Table of Contents
सर्वदेव पूजा पद्धति sarvdev puja paddhati pdf
सर्वदेव पूजा पद्धति
विषयानुक्रमणिका
१. भूमिका
२. अथ देवपूजापद्धति: प्रारम्भः
३. स्वस्तिवाचनम्
४. सङ्कल्पः
५. गणपतिपूजनम्
६. वरुणकलशपूजनम्
७. षोडशमातृकापूजनम्
१०. नवग्रहस्थापनम्
१३. पुण्याहवाचनम्
१४. आयुष्यमन्त्रजपम्
१५. नान्दीमुखश्राद्धम्
१६. अधिप्रत्यधिदेवतालोकपालदिक्पालवास्तुक्षेत्रपालाद्यावाहनपूजनम्
१७. प्रधानदेवतापूजनम्
१८. बलिदानम्
१९. नौ ग्रहों का ध्यान
२०. श्रीनवग्रह-स्तोत्रम्
२१. नवग्रह – कवच
२२. आरती
अथ देवपूजापद्धतिः प्रारम्भः
प्रात:काल स्नान सन्ध्योपासनादि नित्यकर्म के पश्चात् अथवा शुभ मुहूर्त में सपत्नीक यजमान शुद्धवस्त्र धारण कर ऊन या कुशा के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर, दीप जलाकर गायत्री या इस मन्त्र से शिखा – बन्धन करे –
यजमान के ललाट पर तिलक करें-
बाह्याभ्यन्तरशुद्धिः
बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ से अपने ऊपर जल छिड़कते हुए निम्नलिखित मन्त्र पढ़ें-
ॐ केशवाय नमः । ॐ नारायणाय नमः । ॐ माधवाय नमः । आचमन के बाद ॐ गोविन्दाय नमः । जल से हाथ धोकर गायत्री मन्त्र से प्राणायाम करें।
जल छिड़क कर इस मन्त्र से आसन शुद्धि करें।
आसन के नीचे ॐ भूर्भुवः स्वः शक्राय नमः बोलकर जल से त्रिकोण लिखकर मस्तक पर लगावें ।
पवित्रीधारणम्
दाहिनी अनामिका में दो कुश की तथा बायीं में तीन की पवित्री धारण करें –
स्वस्तिवाचनम्
कर्मपात्र के नीचे चावल तथा उसके जल में गन्ध अक्षत पुष्प डालकर वरुण और गंगादि नदियों का आवाहन करें ।
इसी कर्मपात्र के जल से कुशपवित्रक के द्वारा ॐ अपवित्रः पवित्रो वा इस मन्त्र से पूजा की सभी सामग्री तथा स्थान का प्रोक्षण कर इसी जल को सङ्कल्पादि सभी पूजाकार्यों में लें ।
दाहिने हाथ में जल, चन्दन, चावल, पुष्प और दक्षिणा लेकर सङ्कल्प करें ।
सङ्कल्पः
ब्राह्मण शर्माहं, क्षत्रिय वर्माहं, वैश्य गुप्तोहं इस प्रकार बोले । दूसरे के लिये किया जाये तो ( अमकनाम्नः प्रतिनिधिभूतोऽहं ) तथा ‘करिष्यामि कहें।
पुनः जल लेकर कर्मांग देवताओं के पूजन का संकल्प करें-
तदङ्गत्वेन गणपतिपूजनं कलशार्चनं स्वस्तिपुण्याहवाचनं मातृकापूजनं नान्दीश्राद्धम् आचार्यादिवरणानि अग्निस्थापनपूर्वकं सूर्यादिनवग्रहाणां स्थापनं पूजनं च करिष्ये ।
तत्रादौ दीपपूजनं शंखघण्टार्चनं दिग्रक्षणं च करिष्ये ।
दीपपूजनम्
शंखपूजनम्
ॐ भूर्भुवः स्वः शंखस्थदेवतायै नमः आवाहयामि । सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि नमस्करोमि ।।
प्रार्थना
घण्टापूजनम्
