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shri bhagwat katha story hindi
श्री मद भागवत महापुराण सप्ताहिक कथा
( अथ अष्टादशो अध्याय: )
राजा परीक्षित को श्रृंगी ऋषि का श्राप–एक दिन राजा परीक्षित वन में शिकार के लिए गए वहां हिरणों के पीछे दौड़ते दौड़ते वे बहुत थक गए उन्हें भूख और प्यास लगी इधर-उधर जलाशय देखने पर भी नहीं मिला वह पास ही एक ऋषि के आश्रम में घुस गए, वहां एक मुनि ध्यान में बैठे थे उनसे राजा ने जल मांगा जब मुनि ने कोई जवाब नहीं दिया तो उन्होंने अपने को अपमानित समझ क्रोध से मुनि के गले में एक मरा हुआ सांप डाल दिया और अपनी राजधानी को लौट आए |
उन शमीक मुनि का पुत्र श्रृंगी तेजस्वी बालक ने जब देखा कि राजा परीक्षित ने मेरे पिता के गले में सांप डाल दिया है वे क्रोधित होकर बोले—-
श्लोक-1,18,37
कौशिकी नदी का जल शाप दे दिया इस मर्यादा उल्लंघन करने वाले कुलांगार को आज से सातवें दिन तक्षक सर्प डसेगा वह पिता के पास आकर जोर जोर से रोने लगा इससे मुनि की समाधि खुल गई पिता को श्राप सहित सारी बात बता दी जिसे सुनकर ऋषि को बड़ा दुख हुआ बे बोले परीक्षित श्राप योग्य नहीं थे, वह बड़े धर्मात्मा राजा हैं |
इति अष्टादशो अध्यायः
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( अथैकोनविंशो अध्यायः )
परीक्षित का अनशन ब्रत और शुकदेव जी का आगमन—- राजधानी में पहुंचने पर राजा परीक्षित को अपने उस निंदनीय कर्म का बड़ा पश्चाताप हुआ और सोचने लगा मुझे इसका बड़ा दंड मिलना चाहिए इतने में उसे ज्ञात हुआ कि ऋषि कुमार ने उन्हें तक्षक द्वारा डसे जाने का श्राप दे दिया है | सुनकर वे बड़े प्रसन्न हुए कि मेरे पाप का प्रायश्चित हो गया उन्होंने अपने पुत्र जन्मेजय को राज्य का भार देकर स्वयं अनशन व्रत लेकर गंगा तट पर जाकर बैठ गए वहां अन्य ऋषि मुनि लोग भी आने लगे—–
श्लोक-1,19,9-10
यह सब ऋषि भी गंगा तट पर आ गए राजा ने सब को प्रणाम किया और सब का आशीर्वाद प्राप्त किया और पूछा अल्पायु व्यक्ति के लिए क्या करना योग्य है ?
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प्रश्न का उत्तर देने के अधिकारी तो अभी आने की तैयारी में है , जब श्रोता परीक्षित के जन्म की कथा भागवत में है | वक्ता श्री सुकदेव जी के जन्म की कथा नहीं है , फिर भी विद्वान जन अन्य संहिताओं के आधार पर सुनाते हैं जो यहां दी जा रही है |
गोलोक धाम में राधा जी का पालतू सुक, जब जब भगवान के साथ माता जी अवतार लेती हैं उनका प्रिय सुक भी अवतार लेकर धरती पर आता है |shri bhagwat katha story hindi एक समय कैलाश पर नारद जी पधारे शिवजी तो कहीं भ्रमण पर गए थे अकेली पार्वती मिली नारद बोले माता जी आपका भी क्या जीवन है केवल शिवजी के लिए सारा संसार छोड़कर जंगल में रहती हैं,
वह भी आपको अकेली छोड़कर ना जाने कहां चले जाते हैं,
लगता है आपके प्रति उनका सच्चा प्रेम नहीं है | पार्वती बोली यह बात मैंने उन से पूछी थी उन्होंने बताया कि वे मुझे इतना चाहते हैं कि मेरे एक सौ आठ जन्मों के सिरों की माला बनाकर अपने गले में धारण करते हैं |
नारद बोले यह तो सत्य है किंतु क्या आपने यह रहस्य पूछा कि क्यों आपके तो एक सौ आठ जन्म हो गए और उनका एक भी जन्म नहीं हुआ ?
