गजराज मदसे, जल कमलोंसे, रात्रि पूर्ण चन्द्रसे, स्त्री शीलसे, घोड़ा वेगसे, मन्दिर नित्यके उत्सवोंसे, वाणी व्याकरणसे, नदी हंसके जोड़ेसे, सभा पण्डितोंसे, कुल सुपुत्रसे, पृथ्वी राजासे और त्रिलोकी भगवान् विष्णुसे सुशोभित होती है ॥
पक्षी फल न रहनेपर वृक्षको छोड़ देते हैं, सारस जल सूख जानेपर सरोवरका परित्याग कर देते हैं, भौरे बासी फूलको, मृग दग्ध वनको,वेश्या निर्धन पुरुषको तथा मन्त्रीगण श्रीहीन राजाको छोड़ देते हैं, सब लोग अपनेअपने स्वार्थवश ही प्रेम करते हैं, वास्तवमें कौन किसका प्रिय है? ॥
गुणीजनोंकी गणना आरम्भ करते समय जिसके लिये लेखनी शीघ्रतासे नहीं चलती, उस पुत्रसे यदि माता पुत्रवती कही जाय तो कहो वन्ध्या कैसी स्त्री होगी? ॥
नीति शतक के श्लोक अर्थ सहित pdf
संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok
वरं मौनं कार्यं न च वचनमुक्तं यदनृतं
वरं क्लैब्यं पुंसां न च परकलत्राभिगमनम्।
वरं प्राणत्यागो न च पिशुनवाक्येष्वभिरुचि
वरं भिक्षाशित्वं न च परधनास्वादनसुखम्॥
चुप रहना अच्छा है पर मिथ्या वचन कहना अच्छा नहीं, पुरुषका नपुंसक हो जाना अच्छा है परन्तु परस्त्रीगमन अच्छा नहीं, प्राण परित्याग कर देना अच्छा है; परन्तु चुगुलोंकी बातों में रुचि रखना अच्छा नहीं, और भिक्षा माँगकर खा लेना अच्छा है; परन्तु दूसरोंके धनके उपभोगका सुख अच्छा नहीं है ।।
जो विद्याध्ययन करता है, उसमें मूर्खता नहीं रह सकती, जो जप करता है, उसके पाप नहीं रह सकते, जो जागरित है, उसको कोई भय नहीं सता सकता और जो मौनी है, उसका किसीसे कलह नहीं हो सकता॥
नीति शतक के श्लोक अर्थ सहित
मातेव रक्षति पितेव हिते नियुक्ते
कान्तेव चाभिरमयत्यपनीय खेदम्।
लक्ष्मी तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्ति
किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या॥
कल्पलताके समान विद्या संसारमें क्या-क्या सिद्ध नहीं करती? माताके समान वह रक्षा करती है, पिताके समान स्वहितमें नियुक्त करती है, स्त्रीके समान खेदका परिहार करके आनन्दित करती है, लक्ष्मीकी वृद्धि करती है और दिशा-विदिशाओं में कीर्तिका विस्तार करती है ॥
नीति के श्लोक अर्थ सहित
संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok
उदारस्य तृणं वित्तं शूरस्य मरणं तृणम्।
विरक्तस्य तृणं भार्या नि:स्पृहस्य तृणं जगत्॥
उदारके लिये धन, शूरवीरके लिये मरण, विरक्तके लिये स्त्री और नि:स्पृहके लिये जगत् तिनकेके तुल्य है॥
नीति श्लोक के रचनाकार कौन है
ललितान्तानि गीतानि कुवाक्यान्तं च सौहृदम्।
प्रणामान्तः सतां कोपो याचनान्तं हि गौरवम्॥
गानका समसे, प्रेमका कटुवचनसे, सज्जनोंके क्रोधका प्रणाम करनेसे और गौरवका याचना करनेसे अन्त हो जाता है।
संस्कृत नीति श्लोक
स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥
मूर्ख अपने घरमें, समर्थ पुरुष अपने गाँवमें, राजा अपने देशमें और विद्वान् सर्वत्र ही पूजा जाता है ॥