दिग् रक्षणम्
गणपतिपूजनम्
आवाहनम् पूगीफल ( मौली लपेटी हुई सुपारी) में- अक्षत पुष्प से महागणपति का आवाहन करें-
आसनम् (हाथ में फूल लेकर )
पाद्यम् (पात्र में जल लेकर)
आचमनीयम् (पात्र में जल लेकर )
स्नानम् (पात्र में जल लेकर)
पश्चामृतस्नानम्
शुद्धोदकस्नानम्’
वस्त्रम्
यज्ञोपवीतम्
गन्धम्
अक्षताः
पुष्पम्
दूर्वांकुरान्
नानापरिमलद्रव्यम्
धूपम्
ॐ भू० सिद्धिबुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणपतये नमः। धूपम् आघ्रापयामि ।।
नैवेद्यम्
ऋतुफलम्
ताम्बूलम्
नीराजनम्
मन्त्रपुष्पम्
विशेषार्घ्यम्
प्रार्थना
अनेन कृतेन पूजनेन श्रीमन्महागणपतिः प्रीयतां न मम । तत्सत् परमेश्वरार्पणमस्तु ।।
वरुणकलशपूजनम्
दाएं हाथ से कलश का स्पर्श करें-
सप्तधान्य
कलशस्थापन
कलश में जल
ॐ व्वरुणस्योत्तम्भनमसि व्वरुणस्यस्कम्भसर्जनी स्थोव्वरुणस्यऽ ऋतसदन्यसि व्वरुणस्यऽऋतसदनमसि व्वरुणस्य ऋत सदनमासीद ॥
कलश में चन्दन
कलश में सर्वोषधि
कलश में दूर्वा
कलश में पश्चपल्लव
कलश में सप्तमृत्तिका
कलश में सुपारी
कलश में पश्चरत्न
कलश में स्वर्ण
कलश में वस्त्र
कलश में नारियल सहित पूर्णपात्र
वरुण का आवाहन
कलश में देवता, नदियों तथा तीर्थों का आवाहन करें-
आवाहन के पश्चात् हाथ में चावल लेकर वरुण की प्रतिष्ठा करें-
ॐ मनोजूति०॥ कलशे वरुणाय नमः। वरुणः सुप्रतिष्ठितो वरदो भव।। वरुण का पूर्वोक्त विधि के अनुसार षोडशोपचार या पंचोपचार’ पूजन कर प्रार्थना करें-
गन्धपुष्पे धूपदीपौ नैवेद्यं तथैव च ।
अर्पणम्
षोडशमातृकापूजनम्
१६अक्षत पुञ्जों में एक-एक चावल छोड़ते हुए नाम मन्त्र से गणपति पूर्वक गौरी आदि १६ मातृकाओं का आवाहन एवं स्थापन करें।
आवाहनम्
ॐ गणपतये नमः गणपतिमावाहयामि ।
ॐ देवसेनायै नमः देवसेनामावा० ।
यथाशक्ति पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन के पश्चात् पुष्प लेकर प्रार्थना करें।
अर्पणम्
सप्तघृतमातृकापूजनम्
आवाहनम्
ॐ श्रियै नमः श्रियमावाहयामि स्थापयामि ।
यथाशक्ति पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन कर प्रार्थना करें-
अर्पणम् (जल लेकर भूमि पर छोड़ें )
अनेन कृतेन पूजनेन श्रियादिसप्तघृतमातरः प्रीयन्तां न मम ।।
आचार्यादिवरणम्
जलाक्षतदक्षिणावस्त्रादि लेकर आचार्यादि ब्राह्मणों का वरण संकल्प करें-
अमुकगोत्रः अमुकशर्मा यजमानः अस्मिन् अमुककर्मणि एभिः वरणद्रव्यैः आचार्यत्वेन (ब्रह्मत्वेन, ऋत्विक्त्वेन…… ) त्वामहं वृणे । वृतोऽस्मि ॥
यजमान ब्राह्मणों की गन्धाक्षतपुष्प से पूजा कर वरण करे-
ब्राह्मणों के हाथ में इस मन्त्र से मौली बाँधें-
आचार्य यजमान का इस मन्त्र से रक्षाबन्धन करें-
