श्री राम कथा हिंदी Ram Katha in Hindi Lyrics
( भाग-3 )
✳ श्री राम कथा ✳
बाल्मीकि रामायण के प्रथम श्लोक में तीन विशेषण आचार्य के हैं , एक विशेषण शिष्य का है | देवर्षि नारद के तीन विशेषण, महर्षि बाल्मीकि का एक विशेषण |
तपः स्वाध्याय निरतं |
आचार्य को कैसा होना चाहिए तपस्वी भी होना चाहिए स्वाध्यायी भी होना चाहिए , केवल तपस्वी व्यक्ति भी आपके प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता और केवल स्वाध्यायी भी आपके प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता | श्रेष्ठ आचार्य वह है जिसमें तपस्या भी हो और स्वाध्याय भी हो–
तपश्च स्वाध्यायश्च तपः स्वाध्यायौतयोर्निरतं तप स्वाध्याय निरतं |
और दूसरा अर्थ है– तप कहते हैं ब्रह्म को, ब्रह्म के स्वाध्याय से निरंतर लगा रहे ऐसा आचार्य श्रेष्ठ आचार्य है अथवा तप कहते हैं वेद को जो वेद के स्वाध्याय में निरंतर लगा रहे ऐसा आचार्य श्रेष्ठ आचार्य होता है |
और दूसरा विशेषण है- वाग्विदां वरम् वाक शब्द के दो अर्थ होते हैं—-
उच्चते असौ इति वाक्-उच्चते अनया इति वाक |
जिसका उच्चारण किया जाए उस वेद को भी वाक कहते हैं और जिसकी कृपा से उच्चारण किया जाए उस सरस्वती को भी वाक् कहते हैं |विद् लृ धातु भी और विद् ज्ञाने धातु भी है , तो इसका अर्थ हुआ कि जो वेद विद थे ( जो वेदों को जानने वाले थे ) श्रेष्ठ थे ऐसे नारद जी आचार्य थे अथवा सरस्वती की कृपा लाभ को भी पाने वाले नारद जी थे |
आचार्य में दोनों होना चाहिए वेद का भी बोध हो और सरस्वती की कृपा भी हो वही श्रेष्ठ आचार्य होता है | और तीसरा विशेषण है–मुनि पुङ्गवम्
जो मनुष्य मननशील हो वह मुनि है |
मननाति इति मुनि पुङ्गव माने श्रेष्ठ, उस समय जितने भी मननशील लोग थे उसमें श्रेष्ठ थे देवर्षि नारद | एक बात और कहूं उपनिषद में कहा गया है–
तद् विज्ञानार्थं सगुरोमेवाभिगच्छेत
यदि विज्ञान पाना हो- विशेष ज्ञान पाना हो तो गुरु जी की शरण में जाओ ! कैसे गुरु की शरण में जाओ ? तो कहा– समितपांणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठं
जो श्रोत्रिय हो और ब्रह्मनिष्ठ हो, श्रोत्रिय गुरु | आचार्य उसे कहते हैं जिसको श्रुति माने वेद का ज्ञान हो और ब्रह्मनिष्ठ आचार्य उसे कहते हैं जिसे ब्रह्म का साक्षात्कार किया हो | श्रोत्रिय आचार्य श्रुति ज्ञान से शिष्य के संशय का उच्छेदन करते हैं और ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ब्रह्म साक्षात्कार कराकर शिष्य के जीवन के संशय का उन्मूलन कर देते हैं |और देवर्षि नारद श्रोत्रिय और ब्रह्मनिष्ठ दोनों प्रकार के आचार्य हैं
तपः स्वाध्याय निरतं और वाग्विदां वरम् |
यह दो विशेषण उनके श्रोत्रिय होने का प्रमाण है, और मुनिपुङ्गवम् उनके ब्रह्मनिष्ठ होने का प्रमाण है | और शिष्य को कैसा होना चाहिए कहा- तपस्वी होना चाहिए या वक्ता में तीन गुण हों |श्रोता को तपस्वी होना चाहिए-
तपो न्यासः न्यासः शरणागतिः |
श्रेष्ठ शिष्य वह है जो शरणागत हो अथवा श्रेष्ठ श्रोता वह है जिसने शरणागति ले ली हो जो वैष्णव हो , क्योंकि भागवत के महात्म्य में कहा गया है |
