Table of Contents
Story of Srimad Bhagwat puran – अथ त्रयोदशोअध्यायः
वराह अवतार की कथा
ब्रह्माजी की आज्ञा पाकर मनु बोले प्रभु मैंश्रृष्टि तो रचूंगा पर उसे रखूंगा कहां क्योंकि पृथ्वी तो जल से डूबी है , इतने में ब्रह्मा जी की नाक से अंगूठे के आकार का एक वराह शिशु निकला वह क्षणभर में हाथी के बराबर हो गया। ऋषियों ने उनकी प्रार्थना की वे सबके देखते देखते समुद्र में घुस गया वहां उन्होंने पृथ्वी को देखा जिसे लीला पूर्वक अपनी दाढ़ पर रख लिया और उसे लेकर ऊपर आए रास्ते में उन्हें हिरण्याक्ष दैत्य मिला जिसे मार कर पृथ्वी को जल के ऊपर स्थापित किया | ऋषियों ने उनकी प्रार्थना की Story of Srimad Bhagwat puran
(अथ चतुर्दशो अध्यायः)
दिति का गर्भ धारण- एक समय की बात है संध्या के समय जब कश्यप जी अपनी सायं कालीन संध्या कर रहे थे उनकी पत्नी दिती उनसे पुत्र प्राप्ति की कामना करने लगी कश्यप जी बोले देवी यह संध्या का समय है ! भूतनाथ भगवान शिवजी अपने गणों के साथ विचरण कर रहे हैं यह समय पुत्र प्राप्ति के लिए अनुकूल नहीं है ! दिती नहीं मानी वह निर्लज्जता पूर्वक उनसे आग्रह करने लगी |
भगवान की ऐसी ही इच्छा है ऐसा समझ कश्यप जी ने गर्भाधान किया और कहा तेरे दो महान राक्षस पुत्र पैदा होंगे जिन्हें मारने के लिए स्वयं भगवान आएंगे, यह सुन दिति बहुत घबराई और अपने किए पर पश्चाताप भी करने लगी,तब कश्यप जी ने कहा घबराओ नहीं तुम्हारा एक पुत्र का पुत्र भगवत भक्त होगा जिसकी कीर्ति संसार में होगी यह जान दिती को संतोष हुआ।
Story of Srimad Bhagwat puran
( अथ पंचदशोअध्यायः )
जय विजय को सनकादिक का श्राप- एक समय की बात है चारों उर्धरेता ऋषि भ्रमण करते हुए भगवान के बैकुंठ धाम में भगवान के दर्शन की अभिलाषा से गए वहां उन्होंने छः द्वार पार कर जब वे सातवें द्वार पर पहुंचे तो जय विजय ने उन्हें रोक दिया इससे कुपित होकर ऋषियों ने उन्हें श्राप दिया जाओ तुम दोनों राक्षस हो जाओ | जय विजय उनके चरणों में गिर गए और श्राप निवारण की प्रार्थना की तब ऋषि बोले तीन जन्मों तक तुम राक्षस रहोगे प्रत्येक जन्म में स्वयं भगवान के हाथों तुम मारे जाओगे | तीन जन्मों के बाद तुम भगवान के पार्षद बन जाओगे, इतने में स्वयं भगवान ने आकर उन्हें दर्शन दिए और ऋषियों ने बैकुंठ धाम के दर्शन किए भगवान बोले ऋषियों यह सब मेरी इच्छा से हुआ है। ऋषियों ने भगवान को प्रणाम किया और प्रस्थान किया |Story of Srimad Bhagwat puran
( अथ षोडषोअध्यायः )
जय विजय का बैकुंठ से पतन अपने पार्षदों को भगवान ने समझाया और कहा यह ब्राह्मणों का श्राप है ब्राह्मण सदा ही मुझे प्रिय हैं इनके श्राप को मैं भी नहीं मिटा सकता | ब्राह्मणों के क्रोध से कोई बच नहीं सकता फिर भी आप चिंता ना करें मैं शीघ्र ही तुम्हारा उद्धार करूंगा। ऐसा कहकर भगवान अपने अन्तःपुर में चले गए और जय विजय का बैकुंठ से पतन हो गया वे वहां से गिरकर सीधे
दिति के गर्भ में प्रवेश कर गए उनके गर्भ में आते ही सर्वत्र अंधकार छा गया जिससे सब भयभीत हो गए | ब्रह्मा जी ने सबको समझाया दिति के गर्भ में कश्यप जी का तेज है इसी के कारण ऐसा है आप निश्चिंत रहें सब ठीक हो जाएगा दिती ने सौ वर्ष पर्यंत पुत्रों को जन्म नहीं दिया
Story of Srimad Bhagwat puran
( अथ सप्तदशोअध्यायः )
