संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok

संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok

दाक्षिण्यं स्वजने दया परजने शाठ्यं सदा दुर्जने 
प्रीतिः साधुजने नयो नृपजने विद्वजनेष्वार्जवम्। 
शौर्यं शत्रुजने क्षमा गुरुजने नारीजने धूर्तता 
ये चैवं पुरुषाः कलासु कुशलास्तेष्वेव लोकस्थितिः॥
आत्मीय जनोंपर उदारता, दूसरोंपर दया, दुष्टोंसे शठता, साधुओंसे प्रीति, राजाओंसे नीति, विद्वानोंसे सरलता, शत्रुओंपर वीरता, बड़ोंपर क्षमा और स्त्रियोंसे चालाकी रखना-इन सब गुणोंमें जो निपुण हैं, उन्हींपर लोकमर्यादा निर्भर रहती है ॥
नीति श्लोक in sanskrit class 7
नीति श्लोक in sanskrit class 7
साधुस्त्रीणां दयितविरहे मानिनो मानभने
सल्लोकानामपि जनरवे निग्रहे पण्डितानाम्। 
अन्योद्रेके कुटिलमनसां निर्गुणानां विदेशे
भृत्याभावे भवति मरणं किन्तु सम्भावितानाम्॥
प्रियतम पतिके वियोगमें सती स्त्रियोंका, सम्मान-भङ्ग होनेपर प्रतिष्ठित पुरुषोंका,लोकापवाद होनेपर सत्पुरुषोंका, शास्त्रार्थमें पराजय होनेपर पण्डितोंका, दूसरोंका उत्कर्ष देखकर कुटिल हृदयवालोंका, विदेशमें गुणहीन मनुष्योंका और नौकर न रहनेपर अमीर लोगोंका मरण-सा हो जाता है॥
नीति श्लोक अर्थ सहित class 6
नीति श्लोक अर्थ सहित class 6

संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok

क्वचिद्रुष्टः क्वचित्तुष्टो रुष्टस्तुष्टः क्षणे क्षणे।
अव्यवस्थितचित्तस्य प्रसादोऽपि भयङ्करः॥

जो कभी रुष्ट होता है, कभी प्रसन्न होता है; इस प्रकार क्षण-क्षणमें रुष्ट और प्रसन्न होता रहता है, उस चञ्चलचित्त पुरुषकी प्रसन्नता भी भयङ्कर ही है।
नीति श्लोक अर्थ सहित
नीति श्लोक अर्थ सहित
अपमानं पुरस्कृत्य मानं कृत्वा तु पृष्ठतः।
स्वकार्यमुद्धरेत्प्राज्ञः कार्यध्वंसो हि मूर्खता॥
अपमानको आगे कर और सम्मानकी ओर दृष्टि न देकर बुद्धिमान्को अपना कार्य-साधन करना चाहिये; क्योंकि काम बिगाड़ना मूर्खता है॥
नीति श्लोक अर्थ सहित class 8
नीति श्लोक अर्थ सहित class 8

संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok

देवे तीर्थे द्विजे मन्त्रे दैवज्ञे भेषजे गुरौ। 
यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी॥
देवता, तीर्थ, ब्राह्मण, मन्त्र, ज्योतिषी, औषध और गुरुमें जिसकी जैसी भावना रहती है, उसे वैसी ही सिद्धि प्राप्त होती है ॥
नीति श्लोक अर्थ सहित class 10
नीति श्लोक अर्थ सहित class 10
नागो भाति मदेन कं जलरुहैः पूर्णेन्दुना शर्वरी
शीलेन प्रमदा जवेन तुरगो नित्योत्सवैर्मन्दिरम्।
वाणी व्याकरणेन हंसमिथुनैनद्यः सभा पण्डितैः
सत्पुत्रेण कुलं नृपेण वसुधा लोकत्रयं विष्णुना॥
गजराज मदसे, जल कमलोंसे, रात्रि पूर्ण चन्द्रसे, स्त्री शीलसे, घोड़ा वेगसे, मन्दिर नित्यके उत्सवोंसे, वाणी व्याकरणसे, नदी हंसके जोड़ेसे, सभा पण्डितोंसे, कुल सुपुत्रसे, पृथ्वी राजासे और त्रिलोकी भगवान् विष्णुसे सुशोभित होती है ॥
नीति श्लोक अर्थ सहित नेपाली
नीति श्लोक अर्थ सहित नेपाली

संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok

वृक्षं क्षीणफलं त्यजन्ति विहगाः शुष्कं सरः सारसाः
पुष्पं पर्युषितं त्यजन्ति मधुपा दग्धं वनान्तं मृगाः।
निर्द्रव्यं पुरुषं त्यजन्ति गणिका भ्रष्टश्रियं मन्त्रिणः
सर्वः कार्यवशाज्जनोऽभिरमते कस्यास्ति को वल्लभः॥
पक्षी फल न रहनेपर वृक्षको छोड़ देते हैं, सारस जल सूख जानेपर सरोवरका परित्याग कर देते हैं, भौरे बासी फूलको, मृग दग्ध वनको,वेश्या निर्धन पुरुषको तथा मन्त्रीगण श्रीहीन राजाको छोड़ देते हैं, सब लोग अपनेअपने स्वार्थवश ही प्रेम करते हैं, वास्तवमें कौन किसका प्रिय है? ॥
नीति शतक श्लोक अर्थ सहित
नीति शतक श्लोक अर्थ सहित
मित्रं स्वच्छतया रिपुं नयबलैर्लुब्धं धनैरीश्वरं
कार्येण द्विजमादरेण युवतिं प्रेम्णा समैर्बान्धवान्। 
अत्युग्रं स्तुतिभिर्गुरुं प्रणतिभिर्मूर्ख कथाभिर्बुधं
विद्याभी रसिकं रसेन सकलं शीलेन कुर्याद्वशम्॥
मित्रको स्वच्छता (निष्कपट हृदय) से जीते, शत्रुको नीतिबलसे, लोभीको धनसे, स्वामीको कार्यसे, ब्राह्मणको आदरसे, युवतीको प्रेमसे, बन्धुओंको समभावसे, अत्यन्त क्रोधीको स्तुतिसे, गुरुको विनयसे, मूर्खको बातोंसे, बुद्धिमान्को विद्यासे, रसिकको रसिकतासे और सभीको सुशीलतासे वशीभूत करे ॥
चाणक्य नीति श्लोक अर्थ सहित pdf
चाणक्य नीति श्लोक अर्थ सहित pdf
गुणिगणगणनारम्भे न पतति कठिनी सुसम्भ्रमाद्यस्य। 
तेनाम्बा यदि सुतिनी वद वन्ध्या कीदृशी नाम॥

 गुणीजनोंकी गणना आरम्भ करते समय जिसके लिये लेखनी शीघ्रतासे नहीं चलती, उस पुत्रसे यदि माता पुत्रवती कही जाय तो कहो वन्ध्या कैसी स्त्री होगी? ॥
नीति शतक के श्लोक अर्थ सहित pdf
नीति शतक के श्लोक अर्थ सहित pdf

संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok


वरं मौनं कार्यं न च वचनमुक्तं यदनृतं
वरं क्लैब्यं पुंसां न च परकलत्राभिगमनम्। 

वरं प्राणत्यागो न च पिशुनवाक्येष्वभिरुचि
वरं भिक्षाशित्वं न च परधनास्वादनसुखम्॥
चुप रहना अच्छा है पर मिथ्या वचन कहना अच्छा नहीं, पुरुषका नपुंसक हो जाना अच्छा है परन्तु परस्त्रीगमन अच्छा नहीं, प्राण परित्याग कर देना अच्छा है; परन्तु चुगुलोंकी बातों में रुचि रखना अच्छा नहीं, और भिक्षा माँगकर खा लेना अच्छा है; परन्तु दूसरोंके धनके उपभोगका सुख अच्छा नहीं है ।।
भर्तृहरि नीति शतक श्लोक अर्थ सहित
भर्तृहरि नीति शतक श्लोक अर्थ सहित

संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित niti shlok ka arth

पठतो नास्ति मूर्खत्वं जपतो नास्ति पातकम्। 
जाग्रतस्तु भयं नास्ति कलहो नास्ति मौनिनः॥
जो विद्याध्ययन करता है, उसमें मूर्खता नहीं रह सकती, जो जप करता है, उसके पाप नहीं रह सकते, जो जागरित है, उसको कोई भय नहीं सता सकता और जो मौनी है, उसका किसीसे कलह नहीं हो सकता॥
नीति शतक के श्लोक अर्थ सहित
नीति शतक के श्लोक अर्थ सहित
मातेव रक्षति पितेव हिते नियुक्ते 
कान्तेव चाभिरमयत्यपनीय खेदम्। 
लक्ष्मी तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्ति 
किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या॥
 कल्पलताके समान विद्या संसारमें क्या-क्या सिद्ध नहीं करती? माताके समान वह रक्षा करती है, पिताके समान स्वहितमें नियुक्त करती है, स्त्रीके समान खेदका परिहार करके आनन्दित करती है, लक्ष्मीकी वृद्धि करती है और दिशा-विदिशाओं में कीर्तिका विस्तार करती है ॥
नीति के श्लोक अर्थ सहित
नीति के श्लोक अर्थ सहित

संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok

उदारस्य तृणं वित्तं शूरस्य मरणं तृणम्। 
विरक्तस्य तृणं भार्या नि:स्पृहस्य तृणं जगत्॥
उदारके लिये धन, शूरवीरके लिये मरण, विरक्तके लिये स्त्री और नि:स्पृहके लिये जगत् तिनकेके तुल्य है॥
नीति श्लोक के रचनाकार कौन है
नीति श्लोक के रचनाकार कौन है
ललितान्तानि गीतानि कुवाक्यान्तं च सौहृदम्। 
प्रणामान्तः सतां कोपो याचनान्तं हि गौरवम्॥
गानका समसे, प्रेमका कटुवचनसे, सज्जनोंके क्रोधका प्रणाम करनेसे और गौरवका याचना करनेसे अन्त हो जाता है।
संस्कृत नीति श्लोक
संस्कृत नीति श्लोक
स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः। 
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥
मूर्ख अपने घरमें, समर्थ पुरुष अपने गाँवमें, राजा अपने देशमें और विद्वान् सर्वत्र ही पूजा जाता है ॥
नीति श्लोक इन संस्कृत
नीति श्लोक इन संस्कृत
अर्थातुराणां न गुरुर्न बन्धुः कामातुराणां न भयं न लज्जा। 
विद्यातुराणां न सुखं न निद्रा क्षुधातुराणां न रुचिर्न वेला॥
अर्थातुरों (स्वार्थियों) को न कोई गुरु होता है न बन्धु, कामातुरोंको न भय रहता है न लज्जा, विद्यातुरों (विद्याप्रेमियों) को न सुख रहता है न नींद तथा क्षुधातुरोंके लिये न स्वाद होता है न भोजन करनेका कोई नियत समय ही ॥
चाणक्य नीति में कितने श्लोक हैं
चाणक्य नीति में कितने श्लोक हैं

संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok

न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम्। 
धर्मो न वै यत्र च नास्ति सत्यं सत्यं न तद्यच्छलनानुविद्धम्॥
जिसमें वृद्ध न हों वह सभा नहीं, जो धर्मोपदेश नहीं करते वे वृद्ध नहीं, जिसमें सत्य न हो वह धर्म नहीं और जो छलयुक्त हो वह सत्य सत्य नहीं ।।
नीति श्लोक क्या है
नीति श्लोक क्या है
मात्रा समं नास्ति शरीरपोषणं चिन्तासमं नास्ति शरीरशोषणम्। 
भार्यासमं नास्ति शरीरतोषणं विद्यासमं नास्ति शरीरभूषणम्॥
माताके समान शरीरका पालन-पोषण करनेवाली, चिन्ताके समान देहको सुखानेवाली, स्त्रीके समान शरीरको सुख देनेवाली और विद्याके समान अङ्गका आभूषण दूसरा कोई नहीं है ॥
नीति श्लोक हिन्दी
नीति श्लोक हिन्दी
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्। 
वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥
हठात् कोई कार्य न कर बैठे; क्योंकि नासमझीसे भारी विपत्तियाँ आ पड़ती हैं और सोच-विचारकर करनेवालेकी ओर उसके गुणोंसे मोहित हो सम्पत्ति स्वयं दौड़ आती है ॥
नीति श्लोक का अर्थ
नीति श्लोक का अर्थ

संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok

विद्यातीर्थे जगति विबुधाः साधवः सत्यतीर्थे
गङ्गातीर्थे मलिनमनसो योगिनो ध्यानतीर्थे । 
धारातीर्थे धरणिपतयो दानतीर्थे धनाढ्या 
लज्जातीर्थे कुलयुवतयः पातकं क्षालयन्ते॥

संसारमें बुद्धिमान् जन विद्यारूपी तीर्थमें, साधु सत्यरूपी तीर्थमें, मलिन मनवाले गङ्गातीर्थमें, योगिजन ध्यानतीर्थमें, राजा लोग पृथ्वीतीर्थमें, धनी जन दानतीर्थमें और कुल-स्त्रियाँ लज्जातीर्थमें अपने पापोंको धोती हैं ।।
नीति शतक के श्लोक
नीति शतक के श्लोक

संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित niti shlok ka arth

सुलभाः पुरुषा लोके सततं प्रियवादिनः।
अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः॥ 

इस दुनियाँ में मीठी-मीठी बातें बनानेवाले बहुत पाये जाते हैं पर कड़वी और हितकारक वाणीके कहने तथा सुननेवाले दोनों ही दुर्लभ हैं ॥
चाणक्य नीति के श्लोक
चाणक्य नीति के श्लोक
सुजीर्णमन्नं सुविचक्षणः सुतः
सुशासिता स्त्री नृपतिः सुसेवितः।

सुचिन्त्य चोक्तं सुविचार्य यत्कृतं 
सुदीर्घकालेऽपि न याति विक्रियाम्
अच्छी प्रकार पचा हुआ अन्न, सुशिक्षित पुत्र, भली प्रकार शासनके अंदर रखी हुई स्त्री, अच्छी तरह सेवित राजा,विचारपूर्ण भाषण और समझ-बूझकर किया हुआ कर्म-इन सबमें बहुत काल बीत जानेपर भी दोष उत्पन्न नहीं होता ॥
नीति श्लोक संस्कृत में
नीति श्लोक संस्कृत में

संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok

उपकारः परो धर्मः परार्थं कर्म नैपुणम्। 
पात्रे दानं पर: कामः परो मोक्षो वितृष्णता॥
उपकार ही परमधर्म है, दूसरोंके लिये किया हुआ कर्म चातुर्य है, सत्पात्रको दान देना ही परम काम (काम्य वस्तु) है और तृष्णाहीनता ही परम मोक्ष है॥
नीति सुभाषित श्लोक संकलन संस्कृत में
नीति सुभाषित श्लोक संकलन संस्कृत में
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