अग्निस्थापनम्
तीन कुशाओं से हवन वेदी पर मार्जनकर ईशान में छोड़ दें। गोमय और जल से वेदी का लेपन करें । स्रुवा से तीन रेखा करें। रेखा के ऊपर की मिट्टी उठाकर ईशान में छोड़ दें। तीनों रेखाओं के ऊपर जल छोड़ें। पञ्चभूसंस्कार पूर्वक अग्नि का स्थापन करें-
नवग्रहस्थापनम्
चन्द्रावाहनम्
मङ्गलावाहनम्
बुधावाहनम्
बृहस्पत्यावाहनम्
शुक्रस्यावाहनम्
शनैश्चरावाहनम्
राहोरावाहनम्
केतोरावाहनम्
प्रतिष्ठापनम् ‘
ॐ मनोजूति० सूर्यादिनवग्रहेभ्यो नमः । सूर्यादिनवग्रहाः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।। सूर्यादिनवग्रहपूजा कर प्रार्थना करें-
प्रार्थना
अर्पणम्
अनेन कृतेन पूजनेन सूर्यादिनवग्रहाः प्रीयन्ताम् ।।
अथ होमप्रकरणम्
कुशकण्डिका
यजमान या आचार्य अग्नि (होम वेदी) के दक्षिण में ब्रह्मा को आसन पर बैठाकर त्वं ब्रह्मा भव ऐसा कहे तथा ब्रह्मा भवामि कहे ।
जैसे – कुशा पवित्रछेदनार्थ, प्रोक्षणीपात्र, आज्यस्थाली (घृतपात्र), चरुस्थाली’ पाँच सम्मार्जन कुशा, सात उपयमन कुशा, तीन समिधाएँ, स्रुवा, घी, पूर्णपात्र, नवग्रहसमिधा और हवनसामग्री आदि उपयोगी वस्तुएँ।
तत्पश्चात् अधो मुख स्रुवा को अनि में तपाकर सम्मार्जन कुशा के अग्रभाग से मुख का तथा मूल से बाहरी भाग का मार्जन कर प्रणीता जल से प्रोक्षण करें तथा संमार्जन कुशा अग्नि में छोड़ दें।
ॐ प्रजापतये स्वाहा ( मन में बोलकर), इदं प्रजापतये न मम ॥
ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदमिन्द्राय न मम ॥
गणेश जी को एक आहुति दें-
ॐ गणानान्त्वा० स्वाहा ॥
नवग्रहों को नवग्रह समिधाओं से आहुति दें।
ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने० स्वाहा॥
ॐ बृहस्पते० स्वाहा॥
ॐ केतुं कृण्वन्न० स्वाहा ॥
तत्पश्चात् आवाहित देवों तथा प्रधान देव की आहुति देकर, अग्नि पूजन करके स्विष्टकृद् होम तथा प्रायश्चित्त नवाहुति करें-
ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा । इदं अग्नये स्विष्टकृते न मम ।।
ॐ भूः स्वाहा। इदमग्नये न मम ।।
ॐ प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापतये न मम ॥
पूर्णाहुतिहोम:
स्रुचि (पात्र) में घी और सामग्री से युक्त नारियल या सुपारी लेकर पूर्णाहुति करें-
भस्मधारणम्
ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेः ललाट में।
प्रोक्षणी पात्र में रखा हुआ घी यजमान को खिलाकर आचमन करायें । तत्पश्चात् ब्रह्मा के लिए पूर्णपात्र दान निम्न संकल्प बोलकर करें-
इसके बाद प्रणीता को भूमि पर उलटा कर उपयमन कुशाओं से प्रणीता जल को यजमान के शिर पर छिड़कें-
