शिक्षाप्रद धार्मिक कहानी instructive religious story hindi
- महाप्रभुका कुष्ठरोगी से प्यार
जिन्होंने दयार्द्र होकर वासुदेव नामक पुरुष के गलित कुष्ठ को नष्ट करके उसे सुंदर रूप प्रदान किया और भगवत भक्ति देकर संतुष्ट किया, ऐसे धन्य जीवन श्री चैतन्य को हम नमस्कार करते हैं ।
श्री चैतन्य आंध्र देश के एक गांव में पधारे, वासुदेव उसी ग्राम में रहता था सारे अंगों में गलित कुष्ठ है, घाव हो रहे हैं और उन में कीड़े पड़ गए हैं । वासुदेव भगवान का भक्त है और मानता है कि यह कुष्ठ रोग भी भगवान का दिया हुआ है , इससे उसके मन में कोई दुख नहीं है ।
उसने सुना एक रूप लावण्य युक्त तरुण विरक्त सन्यासी पधारे हैं और वह कूर्मदेव ब्राह्मण के घर ठहरे हैं , उनके दर्शन मात्र से हृदय में पवित्र भावों का संचार हो जाता है और जीभ अपने आप हरी हरी पुकार उठती है ।
वासुदेव से रहा नहीं गया वह कुर्म देव ब्राम्हण के घर दौड़ा गया , उसे पता लगा कि श्री चैतन्य आगे की ओर चल दिए हैं ।वह जोर जोर से रोने लगा और भगवान से कातर प्रार्थना करने लगा ।
भगवान की प्रेरणा हुई, चैतन्यदेव थोड़ी ही दूर से लौट पड़े और कूर्मदेव के घर आकर वासुदेव को जबरदस्ती बड़े प्रेम से उन्होंने हृदय से लगा लिया ।
यह भी देखें आपके लिए उपयोगी हो सकता है…
-
धार्मिक कहानियाँ
-
दुर्गा-सप्तशती
-
विद्यां ददाति विनयं
-
गोपी गीत लिरिक्स इन हिंदी अर्थ सहित
-
भजन संग्रह लिरिक्स 500+ bhajan
-
गौरी, गणेश पूजन विधि वैदिक लौकिक मंत्र सहित
-
कथा वाचक कैसे बने ? ऑनलाइन भागवत प्रशिक्षण
वासुदेव पीछे की ओर हटकर बोला भगवन क्या कर रहे हैं, अरे मेरा शरीर घावों से भरा है, मवाद बह रहा है, कीड़े किलबिला रहे हैं, आप मेरा स्पर्ष मत कीजिए । आप का सोने सा शरीर मवाद से अपवित्र हो जाएगा, मैं बड़ा पापी हूं ।
मुझे आप छूइये नहीं, परंतु प्रभु क्यों सुनने लगे उसके शरीर से बड़े जोरों से चिपट गए और गदगद कण्ठ से बोले– ब्राम्हण देवता तुम जैसे भक्तों का स्पर्श करके मै स्वयं अपने को पवित्र करना चाहता हूं ।
प्रभु के अंगो का आलिंगन पाते ही वासुदेव के तन मन का सारा कुष्ठ सदा के लिए चला गया , उसका शरीर निरोग होकर, सुंदर स्वर्ण के समान चमक उठा । धन्य दयामय प्रभु !