भागवत महापुराण कथा-8 bhagwat katha in hindi

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bhagwat katha all part 335 adhyay
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भागवत महापुराण कथा bhagwat katha in hindi

भाग-8

( अथ पंचमो अध्यायः )

विदुर जी का प्रश्न और मैत्रेय जी का सृष्टि क्रम वर्णन—

भागवत,श्लोक-3.5.2
संसार में सब लोग सुख के लिए ही कर्म करते हैं किंतु ना उन्हें सुख ही मिलता है और ना दुख ही दूर होता है, बल्कि उससे भी उनके दुख की वृद्धि हि होती है ! अतः इसके विषय में क्या करना उचित है यह आप मुझे बताइए ? उन सर्वेश्वर ने संसार की उत्पत्ति स्थिति और संहार करने के लिए अपनी माया शक्ति को स्वीकार कर रामकृष्ण अवतारों द्वारा जो अनेक अलौकिक लीलाएं की है वह मुझे सुनाइए ! मैत्रेय मुनि कहते हैं—-

भागवत,श्लोक-3.5.23
सृष्टि रचना के पूर्व समस्त आत्माओं की आत्मा एवं एक पूर्ण परमात्मा ही थे ना दृष्टा ना दृश्य सृष्टि काल में अनेक व्यक्तियों के भेद से जो अनेकता दिखाई पड़ती है वह भी नहीं थी क्योंकि उनकी इच्छा अकेले रहने की थी !

 इसके पश्चात भगवान की एक से अनेक होने की इच्छा हुई तो सामने माया देवी प्रकट हुई भगवान ने माया के गर्भ में अपना अंश स्थापित किया उससे महतत्व उत्पन्न हुआ महतत्ऩ के विच्छिप्त होने पर सात्विक, राजस, तामस तीन प्रकार के अहंकार प्रगट हुए , भगवान ने सात्विक अहंकार से देवताओं की सृष्टि की, राजसी अहंकार से इंद्रियों की दस इंद्रियों को प्रकट किया, तामस अहंकार से क्रमसः शब्द, आकाश, स्पर्श, वायु ,रूप, अग्नि, रस, जल, गंध, पृथ्वी, पांच तन्मात्रा सहित पंच भूतों को उत्पन्न किया, किंतु वे सब मिलकर भी जब सृष्टि रचना में असमर्थ रहे तो भगवान से प्रार्थना की , प्रभु हम सृष्टि रचना करने में असमर्थ हैं |

इति पंचमो अध्यायः
 

( अथ षष्ठो अध्यायः )

विराट शरीर की उत्पत्ति– मैत्रेय जी बोले भगवान ने जब देखा कि मेरी महतत्व आदि शक्तियां असंगठित होने के कारण विश्व रचना के कार्य में असमर्थ हैं, तब उन्होंने उन सब को मिलाकर एक कर दिया जिससे विराट पुरुष की उत्पत्ति हुई | जिसमें चराचर जगत विद्यमान है सब जीवो को साथ लेकर विराट पुरुष एक हजार दिव्य वर्षों तक जल में पड़ा रहा फिर भगवान के जगाने पर उसके प्रथम मुख प्रकट हुआ जिसमें अग्नि ने प्रवेश किया, जिससे वाक इंद्री प्रगट हुई |

फिर विराट पुरुष के तालू उत्पन्न हुआ जिसमें वरुण ने प्रवेश किया जिससे रसना पैदा हुई | उसके बाद नथुने पैदा हुए जिसमें दोनों अश्विनी कुमारों ने प्रवेश किया जिससे घ्राणेन्द्रिय पैदा हुई | उसके बाद आंखें पैदा हुई जिसमें सूर्य ने प्रवेश किया जिससे नेत्रेद्रिंय प्रगट हुई | फिर त्वचा पैदा हुई जिसमें वायु ने प्रवेश लिया जिससे स्पर्श शक्ति पैदा हुई | फिर कान पैदा हुये है जिसमें दिशाओं ने प्रवेश किया, जिससे शब्द प्रगट हुआ | फिर हाथ पैर लिंग गुदा आदि पैदा हुए फिर बुद्धि, हृदय आदि पैदा हुए |

इति षष्ठो अध्यायः

भागवत महापुराण कथा bhagwat katha in hindi

( अथ सप्तमो अध्यायः )

विदुर जी के प्रश्न– विदुर जी बोले भगवन भगवान तो अवाप्त काम हैं, माया के साथ उनका संबंध कैसे संभव है , वे सृष्टि को रचते हैं पालन करते हैं और अंत में संघार भी करते हैं | ऐसा खेल वे क्यों खेलते हैं , आप अपनी ब्रह्मादिक विभूतियों का वर्णन भी सुनाइए |

इति सप्तमो अध्यायः

( अथ अष्टमो अध्यायः )

ब्रह्मा जी की उत्पत्ति—  सृष्टि से पूर्व में जब भगवान समस्त सृष्टि को अपने उदर में लेकर योगनिद्रा में शेष शैया पर शयन कर रहे थे भगवान की काल शक्ति ने उन्हें जगाया तो उनकी नाभि से रजोगुण रूपी कमल निकला उस कमल नाल से स्वयं भगवान ही ब्रह्मा के रूप में प्रगट हुए, जब ब्रह्माजी ने चारों ओर दृष्टि डाली तो उनके चार मुख हो गए , जब ब्रह्मा जी को चारों और कोई नहीं दिखा तो सोचने लगे मैं कौन हूं कहां से आया हूं यह सोच वह कमल नाल से अपने आधार को खोजते हुए नीचे गए किंतु बहुत काल तक भी वे उसे खोज नहीं पाए तब वह वापस स्थान पर आ गए और अपने आधार का ध्यान करने लगे , तो शेषशायी नारायण के दर्शन हुए ब्रह्माजी उनकी स्तुति करने लगे |