तो यहां पर तपस्वी एक तात्पर्य यह भी है जो वैष्णव है वह श्रेष्ठ श्रोता है | क्योंकि वह कथा सुनना जानता है और इस बाल्मीकि रामायण के श्रोता तो रामजी हैं, अभी इसकी चर्चा आगें आएगी दुनिया की जितनी कथाएं हुई हैं सबके श्रोता भक्त दिखाई देते हैं , लेकिन यह ऐसी कथा है बाल्मीकि रामायण की जिसके श्रोता स्वयं भगवान ही हैं |
एक बात और कहूं वेद का अधिकार हर किसी को प्राप्त नहीं है लेकिन वही वेद जब रामायण के रूप में अवतार लेकर के आए तो इसमें सब का अधिकार हो गया , जो फल वेद परायण से होता है वही फल बाल्मीकि रामायण के पारायण, श्रवण से मिलता है | तो तपस्वी बाल्मीकि ने देवर्षि नारद से शोलह प्रश्न पूछें कौन कौन–
एक बात और निवेदन कर दूं जिज्ञासा से ही हमारे भारतीय दर्शन का आरंभ होता है , दर्शन का तात्पर्य है वह ग्रंथ जिसके माध्यम से ईश्वर को देखा जा सके | दृश्यते अनेनेति दर्शनम् |
इसलिए हमारे यहां दर्शन ग्रंथ होते हैं, षड् शास्त्र होते हैं , षड् दर्शन होते हैं | तो निवेदन यह करना है, कि आप पाएंगे हमारे यहां का जो ब्रह्म सूत्र है, ब्रह्म सूत्र का अर्थ आप लोग समझते होंगे जैसे- जो बातें वैदिक ऋचाओं में लंबे लंबे वाक्यों में समझाई गई हैं, उन कई कई ऋचाओं को एक ही सूत्र में श्री वेदव्यास जी ने पिरोकर के ब्रह्म सूत्र की रचना की है |
अथवा जैसे आप लोग मैथमेटिक्स पढ़े होंगे उसमें अलजेब्रा,मैनश्योरेशन,त्रिकोणमिति पढ़ते हैं तो आपने अलजेब्रा में पड़ा- (a + b)2 = a2 + b2 + 2ab अपने एक सूत्र याद कर लिया तो सारे गणितीय सूत्र हल होते जाते हैं , वैसे ही ब्रह्म सूत्र का तात्पर्य है, जो ब्रह्म को हल कर दे सरलतम ढंग से सहज ढंग से | एक सूत्र आ गया तो आप धर्म के विज्ञान को समझ सकते हैं, और ब्रह्म सूत्र का आरंभ होता है-
अथातो ब्रह्म जिज्ञासा
तो जैसे वेदांत का आरंभ ब्रह्म जिज्ञासा से होता है वैसे बाल्मीकि रामायण का आरंभ भी ब्रह्म की जिज्ञासा से होता है | रामचरितमानस में भी ब्रह्म जिज्ञासा ही है–
राम कवनु प्रभु पूछहुं तोही
कहहि बुझाई कृपा निधि मोही |
अथवा
प्रथम सो कारण कहो बिचारे
निर्गुण ब्रह्म सगुण वपु धारे |
पुनि प्रभु कहेउ राम अवतारा
बाल चरित पुनि कहेउ उदारा |
कहेउ जथा जानकी ब्याही
राजा तजा सो दूषण काही |
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आदि लेकिन वेदांत की जिज्ञासा में जो उत्तर दिया गया वह है- जन्माद्यस्य यतः
हमारे आचार्य कहते हैं शुष्ठु उत्तर है | लेकिन बाल्मीकि रामायण की जिज्ञासा के बाद जो उत्तर दिया गया है यह सरस जिज्ञासा है क्योंकि यहां उत्तर में भगवान के गुणों की चर्चा की गई है और भगवान के गुण बड़े सरस होते हैं |
इसलिए वेदांत की ब्रह्म जिज्ञासा की अपेक्षा बाल्मीकि रामायण की ब्रह्म जिज्ञासा श्रेष्ठ है, ऐसा हमारे आचार्यों ने स्वीकार किया है |महर्षि बाल्मीकि ने पूछा इस समय वर्तमान में धरती पर गुणवान कौन है गुणवान का अर्थ होता है सीलवान कौन है |
गुण्यते आवत्यते आश्रितजनैः पुनः पुनः अनुसन्धियते इति गुणः स्वशिल्यम् |
श्री गोविंद राज जी ने गुण शब्द का अर्थ है शील से लिया है और राम जी के सील की बड़ी विशद विवेचना की गई है | एक निवेदन करूं एक घटना मिलती है हनुमन्नाटकं में इसका जिक्र है और बाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में भी इसका सूत्र है , रावण एक सेनापति के मरने के बाद में युद्ध करने राम जी से आ गया राम जी ने विभीषण से पूछा भाई यह कौन है ? मित्र यह कौन है ?
