गृहस्थके कर्म क्या है जाने- grahasth ke karam kya hai
लम्बोदरं परमसुन्दरमेकदन्तं
रक्ताम्बरं त्रिनयनं परमं पवित्रम् ।
उद्यद्दिवाकरनिभोज्ज्वलकान्तिकान्तं
विघ्नेश्वरं सकलविघ्नहरं नमामि ॥
गृहस्थके कर्म क्या है जाने- grahasth ke karam kya hai
गृहस्थके नित्यकर्मका फल-कथन
अथोच्यते गृहस्थस्य नित्यकर्म यथाविधि ।
यत्कृत्वानृण्यमाप्नोति दैवात् पैत्र्याच्च मानुषात् ॥
(आश्वलायन)
शास्त्रविधिके अनुसार गृहस्थके नित्यकर्मका निरूपण किया जाता है, जिसे करके मनुष्य देव-सम्बन्धी, पितृ-सम्बन्धी और मनुष्य – सम्बन्धी तीनों ऋणोंसे मुक्त हो जाता है।
‘जायमानो वै ब्राह्मणस्त्रिभिऋणवा जायते‘ (तै० सं० ६।३।१० ।५)
के अनुसार मनुष्य जन्म लेते ही तीन ऋणोंवाला हो जाता है। उससे अनृण होनेके लिये शास्त्रोंने नित्यकर्मका विधान किया है। नित्यकर्ममें शारीरिक शुद्धि, सन्ध्यावन्दन, तर्पण और देव-पूजन प्रभृति शास्त्रनिर्दिष्ट कर्म आते हैं।
इनमें मुख्य निम्नलिखित छः कर्म बताये गये हैं-
सन्ध्या स्नानं * जपश्चैव देवतानां च पूजनम् ।
वैश्वदेवं तथाऽऽतिथ्यं षट् कर्माणि दिने दिने ॥
(बृ० प० स्मृ० १ । ३९ )
मनुष्यको स्नान, सन्ध्या, जप, देवपूजन, बलिवैश्वदेव और अतिथिसत्कार – ये छः कर्म प्रतिदिन करने चाहिये ।