भक्तमालका मंगलाचरण bhaktamal manglacharan

भक्तमालका मंगलाचरण bhaktamal manglacharan

श्रीनाभादासजीकृत भक्तमालका मंगलाचरण

भक्त भक्ति भगवंत गुरु चतुर नाम बपु एक।

इन के पद बंदन किएँ नासत बिघ्न अनेक ॥१॥

भगवान्के भक्त, भगवान्की भक्ति, भगवान् और भगवत्तत्त्वका बोध करानेवाले गुरुदेव-ये अलगअलग चार नाम और चार वपु हैं, पर वास्तवमें इनका वपु (स्वरूप-तत्त्व) एक ही है। इनके श्रीचरणोंकी वन्दना करनेसे समस्त विघ्नोंका पूर्णरूपसे नाश हो जाता है॥१॥

मंगल आदि बिचारि रहि बस्तु न और अनूप।

हरिजन को जस गावते हरिजन मंगलरूप॥२॥

ग्रन्थके आरम्भमें मंगलाचरणके सम्बन्धमें विचार करनेपर यही समझमें आता है कि भक्त-चरित्रोंके समान दूसरी और कोई वस्तु सुन्दर नहीं है, जिससे मंगलाचरण किया जाय। भगवद्भक्तोंका चरित्रगान करनेमें भगवद्भक्त ही मंगलरूप हैं ॥ २॥

संतन निरनै कियो मथि श्रुति पुरान इतिहास।

भजिबे को दोई सुघर कै हरि कै हरिदास ॥३॥

वेद, पुराण, इतिहास आदि सभी शास्त्रोंने तथा सभी साधु-सन्तोंने यही निर्णय किया है कि भजन, आराधनाके लिये भगवान् या भगवान्के भक्त-दो ही सबसे सुन्दर हैं ॥ ३॥

(श्रीगुरु) अग्रदेव आग्या दई भक्तन को जस गाउ।

भवसागर के तरन को नाहिन और उपाउ॥४॥
स्वामी श्रीअग्रदेवजी (श्रीअग्रदासजी)-ने मुझ नारायणदास (नाभादास)-को आज्ञा दी कि भक्तोंका यशोगान करो; क्योंकि संसार-सागरसे पार होनेका इससे सरल दूसरा कोई उपाय नहीं है॥४॥

भक्तमालका मंगलाचरण bhaktamal manglacharan

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भक्तमाल bhaktamal katha all part

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