Saturday, October 5, 2024
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gopi geet lyrics with meaning गोपी गीत लिरिक्स

gopi geet lyrics with meaning गोपी गीत लिरिक्स


॥ गोपीगीतम् ॥
 
गोप्य ऊचुः ।
जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः
    श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि ।
दयित दृश्यतां दिक्षु तावका-
    स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥ १॥
 
शरदुदाशये साधुजातस-
    त्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा ।
सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका
    वरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥ २॥
 
विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसा-
    द्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात् ।
वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया-
    दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥ ३॥
 
न खलु गोपिकानन्दनो भवा-
    नखिलदेहिनामन्तरात्मदृक् ।
विखनसार्थितो विश्वगुप्तये
    सख उदेयिवान्सात्वतां कुले ॥ ४॥
 
विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते
    चरणमीयुषां संसृतेर्भयात् ।
करसरोरुहं कान्त कामदं
    शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम् ॥ ५॥
 
व्रजजनार्तिहन्वीर योषितां
    निजजनस्मयध्वंसनस्मित ।
भज सखे भवत्किंकरीः स्म नो
    जलरुहाननं चारु दर्शय ॥ ६॥
 
प्रणतदेहिनां पापकर्शनं
    तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम् ।
फणिफणार्पितं ते पदांबुजं
    कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम् ॥ ७॥
 
मधुरया गिरा वल्गुवाक्यया
    बुधमनोज्ञया पुष्करेक्षण ।
विधिकरीरिमा वीर मुह्यती-
    रधरसीधुनाऽऽप्याययस्व नः ॥ ८॥
 
तव कथामृतं तप्तजीवनं
    कविभिरीडितं कल्मषापहम् ।
श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं
    भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः ॥ ९॥
 
प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं
    विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम् ।
रहसि संविदो या हृदिस्पृशः
    कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि ॥ १०॥

gopi geet lyrics with meaning गोपी गीत लिरिक्स

चलसि यद्व्रजाच्चारयन्पशून्
    नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम् ।
शिलतृणाङ्कुरैः सीदतीति नः
    कलिलतां मनः कान्त गच्छति ॥ ११॥
 
दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै-
    र्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम् ।
घनरजस्वलं दर्शयन्मुहु-
    र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि ॥ १२॥
 
प्रणतकामदं पद्मजार्चितं
    धरणिमण्डनं ध्येयमापदि ।
चरणपङ्कजं शंतमं च ते
    रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन् ॥ १३॥
 
सुरतवर्धनं शोकनाशनं
    स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम् ।
इतररागविस्मारणं नृणां
    वितर वीर नस्तेऽधरामृतम् ॥ १४॥
 
अटति यद्भवानह्नि काननं
    त्रुटिर्युगायते त्वामपश्यताम् ।
कुटिलकुन्तलं श्रीमुखं च ते
    जड उदीक्षतां पक्ष्मकृद्दृशाम् ॥ १५॥
 
पतिसुतान्वयभ्रातृबान्धवा-
    नतिविलङ्घ्य तेऽन्त्यच्युतागताः ।
गतिविदस्तवोद्गीतमोहिताः
    कितव योषितः कस्त्यजेन्निशि ॥ १६॥
 
रहसि संविदं हृच्छयोदयं
    प्रहसिताननं प्रेमवीक्षणम् ।
बृहदुरः श्रियो वीक्ष्य धाम ते
    मुहुरतिस्पृहा मुह्यते मनः ॥ १७॥
 
व्रजवनौकसां व्यक्तिरङ्ग ते
    वृजिनहन्त्र्यलं विश्वमङ्गलम् ।
त्यज मनाक् च नस्त्वत्स्पृहात्मनां
    स्वजनहृद्रुजां यन्निषूदनम् ॥ १८॥
 
यत्ते सुजातचरणाम्बुरुहं स्तनेष
    भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु ।
तेनाटवीमटसि तद्व्यथते न किंस्वित्
    कूर्पादिभिर्भ्रमति धीर्भवदायुषां नः ॥ १९॥
 
