श्री राम कथा
( भूमिका ) ramayan katha in hindi
अखिल हिय प्रत्ययनीय परमात्मा, पुरुषोत्तम गुण गुण निलय , कौशल्या नंदनंदन परम ब्रह्म , परम सौंदर्य माधुर्य लावण्य सुधा सिंधु , परम आनंद रस सार सरोवर समुद्भूत पंकज, कौशल्या आनंद वर्धन अवध नरेंद्र नंदन श्री रघुनंदन |
विदेह वनस् वैजयंती जनक नरेंद्र नंदनी, भगवती भास्वती परांबा जगदीश्वरी माँ सुनैना की आंखों की पुत्तलिका , विदेहजा जनकजा जनकाधिराज तनया, जनक राज किशोरी वैदेही मैथिली श्री राम प्राण वल्लभी श्री जानकी जी |
इन दोनों युगल श्री सीता रामचंद्र भगवान के चरण कमलों में कोटि-कोटि नमन नतमस्तक वंदन एवं अभिनंदन, चारों भैया और चारों मैया को कोटि-कोटि प्रणाम ,अनंत बलवंत गुणवंत श्री हनुमान जी महाराज के चरणों में बारंबार नमस्कार समुपस्थित भगवत भक्त श्रीरामकथानुरागी सज्जनों आप सभी को भी कोटि-कोटि नमन |
सज्जनों हम सब अत्यंत भाग्यशाली हैं जो कि वेद रूपी बाल्मीकि रामायण श्री राम कथा को सुनने का पावन संकल्प अपने हृदय में धारण किए हैं |कयी कयी जन्मों के हमारे पूण्य जब उदय होते हैं तब जाकर हमको यह भगवान की सुंदर कथा सुनने को पढ़ने को प्राप्त होती है |
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सज्जनों- ramayan katha in hindi बाल्मीकि रामायण की कथा अतिशय रम्य है | यह सच है जितनी भी रामायण की रचना की गई सभी रामायणों में भगवान श्री राघवेंद्र के विषय में कुछ – कुछ है !
श्री भरत जी , लक्ष्मण जी और शत्रुघ्न के रूपों में | देखिए परमात्मा के रूप अनेक है पर स्वरूप एक ही है |
अनेक रूप रूपा़य विष्णवे प्रभु विष्णवे |
ramayan katha in hindi
भगवान चार रूपों में आए तो, वेद भी चार थे और वेद एक रूप लेकर के बाल्मीकि रामायण के रूप में अपने श्री राघवेंद्र के गुणानुवाद करने के लिए आये |
भगवान चार रूप ग्रहण कर लिए तो चारों वेद एक रूप धारण करके बाल्मीकि रामायण के रूप में अपने श्री राघवेंद्र के गुणानुवाद करने आए |
साक्षात वेद का अवतार ही है | वेद के रामायण के रूप में अवतार लेने की आवश्यकता क्या पड़ी ? यदि आप वेदाध्ययन करने चलें तो आज के समय में( आज के परिवेश में ) वेद को पढ़ना समझना बड़ा कठिन सा लग रहा है |
लेकिन जैसे परमात्मा को समझना बड़ा कठिन सा होता है, भगवान के अवतार के बिना उनके विज्ञान को समझा नहीं जा सकता | उसी प्रकार जब तक वेद का अवतार नहीं हुआ तब तक वेद को भी ठीक से समझ पाना बड़ा कठिन था|
तौ जैसे भगवान अवतार लेकर इस धरा पर आए तो सबके लिए सरल हो गये ( सहज हो गए ) वह जाकर शबरी जी के यहां शबरी से मिले , कोल भील लोगों को भी मिले , केवट को भी मिले और बंदर भालू के लिए भी सहज हो गए |
उसी प्रकार जब भगवान वेद अवतार लेकर के ramayan katha in hindi रामायण के रूप में आए तो वह भी सबके लिए सरल हो गए | यह भगवान वेद का अवतार है वह श्री रामायण का अवतार लेकर इस धारा में पधारे , जीवन में ज्ञान की कितनी उपयोगिता है इसको बताने की जरूरत नहीं है |
और वेद का अर्थ ही होता है ज्ञान की राशि ( ज्ञान का पुंज ) विद ज्ञाने धातु से वेद शब्द निस्पंन्न होता है , लेकिन हम अल्प ज्ञानी जीव जो वेद को नहीं समझते वेद को सरलतम ढंग से समझाने के लिए दो प्रकार के ग्रंथों की रचना हमारे यहां हुई– एक को इतिहास कहते हैं , दूसरे को पुराण कहते हैं !