बोली यह बात तो कभी मेरे ध्यान में ही नहीं आई अब मैं इस रहस्य को जानकर रहूंगी नारद जी तो चले गए | शिव जी के आने पर यह रहस्य शिव जी से पूछा पहले तो शिव जी ने बताने मैं आना कानी की किंतु जब पार्वती ने हट किया तो उन्होंने अमर कथा सुनाने का निश्चय किया और पार्वती को लेकर अमरनाथ क्षेत्र में आ गए ,shri bhagwat katha story hindi उन्होंने तीन ताली बजाकर पशु ,पक्षी को वहां से भगा दिया और पार्वती वहां अमर कथा सुनने लगी शिव जी ने समाधि लगाकर ज्यों ही कथा कहना प्रारंभ किया पार्वती को नींद आ गई पेड़ में तोते का अंडा था जिसमें से बच्चा निकल कर सुनने लगा और बीच-बीच मे हूंकार भी भरने लगा | कथा पूर्ण हुई शिव जी की समाधि खुली देखा पार्वती तो सो रही हैं,
फिर कथा किसने सुनी इतने में तोते का बच्चा पंख फड़फड़ कर उड़ गया |
यही श्री सुकदेव जी थे , शिवजी ने देखा पार्वती कथा की अधिकरिणी नहीं थी अतः उसे कथा नहीं मिली , अधिकारी उसे सुनकर चला गया | श्री सुकदेव जी कथा सुनकर सीधे वृंदावन भगवान के दर्शन के लिए गए जहां एक कदम के नीचे भगवान बैठे थे ,पेड़ पर तोता कृष्ण कृष्ण करने लगा भगवान बोले मुझे प्राप्त करने के लिए पहले राधा जी की कृपा प्राप्त करनी होगी ,
वहां से उड़कर राधा जी की शरण मैं गया माता अपने बिछड़े हुए पुत्र को पहचान गई अपने हस्त कमल पर बैठाया और कृपा कर कृष्ण मंत्र दिया सुकदेव सनाथ हो गए वे वहां से उड़कर व्यास आश्रम में जहां व्यास पत्नी चतुर्थ दिन का स्नान कर बैठी थी | उन्हें जम्हाई आई और सुकदेव मुख मार्ग से उनके गर्भ मैं प्रवेश कर गए और बारह वर्ष तक गर्भ से बाहर नहीं आए |
जब भगवान की आज्ञा हुई सुकदेव गर्भ से बाहर आए और जन्म लेते ही वन की ओर चल दिए, व्यास जी हे पुत्र पुत्र कहते हुए पीछे पीछे दौड़े किंतु सुकदेव नहीं रुके निर्गुण ब्रह्म की उपासना करने लगे | उनको लाने के लिए व्यास जी ने अपने कुछ शिष्यों को आज्ञा दी वे शिष्य सुकदेव जी के समीप गए और सगुण भक्ति का गान करने लगे और भगवान के गुणों का वर्णन करने लगे |
श्लोक- (सौन्दर्य)-वर्हा पीडं• (माधुर्य)-नौमिड्यते• (शौर्य)-कदा वृन्दा• (दयालुता)-अहो वकीयं• !
भगवान के इन गुणों को सुनकर श्री सुकदेव उठकर उनके पास आ गए और बोले और सुनायें, शिष्यों ने कहा और सुनना है तो हमारे साथ चलें ऐसे अठारह हजार श्लोक की भागवत आपकी प्रतीक्षा कर रही है | इस प्रकार श्री सुकदेव जी को लेकर शिष्य आश्रम आ गये, पिताजी को प्रणाम कर भागवत का अध्ययन किया अध्ययन के पश्चात परीक्षा के लिए उन्हें जनक जी के पास भेजा गया वे जनक जी के यहां गए द्वारपाल ने जनक जी को खबर दी की सुकदेव जी पधारे हैं | जनक बोले खड़े रहें जब समय होगा बुला लेंगे सात दिन तक वे द्वार पर खड़े रहे जरा भी विचलित नहीं हुए , अंत में जनक आकर उनके चरणों में गिर गए आप परमहंस आपकी कोई क्या परीक्षा ले सकता है | इस प्रकार परीक्षा में सफल होकर पिता के पास आ गए |
गंगा तट पर जहां मुनियों के साथ परीक्षित बैठे हैं वहां के लिए प्रस्थान किया वहां पहुंचने पर सब खड़े हो गए श्री सुकदेव जी को ऊंचे आसन पर बैठाकर उनकी पूजा की सब लोग गाने लगे | सबने सुकदेव जी की इस प्रकार स्तुति की हाथ जोड़कर परीक्षित बोले—
श्लोक-1,19,37
मैं आपसे परम सिद्धि के स्वरूप और के संबंध में प्रश्न कर रहा हूं , जो पुरुष सर्वथा मरणासन्न है उसे क्या करना चाहिए ? साथ ही यह भी बतावे मनुष्य मात्र को क्या करना चाहिए ? किसका श्रवण ,जप, स्मरण और किस का भजन करें ?किस का त्याग करें ?
इति एकोनविंशो अध्यायः
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✳ इति प्रथम स्कन्ध सम्पूर्णम् ✳
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