   
इति श्रीमद्भागवत महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
दशमस्कन्धे पूर्वार्धे रासक्रीडायां गोपीगीतं नामैकत्रिंशोऽध्यायः ॥
gopi geet lyrics with meaning गोपी गीत लिरिक्स
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gopi geet lyrics in sanskrit गोपी गीत लिरिक्स इन संस्कृत हिंदी अर्थ सहित  

gopi geet lyrics with meaning गोपी गीत लिरिक्स

gopy uchuh .
jayati tedhikan janmana vrajah
shreyaat indira shashvaadatr hi.
dayit drshyan dikshu taavaka-
satvayi dhrtasvastvaan vichinvate .1 .


sharadaadashaye saadhujaatas-
tsaraseejodarashreemusha darsha.
suratanaath te ritudaasika
varad nighnato neh kin vadhah . 2.


vishajalaapyadyavyaalaraakshasa-
dravarshamaarutaadvaidyutaanalaat.
vrshabhamayaatmajadavishvatobhy-
drshabh te vayan rakshita muhuh . 3.


na khalu gopeenandano bhav-
nakhiladehinaamantraatmadrk.
vikhanasaarthito vishvaguptaye
sakh udeyivansatvan kule . 4.

virachitaabhayan vrshnidhoory te
charanameeyushaan sansrterbhayaat.
karsaroruhan kaant kaamadan
shirasi dhehi nah shreekaragraham . 5.


vrjjanartinvi yoshitaan
nijjanasmayadhvansasansmit.
bhaj sakhe bhavatkinkarih sm nan
jalaruhannaan chaaru darshay . 6.


praanatadehinaan paapakarshanan
trnacharaanugan shreeniketanam.
phaneephaanaarpitan te padaambujan
krnu kucheshu nah krndhi hrchchhayam . 7.


madhuraya gir valguvaakya
budhamanogyaya payerekshan:.
vidhikareerima veer muhyati-
raadhaaraseedhunaapyaayasv nah . 8.

tav kathaamrtan taptajeevanan
kavibhiriditan kalmaashaapaham.
shravanamangalan shreemadatat
bhuvi ghrnanti te bhoorida janaah . 9.


prahaseetan priy premaveekshanan
vihaaran ch te dhyaanamangalam.
rahasi sanvido ya hrdisprshah
kuhak no manah kshobhyanti hi. 10.

gopi geet lyrics with meaning गोपी गीत लिरिक्स


chalasi yadvrajaachaaryanpashun
nalinasundaran naath te padam.
shilatrnaankuraih seedateeti nah
kalilataan manah kaant gachchhati . ..


dinapareekshaen neelakuntalai-
ravaanuruhannaan bibhradaavrtam.
ghanaraajasvalan darshanmuhu-
rmanasi nah smaran veer yachchhasi . 12.

praanatkaamadan padmajaarchitan
dharanimandanan dhyeyamaapadi.
charanapankajan shaantaman ch te
raaman nah staneshvarapayaadhihan . 13.


suratavardhanan shokanaashanan
svaritavenuna sushthu chumbitam.
itaraaraagvismaranan nrnaan
vitar veer naastedharaamrtam. 14.


atati yadbhavanahni kaananan
trutiryugaayate tvamapashyataam.
kutilakuntalan shreemukhan ch te
jad udeekshaan pakshamakrdrsham . 15.

gopi geet lyrics with meaning गोपी गीत लिरिक्स


patisutaanvayabhraatrbandhava-
naativilanghy tentyachyutagaatah.
gatividastavodgeetamohitaah
kitav yoshitah kastyajenishi . 16.

rahasi sanvidan hrchchhayodayan
prahaseetaanaan premaveekshanam.
brhadurah shriyo veekshy dhaam te
muhurtisprha muhyate manah . 17.


vrjvanaukasaan vyaktigataraang te
vrjihantryalan vishvamaangalam.
tyaj maanak ch nastvatsprhaatmanan
svajanahrdarujaan yaanishudanm . aath.


yatte sujaatacharanaamburuhan yathaatesh
bheetaah shanaih priy dadhimahi karkasheshu.
tenaatvimatsi tadvyathate na kinsvit
koopaadibhirbhramati dheerbhavadyaushaan nah . 19.
 