Story of Srimad Bhagwat puran हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का जन्म समय पाकर दिती ने दो पुत्रों को जन्म दिया उनके जन्म लेते ही सर्वत्र उत्पात होने लगे सनकादिक के सिवा सारा संसार भयभीत होने लगा मानो प्रलय होने वाली है जन्म की तत्काल बाद ही उनका शरीर बड़ा विशाल हो गया। कश्यप जी ने उनका नाम हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु रखा एक बार हिरण्याक्ष हाथ में गदा लेकर युद्ध के लिए निकला पर उसके सामने कोई नहीं आया तो वे स्वर्ग में पहुंच गए उसे देख कर सब देवता भाग गए हिरण्याक्ष कहने लगा अरे ये महा पराक्रमी देवता भी मेरे सामने नहीं आते तब वह महा विशाल समुद्र में कूद गया और वरुण की राजधानी विभावरी पुरी में पहुंच गया और वरुण से युद्ध की भिक्षा मांगी इस पर वरुण बोले वीर आप से युद्ध करने योग केवल एक ही हैं अभी वे समुद्र से पृथ्वी को निकाल कर ले जा रहे हैं आप उनसे युद्ध करें |Story of Srimad Bhagwat puran
(अथ अष्टादशोअध्यायः )
हिरण्याक्ष के साथ वराह भगवान का युद्ध- वरुण के कथनानुसार वह दैत्य हाथ में गदा लेकर भगवान को ढूंढने लगा और ढूंढते ढूंढते वह वहां पहुंच गया जहां वराह भगवान पृथ्वी को लेकर जा रहे थे | हिरण्याक्ष ने भगवान को ललकारा और कहा अरे जंगली शूकर यह ब्रह्मा द्वारा हमें दी गई पृथ्वी को लेकर तुम कहां जा रहे हो इस प्रकार चुरा कर ले जाते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आती | भगवान ने उसकी इस बात की कोई परवाह नहीं की और वे पृथ्वी को लेकर चलते रहे दैत्य ने उनका पीछा किया और कहा अरे निर्लज्ज कायरों की भांति क्यों भागा जा रहा है इतने में धरती को जल के ऊपर स्थापित कर दिया ब्रह्मा ने दैत्य के सामने ही भगवान की प्रार्थना की भगवान दैत्य से बोले हम जैसे जंगली पशु तुम जैसे ग्रामसिंह ( कुत्ता) को ही ढूंढते फिरते हैं। दैत्य ने गदा से भगवान पर प्रहार किया और इस प्रकार दोनों में घोर युद्ध होने लगा।
Story of Srimad Bhagwat puran
( अथ एकोनविंशोअध्यायः )
हिरण्याक्ष वध दैत्यराज हिरण्याक्ष और भगवान वराह का घोर युद्ध होने लगा हिरण्याक्ष की छाती में भगवान
ने गदा का प्रहार किया गदा , जैसे कोई लोहे के खंभे से टकराई हो हाथ झन्ना कर भगवान के हाथ से छूट कर गदा नीचे गिर गई | यह बताने के लिए कि मेरे हाथ गदा से कम नहीं छाती में एक घूंसा मारा जिससे राक्षस वमन करता हुआ गिर गया और समाप्त हो गया।
( अथ विंशोअध्यायः )
ब्रह्मा जी की रची हुई अनेक प्रकार की सृष्टि का वर्णन ब्रह्मा जी ने अविद्या आदि की श्रृष्टि की उससे उन्हें ग्लानि पैदा हुई उस शरीर को त्याग दिया जिससे संध्या बन गई जिससे राक्षस मोहित हो गए | इसके अलावा
पितृगण, गंधर्व, किन्नर आदि पैदा किए। सिद्ध विद्याधर सर्प मनुओं की रचना की |
[अथ एकविंशो अध्यायः]
कर्दम जी की तपस्या और भगवान का वरदान ब्रह्मा जी ने जब कर्दम ऋषि को श्रृष्टि करने की आज्ञा दी तो वे श्रृष्टि के लिए भगवान की तपस्या करने लगे भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए कर्दम जी ने उनकी स्तुति की और कहा प्रभु में ब्रह्मा जी की आज्ञा से श्रृष्टि करना चाहता हूं मेरी यह कामना पूर्ण करें तब भगवान बोले स्वायंभुवमनु अपनी कन्या देवहूति के साथ चल कर आपके यहां आ रहे हैं आप देवहूति से विवाह करें | उससे आपके नव कन्या होंगी जिन्हें आप मरिच्यादी ऋषियों को ब्याह दें उनसे श्रृष्टि का विस्तार होगा। मैं स्वयं आपके यहां कपिल अवतार धारण करूंगा और सांख्य शास्त्र को कहूंगा, ऐसा वरदान देकर भगवान तो अंतर्ध्यान हो गए और कर्दम जी उस काल की प्रतीक्षा करने लगे और जो समय भगवान ने बताया था उसके अनुसार मनु महाराज अपनी कन्या के साथ आये कर्दम जी ने उनका स्वागत किया और बोले नर श्रेष्ठ आप अपनी प्रजा की रक्षा के लिए ही सेना सहित विचरण करते हैं मुझे क्या आज्ञा है उसे बताएं।
( भागवत कथानक )श्रीमद्भागवत महापुराण की सप्ताहिक कथा के सभी भाग यहां से आप प्राप्त कर सकते हैं |
335 chapters respectively.