तो विभीषण ने कहा प्रभु यह तो भैया लंकेश हैं राम जी ने कहा अभी तो बड़े बड़े योद्धा हैं मेघनाथ,कुंभकरण हैं मध्य में युद्ध करने कैसे आ गया रावण ?
तो विभीषण जी ने कहा प्रभु यह अपने सेनापति से बहुत प्रेम करते थे इसलिए आ गए , राम जी ने कहा आया है तो लड़ने तो जाना पड़ेगा रामजी लड़ने आए राम जी ने रावण के छत्र चंवर को काट दिया सारथी को मार दिया रथ को भंग कर दिया, रावण निहत्था निहाल रणाङ्गण में खड़ा था रावण थर थर कांप रहा था रावण को लगा कि श्रीराम का अगला बांण मेरा प्राणांत कर देगा |
लेकिन जब बहुत क्षण व्यतीत हो गए रावण कांपता हुआ नेत्र खोला तो देखा मुस्कुराते हुए श्रीराम सामने खड़े थे , और भगवान श्री राम ने कहा रावण मै निहत्थे पर वार नहीं करता जाओ पूरा स्वस्थ होकर आना फिर मुझसे युद्ध करना रावण आज वापस आया, रात की बेला है महल की सबसे ऊपरी छत पर टहल रहा था पीछे से मंदोदरी ने कंधे पर हाथ रखा कहा महाराज आंखों में नींद नहीं है ?
रावण ने कहा मंदोदरी एक हृदय की बात कहूं मंदोदरी ने कहा- महाराज कहो , अच्छा यह बतलाओ दुनिया श्रीराम के विषय में क्या क्या कहती है मुझे बताओ ! अच्छा बताओ दुनिया कहती है ना कि पुत्र हो तो राम की तरह ? मंदोदरी ने कहा महाराज सच तो यही है दुनिया कहती है पुत्र हो तो श्रीराम की तरह |
रावण ने कहा मंदोदरी दुनिया कहती है ना कि भाई हो तो राम की तरह ?
मंदोदरी ने कहा हमारा हां सच तो यही है दुनिया कहती है भाई हो तो राम की तरह !
रावण मंदोदरी से पुनः कहा दुनिया कहती है ना मित्र हो तो राम की तरह ?
मंदोदरी ने कहा महाराज यह भी सत्य है दुनिया कहती है मित्र हो तो राम की तरह !
