pooja kitne prakar ki hoti hai ? पूजा के प्रकार | पूजा के उपचार
अथ पूजनोपचाराः
● पूजन में प्रयोग की जाने वाली क्रिया विधि को पूजन – उपचार कहते हैं।
त्रयोपचार
गन्धाक्षत पुष्पाणि त्रयो दत्वा समर्चयेत्।।
पूजा है। गन्ध, अक्षत (चावल) तथा फूलमाला से की जाने वाली पूजा त्रयोपचार
पञ्चोपचार
गन्धपुष्पे धूपदीपौ नैवेद्यः पञ्चते क्रमात् ।।
गन्ध, पुष्प (माला) धूप, दीप तथा नैवेद्य (भोग) समर्पण पञ्चोपचार पूजा मानी जाती है।
दशोपचार
अर्घ्यं पाद्यं चाचमनं स्नानं वस्त्रनिवेदनम् ।
गन्धादयो नैवेद्यान्ता उपचारा दशक्रमात् ।।
(ज्ञान मालायां)
अर्घ्य, पाद्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवेद्य दशोपचार हैं।
षोडशोपचार
आवाहनाऽऽसने पाद्यमर्घ्यमाचमनीयकम् ।
स्नानं – वस्त्रोपवीतं च गन्धमाल्यान्यनुक्रमात् ॥ १ ॥
धूपं दीपं च नैवेद्यं ताम्बूलं च प्रदक्षिणा ।
पुष्पाञ्जलिरिति प्रोक्ता उपचारास्तु षोडश । । २ । ।
फलेन सफलावाप्तिः साङ्गता दक्षिणार्पणात् ‘ ।
(कर्मप्रदीपे)
आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, जनेऊ, गन्ध, फूल (माला), धूप, दीप, नैवेद्य, पान, प्रदक्षिणा (परिक्रमा) तथा पुष्पांजलि षोडश उपचार के अन्तर्गत आते हैं। साथ में पूजा की सफलता हेतु फल तथा साङ्गता हेतु दक्षिणा भी चढ़ाया जाता है।
त्रिंशदुपचार
अर्घ्यं पाद्यमाचमनं मधुपर्कमुपस्पृशम् ।
स्नानं नीराजनं वस्त्रमाचामं चोपवीतकम् ।।
पुनराचमनं भूषा दर्पणालोकनं ततः ।
गन्धपुष्पे धूपदीपौ नैवेद्यं च ततः क्रमात् ॥
पानीयं तोयमाचामं हस्तवासस्ततः परम् ।
ताम्बूलमनुलेपं च पुष्पदानं ततः पुनः । ।
गीतं वाद्यं तथा नृत्यं स्तुतिं चैव प्रदक्षिणाः ।
पुष्पाञ्जलि – नमस्कारौ त्रिंशोपचारमीरिताः । ।
(ज्ञानमालायाम्)
अर्घ्य, पाद्य, आचमन, मधुपर्क, आचमन, स्नान, नीराजन, वस्त्र, आचमन, जनेऊ, आचमन, अलंकार, दर्पण, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, जल आचमन, करोद्वर्त्तन, पान, अनुलेप, पुनः पुष्प, गीत, वाद्य, नृत्य, स्तुति, प्रदक्षिणा, पुष्पांजलि तथा नमस्कार तीस पूजोपचार कहे गये हैं ।
राजोपचार
ततः पञ्चामृताभ्यङ्गमङ्गस्योद्वर्त्तनं तथा ।
मधुपर्कं परिमल द्रव्याणि विविधानि च।।
पादुकान्दोलनादर्श व्यजनं छत्र चामरे |
वाद्यार्तिक्यं नृत्यगीत- शय्या – राजोपचारकाः ।।
अर्थात् षोडशोपचार पूजा के सहित, पञ्चामृतादि से स्नान, चंदनादि द्रव्यों से स्नान ( अंग सिंचन) मधुपर्क, नानापरिमलद्रव्य ( अबीर गुलाल सुगंधित द्रव्यादि) पादुका, दोला, व्यजन, छत्र, चामर, वाद्य, आरती, नृत्य, गीत तथा शय्या राजोपचार के अंतर्गत आते हैं।
मानसोपचार
पृथिव्यात्मक गन्ध, आकाशात्मक पुष्प, वाय्वात्मक धूप, तेजसात्मक दीप, अमृतात्मक नैवेद्य और सर्वात्मक पुष्पाञ्जलि को मन से कल्पना मात्र से समर्पित करना ही मानसोपचार पूजा है। तथा उक्त सभी उपचारों को मन से काल्पनिक समर्पण करते हुए देवता का ध्यान ही मानसोपचार पूजन है। (इति कर्मकाण्डप्रबोधे पूजनोपचाराः समाप्ताः)
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