गोपी गीत लिरिक्स अर्थ – 

gopi geet lyrics with meaning गोपी गीत लिरिक्स


गोपियाँ विरहावेश में गाने लगी-  प्यारे ! तुम्हारे जन्मके कारण वैकुण्ठ आदि लोकोंसे भी व्रजकी महिमा बढ़ गयी है। तभी तो सौन्दर्य और मृदुलताकी देवी लक्ष्मीजी अपना निवासस्थान वैकुण्ठ छोड़कर यहाँ नित्य-निरन्तर निवास करने लगी हैं, इसकी सेवा करने लगी हैं।

परंतु प्रियतम ! देखो तुम्हारी गोपियाँ, जिन्होंने तुम्हारे चरणों में ही अपने प्राण समर्पित कर रक्खे हैं, वन-वनमें भटककर तुम्हें ढूँढ़ रही हैं ॥ १ ॥

हमारे प्रेमपूर्ण हृदयके स्वामी ! हम तुम्हारी बिना मोलकी दासी हैं । तुम शरत्कालीन जलाशयमें सुन्दरसे-सुन्दर सरसिजकी कर्णिकाके सौन्दर्यको चुरानेवाले नेत्रोंसे हमें घायल कर चुके हो। हमारे मनोरथ पूर्ण करनेवाले प्राणेश्वर ! क्या नेत्रोंसे मारना वध नहीं है ? अस्त्रोंसे हत्या करना ही वध है ? ॥२॥

पुरुषशिरोमणे ! यमुनाजीके विषैले जलसे होनेवाली मृत्यु, अजगरके रूपमें खानेवाले अघासुर, इन्द्रकी वर्षा, आधी, बिजली, दावानल, वृषभासुर और व्योमासुर आदिसे एवं भिन्न-भिन्न अवसरोंपर सब प्रकारके भयोंसे तुमने बार-बार हमलोगोंकी रक्षा की है ॥ ३॥

तुम केवल यशोदानन्दन ही नहीं हो; समस्त शरीरधारियोंके हृदयमें रहनेवाले उनके साक्षी हो, अन्तर्यामी हो । सखे ! ब्रह्माजीकी प्रार्थनासे विश्वकी रक्षा करनेके लिये तुम यदुवंशमें अवतीर्ण हुए हो ॥ ४ ॥

अपने प्रेमियोंकी अभिलाषा पूर्ण करनेवालोंमें अग्रगण्य यदुवंशशिरोमणे! जो लोग जन्म-मृत्युरूप संसारके चक्करसे डरकर तुम्हारे चरणोंकी शरण ग्रहण करते हैं, उन्हें तुम्हारे करकमल अपनी छत्रछायामें लेकर अभय कर देते हैं।
 
हमारे प्रियतम ! सबकी लालसा-अभिलाषाओंको पूर्ण करनेवाला वही करकमल, जिससे तुमने लक्ष्मीजीका हाथ पकड़ा है, हमारे सिरपर रख दो ॥ ५ ॥ 

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व्रजवासियोंके दुःख दूर करनेवाले वीरशिरोमणि श्यामसुन्दर ! तुम्हारी मन्द-मन्द मुसकानकी एक उज्ज्वल रेखा ही तुम्हारे प्रेमीजनोंके सारे मानमदको चूर-चूर कर देनेके लिये पर्याप्त है । हमारे प्यारे सखा ! हमसे रूठो मत, प्रेम करो। हम तो तुम्हारी दासी हैं, तुम्हारे चरणोंपर निछावर हैं। हम अबलाओंको अपना वह परम सुन्दर साँवला-साँवला मुखकमल दिखलाओ ॥६॥ 
 