उपयमन कुशाओं को अग्नि में छोड़ दें। यजमान दक्षिणा संकल्प करे-
ब्राह्मणभोजनसंकल्पः
क्षमा प्रार्थना
आचार्य यजमान को निम्नलिखित मन्त्रों से तिलकाशीर्वाद देकर देवताओं का विसर्जन करे।
तिलकाशीर्वाद:
गणेशाथर्वशीर्षम्
ॐ नमस्ते गणपतये । त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि। त्वमेव केवलं कर्त्तासि ।
महाविघ्नात् प्रमुच्यते । महादोषात्प्रमुच्यते । महाप्रत्यवायात्प्रमुच्यते । स सर्वविद्भवति स सर्वविद्भवति । य एवं वेद । इत्युपनिषत् ॥ सहनाववतु । सहनौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।। ।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।। ॥ इति गणेशाथर्वशीर्षम् ॥
पुण्याहवाचनम्
वरुण प्रार्थना
उक्त मन्त्र से वरुण की प्रार्थना कर यजमान भूमि पर दोनों घुटने रखकर कमल के समान अञ्जलि बनाकर शिर के समीप रखे। आचार्य या उपाचार्य उस वरुण कलश को यजमान की अञ्जलि में रखे तथा यजमान निम्न मन्त्र बोलकर ब्राह्मणों से आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करे-
यजमान पुनः आशीर्वाद हेतु यह मन्त्र बोले-
ब्राह्मण:- अस्तु दीर्घमायुः । बोलकर आशीर्वाद दें तथा शिरपर अंजलि में धारण किये कलश को यथा स्थान रख दें। इसी विधि से यजमान दो बार और आशीर्वाद ग्रहण करे । इसके बाद यजमान निम्नलिखित मन्त्रों से ब्राह्मणों के हाथ में जल गन्ध अक्षत पुष्प आदि वस्तुएँ दे ।
ब्राह्मणाः- सन्तु शिवा आपः ॥
यजमानः-
यजमानः-
ब्राह्मण:- सौमंगल्यं चास्तु ॥
यजमानः- ॐ अक्षता: (चावल) पान्तु ।
ब्राह्मणः- आयुष्यमस्तु ॥
यजमान:- पुष्पाणि (फूल) पान्तु ।
ब्राह्मण:- सौश्रियमस्तु ॥
यजमानः- सफलताम्बूलानि ( पान-सुपारी) पान्तु।
ब्राह्मण:- सौमंगल्यं चास्तु ॥
यजमानः- दक्षिणा: ( चन्दन) पान्तु ।
ब्राह्मण:- बहुदेयं चास्तु ॥
यजमान:- पुनः आपः (जल) पान्तु।
ब्राह्मण:- स्वर्चितमस्तु ॥
यजमानः- दीर्घमायुः शान्तिः पुष्टिस्तुष्टिः श्रीर्यशो विद्या विनयो वित्तं बहुपुत्रं बहुधनं चायुष्यं चास्तु ॥
ब्राह्मणाः- तथास्तु ॥
यजमानः- यं कृत्वा सर्ववेदयज्ञक्रियाकरणकर्मारम्भाः शुभाः शोभनाः प्रवर्तन्ते तमहमोङ्कारादिं कृत्वा यजुराशीर्वचनं बहुऋषिमतं समनुज्ञातं भवद्भिरनुज्ञातः पुण्यं पुण्याहं वाचयिष्ये ।
ब्राह्मणाः- ॐ वाच्यताम् ॥
यजमान:- व्रतजपनियमतपः स्वाध्यायक्रतुशमदमदयादानविशिष्टानां सर्वेषां ब्राह्मणानां मनः समाधीयताम्।
ब्राह्मणाः- समाहितमनसः स्मः ॥
