तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते श्रुतेन शीलेन कुलेन कर्मणा ॥
जिस प्रकार घिसने, काटने, तपाने और पीटने-इन चार प्रकारोंसे सुवर्णकी परीक्षा होती है उस प्रकार विद्या, कुल, शील और कर्म-इन चारोंसे ही पुरुषकी परीक्षा होती है ॥
niti ke shlok
अनभ्यासे विषं विद्या अजीर्णे भोजनं विषम्।
विषं गोष्ठी दरिद्रस्य भोजनान्ते जलं विषम्॥
बिना अभ्यास किये पढ़ी हुई विद्या, बिना पचे ही किया हुआ भोजन, दरिद्रके लिये [धनिकोंकी] सभा और भोजनसमाप्तिके समय जल पीना-ये सब विषके समान हैं ॥
chanakya niti ke shlok
मातृवत्परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत्।
आत्मवत्सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः।।
जो पर-स्त्रियोंको माताके समान, पर-धनको मिट्टीके ढेलेके समान तथा समस्त प्राणियोंको अपने ही समान देखता है, वही वास्तवमें पण्डित है ॥
दान देनेसे ही हाथकी शोभा है, गहनोंसे नहीं, स्नान करनेसे ही शुद्धि होती है, चन्दनसे नहीं; सम्मानसे तृप्ति होती है, केवल भोजनसे नहीं और ज्ञानसे ही मुक्ति होती है, केवल वेषभूषा धारण करनेसे नहीं ॥
niti sambandhi panch shlok likhiye
संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित niti shlok ka arth
कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययागमौ।
कस्याहं का मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः॥
समय कैसा है? मित्र कौन हैं? देश कौन-सा है? आय और व्यय कितना है? मैं किसका हूँ? और मेरी शक्ति कितनी है? इसका बार-बार विचार करना चाहिये ॥
niti sambandhit panch shlok likhiye
अत्यन्तकोपः कटुका च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम्।
प्राणी गुणोंसे उत्तम होता है, ऊँचे आसनपर बैठकर नहीं, कोठेके कँगूरेपर बैठा हुआ कौआ क्या गरुड हो जाता है? ॥
niti shlok mein kitne pad hain
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥
मधुर वचनके बोलनेसे सब जीव सन्तुष्ट होते हैं, इस कारण वैसा ही बोलना चाहिये, वचनमें क्या दरिद्रता है?॥
niti shlok sanskrit mein
पुस्तकेषु च या विद्या परहस्तेषु यद्धनम्।
उत्पन्नेषु च कार्येषु न सा विद्या न तद्धनम्॥
जो विद्या पुस्तकोंमें ही रहती है और जो धन दूसरोंके हाथोंमें रहता है, काम पड़ जानेपर न वह विद्या है और ने वह धन ही है।
sanskrit mein niti shlok
संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित sanskrit niti shlok with hindi meaning
सन्तोषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने।
त्रिषु चैव न कर्तव्योऽध्ययने जपदानयोः॥
अपनी स्त्री, भोजन और धन-इन तीनोंमें सन्तोष करना चाहिये। पढ़ना, जप और दान-इन तीनोंमें सन्तोष कभी नहीं करना चाहिये॥
niti shlok sanskrit
विप्रयोर्विप्रवह्नयोश्च दम्पत्योः स्वामिभृत्ययोः।
अन्तरेण न गन्तव्यं हलस्य वृषभस्य च॥ दो ब्राह्मणोंके, ब्राह्मण और अग्निके, पति-पत्नीके, स्वामी तथा भृत्यके एवं हल और बैलके बीचसे होकर नहीं जाना चाहिये ॥
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पादाभ्यां न स्पृशेदग्नि गुरुं ब्राह्मणमेव च।
नैव गां च कुमारी च न वृद्धं न शिशुं तथा॥
अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गौ, कुमारी, वृद्ध और बालक-इनको पैरसे न छूना चाहिये ॥
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संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित sanskrit niti shlok with hindi meaning
सदा प्रसन्नमुख रहना, प्रिय बोलना, सुशीलता, आत्मीय जनोंमें प्रेम, सज्जनोंका सङ्ग और नीचोंकी उपेक्षा–ये स्वर्गमें रहनेवालोंके लक्षण हैं ॥
20 niti shlok in sanskrit
राजा धर्ममृते द्विजः पवमृते विद्यामृते योगिनः
कान्ता सत्त्वमृते हयो गतिमृते भूषा च शोभामृते।
योद्धा शूरमृते तपो व्रतमृते गीतं च पद्यान्यते
भ्राता स्नेहमृते नरो हरिमृते लोके न भाति क्वचित्॥
धर्म बिना राजा, पवित्रताके बिना द्विज, ब्रह्मविद्याके बिना योगी, सतीत्वके बिना स्त्री, चाल बिना घोड़ा, सुन्दरताके बिना गहना, बिना वीरके योद्धा, बिना व्रतके तप, पद्यके बिना गान, स्नेहके बिना भाई और भगवत्प्रेमके बिना मनुष्य, संसारमें कहीं सुशोभित नहीं होते ॥