इति अष्टमो अध्यायः
 

( अथ नवमो अध्यायः )

ब्रह्मा जी द्वारा भगवान की स्तुति समस्त जगत के रचयिता पालक और संघार करता भगवान मैं आपको पहचान नहीं सका मैं ही क्या बड़े-बड़े मुनि जी आप के मर्म को नहीं जान पाते मैं आपको नमस्कार करता हूं |

इति नवमो अध्याय:
 

( अथ दसमो अध्यायः )

दस प्रकार की सृष्टि का वर्णन– विदुर जी के पूछने पर मैत्रेय जी ने दस प्रकार की सृष्टि का वर्णन किया | पहली सृष्टि महतत्व की, दूसरी अहंकार की , तीसरी भूत वर्ग ,चौथी इंद्रियों की, पांचवी देवताओं की ,छठी अविद्या कि यह प्राकृतिक हैं |  अब चार विकृत सृष्टियां हैं उनमें पहली वृक्षों की , दूसरी पशु पक्षियों की, नवी सृष्टि मनुष्यों की , दसवीं सृष्टि देवताओं की है |

इति दसमो अध्यायः

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( अथ एकादशो अध्यायः )

मन्वंतरादि काल विभाग का वर्णन—  मैत्रेय जी बोले सृष्टि का सबसे सूक्ष्म अंश परमाणु होता है , दो परमाणु को एक अणु, तीन अणु का एक त्रसरेणु होता है , जाली के छिद्र में से आने वाले सूर्य के प्रकाश में उड़ते हुए जो कड़ दिखाई पड़ते हैं वे त्रसरेणु हैं,एक त्रसरेणु को पार करने में सूर्य को जो समय लगता है उसे त्रुटि कहते हैं , सौ त्रुटि का एक वेध है , तीन वेध का एक लव, तीन लव का एक निमेश , तीन निमेश का एक क्षण, पांच क्षण की एक काष्ठा, पन्द्रह काष्ठा का एक लघु, पन्द्रह लघु का एक दंड , दो दंड का एक मुहूर्त होता है,  छः या सात नाडी का एक प्रहर होता है, रात दिन में आठ पहर होते हैं, पन्द्रह दिन का एक पक्ष होता है, दो पक्ष का एक मास , दो मास का एक ऋतु, छः मास का एक अयन , दो अयन का एक वर्ष , पितरों का एक दिन एक मास का , देवताओं का एक दिन एक वर्ष का, एक सौ वर्ष की आयु मनुष्य की मानी गई है , एक वर्ष में सूर्य इस भूमंडल की परिक्रमा करता है |

हे विदुर– कलियुग का प्रमाण चार लाख बत्तीस हजार वर्ष का है, द्वापर का प्रमाण आठ लाख चौंसढ हजार वर्ष का है , त्रेता का प्रमाण बारह लाख छ्यान्नवे हजार वर्ष का है और सतयुग का प्रमाण सत्रह लाख अठ्ठाइस हजार वर्ष का है |
यह चतुर्युगी लगभग इकहत्तर बार घूम जाती है वह एक मनु का कार्यकाल है | ऐसे चौदह मनु के कार्यकाल का ब्रह्मा का एक दिन होता है, उतनी ही बड़ी ब्रह्मा की रात होती है जो प्रलय काल है | ब्रह्मा जी की आधी आयु को परार्ध कहते हैं अभी तक पहला परार्ध बीत चुका है दूसरा चल रहा है |

इति एकादशो अध्यायः
 

( अथ द्वादशो अध्यायः )

सृष्टि का विस्तार– सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने सनक , सनंदन सनातन, सनतकुमार चार ऋषि प्रगट हुए | ब्रह्मा जी ने इन्हें सृष्टि करने की आज्ञा दी किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया अतः ब्रह्मा जी को क्रोध आ गया वह रूद्र रूप में प्रगट हो गया , ब्रह्मा जी ने उन्हें भी सृष्टि की आज्ञा दी उन्होंने अपने अनुरूप भूत प्रेतों की सृष्टि करदी जो स्वयं ब्रह्मा जी को ही खाने को उद्यत हो गई , तब ब्रह्मा बोले देव तुम्हारी सृष्टि इतनी ही बहुत है , फिर ब्रह्मा जी ने दस पुत्र मरीचि, अत्रि ,अंगिरा, पुलह, पुलस्त्य, कृतु, भृगु, वशिष्ठ, दक्ष, नारद पैदा किए, उनके हृदय से धर्म, पीठ से अधर्म प्रकट हुआ |

छाया से कर्दम पैदा हुए , इसके पश्चात स्त्री पुरुष का जोड़ा उत्पन्न हुआ | जिसका नाम स्वयंभू मनु शतरूपा रानी था | स्वयंभू मनु के तीन कन्या दो पुत्र पैदा हुए,  देवहूति, आकूति ,प्रसूति तीन कन्या उत्तानपाद, प्रियव्रत दो पुत्रों से सारा संसार भर गया |

इति द्वादशो अध्यायः
श्री भागवत महापुराण की हिंदी सप्ताहिक कथा जोकि 335 अध्याय ओं का स्वरूप है अब पूर्ण रूप से तैयार हो चुका है और वह क्रमशः भागो के द्वारा आप पढ़ सकते हैं कुल 27 भागों में है सभी भागों का लिंक नीचे दिया गया है आप उस पर क्लिक करके क्रमशः संपूर्ण कथा को पढ़कर आनंद ले सकते हैं |

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