ॐ शान्तिरस्तु । पुष्टिरस्तु । तुष्टिरस्तु । वृद्धिरस्तु । अविघ्नमस्तु । आयुष्यमस्तु । आरोग्यमस्तु । शिवमस्तु । शिवंकर्मास्तु । कर्मसमृद्धिरस्तु । धर्मसमृद्धिरस्तु । वेदसमृद्धिरस्तु । शास्त्रसमृद्धिरस्तु । धनधान्यसमृद्धिरस्तु । पुत्रपौत्रसमृद्धिरस्तु । इष्टसम्पदस्तु ॥
बहि:- हताश्च ब्रह्मद्विषः । हताश्च परिपन्थिनः। हताश्च विघ्नकर्तारः । शत्रवः पराभवं यान्तु। शाम्यन्तु घोराणि । शाम्यन्तु पापानि । शाम्यन्त्वीतयः । शाम्यन्तु उपद्रवाः ।
ब्राह्मणाः- वाच्यताम्॥
भो ब्राह्मणाः! मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे अमुककर्मणः कल्याणं भवन्तो ब्रुवन्तु ॥
भो ब्राह्मणाः ! मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे अमुककर्मणः ऋद्धिं भवन्तो ब्रुवन्तु । ब्राह्मणाः- कर्मऋद्ध्यताम्॥ (तीन बार बोलें)
भो ब्राह्मणाः ! मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे अमुककर्मणः स्वस्ति भवन्तो ब्रुवन्तु । ब्राह्मणाः- आयुष्मते स्वस्ति ॥ (तीन बार बोलें)
भो ब्राह्मणाः ! मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य गृहे अमुककर्मणः श्रीरस्त्विति भवन्तो ब्रुवन्तु ।
ब्राह्मणाः – अस्तु श्रीः॥ (तीन बार बोलें)
ब्राह्मणाः- आयुष्मते स्वस्ति ॥
ब्राह्मणाः- स्वस्तिवाचनसमृद्धिरस्तु ॥
अभिषेकः
अविधुर ब्राह्मण कलश के जल से निम्नलिखित मन्त्र बोलकर यजमान का अभिषेक करें-
आयुष्यमन्त्रजपम्
नान्दीमुख श्राद्धम्
पादप्रक्षालनम्
सत्यवसुसंज्ञका विश्वेदेवा नान्दीमुखा
आसनदानम्
सत्यवसुसंज्ञका विश्वेदेवा नान्दीमुखा
गन्धादिदानम्
सत्यवसुसंज्ञका विश्वेदेवा नान्दीमुखा
भोजननिष्क्रयदानम्
सत्यवसुसंज्ञका विश्वेदेवा नान्दीमुखा भूर्भुवः स्वः इदं युग्मब्राह्मणभोजनपर्याप्तामान्ननिष्क्रयभूतं द्रव्यममृतरूपेण स्वाहा सम्पद्यतां वृद्धिः।
सक्षीरयवकुशजलदानम्
सत्यवसुसंज्ञका विश्वेदेवा नान्दीमुखा प्रीयन्ताम् ।
प्रार्थना
दक्षिणादानम्
सत्यवसुसंज्ञका विश्वेदेवा नान्दीमुखा भूर्भुवः स्वः कृतस्याभ्युदयिक श्राद्धस्य फलप्रतिष्ठासिद्ध्यर्थं द्राक्षाऽमलकयव- मूलनिष्क्रयिणीं दक्षिणां दातुमहमुत्सृज्ये ।
अनुगमनम्
अधिप्रत्यधिदेवतालोकपालदिक्पाल वास्तुक्षेत्रपालाद्यावाहनपूजनम्
अधिदेवता
- ईश्वराय नमः ईश्वरमावाहयामि स्थापयामि ।
- उमायै नमः उमामावा० ।
- स्कन्दाय नमः स्कन्दमावा० ।
- विष्णवे नमः विष्णुमावा० ।
- इन्द्राय नमः इन्द्रमावा० ।
- ब्रह्मणे नमः ब्रह्माणमावा० ।
- इन्द्राय नमः इन्द्रमावा० ।
- यमाय नमः यममावा०।
- कालाय नमः कालमावा०|
- चित्रगुप्ताय नमः चित्रगुप्तमावाहयामि ।
प्रत्यधिदेवताः
- अग्नये नमः अग्निमावा० स्थापयामि।
- अद्भ्यो नमः अप आवा० ।
- पृथिव्यै नमः पृथिवीमावा० ।
- विष्णवे नमः विष्णुमावा० ।