तुम्हारे चरणकमल शरणागत प्राणियोंके सारे पापोंको नष्ट कर देते हैं। वे समस्त सौन्दर्य-माधुर्यकी खान हैं और स्वयं लक्ष्मीजी उनकी सेवा करती रहती हैं । तुम उन्हीं चरणोंसे हमारे बछड़ोंके पीछे-पीछे चलते हो और हमारे लिये उन्हें साँपके फणोंतकपर रखनेमें भी तुमने संकोच नहीं किया । हमारा हृदय तुम्हारी विरह-व्यथाकी आगसे जल रहा है, तुम्हारे मिलनकी आकाङ्क्षा हमें सता रही है । तुम अपने वे ही चरण हमारे वक्षःस्थलपर रखकर हमारे हृदयकी ज्वालाको शान्त कर दो ॥ ७॥ 
 
कमलनयन ! तुम्हारी वाणी कितनी मधुर है ! उसका एक-एक पद, एक-एक शब्द, एक-एक अक्षर मधुरातिमधुर है । बड़े-बड़े विद्वान् उसमें रम जाते हैं । उसपर अपना सर्वस्व निछावर कर देते हैं। तुम्हारी उसी वाणीका रसास्वादन करके तुम्हारी आज्ञाकारिणी दासी गोपियाँ मोहित हो रही हैं। दानवीर ! अब तुम अपना दिव्य अमृतसे भी मधुर अधर-रस पिलाकर हमें जीवन-दान दो छका दो ॥ ८ ॥ 
 
प्रभो ! तुम्हारी लीला कथा भी अमृतस्वरूपा है । विरहसे सताये हुए लोगोंके लिये तो वह जीवन-सर्वस्व ही है । बड़े-बड़े ज्ञानी महात्माओं-भक्त कवियोंने उसका गान किया है, वह सारे पाप-ताप तो मिटाती ही है, साथ ही श्रवणमात्रसे परम मङ्गल-परम कल्याणका दान भी करती है । वह परम सुन्दर, परम मधुर और बहुत विस्तृत भी है । जो तुम्हारी उस लीला-कथाका गान करते हैं, वास्तवमें भूलोकमें वे ही सबसे बड़े दाता हैं ।। ९ ॥ 
 
प्यारे ! एक दिन वह था, जब तुम्हारी प्रेमभरी हँसी और चितवन तथा तुम्हारी तरह-तरहकी क्रीडाओंका ध्यान करके हम आनन्दमें मग्न हो जाया करती थीं। 
 
उनका ध्यान भी परम मङ्गलदायक है। उसके बाद तुम मिले । तुमने एकान्तमें हृदयस्पर्शी ठिठोलियाँ की, प्रेमकी बातें कहीं। हमारे कपटी मित्र ! अब वे सब बातें याद आकर हमारे मनको क्षुब्ध किये देती हैं ॥ १० ॥
 
हमारे प्यारे स्वामी ! तुम्हारे चरण कमलसे भी सुकोमल और सुन्दर हैं । जब तुम गौओंको चरानेके लिये व्रजसे निकलते हो, तब यह सोचकर कि तुम्हारे वे युगल चरण कंकड़, तिनके और कुश-काँटे गड़ जानेसे कष्ट पाते होंगे, हमारा मन बेचैन हो जाता है । हमें बड़ा दुःख होता है ॥ ११ ॥ 
दिन ढलनेपर जब तुम वनसे घर लौटते हो, तो हम देखती हैं कि तुम्हारे मुखकमलपर नीली-नीली अलकें लटक रही हैं और गौओंके खुरसे उड़-उड़कर घनी धूल पड़ी हुई है । हमारे वीर प्रियतम ! तुम अपना वह सौन्दर्य हमें दिखा-दिखाकर हमारे हृदयमें मिलनकी आकाङ्क्षा-प्रेम उत्पन्न करते हो ॥ १२ ॥ 
 
प्रियतम ! एकमात्र तुम्ही हमारे सारे दुःखोंको मिटानेवाले हो । तुम्हारे चरणकमल शरणागत भक्तोंकी समस्त अभिलाषाओंको पूर्ण करनेवाले हैं। स्वयं लक्ष्मीजी उनकी सेवा करती हैं और पृथ्वीके तो वे भूषण ही हैं। 
 