रावण ने कहा मंदोदरी आज रावण कहता है कि यदि शत्रु भी हो तो राम की तरह हो तो जीवन धन्य हो जाए | आज रावण का जीवन धन्य हो गया क्योंकि राम की तरह सत्रु मिला ,
राम जी की ऐसी शीलता है जिसने शत्रु के हृदय को भी जीत लिया |
राम जी की ऐसी शीलता है जिसने सत्रु के हृदय को भी जीत लिया |
वैरिव राम बड़ाई करहीं |
समुद्र पार जाना था दोनों लोग खड़े थे अपना भाई और शत्रु का भाई , राम जी ने पूछा कैसे समुद्र के पार जाऊं ? अपने भाई ने कहा बांणो से शोषित कर लो ! शत्रु के भाई ने कहा प्रार्थना करो , राम जी ने अपने भाई की बात नहीं मानी शत्रु के भाई की बात मान ली , तीन दिन तक बैठे रहे समुद्र सामने नहीं आया तब–
चापमान स्वामित्रे
लक्ष्मण लाओ धनुष मैं इस समुद्र का शोषण करूंगा, लखन भैया ने कहा भैया तीन दिन पहले तो हमारी बात नहीं मानी, आपने तब तो शत्रु के भाई की बात मान ली | आज अपने भाई की बात याद आ रही है , आपने लड़ाई के तीन दिन सत्रु को दिए, शत्रु सावधान हो गया होगा |
तो रामजी ने कहा लक्ष्मण रावण को जीतना बड़ी बात नहीं है , रावण को कभी भी जीत सकता हूं लेकिन इन तीन दिनों में मैंने विभीषण के हृदय को जीता है और यह ज्यादा महत्व देता है | हृदय पर जीत ज्यादा महत्वपूर्ण होती है और स्थल , स्थल पर तो रामजी की शीलता ने दुश्मनों के हृदय पर भी जीत प्राप्त कर ली है |
मित्र के हृदय को तो जीत ही लेते हैं , विभीषण ने देखा जिस प्रभु ने अपने भाई की बात नहीं मानी मेरी बात स्वीकार कर ली है, वह विभीषण कभी श्रीराम के विमुख हो ही नहीं सकता |
यह सब रामजी की नीतियां हैं और प्रत्येक नीति का परिपालन राम जी ने शीलता के साथ किया है, तो महाराज यह बताइए कि शीलवान कौन है-
वीर्यवान कौन है, पराक्रमवान कौन है, धर्मज्ञ कौन है, धर्म के तत्व को जानने वाला कौन है, किए के उपकार को भूलने वाला कौन नहीं है |
आज आप दुनिया में सौ उपकार कर दें लोगो का भूल जाएंगे एक अपकार कर दें याद रखेंगे | और राम जी का कोई सौ अपकार कर दे भूल जाएं और एक उपकार कर दे तो जीवन भर नहीं भूलते | कृतज्ञ कौन है , सत्य वाक्य कौन है, धृडवृत कौन है, चरित्र से युक्त कौन है ?
अपना ही दुनिया करती है | सर्वभूतेषु कोहित: | ऐसा कौन है, विद्वान कौन है, समर्थ कौन है,
एक प्रियललस्यन
कौन है और एक एक गुण राम जी के ब्रह्मत्व के प्रतिपालन के लिए है इसको सुना तो देवर्षि नारद ने कहा–
इक्ष्वाकु वंश प्रभवो रामानाम जनैः श्रुतः |
यह सारे गुण इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न भगवान श्रीराम में पाए जाते हैं | महर्षि बाल्मीकि को प्रश्न का उत्तर मिला वह आए , एक दिन अपने शिष्य भरद्वाज के साथ तमसा के तट पर स्नान करने आते हैं, प्रातः काल की सुमधुर वेला है, कल-कल निनाद करते हुए तमशा की धारा प्रवाहित हो रही है , वृक्षों के घोसले से जो पक्षी के बच्चे हैं वह झांक रहे हैं |
बाहर की ओर, जो पशुओं का वृंद है वह पूछ उठाकर इधर उधर भाग रहे हैं , जो तमसा के तट पर लगी वृक्षाबलिया हैं और प्रातः काल के पावन पवन के प्रवाह के कारण जब उसके पत्ते हिलते हैं, उससे सुमधुर ध्वनि प्रतीत होती है , जो महर्षि बाल्मीकि के मन को मुग्ध कर रही है | ऐसा प्राकृतिक सौंदर्य, ऐसी नैसर्गिक छटा…
महर्षि बाल्मीकि के हृदय को प्रफुल्लित कर रही है |
