Thursday, October 10, 2024
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प्रातः जागरणके पश्चात् स्नानसे पूर्वके कृत्य- pratah jagran ke bad kya karna chahie

प्रातः जागरणके पश्चात् स्नानसे पूर्वके कृत्य- pratah jagran ke bad kya karna chahie

प्रातः जागरणके पश्चात् स्नानसे पूर्वके कृत्य प्रात:काल उठनेके बाद स्नानसे पूर्व जो आवश्यक विभिन्न कृत्य हैं, शास्त्रोंने उनके लिये भी सुनियोजित विधि-विधान बताया है। गृहस्थको अपने नित्य कर्मोंके अन्तर्गत स्नानसे पूर्वके कृत्य भी शास्त्र- निर्दिष्ट-पद्धतिसे ही करने चाहिये; क्योंकि तभी वह अग्रिम षट्कर्मोंके करनेका अधिकारी होता है। अतएव यहाँपर क्रमश: जागरणकृत्य एवं स्नान- पूर्व-कृत्योंका निरूपण किया जा रहा है। –

ब्राह्म मुहूर्तमें जागरण – सूर्योदयसे चार घड़ी (लगभग डेढ़ घंटे) पूर्व ब्राह्ममुहूर्तमें ही जग जाना चाहिये । इस समय सोना शास्त्रमें निषिद्ध है।

– – करावलोकन – आँखोंके खुलते ही दोनों हाथोंकी हथेलियोंको देखते हुए निम्नलिखित श्लोकका पाठ करे –

कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।

करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम् ॥

(आचारप्रदीप)

‘हाथके अग्रभागमें लक्ष्मी, हाथके मध्यमें सरस्वती और हाथके मूलभागमें ब्रह्माजी निवास करते हैं, अतः प्रातः काल दोनों हाथोंका अवलोकन करना चाहिये ।’

प्रातः जागरणके पश्चात् स्नानसे पूर्वके कृत्य- pratah jagran ke bad kya karna chahie

* ब्राह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी ।

तां करोति द्विजो मोहात् पादकृच्छ्रेण शुद्ध्यति ॥

(आचारेन्दु, पृ० १७ में स्मृतिरत्नावलीका वचन )

ब्राह्ममुहूर्तकी निद्रा पुण्यका नाश करनेवाली है। उस समय जो कोई भी शयन करता है, उसे इस पापसे छुटकारा पानेके लिये पादकृच्छ्र नामक (व्रत) प्रायश्चित्त करना चाहिये। (रोगकी अवस्थामें या कीर्तन आदि शास्त्रविहित कार्योंके कारण इस समय यदि नींद आ जाय तो उसके लिये प्रायश्चित्तकी आवश्यकता नहीं होती ) ।

भूमि – वन्दना – शय्यासे उठकर पृथ्वीपर पैर रखनेके पूर्व पृथ्वी माताका अभिवादन करे और उनपर पैर रखनेकी विवशताके लिये उनसे क्षमा माँगते हुए निम्न श्लोकका पाठ करे-

समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते ।

विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ॥

‘समुद्ररूपी वस्त्रोंको धारण करनेवाली, पर्वतरूपस्तनोंसे मण्डित भगवान् विष्णुकी पत्नी पृथ्वीदेवि! आप मेरे पाद – स्पर्शको क्षमा करें ।

 

मंगल-दर्शन – तत्पश्चात् गोरोचन, चन्दन, सुवर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण, मणि आदि मांगलिक वस्तुओंका दर्शन करे तथा गुरु, अग्नि और सूर्यको नमस्कार करे । –

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माता-पिता, गुरु एवं ईश्वरका अभिवादन – पैर, हाथ-मुख धोकर कुल्ला करे । इसके बाद करे। इसके बाद रातका वस्त्र बदलकर आचमन करे। पुन: निम्नलिखित श्लोकोंको पढ़कर सभी अंगोंपर जल छिड़के। ऐसा करनेसे मानसिक स्नान हो जाता है।

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )
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