भक्तिदेवीका श्रृंगार bhaktamal katha
श्रद्धाई फुलेल औ उबटनौ श्रवण कथा मैल अभिमान अंग अंगनि छुड़ाइये।
मनन सुनीर अन्हवाइ अंगुछाइ दया नवनि वसन पन सोधो लै लगाइये।
आभरन नाम हरि साधु सेवा कर्णफूल मानसी सुनथ संग अंजन बनाइये।
भक्ति महारानीको सिंगार चारु बीरी चाह रहै जो निहारि लहै लाल प्यारी गाइये॥३॥
शृंगारित रूप विशेष आकर्षक होता है, अत: इष्टदेवको प्रसन्न करनेके लिये टीकाकारने इस कवित्तमें श्रीभक्तिदेवीके शृंगारका वर्णन एक रूपकके द्वारा किया है। भक्तिदेवीके श्रीविग्रहकी निर्मलताके लिये श्रद्धारूपी फुलेलसे शुष्कता दूरकर कथाश्रवणरूपी उबटन लगाइये और अहंकाररूपी मैलको प्रत्येक अंगसे छुड़ाइये।
फिर मननके सुन्दर जलसे स्नान कराकर दयाके अंगोछेसे पोंछिये। उसके बाद नम्रताके वस्त्र पहनाकर भक्तिमें प्रतिज्ञारूपी सुगन्धित द्रव्य लगाइये। फिर नाम-संकीर्तनरूप अनेक आभूषण, हरि और साधुसेवाके कर्णफूल तथा मानसी सेवाकी सुन्दर नथ पहनाइये। फिर सत्संगरूपी अंजन लगाइये।
जो भक्तिमहारानीका इस प्रकार शृंगार करके फिर उन्हें अभिलाषारूपी बीड़ा (पान) अर्पण करके उनके सुन्दर स्वरूपका दर्शन करता रहे, वह श्रीप्रिया-प्रियतमको प्राप्त करता है। ऐसा सन्तों एवं शास्त्रोंने गाया है॥३॥
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