कभी प्रवाहित होते तमसा के जल को देखते, कभी पक्षियों के मधुर कलरव को सुनते , कभी फुदकते हुए पशुओं को देखकर खुश होते, जिधर भी दृष्टि जा रही थी बहुत मनोरम दृश्य था | उसी समय एक वृक्ष के ऊपर दृष्टि गई देखा एक क्रौंच पक्षी आपस में प्रेमालाप कर रहे हैं , मिथुनावस्था में हैं, जैसे महर्षि बाल्मीकि की दृष्टि गई सहसा एक सनसनाता हुआ तीर आया और नर क्रोन्च के हृदय को भेद कर दिया |
देखते ही देखते वह नर क्रौंच धड़ाम से धरती पर नीचे गिर गया, कुछ देर तडफा उसके बाद उसकी मौत हो गई, अपने क्रौंच को मरते देख करके वह क्रोंची जोर-जोर से विलाप करने लगी , जोर-जोर से रुदन करने लगी उसके करुण विलाप को सुनकर के महर्षि बाल्मीकि के हृदय से सहसा एक शोक प्रकट हुआ और यह शोक ही दुनिया का प्रथम श्लोक बन गया |
यह दुनिया का प्रथम श्लोक है, वेद की ऋचाओं के बाद दुनिया का प्रथम प्रकट होने वाला यह श्लोक है | संपूर्ण काव्य कानन का प्रथम बीजाक्षर है यह श्लोक, जैसे एक बीज में अनंत वृक्ष और उन अनंत वृक्षों में अनंत बीज- उन अनन्त बीजों में अनेकों वृक्ष छिपे होते हैं |
वैसे ही दुनिया के इस प्रथम सनातन काव्य बीज में अनेकसः काव्य वृक्ष छिपे हुए हैं | इसी को आधार मानकर संसार के सारे काव्य प्रकट हुए, उन समस्त काव्यों का जो सनातन बीज है, वह यह प्रथम श्लोक है |(मानसाद प्रतिष्ठां•)
इसी को लेकर सुमित्रानंदन पंत ने लिखा है–
दुनिया की पहली कविता तो पीड़ा से ही प्रगट हुई होगी , और सच है कविता का प्रकटीकरण और काव्य का सुप्रण हो या कहीं से कोई रचना प्रगट होती है, तो वह बिना पीड़ा के , बिना वेदना के प्रगट नहीं हो सकती | वेदना से ही काव्य का प्रकटीकरण होता है |
एक संत कह रहे थे- जीवन में वेद नहीं है तो बहुत घबराने की बात नहीं है , लेकिन यदि वेदना ना हो तो जीवन मुश्किल हो जाएगा | जीवन में वेदना का होना आवश्यक है और बाल्मीकि रामायण की जो उपलब्धि है वह हृदय में वेदना को प्रकट करती है |
बाल्मीकि रामायण की कथा हृदय को सम्बेदित बना देती है, और हमारे यहां कहा जाता है- तपस्या भी पाषाण तप हो तो उसका भी कोई मतलब नहीं है यदि हृदय में वेदना ना हो | वेदना से ही हृदय का दृवीकर होता है और व्यक्ति भक्त बनता है | जैसे–
भक्त को भात को संस्कृत में भक्त कहते हैं |
चावल की कठोरता खत्म हो जाए तो भात बनता है, वैसे ही हृदय की जब कठोरता खत्म होती है वेदनाओं से वह सच्चे अर्थ में भक्त बनता है और बाल्मीकि रामायण की कथा की उपलब्धि यह है , जीवन की कठोरता को खत्म करके हृदय की पाषाणता को खत्म करके उसको संबेदित करके सच्चे अर्थों में हमें भक्त बनाती है |
और भक्त होना ही वह पात्रता है जो सहजता से हमें परमात्मा की उपलब्धि करा दे | विष्णु सहस्त्रनाम में भगवान को काव्य कहा गया है भगवान का एक नाम ही काव्य है , और–
काव्य का प्रकटीकरण बेदना से होता है,
इसका मतलब परमात्मा को प्रगट करना हो तो हृदय में बेदना का होना आवश्यक है,और यह काव्य प्रगट हुआ|
यह बाल्मीकि रामायण वेद का अवतार है और महनीय महारग महान ग्रंथ है, इस दुनिया का प्रथम महाकाव्य है | इसके पूर्व केवल वैदिक वांग्मय हमारे जीवन में था , यह विश्व वांग्मय का प्रथम महाकाव्य कहलाया और महर्षि वाल्मीकि आदि कवि के नाम से अभिहित हुए |
गोस्वामी जी ने भी जो रामायण जी लिखी है उसमे आरती लिखी है, उसमें लिखा- व्यास आदि कवि वर्ज बखानी ! आदि कवि वर्य कौन है ? कहा आदि कविवर्य महर्षि बाल्मीकि हैं, और यदि महर्षि बाल्मीकि नहीं होते तो आज हमारे जीवन में इस रूप में रामकथा नहीं होती |