ब्राह्मण इसको कैसे मान सकता था वह तो यही समझता था कि अरे मैं तो दिन रात अपने कुटुंब के लोगों के लिए मर रहा हूं क्या यह मेरी सहायता समय पर ना करेंगे , ऐसा कभी नहीं हो सकता |
उसने सन्यासी से कहा महाराज जब मेरे सिर में थोड़ी सी पीड़ा होती है तो मेरी मां को बड़ा दुख होता है और दिन-रात वह चिंता करती है, क्यों कि वह मुझे प्राणों से भी अधिक प्यार करती है | प्रायः वह कहा करती है कि भैया के सिर की पीड़ा अच्छी करने के लिए मैं अपने प्राण तक देने को तैयार हूँ |
बुढ़िया स्त्री रो कर कहने लगी बाबा जी आपका कहना तो सत्य है मैं अपने प्यारे पुत्र के लिए प्राण देने को तैयार हूं लेकिन ख्याल यही है कि यह छोटे-छोटे बच्चे मुझसे बहुत लगे हैं मेरे मरने पर इनको बड़ा दुख होगा ? अरे मैं बड़ी अभागिनी हूं कि अपने बच्चे के लिए अपने प्राण तक नहीं दे सकती |
मित्रों हमें विश्वास है कि आपने पहले वाले दृष्टांत का मतलब समझ चुके होंगे ?
कहने का मतलब यह है कि👇
संसार में रहो लेकिन सांसारिक मत बनो, किसी कवि ने सच कहा है | मेंढक को सांप के साथ नचाओ लेकिन ख्याल रखो कि साँप मेंढक को निगलने ना पाए |
एक बार एक पहुंचे हुए एक साधु रासमणि के काली जी के मंदिर में आए , जहां परमहंस रामकृष्ण रहा करते थे | एक दिन उनको कहीं से भोजन ना मिला यद्यपि उनको जोरों से भूख लग रही थी, फिर उन्होंने किसी से भी भोजन के लिए नहीं कहा |
थोड़ी दूर पर एक कुत्ता झूठी रोटी के टुकड़े खा रहा था वह चैट दौड़ कर उसके पास गये और उसको छाती से लगाकर बोले भैया तुम मुझे बिना खिलाए क्यों खा रहे हो और फिर उसी के साथ खाने लगे | भोजन के अनंतर वे फिर काली जी के मंदिर में चले आए और इतनी भक्ति के साथ में माता की स्तुति करने लगे कि सारे मंदिर में सन्नाटा छा गया |
प्राथना समाप्त करके जब वे जाने लगे तो श्री रामकृष्ण परमहंस ने अपने भतीजे हृदय मुकर्जी को बुलाकर कहा— बच्चा इस साधु के पीछे पीछे जाओ और जो वह कहे उसे मुझसे कहो ! हृदय उसके पीछे-पीछे जाने लगा साधु ने घूम कर उससे पूछा कि मेरे पीछे पीछे क्यों आ रहा है ?
हृदय ने कहा महात्मा जी मुझे कुछ शिक्षा दीजिए ! साधु ने उत्तर दिया— जब तू इस गंदे घड़े के पानी को और गंगाजल को सामान समझेगा और जब इस बांसुरी की आवाज और इस जनसमूह की कर्कश आवाज़ तेरे कानों को एक समान मधुर लगेगी ? तब तू सच्चा ज्ञानी बन सकेगा |
ह्रदय ने लौटकर राम कृष्ण से कहा— रामकृष्ण जी बोले उस साधु को वास्तव में ज्ञान और भक्ति की कुंजी मिल चुकी है ! पहुंचे हुए साधु बालक, पिशाच, पागल और इसी तरह के और और भेषों में घूमा करते हैं |
लोहा जब तक पकाया जाता है , तब तक लाल रहता है | लेकिन जब बाहर निकाल लिया जाता है तब वह काला पड़ जाता है | यही दशा सांसारिक मनुष्यों की भी है जब तक वे मंदिरों में अथवा अच्छी संगति में बैठते हैं तब तक उनमें धार्मिक विचार भी रहते हैं किंतु जो हि उनसे अलग हो जाते हैं , तब वे फिर धार्मिक विचारों को भूल जाते हैं |
Ati sundr