आचमन करने की विधि achman mantra in hindi
आचमनकी विधि–
प्रत्येक कार्यमें आचमनका विधान है। आचमनसे हम केवल अपनी ही शुद्धि नहीं करते, अपितु ब्रह्मासे लेकर तृणतकको तृप्त कर देते हैं । आचमन न करनेपर हमारे समस्त कृत्य व्यर्थ हो जाते हैं। अतः शौचके बाद भी आचमनका विधान है।
लाँग लगाकर, शिखा बाँधकर, उपवीती होकर और बैठकर तीन बार आचमन करना चाहिये । उत्तर, ईशान या पूर्वकी ओर मुख करके बैठ जायौं। हाथ घुटनोंके भीतर रखे । दक्षिण और पश्चिमकी ओर मुख करके आचमन न करें ।
– आचमनके लिये जलकी मात्रा – जल इतना ले कि ब्राह्मणके हृदयतक, क्षत्रियके कण्ठतक, वैश्यके तालुतक और शूद्र तथा महिलाके जीभतक पहुँच जाय’। हथेलीको मोड़कर गौके कानकी तरह बना ले | कनिष्ठिका और अँगूठेको अलग कर ले। शेष अँगुलियोंको सटाकर ब्राह्मतीर्थसे निम्नलिखित एक- एक मन्त्र बोलते हुए आचमन करे, जिसमें आवाज न हो । आचमनके समय बायें हाथकी तर्जनीसे दायें हाथके जलका स्पर्श कर ले तो सोमपानका फल मिलता है ।
ॐ केशवाय नमः । ॐ नारायणाय नमः । ॐ माधवाय नमः ।
आचमनके बाद अँगूठेके मूल भागसे होठोंको दो बार पोंछकर ॐ हृषीकेशाय नमः‘ बोलकर हाथ धो ले।
फिर अँगूठेसे नाक, आँखों और कानोंका स्पर्श करे। छींक आनेपर, थूकनेपर, सोकर उठनेपर, वस्त्र पहननेपर, अश्रु गिरनेपर आचमन करे अथवा दाहिने कानके स्पर्शसे भी आचमनकी विधि पूरी हो जाती है ।
आचमन करने की विधि achman mantra in hindi
आचमन बैठकर करना चाहिये – यह पहले लिखा गया है; किंतु घुटनेसे ऊपर जलमें खड़े होकर भी आचमन किया जा सकता है । जब जल घुटनेसे कम हो तो यह अपवाद लागू नहीं होता, तब बैठकर ही आचमन किया जाना चाहिये ।
संकल्प
स्नान, सन्ध्या, दान, देवपूजन तथा किसी भी सत्कर्मके प्रारम्भमें संकल्प करना आवश्यक है। अन्यथा सभी कर्म विफल हो जाते हैं । हाथों में पवित्री धारण कर तथा आचमन आदिसे शुद्ध होकर दायें हाथमें केवल जल अथवा जल, अक्षत, पुष्प आदि लेकर निम्नलिखित संकल्प करे
ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः । अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे…. क्षेत्रे नगरे ग्रामे……..नाम- संवत्सरे …… मासे ( शुक्ल / कृष्ण) पक्षे…..तिथौ …वासरे….गोत्र: …. शर्मा / वर्मा / गुप्तोऽहम् (मध्याह्ने, सायं ) सर्वकर्मसु शुद्ध्यर्थं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं श्रीभगवत्प्रीत्यर्थं च अमुक कर्म करिष्ये ।