श्री माधव दास जी का भगवान श्री कृष्ण से सख्य भाव था, अतः भगवान उनसे विविध प्रकार के विनोद पूर्ण कौतुक किया करते थे | एक दिन जब आप भगवान का दर्शन करने लगे तो देखा कि भगवान कुछ उदास हैं, आपने पूछा प्रभु आज आप कुछ उदास से प्रतीत हो रहे हैं क्या बात है ?

श्री ठाकुर जी ने कहा माधव दास जी क्या बताएं साल बीता जा रहा है और पका कटहल खाने को नहीं मिला !

राजा जी के बाग में कटहल खूब फल हैं और पके भी हैं 

अगर आप सहयोग दें तो आज रात में बाग में चलकर कटहल खाया जाए | आपने कहा पर वो बचपन में तो मुझे पेड़ पर चढ़ने का अभ्यास था , अब तो मैं बूढ़ा हो गया हूं मेरे हाथ पाव हिलते हैं | अतः पेड़ पर चढ़ने में तो मुश्किल होगी ?

श्री बलराम जी भी इस विनोद में रस ले रहे थे उन्होंने कहा माधव दास जी हम चढ़ने में सहायता कर देंगे, आपको कोई कठिनाई नहीं होगी !

बात तय हो गई श्री कृष्ण बलराम और माधव दास जी आधी रात में चुपचाप राजा जी के बाग में घुस गए ! श्री बलराम जी ने सहारा देकर माधव दास जी को पेड़ पर चढ़ा दिया माधव दास जी ने बड़े और खूब पके फल देखकर कई कटहल नीचे गिराए ,

दोनों भाइयों ने खूब जी भर कर कटहल खाए | 

उधर फलों की गिरने की आवाज सुनकर बाग के माली जग गए और आवाज की दिशा में लाठी लेकर दौड़े, उन्हें आता देखकर कृष्ण बलराम तो वहां की चहारदीवारी लांघ कर भाग गए |

पर बेचारे माधव दास जी रंगे हाथों पकड़ लिए गए मालियों ने रात्रि के अंधेरे में पहचाना नहीं तो खूब डन्डे की मार लगाई और रात भर बांधकर भी रखा | प्रातः काल सैनिकों ने बंदी अवस्था में ही राजा के सम्मुख दरबार में पेश किया |

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राजा ने देखते ही पृथ्वी पर गिर पड़े और सष्टांग दंडवत प्रणाम किया 

और मालियों द्वारा किये अपराध के लिए क्षमा मांगी और मालियों को दंड देना चाहा | इस पर श्री माधव दास जी ने कहा राजन मालियों ने अपने कर्तव्य का अच्छी प्रकार से पालन किया है उन्होंने कोई अपराध नहीं किया था |

इन्हें पुरस्कार देना चाहिए राजा ने आपके अनुसार मालियों को बारह बीघे जमीन का पट्टा पुरस्कार स्वरूप दे दिया | तत्पश्चात आधी रात में बाग में आने का कारण जानना चाहा |

माधवदास जी ने उन्हें सारी बात बताई थी राजाभाव विभोर हो गए 

उन्होंने कहा प्रभु मेरे धन्य भाग हैं कि आप मेरे बाग में आए | अब यह बाग आपकी ही सेवा में प्रस्तुत हैं |यह कहकर राजा ने ताम्रपत्र पर लिखकर बाग को श्री ठाकुर जी के श्री चरणों में समर्पित कर दिया |
माधवदास जी के ऐसे अनेक चरित्र हैं |

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