- इन्द्राय नमः इन्द्रमावा० ।
- इन्द्राण्यै नमः इन्द्राणीमावा० ।
- प्रजापतये नमः प्रजापतिमावा० ।
- सर्पेभ्यो नमः सर्पानावा० ।
- ब्रह्मणे नमः ब्रह्माणमावा० ।
पंचलोकपालाः
- गणपतये नमः गणपतिमावा० स्थापयामि ।
- दुर्गायै नमः दुर्गामावा० ।
- वायवे नमः वायुमावा० ।
- आकाशाय नमः आकाशमावा० ।
- अश्विभ्यां नमः अश्विनावा० ॥
वास्तोस्पतिः
इन्द्रादिदशदिक्पालाः
- पूर्वे इन्द्राय नमः इन्द्रमावा० स्थापयामि ।।
- आग्नेय्यां अग्नये नमः मावा० ॥
- दक्षिणे यमाय नमः यममावा० ॥
- नैर्ऋत्यां निर्ऋतये नमः निर्ऋतिमावा० ।।
- पश्चिमे वरुणाय नमः वरुणमावा० ।।
- वायव्यां वायवे नमः वायुमावा० ।।
- उत्तरे सोमाय नमः सोममावा०।।
- ईशान्यां ईशानाय नमः ईशानमावा०।।
- ईशानपूर्वयोर्मध्ये ब्रह्मणे नमः ब्रह्माणमावा०॥
- निरृति- वरुणयोर्मध्ये अनन्ताय नमः अनन्तमावा० ॥
प्रधानदेवतापूजनम्’
यहाँ प्रधान पूजन के निमित्त से केवल शिव के पूजन का विधिवत् प्रयोग दिया जा रहा है।
ध्यानम्
आवाहनम्
आसनम् (हाथ में फूल लेकर )
पाद्यम् (पात्र में जल लेकर)
अर्घ्यम् (पात्र में जल लेकर)
आचमनीयम् (पात्र में जल लेकर )
स्नानम् (पात्र में जल लेकर )
दुग्धस्नानम्
दधिस्नानम्
घृतस्नानम्
मधुस्नानम्
शर्करास्नानम्
पश्चामृतस्नानम्
शुद्धोदकस्नानम्’
वस्त्रम
यज्ञोपवीतम्
गन्धम्
अक्षताः
बिल्वपत्राणि
पुष्पम्
दूर्वांकुरान्
नानापरिमलद्रव्यम्
धूपम्
दीपम्
नैवेद्यम्
आचमनीयम्
पानीयं शीतलं शुद्धङ्गाङ्गेयम्महदुत्तमम्।
करोद्वर्त्तनम्
ऋतुफलम्
ताम्बूलम्
दक्षिणा (प्रदक्षिणा)
नीराजनम्
मन्त्रपुष्पम्
विशेषार्घ्यम्
प्रार्थना
अर्पणम्
अनेन कृतेन पूजनेन साम्बसदाशिव: प्रीयतां न मम । तत्सत् श्रीपरमेश्वरार्पणमस्तु ||
बलिदानम्’
दिक्पालबलिदानम्
ॐ त्रातारमिन्द्र० ॥ इन्द्रादिदशदिग्पालेभ्यो नमः पूजयामि।
इसी प्रकार आवाहित देवों तथा क्षेत्रपाल के लिए बलिदान करें ।
- यदि इन्द्रादि दश दिक्पालों का पृथक – २ बलिदान करना हो तो बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग कर एक-एक का बलिदान करें। यथा- इन्द्राय नमः पूजयामि । दधिमाषभक्तबलिं समर्पयामि ।। शो इन्द्रः मम सपरिवारस्य आयुकर्ता क्षेत्रकर्ता शान्तिकर्ता पुष्टिकर्ता तुष्टिकर्ता वरदो भव ।।
क्षेत्रपालबलिदानम्
नौ ग्रहों का ध्यान
सूर्य
चन्द्रमा
मंगल
बुधः
बृहस्पति –
शुक्र
शनि
राहु
केतु
( मस्त्युपुराण ९४ । १-९)
श्रीनवग्रह स्तोत्रम् –
नवग्रह – कवच
नीचे ‘यामलतन्त्र’ का ‘नवग्रह – कवच’ दिया जा रहा है। इसका श्रद्धापूर्वक पाठ करने तथा इसे ताबीज में रखकर भुजा में धारण करने से बहुत लाभ होता है।