वराह अवतार की कथा / varaha avatar story

वराह अवतार की कथा / varaha avatar story

(२) श्रीवराह-अवतारकी कथा-

ब्रह्मासे सृष्टिक्रम प्रारम्भ करनेकी आज्ञा पाये हुए स्वायम्भुव मनुने पृथ्वीको प्रलयके एकार्णवमें डूबी हुई देखकर उनसे प्रार्थना की कि आप मेरे और मेरी प्रजाके रहनेके लिये पृथ्वीके उद्धारका प्रयत्न करें, जिससे मैं आपकी आज्ञाका पालन कर सकूँ। ब्रह्माजी इस विचारमें पड़कर कि पृथ्वी तो रसातलमें चली गयी है, इसे कैसे निकाला जाय, वे सर्वशक्तिमान् श्रीहरिकी शरण गये।

उसी समय विचारमग्न ब्रह्माजीकी नाकसे अंगुष्ठप्रमाण एक वराह बाहर निकल पड़ा और क्षणभरमें पर्वताकार विशालरूप गजेन्द्र-सरीखा होकर गर्जन करने लगा। शूकररूप भगवान् पहले तो बड़े वेगसे आकाशमें उछले । उनका शरीर बड़ा कठोर था, त्वचापर कड़े-कड़े बाल थे, सफेद दाढ़ें थीं, उनके नेत्रोंसे तेज निकल रहा था।

उनकी दाढ़ें भी अति कर्कश थीं। फिर अपने वज्रमय पर्वतके समान कठोर-कलेवरसे उन्होंने जलमें प्रवेश किया। बाणोंके समान पैने खुरोंसे जलको चीरते हुए वे जलके पार पहुँचे। रसातलमें समस्त जीवोंकी आश्रयभूता पृथ्वीको उन्होंने वहाँ देखा।

पृथ्वीको वे दाढ़ोंपर लेकर बाहर आये। जलसे बाहर निकलते समय उनके मार्गमें विघ्न डालनेके लिये महापराक्रमी हिरण्याक्षने जलके भीतर ही उनपर गदासे प्रहार करते हुए आक्रमण कर दिया। भगवान्ने उसे लीलापूर्वक ही मार डाला।

श्वेत दाढ़ोंपर पृथ्वीको धारण किये, जलसे बाहर निकले हुए तमाल वृक्षके समान नीलवर्ण वराहभगवान्को देखकर ब्रह्मादिकको निश्चय हो गया कि ये भगवान् ही हैं। वे सब हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे। ॥

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