rukmani ji ka patra

रुक्मिणी जी का श्रीकृष्ण को प्रेम पत्र rukmani ji ka patra श्रुत्वा गुणान्‌ भुवनसुन्दर शृण्वतां तेनिर्विश्य कर्णविवरैर्हरतोऽङ्गतापं।रूपं...