10 नीति श्लोक
संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित sanskrit niti shlok with hindi meaning
जिसके शरीरमें समस्त लोकोंको प्रिय लगनेवाले शीलका विकास होता है उसके लिये आग शीतल हो जाती है, समुद्र छोटी नदी बन जाता है, मेरु छोटा-सा शिलाखण्ड प्रतीत होता है, सिंह सामने आते ही हिरन हो जाता है, साँप मालाका काम देता है और विष अमृत बन जाता है।
विदुर नीति श्लोक अर्थ सहित
येषां न विद्या न तपो न दानं
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मृत्युलोके भुवि भारभूता
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति॥
जिनमें न विद्या है, ज्ञान है, न शील है, न गुण है और न धर्म है, वे मृत्युलोकमें पृथ्वीके भार हुए मनुष्यरूपसे मानो पशु ही घूमते-फिरते हैं ॥
संस्कृत नीति श्लोक pdf
केयूरा न विभूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वला
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्धजाः।
पुरुषको न तो केयूर (बाजूबंद), न चन्द्रमाके समान उज्ज्वल हार, न स्नान, न उबटन, न फूल और न सजाये हुए बाल ही सुशोभित कर सकते हैं, पुरुष यदि संस्कृत वाणीको धारण करे तो एकमात्र वही उसकी शोभा बढ़ा सकती है, इसके अतिरिक्त और जितने भूषण हैं, वे तो सब नष्ट हो जाते हैं, सच्चा भूषण तो वाणी ही है॥
चाणक्य नीति श्लोक अर्थ सहित
संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित sanskrit niti shlok with hindi meaning
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतं
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः॥
विद्या मनुष्यका एक विशेष सौन्दर्य है, छिपा हुआ सुरक्षित धन है, विद्या, भोग, यश और सुखको देनेवाली है, विद्या गुरुओंकी भी गुरु है, वह परदेशमें जानेपर स्वजनके समान सहायता करनेवाली है। विद्या ही सबसे बड़ी देवता है, राजाओंमें विद्याका ही सम्मान होता है, धनका नहीं, विद्याके बिना तो मनुष्य पशुके समान है॥
संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित
रे रे चातक सावधानमनसा मित्र क्षणं श्रूयता-
मम्भोदा बहवो वसन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः।
अरे मित्र पपीहे ! सावधान मनसे जरा एक क्षण सुन तो! अरे, आकाशमें मेघ तो बहुत हैं, किन्तु सब एक-से ही नहीं हैं, कोई तो बार-बार वर्षा करके पृथिवीको गीली कर देते हैं और कोई व्यर्थ ही गरजते हैं। तू जिस-जिसको देखे उसी-उसीके सामने दीन वचन मत बोल ॥
चाणक्य नीति श्लोक
मौनान्मूकः प्रवचनपटुश्चाटुलो जल्पको वा
धृष्टः पार्वे वसति च तदा दूरतश्चाप्रगल्भः।
क्षान्त्या भीरुर्यदि न सहते प्रायशो नाभिजातः
सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः॥
मनुष्य चुप रहनेसे गूंगा, चतुर वक्ता होनेसे चापलूस या बकवादी कहलाता है, इसी प्रकार यदि पासमें बैठे हो तो ढीठ, दूर रहे तो दब्बू,क्षमा रखे तो डरपोक और अन्याय न सह सके तो प्रायः बुरा समझा जाता है; इसलिये सेवाधर्म बहुत ही कठिन है, इसे योगी भी नहीं जान पाते ॥
पांच नीति श्लोक
संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित sanskrit niti shlok with hindi meaning
गुणवदगुणवद्वा कुर्वता कार्यमादौ
परिणतिरवधाया यत्नतः पण्डितेन।
अतिरभसकृतानां कर्मणामाविपत्ते
र्भवति हृदयदाही शल्यतुल्यो विपाकः॥
अच्छा या बुरा किसी भी कामका आरम्भ करनेवाले विद्वान्को पहले ही यत्नपूर्वक उसके भले-बुरे परिणामका निश्चय कर लेना चाहिये; क्योंकि बहुत जल्दमें किये गये कर्मोंका दुष्परिणाम मरनेतक मनुष्यके हृदयमें जलन पैदा करनेवाला और शूलके समान चुभनेवाला होता है ॥
ऐश्वर्यकी शोभा सुजनतासे है, शूरवीरताकी शोभा कम बोलना है, ज्ञानकी शान्ति, शास्त्राध्ययनकी नम्रता, धनकी सत्पात्रको दान करना, तपकी अक्रोध, समर्थकी क्षमा, धर्मकी दम्भहीनता और सबकी शोभा सुशीलता है, जो सभी सद्गुणोंकी हेतु है ॥
नीति श्लोक in sanskrit class 8
संस्कृत नीति श्लोक अर्थ सहित niti shlok ka arth
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