श्री मद भागवत महापुराण-7 Bhagwat Mahapuran story

श्री मद भागवत महापुराण Bhagwat Mahapuran story

भाग-7

( अथ अष्टमो अध्यायः )

राजा परीक्षित के विविध प्रश्न—
भागवत,श्लोक-2.8.1-2
राजा परीक्षित ने पूछा – भगवन आप वेद वेत्ताओं में श्रेष्ठ हैं | मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि जब ब्रह्माजी ने निर्गुण भगवान के गुणों का वर्णन करने को कहा तब उन्होंने किन किन को किस रूप में कहा | एक तो अचिंत्य शक्तियों के आश्रय भगवान की कथाएं ही लोगों का मंगल करने वाली हैं, दूसरे देवर्षि नारद का सबको भगवत दर्शन कराने का स्वभाव है अवश्य ही उनकी बात मुझे सुनाइए |
सूत जी कहते हैं- हे ऋषियों जब संतों की सभा में राजा परीक्षित ने भगवान की लीला कथा सुनाने के लिए प्रार्थना की सुकदेव जी को बड़ी प्रसन्नता हुई उन्होंने वही वेद तुल्य श्रीमद् भागवत कथा सुनाई जो स्वयं भगवान ने ब्रह्मा को सुनाया था|
इति अष्टमो अध्यायः

श्री मद भागवत महापुराण Bhagwat Mahapuran story

( अथ नवमो अध्यायः )

ब्रह्मा जी का भगवत धाम दर्शन और भगवान के द्वारा उन्हें चतुश्लोकी भागवत का उपदेश—
भगवान की नाभि से निकले कमल से प्रगट ब्रह्मा जी ने जब अपने आपको सृष्टि करने में असमर्थ पाया तो भगवान ने उन्हें तप करने को कहा ब्रह्मा की तप से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें अपने धाम का दर्शन कराया और उन्हें चतुश्लोकी भागवत प्रदान की—
भागवत,श्लोक-2.9.32-33-34-35
( पद्य के माध्यम से )
सृष्टि से पहले केवल मुझको ही जान , नहीं स्थूल नहीं सूक्ष्म जगत या ना ही था अज्ञान | जहां सृष्टि नहीं वहां मैं ही हूं सृष्टि के रूप में भी मैं ही हूं,  जो बचा रहेगा वह मैं हूं सर्वत्र सर्वदा मैं ही हूं | मेरे सिवा जो दीख रहा है मिथ्या सकल जहान सृ,  जैसे नक्षत्र मंडल में राहु की प्रतीत नहीं होती | वैसे इस माया के बीच मेरी भी प्रतीति नहीं होती , मेरे ही इस दृश्य जगत को मेरी माया पहचान सृ | जैसे जीवो की देही में पंचभूत तत्व है विद्यमान , वैसे ही मुझको आत्म रूप बाहर भीतर सर्वत्र जान | मैं ही मैं हूं और ना कोई मुझको मुझ में जान , ब्रह्मा जी को चार श्लोक में दान किया श्री नारायण , ब्रह्मा नारद से ब्यास किया वेदव्यास ने पारायण | दास भागवत तत्व यही है ये ही सच्चा ज्ञान ||
इति नवमो अध्यायः
 

( अथ दशमो अध्यायः )

भागवत के दस लक्षण–
भागवत,श्लोक-2.10.1-2
सुकदेव जी कहते हैं परीक्षित इस भागवत पुराण में सर्ग , विसर्ग, स्थान, पोषण, ऊति, मन्वंतर, इषानु कथा, निरोध, मुक्ति, आश्रय इन दस विषयों का वर्णन है | इसमें जो दशवां आश्रय तत्व है उसी का ठीक-ठीक निश्चय करने के लिए कहीं श्रुति कहीं तात्पर्य से कहीं दोनों के अनुकूल अनुभव से, महात्माओं ने अन्य नो विषयों का बड़ी सुगम रीति से वर्णन किया है |
इति दशमो अध्यायः
✳ इति द्वितीय स्कन्ध समाप्त ✳

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✳ अथ तृतीय स्कन्ध प्रारम्भ ✳

( अथ प्रथमो अध्यायः )