नीति श्लोक इन संस्कृत
अर्थातुराणां न गुरुर्न बन्धुः कामातुराणां न भयं न लज्जा।
विद्यातुराणां न सुखं न निद्रा क्षुधातुराणां न रुचिर्न वेला॥
अर्थातुरों (स्वार्थियों) को न कोई गुरु होता है न बन्धु, कामातुरोंको न भय रहता है न लज्जा, विद्यातुरों (विद्याप्रेमियों) को न सुख रहता है न नींद तथा क्षुधातुरोंके लिये न स्वाद होता है न भोजन करनेका कोई नियत समय ही ॥
चाणक्य नीति में कितने श्लोक हैं
संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok
न सा सभा यत्र न सन्ति वृद्धा वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम्।
धर्मो न वै यत्र च नास्ति सत्यं सत्यं न तद्यच्छलनानुविद्धम्॥
जिसमें वृद्ध न हों वह सभा नहीं, जो धर्मोपदेश नहीं करते वे वृद्ध नहीं, जिसमें सत्य न हो वह धर्म नहीं और जो छलयुक्त हो वह सत्य सत्य नहीं ।।
नीति श्लोक क्या है
मात्रा समं नास्ति शरीरपोषणं चिन्तासमं नास्ति शरीरशोषणम्।
माताके समान शरीरका पालन-पोषण करनेवाली, चिन्ताके समान देहको सुखानेवाली, स्त्रीके समान शरीरको सुख देनेवाली और विद्याके समान अङ्गका आभूषण दूसरा कोई नहीं है ॥
नीति श्लोक हिन्दी
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥
हठात् कोई कार्य न कर बैठे; क्योंकि नासमझीसे भारी विपत्तियाँ आ पड़ती हैं और सोच-विचारकर करनेवालेकी ओर उसके गुणोंसे मोहित हो सम्पत्ति स्वयं दौड़ आती है ॥
संसारमें बुद्धिमान् जन विद्यारूपी तीर्थमें, साधु सत्यरूपी तीर्थमें, मलिन मनवाले गङ्गातीर्थमें, योगिजन ध्यानतीर्थमें, राजा लोग पृथ्वीतीर्थमें, धनी जन दानतीर्थमें और कुल-स्त्रियाँ लज्जातीर्थमें अपने पापोंको धोती हैं ।।
नीति शतक के श्लोक
संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित niti shlok ka arth
सुलभाः पुरुषा लोके सततं प्रियवादिनः।
अप्रियस्य च पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः॥
इस दुनियाँ में मीठी-मीठी बातें बनानेवाले बहुत पाये जाते हैं पर कड़वी और हितकारक वाणीके कहने तथा सुननेवाले दोनों ही दुर्लभ हैं ॥
चाणक्य नीति के श्लोक
सुजीर्णमन्नं सुविचक्षणः सुतः
सुशासिता स्त्री नृपतिः सुसेवितः।
सुचिन्त्य चोक्तं सुविचार्य यत्कृतं
सुदीर्घकालेऽपि न याति विक्रियाम्॥
अच्छी प्रकार पचा हुआ अन्न, सुशिक्षित पुत्र, भली प्रकार शासनके अंदर रखी हुई स्त्री, अच्छी तरह सेवित राजा,विचारपूर्ण भाषण और समझ-बूझकर किया हुआ कर्म-इन सबमें बहुत काल बीत जानेपर भी दोष उत्पन्न नहीं होता ॥
नीति श्लोक संस्कृत में
संस्कृत नीति श्लोक sanskrit mein niti shlok
उपकारः परो धर्मः परार्थं कर्म नैपुणम्।
पात्रे दानं पर: कामः परो मोक्षो वितृष्णता॥
उपकार ही परमधर्म है, दूसरोंके लिये किया हुआ कर्म चातुर्य है, सत्पात्रको दान देना ही परम काम (काम्य वस्तु) है और तृष्णाहीनता ही परम मोक्ष है॥
नीति सुभाषित श्लोक संकलन संस्कृत में
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