थापित करा दे वह “कथा’ है। तात्पर्य जो जगत् मे रहने पर परमात्मा की अनुभूति की स्थपना करा दे या परमात्मा के तत्व का ज्ञान कराकर परमात्मा से सम्बन्ध जोड़ दे एवं शरीर त्यागने पर उन परमात्मा के दिव्य सान्निध्य में पहुँचाकर परमात्मा की सायुज्य मुक्ति यानी प्रभु के श्रीचरणों में विलय करा दे उसे “कथा” कहते हैं। 


इसके साथ-साथ श्रीमद्भागवत कथा का अर्थ है कि जो श्री वैष्णव भक्ति का उद्गम ग्रन्थ हो उसे श्रीमद्भागवत कहते हैं। जैसे:

श्रीमद् भागवत श्री वैष्णव भक्ति का उद्गम ग्रंथ है। स्वयं श्री भगवान् के मुख से प्रकट ग्रंथ है। पंचम वेद है।
वेदों एवं उपनिषदों का सार है।


व्यक्ति को व्यक्ति एवं समाज को सभ्यता संस्कृति-संस्कार देने वाला है। 
काल या मृत्यु के भय से मुक्त करने वाला है। 
भगवान् के भक्त की कथा का नाम 1
यह श्रीमद् भागवत कथा भगवान्की प्रत्यक्ष मूर्ति है। 


यानी- प्रथम तथा द्वितीय स्कन्ध प्रभु के चरण हैं। तृतीय तथा चतुर्थ स्कन्ध प्रभु के जंघा हैं। पंचम स्कन्ध षष्ठ स्कन्ध वक्षः स्थल है, नाभि है,
सप्तम तथा अष्टम स्कन्ध दोनों भुजायें है। नवम स्कन्ध दशम स्कन्ध एकादश स्कन्ध ललाट है तथा कण्ठ है, मुख है,
द्वादश स्कन्ध प्रभु का मस्तक है।

अतः यह श्रीमद्भागवत “विद्यावतां भागवते परीक्षा”-विद्वान् की पहचान या परीक्षा का भी सूचक है। इसी श्रीमद् भागवत रूपी अमर कथा को सुनकर श्री महर्षि वेदव्यासजी ने शान्ति प्राप्त की थी। अर्थात श्रीव्यास जी ने श्रीमद्भागवत की रचना जब तक नहीं की थी तब तक उनका चित्त अप्रसन्न था। 

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जिन व्यास जी को कृष्ण द्वैपायन भी कहते हैं क्योकि उन व्यास जी का जन्म यमुना के कृष्ण द्विप में हुआ था तथा कृष्ण रंग के भी थे। जिनकी माता का नाम सत्यवती था। वह सत्यवती पुत्र पराशर नन्दन श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना करने से पहले चारों वेदों की व्यवस्था सहित महाभारतादि की रचना कर ली थी तथा सोलह पुराणों की रचना भी कर ली थी एवं अपने पिता श्री पराशर जी द्वारा रचित श्री विष्णुपराण के भी स्वामित्व को भी प्राप्त कर चुके थे। 


फिर भी श्री व्यास जी को शान्ति नहीं थी। उस अशान्ति के दो कारण थे। पहला तो यह कि उन्हें कोई पुत्र उस समय तक नहीं था जो उनके बाद उनकी बौद्धिक विरासत को सम्भाल सके। अर्थात् श्रीव्यास जी को यह चिन्ता थी कि हमारे बाद हमारी बौद्धिक विरासत को कौन सम्भालेगा ? 


दूसरा कारण यह कि मेरे द्वारा की गयी रचनाओं में कहीं न कहीं राग-द्वेष की अभिव्यक्ति हुई है। अतः मेरे द्वारा पूर्णरूप से श्री भगवान् में समर्पण की कथा की रचना एक भी नहीं है। इन्हीं दोनो कारणों से श्री व्यास जी का मन पूर्ण रूप से प्रसन्न नहीं था। इसलिए श्री व्यास जी ने श्री नारद जी के उपदेश से भगवान के निर्मल चरित्र की कथा को लिखकर “श्रीमद्भागवत महापुराण कथा” नाम रखकर शान्ति प्राप्त की। वही श्रीमद्भागवत महापुराण को हम आपके सामने निवेदन करेगें।


अब यहाँ पर यह प्रश्न होता है कि- माहात्म्य का मतलब क्या होता है ? अर्थात् माहात्म्य का मतलब होता है कि इस कथा से कथा की पद्धति आदि क्या है ?, श्रीमद्भागवत सुनने की पद्धति क्या है ?, भागवत कथा के श्रवण के नियम क्या हैं ? तथा कथा क्यों सुनी जाती है तथा इसके सुनने से क्या फल होता है एवं किन-किन लोगों ने कौन-कौन और कब-कब तथा क्या-क्या फल प्राप्त किया ? उपरोक्त सभी प्रश्नों का वर्णन जहाँ और जिस ग्रन्थ में किया गया हो वह “माहात्म्य” कहा जाता है। 

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