उद्धव और विदुर की भेंट– महाभारत के युद्ध के समय हस्तिनापुर छोड़ निकले विदुर जी सब तीर्थों में भ्रमण करते हुए जब प्रभास क्षेत्र में पहुंचे तब तक समस्त यादव कुल समाप्त हो चुका था ! यह जानकर उन्हें कुछ दुख हुआ किंतु उन्होंने इसे भगवान की इच्छा ही समझा उसके बाद उन्हें यह भी ज्ञात हो गया कि महाभारत में धृतराष्ट्र को छोड़ सभी कौरव समाप्त हो गए और युधिष्ठिर एकछत्र राजा हो गए हैं |
इस होनी को भी भगवान की इच्छा समझ वृंदावन आ गए परमात्मा के परम भक्त बृहस्पति जी के शिष्य उद्धव जी से वहां विदुर जी मिले दोनों भक्त परस्पर आलिंगन कर मिले , विदुर जी पूछने लगे उद्धव जी बताएं द्वारका में भगवान श्री कृष्ण बलराम समस्त यादवों के सहित कुशल से हैं ना , धर्मराज युधिष्ठिर धर्मपूर्वक राज्य कर रहे हैं न , आदि बातें पूछी |
इति प्रथमो अध्यायः
 

( अथ द्वितीयो अध्यायः )

उद्धव जी द्वारा भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन—-
भागवत,श्लोक-3.2.7
उद्धव उद्धव जी बोले- विदुर जी श्री कृष्ण रूप सूर्य के छिप जाने से हमारे घरों को काल रूप अजगर ने खा डाला है | वे श्री हीन हो गए हैं अब मैं उनकी क्या कुशल सुनाऊं—
भागवत,श्लोक-3.2.8
अहो यह मनुष्य लोग बड़ा ही अभागा है, जिसमें यादव तो नितांत ही भाग्य हीन हैं जिन्होंने निरंतर श्री कृष्ण के साथ रहते हुए भी उन्हें नहीं पहचाना | जैसे समुद्र में अमृतमय चंद्रमा के साथ रहती हुई मछलियां उसे नहीं पहचानी | विदुर जी भगवान का मथुरा में वसुदेव जी के यहां जन्म लेना, गोकुल में नंद के यहां रहकर अनेक लीलाएं करना , माखन चोरी , ग्वाल बालों के साथ वन में गाय चराना, पूतना को माता की गति प्रदान करना ,सकटासुर, तृणावर्त, बकासुर, व्योमासुर, कंस आदि राक्षसों का संहार याद आता है | काली मर्दन गोवर्धन पूजा रासबिहारी सब याद आते हैं|
इति द्वितीयो अध्यायः
 

( अथ तृतीयो अध्यायः )

भगवान के अन्य लीला चरित्रों का वर्णन– ब्रज में बाल लीला कर मथुरा में कंस का संहार करता कर तथा जरासंध की सेनाओं का संघार कर द्वारिका में भगवान ने कई विवाह किए रुक्मणी सत्यभामादिक सोलह हजार एक सौ रानियों के साथ भगवान ने विवाह किए और प्रत्येक महारानी से दस दस पुत्र उत्पन्न हुये, जरासंध शिशुपाल का संघार किया महाभारत के नाम पर दुष्टों का संहार किया और ब्राह्मणों के श्राप के बहाने अपने यदुवंस को भी समेट लिया |
इति तृतीयो अध्यायः
 

( अथ चतुर्थो अध्यायः )

उद्धव जी से विदा होकर विदुर जी का मैत्रेय जी के पास जाना–  उद्धव जी कहते हैं प्यारे विदुर समस्त यदुवंश का संघार के बाद भगवान ने स्वयं अपने लोक पधारने की इच्छा की वह सरस्वती के तट पर एक वृक्ष के नीचे जाकर बैठ गए, मैं भी पीछे पीछे उनके पास पहुंच गया और मैत्रेय ऋषि भी वहां आ गए | उन्होंने स्वधाम गमन के बारे में मुझे बताया मैंने उनसे प्रार्थना की—
भागवत,श्लोक-3.4.18
स्वामिन अपने स्वरूप का गूढ़ रहस्य प्रकट करने वाला जो श्रेष्ठ एवं समग्र ज्ञान आपने ब्रह्मा जी को बताया था वहीं यदि मेरे समझने योग्य हो तो मुझे भी सुनाइए जिससे मैं संसार दुख को सुगमता से पार कर जाऊं | मेरे इस प्रकार प्रार्थना करने पर भगवान ने वह तत्वज्ञान मुझे दिया जिसे सुनकर मैं यहां आया हूं और अब भगवान की आज्ञा से मैं बद्रिकाश्रम जा रहा हूं |
विदुर जी बोले उद्धव जी परमज्ञान जो आप भगवान से सुनकर आए हैं हमें भी सुनाएं | उद्धव जी बोले विदुर जी आपको वह ज्ञान मैत्रेय जी सुनायेंगे ऐसी भगवान की आज्ञा है |  ऐसा कहकर उद्धव जी बद्रिकाश्रम चल दिए और विदुर जी भी गंगा तट पर मैत्रेय जी के आश्रम पर जा पहुंचे |
इति चतुर्थो अध्यायः
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