maharas kavitta महारास
महारास
भगवानपि ता रात्री: शरदोत्फुल्ल्मल्लिकाः।
वीक्ष्य रन्तूंं मनश्चके योगमायामुपाश्रितः ॥
हे वंशी मम हित करन बन्दौ तोय शिर नाय ।
आज हिय अभिालाष मम लावौ सवन बुलाय ॥
मोहन वृन्दावन क्रीडत, कुँञ्जबन्यौ यह भाय।
शरद निशा जगमग रही, मोहन बैणु बजाय ॥
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