इतिहास पुराणाभ्यां वेदाभ्यां समुप बृंहयेत् |
इतिहास पुराण वेदो के समुप बृहंण के लिए हैं, अब प्रश्न उठता है कि हमें इतिहास की कथा सुननी चाहिए कि पुराण की कथा सुननी चाहिए , तो हमारे एक आचार्य स्वामी श्री लोकाचार्य जी कहते हैं–
उभयोर्मध्ये इतिहासप्रबलः |
अगर इतिहास पुराण की बात आती है तो हमें इतिहास की कथा सुननी चाहिए पुराण की अपेक्षा, तो इतिहास भी हमारे यहां दो हैं- एक है रामायण और दूसरा है महाभारत तो हम रामायण की कथा सुनें की महाभारत की कथा सुनें |
तो हमारे आचार्य कहते हैं कि- महाभारत की अपेक्षा हमें रामायण की कथा सुननी चाहिए ! रामायण का तात्पर्य है बाल्मीकि रामायण से , रामायण की कथा क्यों सुने इस पर बहुत सी बातें कही गई हैं अलग-अलग आचार्यों के द्वारा और वही आचार्य आगे लिखते हैं कि–
इतिहास श्रेष्ठेन कारागृहवासकतृय वैभवं मुच्यते |
यह रामायण श्रेष्ठ इतिहास है क्योंकि इसमें कारागृह वास कर्तृ श्री जानकी जी के वैभव का वर्णन है | देखिए श्री रामचरितमानस की अतिशय ख्याति हैो वर्तमान में , यदि रामचरितमानस में राम चरित्र की प्रधानता है तो महर्षि बाल्मीकि लिखते हैं–
काव्यं रामायणं कृत्स्नं सीतायां चरितं महत् |
कि ramayan katha in hindi बाल्मीकि रामायण में श्री सीता जी के चरित्र की प्रधानता है, और सीता जी के वैभव का वर्णन होने के कारण यह रामायण श्रेष्ठ इतिहास है | किस वैभव का वर्णन है |
तो देखिये- श्री राम जी का जानकी जी से तीन विश्लेष हुआ, ( तीन वियोग हुआ ) पहला वियोग दंडकारण्य में, दूसरा वियोग भगवान ने जब जानकी जी को पुनः वन भेजा था, और वह महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहीं, और तीसरा वियोग हुआ श्री जानकी जी जब धरती के भीतर प्रविष्ट हो गई थीं |
यह तीन वियोग हुए और हमारे आचार्यों ने कहा है– तीनों वियोग तीन कारण से हुये
- प्रथम वियोग- कृपापक्ष को प्रकाशित करने के लिए है |
- दूसरा वियोग- पारतंत्र को प्रकट करने के लिए |
- और तीसरा वियोग- अनन्यार्हत को प्रकट करने के लिए है |
तो कृपा क्या है ? क्या रावण में इतनी सामर्थ्य थी कि जो जानकी जी का अपहरण कर – सीता जी को लंका ले जा सकता था ? मानस में तो गोस्वामी जी ने लिखा है- लक्ष्मण ने छोटी रेखा भी खींची थी |
रामानुज लघु रेख खिंचाई सो नहिं लांघइ अस मनुषाई |
रावण में इतनी सामर्थ्य भी नहीं थी कि जो लक्ष्मण जी के द्वारा खींची गई छोटी सी रेखा का उल्लंघन कर सके , तो क्या वह जानकी जी का अपहरण करने में समर्थ था | तो हमारे आचार्य कहते हैं– जानकी जी जानबूझकर के लंका में गई क्योंकि कहा कि दुष्टों का उद्धार कराने के लिए गई | देखिए–
आनुकूलस्य भक्तिः प्रातिकूलस्य मुक्तिः |
हमारे आचार्यों ने कहा जो भगवान के अनुकूल होते हैं उसे भक्ति देते हैं और जो प्रतिकूल होते हैं उन्हें मुक्ति देते हैं |
[आगें की कथा अगले भाग में पढ़ें]