आपत्तिके समय एकमात्र उन्हींका चिन्तन करना उचित है, जिससे सारी आपत्तियाँ कट जाती हैं। कुञ्जविहारी ! तुम अपने वे परम कल्याणस्वरूप चरणकमल हमारे वक्षःस्थलपर रखकर हृदयकी व्यथा शान्त कर दो ॥ १३॥
 
 वीरशिरोमणे ! तुम्हारा अधरामृत मिलनके सुखको, आकाङ्क्षाको बढ़ानेवाला प है ! वह विरहजन्य समस्त शोक-संतापको नष्ट कर देता है।  यह गानेवाली बाँसुरी भलीभाँति उसे चूमती रहती है।  जिन्होंने एक बार उसे पी लिया, उन लोगोंको फिर दूसरों और दूसरोंकी आसक्तियोंका स्मरण भी नहीं होता। 
 
वीर !अपना वही अधरामृत हमें वितरण करो, पिलाओ। प्यारे ! दिनके समय जब तुम वनमें विहार करनेके लिये चले जाते हो, तब तुम्हें देखे बिना हमारे लिये एक-एक क्षण युगके समान हो जाता है और जब तुम संध्या समय लौटते हो तथा घुघराली अलकोसे युक्त तुम्हारा परम सुन्दर मुखारविन्द हम देखती है, उस समय पलकों गिरना हमारे लिये भार हो जाता है और ऐसा जान पड़ता  है कि इन नेत्रोंकी पलकोंको बनानेवाला विधाता मूर्ख है ॥ १५ ॥ 
 
प्यारे श्यामसुन्दर ! हम अपने पति-पुत्र, भाईबन्धु और कुल-परिवारका त्याग कर, उनकी इच्छा और आज्ञाओंका उल्लङ्घन करके तुम्हारे पास आयी हैं । हम तुम्हारी एक-एक चाल जानती हैं, संकेत समझती हैं और तुम्हारे मधुर गानकी गति समझकर, उसीसे मोहित होकर यहाँ आयी हैं । 
 
कपटी ! इस प्रकार रात्रिके समय आयी हुई युवतियोंको तुम्हारे सिवा और कौन त्याग सकता है ॥ १६॥ 

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प्यारे ! एकान्तमें तुम मिलनकी आकाङ्क्षा, प्रेम-भावको जगानेवाली बातें करते थे । ठिठोली करके हमें छेड़ते थे । तुम प्रेमभरी चितवनसे हमारी ओर देखकर मुसकरा देते थे और हम देखती थीं तुम्हारा वह विशाल वक्षःस्थल, जिसपर लक्ष्मीजी नित्य-निरन्तर निवास करती हैं। तबसे अबतक निरन्तर हमारी लालसा बढ़ती ही जा रही है और हमारा मन अधिकाधिक मुग्ध होता जा रहा है ।। १७ ॥ 
 
प्यारे ! तुम्हारी’ यह अभिव्यक्ति व्रज-वनवासियोंके सम्पूर्ण दुःख-तापको नष्ट करनेवाली और विश्वका पूर्ण मङ्गल करनेके लिये है । हमारा हृदय तुम्हारे प्रति लालसासे भर रहा है । कुछ थोड़ी-सी ऐसी ओषधि दो, जो तुम्हारे निजजनोंके हृदयरोगको सर्वथा निर्मूल कर दे ॥ १८ ॥ 
 
तुम्हारे चरण कमलसे भी सुकुमार है । उन्हें हम अपने कठोर स्तनोंपर भी डरते-डरते बहुत धीरेसे रखती हैं कि कहीं उन्हें चोट न लग जाय ।  चरणोंसे तुम रात्रिके समय घोर जंगलमें छिपे-छिप म रहे हो ! क्या कंकड़, पत्थर आदिकी चोट लगनेसे उनम पीड़ा नहीं होती ? हमें तो इसकी सम्भावनामात्रसे ही चकर आ रहा है। हम अचेत होती जा रही हैं । श्रीकृष्ण श्यामसुन्दर ! प्राणनाथ ! हमारा जीवन तुम्हारे लिय । हम तुम्हारे लिये जी रही हैं, हम तुम्हारी हैं ॥१९॥
 

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